सुल्तान में सलमान को पहलवानी सिखाने वाला ससुर हो या रुस्तम में अक्षय की बेगुनाही पर खबर छापने वाला जर्नलिस्ट । एमएस धोनी में धोनी को सफल होने से रोकने वाला रेल अफसर हो या एयरलिफ्ट में अक्षय की बात सुनने वाला एकमात्र भारतीय अधिकारी । यहां एक चीज समान थी और वो थे कुमुद मिश्रा । अपने अभिनय से कुमुद मिश्रा ने भले ही धीरे लेकिन अपना एक अलग मुकाम खड़ा किया है । उन्हें हिंदी सिनेमा में पहचान इम्तियाज अली की फिल्म रॉकस्टार से मिली। इसके बाद वह कई अन्य फिल्मों में नजर आये। जिनमे फिरंगी एमएस धोनी रुस्तम एयरलिफ्ट बैंगिस्तान लेकर हम दीवाना दिल आदि फ़िल्में शामिल हैं ।
कुमुद मिश्रा मध्यप्रदेश के रीवा के रहने वाले हैं। भले ही काम ने कुमुद को मुंबई पहुंचा दिया लेकिन उनका परिवार अपने गांव में ही रहता है । कुमुद का जन्म चाकघाट के आमन गांव में हुआ था । उन्होंने रीवा और भोपाल में रहकर पढ़ाई की है । इसके बाद उन्होंने दिल्ली में एनएसडी से डिप्लोमा किया । कुमुद ने मुंबई में थियेटर तो ज्वाइन कर लिया लेकिन यहां पैसा नहीं जुट पा रहे थे । इसके लिए टीवी का रास्ता पकड़ा । महायज्ञ और स्वाभिमान जैसे धारावाहिक किए।
कुमुद की पहली फिल्म साल 1996 में श्याम बेनेगल की सरदारी बेगम थी। इस फिल्म से उन्हें कोई खास पहचान नहीं मिली और वो वापस अपने प्यार थियेटर की तरफ लौट गए । इसके दस सालों बाद 2007 में कुमुद ने फिल्मों में वापसी की । कुमुद ने फिर 1971 में दैट गर्ल इन येलो बूट्स और पटियाला हाउस में काम किया । हर किसी की जिंदगी में ऐसा रोल आता है जिससे उसे असली पहचान मिलती है । कुमुद की जिंदगी में वो रोल इम्तियाज अली लेकर आए । कुमुद ने इम्तियाज की फिल्म रॉकस्टार में खताना का रोल प्ले किया था जो कैंटिन चालक था । इस छोटे से रोल ने कुमुद को रातों रात फेमस कर दिया । कुमुद ने बॉलीवुड के लगभग सभी बड़े एक्टर्स की फिल्मों में काम किया । उन्होंने अभी तक रांझना, बदलापुर, एयरलिफ्ट, सुल्तान और रुस्तम जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया है और अब उनकी अगली फिल्म है प से प्यार और फ से फरार ।
कुमुद कहते हैं कि मेरे पिता रामलीला में रोल प्ले किया करते थे वहीं मेरे दादा रामचरितमानस का पाठ करते थे । शुरुआत से ही इन चीजों ने मुझ पर गहरा असर छोड़ा । हालांकि स्कूल में हमें नाटक बहुत बेहतरीन ढंग से सिखाया जाता था । इसके बाद मैं भोपाल आ गया । भोपाल में मैंने थियटर करना शुरु किया । इसके बाद मैं एनएसडी दिल्ली चला गया। एक्टिंग की पढ़ाई करने के बाद मैंने मुंबई में ही थियेटर ज्वाइन कर लिया । मुंबई में रहना आसान नहीं था इसलिए टीवी की तरफ कदम बढ़ाया ।
कुमुद कहते हैं कि थियेटर ही उनका पहला शौक है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सिनेमा छोटा आर्ट हो जाता है। सिनेमा में अच्छा काम मिल रहा है तो मैं उसका भी सुख भोग रहा हूं और थियेटर का भी मज़ा ले रहा हूं । प से प्यार और फ से फरार को लेकर कुमुद कहते हैं कि फ़िल्म वैसे तो लव स्टोरी है लेकिन इस प्यार में मुश्किलें बहुत हैं। फ़िल्म की कहानी उत्तर प्रदेश में भगवान कृष्ण की नगरी मथुरा की है । एक छोटी जाति का लड़का सूरज जो किसी बड़ी जाति की लड़की से प्रेम कर बैठता है । दोनों का प्रेम अभी परवान भी नहीं चढ़ता है कि लड़की के घरवालों को पता लग जाता है । यह लड़की अपने प्रेमी के साथ छिपती घूम रही है । अगर शॉर्ट में कहूं तो यह फ़िल्म कास्ट पॉलिटिक्स को डील करती है । कास्ट और सोसायटी का प्यार पर क्या असर पड़ता है इसी को फ़िल्म में दिखाया गया है । आपके बारे में यह कहना पड़ेगा कि आपने अपनी हर फ़िल्म में खुद को अलग दिखाने की कोशिश की है। इस पर कुमुद कहते हैं कि मैं अपना काम ईमानदारी से कर रहा हूं । हर किरदार को अलग तरह से करने की कोशिश करता हूं इसलिए आपको ऐसा लगता है। फ़िल्मों का चयन किस आधार पर करते हैं ये पूछने पर कुमुद कहते हैं कि स्क्रिप्ट को मैं हीरो मानता हूं लेकिन परिस्थितिवश फ़िल्मों का चुनाव दोस्ती और पैसे के आधार पर भी करना पड़ता है ।
मीडिया से दूर रहने की वजह बताते हुए कुमुद कहते हैं कि मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है कि मैं मीडिया से दूरी बनाकर रखूं । दरअसल मेरे पास बताने के लिए कुछ होता ही नहीं । अब चूंकि मेरी फ़िल्म आ रही है इसलिए उसे प्रमोट करने के लिए आपके सामने बैठा हूं । इसमें कोई दो राय नहीं कि कुमुद अब फिल्मों में सफलता की गारंटी बन चुके हैं । हर कोई उन्हें अपनी फिल्म में साइन करना चाहता है । कुमुद की खासियत यही है कि वो हर रोल में खुद को इस कदर ढाल लेते हैं कि सहजता का पर्याय बन जाते हैं। वो हर रोल में वैसे ही दिखने लगते हैं जैसा उन्हें सोचा जा रहा होता है।
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