बॉलीवुड में इन दिनों संजय लीला भंसाली निर्मित और मंगेश हडवले निर्देशित फिल्म ‘‘मलाल’’ की काफी चर्चाएं हैं। यह मुंबई और 1998 की बैकड्रॉप पर एक महाराष्ट्रियन दब्बू किस्म के युवक और तेज तर्रार उत्तर भारतीय लड़की की प्रेम कहानी है। इस फिल्म में निम्न मध्यम वर्गीय महाराष्ट्रियन परिवार के लड़के शिवा मोरे के किरदार में मिजान जाफरी है,जिन्हें अभिनय विरासत में मिला है। वह अपने समय के मशहूर हास्य अभिनेता जगदीप के पोते व अभिनेता जावेद जाफरी के बेटे हैं।
प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के अंश..
फिल्मी माहौल में परवरिश पाने के चलते आप भी फिल्मों में कूद पड़े?
-घर में फिल्म का माहौल हो, तो फिल्मों के प्रति रूझान तो हो ही जाता है। मेरे दादा जी जगदीप का बॉलीवुड में अपना एक मुकाम है। मेरे पिता जावेद जाफरी ने भी अभिनय में अच्छा नाम कमाया है। तो इसका असर मेरे दिलो दिमाग पर होना स्वाभाविक है। अनजाने ही दिमाग में फिल्मां की बात आ ही जाती है। मगर मेरा फिल्मों से जुड़ने के पीछे असली वजह संजय लीला भंसाली सर हैं।
वैसे मुझे स्कूल दिनों से ही संगीत और स्पोर्टस में रूचि रही है। मुझे इन्ही क्षेत्रां में कुछ करना था। पर अचानक एक दिन मेरी मुलाकात संजय सर (संजय लीला भंसाली) से हो गयी। उन्होने ही मुझसे अभिनय करने के लिए कहा। उन्होने कहा कि व मुझे अपने बैनर की फिल्म से लॉन्च करेंगे। तब पहली बार मेरे दिमाग में आया कि मुझे यही करना है। यदि बॉलीवुड का इतना बड़ा निर्देशक कुछ कहे, तो उसके मायने होते हैं। उससे पहले मैं अमरीका के एक कॉलेज में बिजनेस की पढ़ाई कर रहा था।
आपके अभिनय की ट्रैनिंग ?
-मैं जब 20 साल का होने वाला था, तब मैंने अमरीका के न्यूयार्क शहर में ‘‘स्कूल आफ विज्युअल आर्ट्स’’ में एडमीशन लिया। चार साल का कोर्स था। पर मैं दो साल तक पढ़ाई करने के बाद बिना पिता जी को बताए पढ़ाई छोड़कर मुंबई वापस आ गया। क्योंकि तब मुझे शर्मिन से ही पता चला कि संजय सर ‘पद्मावत’ शुरू कर रहे हैं। मैंने सोचा कि संजय सर के साथ काम करते हुए मैं प्रैक्टिकल ट्रैनिंग हासिल कर सकता हूं। मेरे मन में यह डर भी उपजा संजय सर का आफर मिले तीन साल हो चुके हैं। अभी यहां दो साल की पढ़ाई बाकी है। इस बीच संजय सर ने किसी अन्य को लेकर फिल्म शुरु कर दी, तो मैं क्या करुंगा। मैंने अमरीका से फोन पर सिर्फ मां से बात की और मुंबई आ गया। पर मेरे इस कदम से मेरे पिता जी आज तक मुझसे बहुत नाराज हैं। यहां आकर मैंने संजय सर के साथ एक साल तक फिल्म ‘पद्मावत’ के सेट पर काम किया। वह मुझसे रिहर्सल करवाते थे और मेरी गलतियां बताते थे। तो मेरी अभिनय की बेहतरीन ट्रैनिंग हो गयी। उन दिनों मेरे लिए संजय सर पूरी तरह से अभिनय का स्कूल बन चुके थे। मैं इस फिल्म में सहायक निर्देशक भी था।
यदि इस फिल्म के निर्माण से संजय लीला भंसाली न जुडे़ होते, तो आप यह फिल्म क्यों करते?
-पहली बात तो आज जो फिल्म ‘मलाल’ बनी है, यदि इसके साथ संजय सर न जुड़े होते, तो यह ‘मलाल’ कुछ अलग तरह की बनी होती। इस सच को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। फिल्म के सातों गाने संजय सर ने बनाए हैं। फिल्म का लुक, मेरे किरदार का लुक, मेरे संवाद सब पर पचास प्रतिशत संजय सर का है। कलाकार के अंदर से अभिनय निकलवाने में उन्हें महारत हासिल है। कथा कथन में उनका कोई मुकाबला नहीं। यदि ‘मलाल’ से संजय सर न जुड़े होते, तो भी मैं इसकी सशक्त कहानी के कारण जरुर करता। लेकिन मैं यह नहीं भ्ूल सकता कि मेरा ‘मलाल’ से जुड़ना संजय सर की ही वजह से हुआ।
फिल्म ‘‘मलाल’’ है क्या?
-यह कहानी चाल में रहने वाले निम्न मध्यम वर्गीय परिवार के लड़के शिवा की कहानी है। शिवा के अंदर काफी कुछ करने की काबीलियत है। स्मार्ट है, पर वह अपने अंदर की प्रतिभा को सही राह पर नहीं ले जा पाता। इस तरह के कई लड़के होते हैं, जो अपनी काबीलियत को सही दिशा नहीं दे पाते। वह अब अपनी जिंदगी के ऐसे मोड़ पर है जो सही राह या गलत राह पर जा सकता है।
आपने देखा होगा कि हमारे समाज में तमाम पॉलीटीशियन व अन्य तरह के लोग ऐेसे लड़कों का ब्रेन वाश कर अपनी मर्जी का काम करवाते हैं। ऐसा ही शिवा के साथ है, पर जब उसकी जिंदगी में आस्था त्रिपाठी नामक लड़की आती है, तो सब कुछ बदल जाता है। आस्था उसे समझाती है कि तुम्हारे मां बाप तुमसे क्या चाहते हैं और तुम क्या कर रहे हो.जबकि तुम स्मार्ट हो, तुम्हारे अंदर काबीलियत भी है। वह उसकी जिंदगी बदलती है, उसकी एक यात्रा है। इस यात्रा में कैसे शिवा को आस्था त्रिपाठी से प्यार हो जाता है। उसकी कहानी है। पर आस्था को शिवा से प्यार नहीं है। फिल्म का ट्रीटमेंट कमाल का है।
शिवा व मिजान में कितना अंतर है?
-जमीन आसमान का अंतर है। शिवा निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से है। वह मराठी कल्चर में पला बढ़ा चाल में रहता है। लोकल ट्रेन में यात्रा करता है। मराठी भाषा में बात करता है। चॉल के कमरे में रहता है, जिसमें पांच लोग रहते है। जबकि मिजान फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है। जुहू के पॉश इलाके के पाँच बेडरूम के बंगले में रहता है। मर्सडीज में घूमता है। इसलिए मिजान के लिए शिवा मोरे की जिंदगी से जुड़ना काफी बड़ी चुनौती रही। इसमें निदेशक मंगेश के साथ साथ संजय सर ने काफी मदद की।
क्या तैयारी की?
-मराठी भाषा सीखी। बाइक चलाना सीखा। महाराष्ट्रियन के रहन सहन, उनके खान पान व उनकी समस्याओं के बारे में जाना। मेरे निर्देशक मंगेश मुझे लेकर मुंबई के महाराष्ट्रियन बाहुल्य इलाके में गए। उनके रोजमर्रा की जिंदगी में शब्द क्या होते हैं? चाल की समस्याएं जानी। इसी बीच ये प्रेम कहानी भी है। कहानी 1998 के बैकड्रॉप पर है।
शर्मिन से आपकी दोस्ती स्कूल दिनों की है। फिल्म की शूटिंग के दौरान क्या आपको कभी स्कूल के दिनों की याद आयी?
-हमारे जीवन की कोई भी पुरानी घटना इस फिल्म के साथ जुड़ती नहीं है। क्योंकि आस्था व शिवा की जिंदगी बहुत अलग है। मिजान व शर्मिन की पढ़ाई एसी स्कूल में हुई है। पर शिवा व आस्था के स्कूल अलग हैं। आस्था तो फिर भी एक अच्छे स्कूल व कॉलेज में जाती है। पर शिवा मोरे तो बहुत साधारण स्कूल में जाता है। शिवा मोरे तो मराठी भाषी कालेज में पढ़ता है।
निजी जिंदगी में किस बात का मलाल है?
-निजी िंजंदगी में मलाल है और नहीं भी है कि मैंने अमरीका में अपनी बिजनेस की पढाई पूरी क्यों नही की। कई बार हमें जिंदगी जीते हुए कुछ बातां का मलाल होता रहता है.पर समय बीतने के साथ आपको अहसास होता है कि अच्छा हुआ, मैंने वह न करके यही किया। जो हुआ, उसी वजह से आप इस मुकाम तक पहुंचे हैं। इसलिए जिंदगी जैसे चलती है, वैसे चलने देना चाहिए, उसे स्वीकार करना चाहिए। िंजंदगी में किसी भी बात को लेकर मलाल नहीं रखना चाहिए।
फिल्म का टै्रलर देखकर आपके माता पिता की क्या प्रतिक्रिया रही?
-जिस दिन सिनेपोलिस में फिल्म का ट्रेलर लॉन्च हुआ था, उस वक्त सिनेमाघर में मेरा पूरा परिवार मौजूद था। मेरे माता पिता के लिए यह इमोशनल मोमेंट था। मैंने देखा कि मेरे माता पिता की आंखां में ख्ुशी के आंसू थे। मैं भी रोने लगा था।
आपके दोस्तों की प्रतिक्रिया?
-भारत ही नहीं अमरीका में रह रहे मेरे दोस्तां ने यूट्यूब व सोशल मीडिया पर फिल्म का ट्रेलर देखकर काफी अच्छी प्रतिकियाएं भेजी। फिल्म के स्कूल के शिक्षकों ने बधाई देते हुए कहा कि अच्छा हुआ, मैं दो साल पहले ही छोड़कर फिल्म करने पहुंच गया था। परिवार के सभी सदस्यों और दोस्तों का जब साथ बना रहता है, तभी हम तेजी से आगे बढ़ पाते हैं।
आपके संगीत व स्पोर्ट्स के शौक का क्या हुआ?
-मैं बॉस्केट बाल और फुटबाल खेलता था। मैंने बॉस्केट बॉल तो महाराष्ट्र के लिए भी खेला है। मैं एथलिट रहा हूं। दौड़ता भागता था। मैंने हर साल स्पोर्ट्स में काफी ट्रॉफी जीती हैं। पियानो बजाता हूं। गिटार बजाता हूं। गाना गाता हूं। यदि संजय सर न मिलते, तो मैं बिजनेस की पढ़ाई पूरी कर शायद इसी दिशा में आगे बढ़ता।
क्या आपने इस फिल्म में गीत गाया है?
-जी नहीं..पर अगली फिल्म में गा सकता हूं। कम से कम किसी फिल्म में गिटार या पियानो जरुर बजाना चाहूंगा।
आगे किस तरह के किरदार करना चाहेंगे?
-सिर्फ चुनौतीपूर्ण किरदार ही करना चाहूंगा। अगली फिल्म का मेरा किरदार ‘मलाल’के शिवा मोरे से अलग हो। हर तरह का किरदार करना ह। थ्रिलर,कॉमेडी सब कुछ करना है।