मेरे पास देश भक्ति नापने का कोई पैमाना नहीं- जॉन अब्राहम By Shyam Sharma 20 May 2018 | एडिट 20 May 2018 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर अक्षय कुमार के बाद जॉन अब्राहम एक ऐसे स्टार हैं जो देश से जुड़े विषयों पर फिल्में बनाना पसंद करते हैं। जिस प्रकार उनकी फिल्म मद्रास कॅफे ने तमिल उग्रवाद और राजीव गांधी की हत्या के तथ्य उजागर किये थे, उसी प्रकार अब वह पोखरण परमाणू परिक्षण पर आधारित फिल्म ‘परमाणू’ के साथ दर्शकों के सामने आने वाले हैं। फिल्म को लेकर जॉन से एक मुलाकात। आपको नहीं लगता कि परमाणू और पिछली रिलीज फिल्म के बीच काफी गैप आ गया ? दरअसल मुझे जब फिल्म के डायरेक्टर अभिषेक ने पोखरन और परमाणू तथा न्यूक्लीयर टेस्ट के बारे में बताया तो मुझे वह आइडिया बहुत चेलेजिंग लगा। इसके बाद मैने अपनी टीम के साथ उसे डवलप किया। मेरे लिये यह फिल्म इतनी महत्वपूर्ण थी कि मैने सोच लिया था कि इसमे दो साल लगे या तीन, मुझे इसे अच्छी फिल्म के तौर पर बनाना है। फिल्म के कंपलीट होने में थोड़ा वक्त ज्यादा लगा इसीलिये पिछली फिल्म इसके बीच गैप आ गया। मद्रास कैफे या मौजूदा फिल्म को मनोरंजक बनाना कितना मुश्किल होता है ? बतौर प्रडयूसर वह मेरा काम है कि मुझे ऐसे विषयों पर बनने वाली फिल्मों को इस प्रकार शेप देनी है कि वह जो कुछ बताना चाहती हैं उसे मनोरंजनपूर्ण तरीके से बताया जाये, वह कहीं से भी डाकूमेंट्री न लगे। यह फिल्म देखने के बाद देश वासियों को प्राउड फील होगा कि आज से बीस साल पहले उस वक्त के प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी और महान वैज्ञानिक अब्दुल कमाल के सौजन्य से हम परमाणू ताकत से सुपर पावर कन्ट्री के नागरिक बन गये हैं। ये सब दिखाते हुये भी इसे मैं मनोरंजक थ्रिलर फिल्म कहना चाहूंगा। बेसिकली फिल्म के जरिये आप क्या बताना चाहते हैं ? मैने बताया न कि मैं बताना चाहता हूं कि इस फिल्म के जरिये वह सब भी जान जायें जिन्हें परमाणू शब्द के मायने नहीं पता, उन्हें मुझे फिल्म के जरिये बताना है कि परमाणू मतलब एटम। परमाणू बम मतलब एटम बम या परमाणू परिक्षण यानि न्यूक्लीयर टेस्ट। पहले तो आप अपने आर्टिक्ल के जरिये उन्हें यह सब बतायेगें, उसके बाद फिल्म उन्हें बारीकी से यह सारी बातें समझायेगी। इसके अलावा मैने जानबूझ कर फिल्म के लिये एक हिन्दी टाइटल यूज किया, वरना मैं फिल्म का टाइटल एटम बम या न्यूक्लीयर टेस्ट आदि कुछ भी रख सकता था। दरअसल मद्रास कैफे से मैने एक चीज सीखी कि हमेशा जा भी कहो सिंपल ढंग से कहो। बेशक वह बहुत ही इन्टेलीजेंट फिल्म थी लेकिन थोड़ी जटिल थी। इस बार मैने इस बात का ख्याल रखते हुये कहानी बहुत ही सिंपल तरीके से कही है। जिसके चलते आम मजदूर या साइकल रिक्शा चालक भी उस फिल्म को देखते हुये पूरी तरह से समझ सके। एक तरफ अक्षय कुमार बेबी या एयर लिफ्ट जैसी देश भक्ति फिल्में बनाते है, दूसरी तरफ आप भी विकी डोनर, फोर्स, मद्रास कैफे या परमाणू जैसी उद्देश्यपूर्ण फिल्में बनाते हैं। दोनों में क्या फर्क है ? मुझे नहीं लगता कि कोई फर्क है। अक्षय भी अपनी फिल्मों में जो दिखाते हैं वह पूरी तरह मनोरंजक होता है लेकिन साथ ही उनमें एक स्ट्रांग मैसेज भी होता है। यही मैं भी करता हूं। हम दोनों का एक ही मकसद है, यानि कोई अच्छे संदेश के साथ दर्शकों का मनोरजंन करना। आप कितने देश भक्त हैं ? मेरे पास देश भक्ति नापने का कोई पैमाना तो नहीं हैं लेकिन जैसे मुझे साउंड स्पीर्क्स बहुत पसंद हैं, हैलमेट, बाइकर जाकेट तथा बाइक्स पसंद है। इन सबसे कीमती एक चीज मेरे घर में है उसका नाम हैं इंडियन फ्लैग यानि मेरे तिरंगा झंडा, जिसे मैं हमेशा फोल्ड करके रखता हूं और हर रोज उसे देखता हूं। यह सब मैं किसी को दिखाने के लिये नहीं करता। मैं एक इंडियन हूं और वह सब कहीं न कहीं मेरे काम से रिफक्लेक्ट होता है। रीयलस्टिक फिल्में बनाते वक्त किस हद तक सिनेमा लिबर्टी ली जा सकती है ? मुझे लगता है कि ऐसी फिल्मों में पंदरह प्रतिशत फिल्मी लिबर्टी और पिचासी प्रतिशत रीयल कहानी होती है । इसी फिल्म की बात की जाये तो इस कहानी के जितने भी हीरो हैं हमने उनके नाम बदलकर रखे हैं। परन्तु इन्सीडेंट्स रीयल हैं। इसके अलावा वह हर चीज जो पोखरण में हुई थी वह सब आपको फिल्म में नजर आयेगी। #interview #John Abraham #Parmanu #Deshbhakti हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article