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‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं'

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By Mayapuri Desk
‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं'
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‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं' रिनी दास

- शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

अभिनेत्री रिनी दास ने किया ये दावा

कोलकाता में जन्मी और मुंबई आकर छोटे परदे पर ‘गुमराह-सीजन 5’, ‘परदेस मे है मेरा दिल ‘नागिन 2’, ‘कयामत की रात’, ‘कसम तेरे प्यार की’, ‘ये हैं चाहतें’ जैसे टीवी सीरियलों में अभिनय कर काफी शोहरत बटोर चुकी अभिनेत्री रिनी दास का दावा है कि यह तो अभी उनकी शुरूआत है। अभी तो उन्हें काफी आगे जाना है। बहुत कुछ हासिल करना है। फिलहाल वह लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’ को लेकर सूर्खियों में हैं।

पेश है रिनी दास संग हुई बातचीत के खास अंश:
‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं
आपकी पृष्ठभूमि क्या है? क्या आपके घर में कला का माहौल है?
हम कोलकाता के मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। हमारे घर पर इतना ज्यादा कलाकार कोई माहौल नहीं रहा है। मेरे परिवार का कोई भी सदस्य फिल्म इंडस्ट्री सें नहीं जुड़ा हुआ है। मैं पढ़ने में काफी तेज थी। तो मेरे माता पिता भी चाहते थे कि मैं पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान दॅूं। मगर कभी कभार हम अपने माता पिता के साथ सिनेमा देखने जाया करते थे। पर हम बंगाली हैं,तो सगीत व नृत्य हमारे यहां सभी थोड़ा बहुत सीखते हैं। इसी के चलते मेरे अंदर बचपन से ही अभिनय का कीड़ा रहा है। जब भी मैं फिल्म देखती या टीवी पर गाना वगैरह देखती थी, तो मम्मी की साड़ी पहनकर आइने के सामने खड़े होकर उस गाने की नकल करती थी।यह सब मैं मजे के लिए किया करती थी। इस बारे में मैंने कभी किसी को कुछ बताया भी नहीं था।
मुझे खुद को भी यकीन नहीं था कि मुझे आगे चलकर अभिनय करना है। सच कहूँ तो पढ़ाई में तेज होने के चलते मैं साइंस विषय के साथ पढ़ाई कर रही थी और मेरी इच्छा डाक्टर बनना था। मैंने डाक्टरी की पढ़ाई करने के लिए प्रयास भी किए। मगर 12 वीं के बाद जब मैने मेडिकल की प्रवेश परीक्षा दी,बात गड़बड़ा गयी। उसके बाद मैंने स्नातक तक की पढ़ाई की। यूँ तो उसी वक्त मेरे दिमाग में आ गया था कि डाक्टरी की पढ़ाई मेरे वश की नहीं है, मुझे अभिनय के क्षेत्र में कोशिश करनी चाहिए। मगर मैं डर की वजह से यह बात अपने माता पिता से नहीं कह पायी। और स्नातक की पढ़ाई करती रही। मेरे माता पिता इस क्षेत्र को अच्छे नजरिए से देखते भी नहीं है। उन्हें लगता है कि बाॅलीवुड में सिर्फ संघर्ष है। लड़कियों के लिए अच्छी जगह नही है। मेरे माता पिता को लगता है कि बाॅलीवुड में काम आसानी से नहीं मिलता।
हर कोई संघर्ष झेल नहीं सकता और लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं। इससे अच्छा है कि आप किसी अन्य क्षेत्र में काम कर अच्छी जिंदगी जियो। स्नातक की डिग्री मिलने के बाद मेरे पिता जी ने मुझसे कहा कि अब मुझे एमबीए करना चाहिए। तब मैने अपने माता पिता से कहा कि मुझे एक वर्ष का समय दीजिए,मैं मुंबई जाकर कोशिश करती हूं,कुछ काम मिला,तब ठीक अन्यथा मैं वापस आकर एमबीए कर लूंगी।मुझे मुंबई आने की इजाजत मिल गयी।2015 में मैं मुंबई पहुॅच गयी।
पहले छह माह तो काफी संघर्ष करना पड़ा,मगर फिर मुझे पहले ‘गोल्ड जिम’एक विज्ञापन मिला और फिर एकता कपूर के सीरियल ‘गुमराह’के कुछ एपीसोड में अभिनय करने का अवसर मिला।उसके बाद मुझे सीरियल ‘परदेस में है मेरा दिल’ मिला. इसके बाद से ईश्वर की कृपा से लगातार कई सीरियल किए हैं।अभी मैने एक लघु फिल्म ‘‘लव नोज नो जेंडर’’ की है, जिसे ‘यूट्यूब’ चैनल‘कंटेंट का कीड़ा’ पर काफी पसंद किया जा रहा है। इस लघु फिल्म को करीबन दस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं
लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’ आपको कैसे मिली ?

मैंने ‘कंटेंट का कीड़ा’ के शिवांकर अरोरा और षिप्रा अरोरा के संग पहले भी एक कार्यक्रम ‘डेटिंग सियापा’ किया था। इसमें मैंने एक एपीसोड किया था। इस तरह हमारा पुराना संबंध रहा है। उसके बाद षिप्रा ने लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’ के अंकिता के किरदार को मुझे ही ध्यान में रखकर लिखा था। उन्होंने इसे लिखते समय ही सोच लिया था कि वह मुझे ही इस किरदार में अभिनय करने के लिए याद करेंगें।
जब उन्होंने मुझे पहली बार कहानी सुनायी, तो इमानदारी की बात यही है कि मुझे यह कहानी बहुत पसंद आयी थी। मेरे दिमाग में आया कि सुप्रीम कोर्ट व सरकार से समलैंगिक प्यार की इजाजत मिल चुकी है, अब यह अपराध नहीं रहा। फिर भी लोग अभी भी समलैंगी लोगों को हिकारत की नजर से देखते हैं। यह लघु फिल्म ‘एलजीबीटी क्यू’ समुदाय और उनके रिश्तों की बात करती है। यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर बात की जानी चाहिए। इसलिए इस कहानी को कहा जाना चाहिए।
अपने किरदार के संबंध में क्या कहेंगी?

मैंने इस फिल्म में अंकिता का किरदार निभाया है, जो एक  पढ़ी- लिखी, सुलझे हुए विचारों की लड़की है। वह जानती है कि वह क्या चाहती है और वह समाज या किसी से नहीं डरती। उसने अपनी सच्ची भावनाओं को कभी छिपाया नहीं। वह न केवल स्वीकार करती है कि वह कौन है,बल्कि समलैंगिक होने पर गर्व महसूस करती है। साथ ही, अगर वह तैयार नहीं है, तो वह अपने महिला प्रेम को उसके साथ रहने के लिए मजबूर नहीं करने वाली है।
क्या इस किरदार को निभाने से पहले आपने एलजीबीटी कम्यूनिटी को लेकर रिसर्च किया था?

मैंने काफी शोध किया। मुंबई में मेरे दोस्तों में से कई एलजीबीटी समुदाय से ही हैं। तो मैंने बहुत नजदीक से देखा है कि इस समुदाय के लोगों का किस तरह का संघर्ष रहता है।
‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं
लघु फिल्म ‘लव नोज नो जेंडर’ को किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं?

मुझे खुशी है कि लोग इस फिल्म को पसंद और सराह रहे हैं। हम पहले ही इतने पुरस्कार जीत चुके हैं यानी हमने कुछ सही किया है। मुझे यकीन है कि अधिक लोग कहानी और पात्रों के साथ जुड़ने जा रहे हैं।
आपकी नजर में प्यार क्या है?

मुझे लगता है कि प्यार सिर्फ प्यार है,फिर चाहे कोई भी लिंग हो ... हम सीधे और समलैंगिक के बीच एक विभाजन क्यों बनाते हैं। हम सभी समान हैं और हमारे पास प्यार करने के समान अधिकार हैं। यह फिल्म पूरी तरह से इसे सही ठहराती है।
इस फिल्म में अभिनय करने के अनुभव क्या रहे?

फिल्म के निर्देशक शिवांकर अरोरा और लेखक व निर्माता शिप्रा अरोरा आपस में भाई बहन हैं। मुझेे इस भाई-बहन की जोड़ी के साथ काम करने में बड़ा आनंद आया। शिवांकर  सर्वश्रेष्ठ निर्देशक हैं। वह वास्तव में जानते हैं कि वह क्या चाहते हैं और स्क्रिप्ट की माॅंग क्या है? फिर भी वह अभिनेताओं को अपने तरीके से चरित्र को चित्रित करने की पूरी स्वतंत्रता देते है। कई बार हम लड़ते हैं और बहस करते हैं लेकिन अंत में, जब मैं अंतिम उत्पाद देखती हूं, तो मुझे लगता है कि यह सब इसके लायक था।
शिप्रा और मैं अब दोस्तों की तरह हैं। अब वह परिवार की तरह हैं। वह हमेशा मुझे इतना सहज महसूस कराती हैं और मुझे निरंतर आश्वासन देती थी कि मैं यह कर सकती हूं। मुझे लगता है कि शिप्रा वास्तव में प्रतिभाशाली हैं। उनकी कहानियाँ इतनी सरल हैं,फिर भी इतनी अनोखी हैं.... आप कन्टेंट का कीड़ा से कोई भी कहानी निकालेंगे और आप समझ जाएंगे कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूँ।
‘समलैंगिकों को भी सम्मान पाने व प्यार करने का हक हैं
सुप्रीम कोर्ट ने तो समलैंगिक संबंधों को जायज ठहराया हुआ है?
मगर भारत में एलजीबीटीक्यू समुदाय को स्वीकार करने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना होगा। मुझे पता है कि समाज के रूप में हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, लेकिन हम अभी भी उतने खुले विचारों वाले नहीं हैं, जितना हम होने का दावा करते हैं। एलजीबीटीक्यू समुदाय को अभी भी निम्नस्तर का आंका जाता है। उनका मजाक उड़ाया जाता है। हम समलैंगिक प्रेम और समलैंगिक रिश्तों पर बड़े व्याख्यान देते हैं, लेकिन अगर यह हमारे परिवार में होता है, तो हमें इसे स्वीकार करने में कठिन समय लगता है ... और फिर आता है कि लोग क्या कहेंगें?
इसके अलावा क्या कर रही हैं?
मैंने अमेजाॅन की एक वेब सीरीज की है, जो जल्द आएगी, मगर इसके संबंध में फिलहाल मैं चुप ही रहना चाहूंगी।

किस तरह के किरदार निभाने हैं?
मुझे महिला प्रधान सशक्त किरदार निभाने हैं।
किन लोगों के साथ काम करने की तमन्ना है?
शाहरुख खान व राज कुमार राव के साथ काम करने की इच्छा है।

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