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-शान्तिस्वरुपत्रिपाठी
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षण लेने के बाद लंदन इंटरनेशनल स्कूल ऑफ़ परफार्मिंग आर्टिस्ट से उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले अभिनेता तुशार पांडे लगातार अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर लोगों के बीच अपनी पैठ बनाते जा रहे हैं.लंदन में कुछ नाटकों में अभिनय कर वापस लौटने के बाद तुशार पांडे एक तरफ राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में शिक्षक बन गए, तो दूसरी तरफ नाटकों में अभिनय करने लगे. 2015 में उन्हे एक इंटरनेशनल फिल्म ‘बियांड ब्लूज’ में अभिनय करने का अवसर मिला, जिसने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का इंटरेनशनल अवाॅर्ड भी दिलवा दिया. मगर उन्हें बाॅलीवुड में फिल्म ‘पिंक’ में छोटा किरदार निभाकर शुरूआत करनी पड़ी. फिर ‘छिछोरे’ और वेब सीरीज ‘आश्रम’ से उन्हें पहचान मिली. इन दिनों वह आठ जुलाई को प्रदर्शित होने वाली रोहित राज गोयल निर्देशित फिल्म ‘टीटू अंबानी’ को लेकर चर्चा में हैं. जिसमें वह शीर्ष भूमिका में नजर आएंगे. हकीकत में तुशार पांडे की बतौर लीड ‘टीटू अंबानी’ पहली फिल्म है।
प्रस्तुतहैतुशारपांडेसेहुईबातचीतकेखासअंश...
आपकीअपनीपारिवारिकपृष्ठभूमिक्याहैऔरआपकेमनमेंअभिनयसेजुड़नेकाख्यालकैसेआया?
मै दिल्ली में संयुक्त परिवार में रहता आया हँू। मेरे पिता जी याम्हा मोटर कंपनी में मैनेजर थे। मेरी मां स्कूल शिक्षक हैं। मेरी बहनें भी शिक्षिका हैं। तो मेरा पूरा परिवार अकादमिक है। सभी साधारण जिंदगी जीते हैं। घर में कभी कोई फिल्मी माहौल नहीं रहा। मैंने अंग्रेजी आॅनर्स के साथ ग्रेज्युएशन किया। इससे पहले मैं स्कूल दिनों में एक्स्ट्रा सर्कुलर एक्टीविटी में हिस्सा लेते हुए डांस वगैरह सब किया करता था।
अमूमनदेखागयाहैकिजिनकेपरिवारमेंशिक्षकहोतेहैं, उन्हेंअपनेआपएकदिशामिलतीरहतीहै।आपकाअनुभवक्यारहा?
जी हाॅ! मुझे यह समझाया गया कि मैंने जो कुछ पढ़ा है, उसका उपयोग कैसे किया जाए। काॅलेज में पढ़ाई के दौरान थिएटर करने की वजह से अभिनय के प्रति मेरा रूझान बढ़ा। ऐसा पारिवारिक माहौल के चलते ही संभव हो पाया। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान थिएटर किया करता था। अंग्रेजी से आॅनर्स करने के बाद मैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से जुड़ा। लेकिन अभिनय प्रशिक्षण का सिलसिला यहीं नहीं रुका। उसके बाद मैं लंदन इंटरनेशनल स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स में गया। मैंने लगभग आठ वर्षों तक अभिनय में संस्थागत प्रशिक्षण लिया। फिर मैं मुंबई आ गया। मेरा मानना है कि अगर आप कड़ी मेहनत करते हैं, कला को समझते हैं, तो आप बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। मैं भी धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा हूं। मुझेे फिल्म ‘छिछोरे’ और वेब सीरीज ‘आश्रम’ से अच्छी पहचान मिली।
फिल्म‘छिछोरे’सेपहलेभीआपनेकुछफिल्मोंमेंछोटेछोटेकिरदारनिभाएथे?
‘छिछोरे’ से पहले मैंने फिल्म ‘पिंक’ की थी। यह फिल्म तीन लड़को और तीन लड़कियों की कहानी है। इसका प्रोसेस बहुत अलग रहा। उससे पहले मैंने फिल्म ‘फैंटम’ की थी। इस शुरूआती फिल्म में भी मैंने छोटा-सा किरदार निभाया था। इसके अलावा मैंने लघु फिल्म ‘कांदे पोहे’ की थी।
क्यायहमानाजाएकि‘छिछोरे’कीइमेजकोतोड़नेकेलिएआपनेवेबसीरीज‘आश्रम’की?
ऐसा नहीं है। सच यह है कि मैंने ‘छिछोरे’ के प्रदर्शन से पहले ही ‘आश्रम’ अनुबंधित कर ली थी। ‘आश्रम’ की स्क्रिप्ट पढ़कर मुझे अपने किरदार का पूरा अहसास हो गया था। और मुझे लगा कि मैं सत्ती के किरदार में कुछ नया दे पाऊंगा।
फिल्म‘टीटूअंबानी’सेजुड़नाकैसेहुआ?
देखिए, मेरे पास कास्टिंग डायरेक्टर अनामिका का फोन आया था कि एक फिल्मकार मुझे अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं। मैंने कहा कि पहले स्क्रिप्ट भेज दीजिए.पसंद अएगी, तो करुंगा। उसने कहा कि निर्देशक खुद मिलकर सुनाना चाहते हैं। मैंने कहा कि ठीक है। फिर निर्देशक रोहित राज गोयल हमसे मिले। हमने कहानी सुनी। मैंने कहा कि आपने जो सुनाया, वह काफी रोचक लग रहा है। मगर आप मुझे स्क्रिप्ट दे दें, मैं इसे एक बार पढ़ना चाहॅूंगा। पढ़ने पर ही सब कुछ सही ढंग से समझ में आता है। मंैने घर पर पटकथा पढ़ी। रात भर सोचा तो समझ में आया कि मुझे इसमें कलाकार के तौर पर बहुत कुछ करने का अवसर मिलेगा। दूसरे दिन मैंने रोहित को बता दिया कि मैं इसे करने में रूचि रखता हँू। धीरे-धीरे सह कलाकारों के नाम पता चलने लगे, तो मेरा एक्साइटमेंट बढ़ने लगा।
स्क्रिप्टमेंकिसबातनेआपकोइंस्पायरकियाथा?
टीटू जो कुछ करता है, वह रोचक है। और जब पूरी फिल्म आपके कंधांे पर हो तो एक्साइटमेंट बढ़ जाता है। इसकी कहानी अति साधारण और मध्यम वर्गीय परिवार की है, जिसके संग मैं रिलेट करता हँू। यह बहुत ही ज्यादा रिलेटेबल कहानी है।
कहाजाताहैकिकुछपानेकेलिएकाफीकुछखोनापड़ताहै।क्याऐसाकुछइसफिल्ममेंहै?
फिल्म इंसान को बहुत कुछ सिखाती है, जिससे समझ मंे आता है कि सफलता क्या है? क्या कुछ पाना ही सफलता है? यह फिल्म कई चीजोें से रूबरू कराती है।
फिल्म‘टीटूअंबानी’केअपनेकिरदारकोलेकरक्याकहनाचाहेंगे?
फिल्म में मैंने टीटू का किरदार निभाया है, जो कि आज के युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है। टीटू को लगता है कि वह नौकरी के लिए नहीं बना है। वह एक बड़ा आदमी बनना चाहता है जिसके लिए वह नए बिजनेस आइडिया के बारे में सोचता रहता है। वास्तव में यह फिल्म उस इंसान की यात्रा है, जो बनना तो बहुत बड़ा आदमी चाहता है, मगर उसकी हरकते अजीब सी हैं। वह जीवन में शॉर्टकट अपनाते हुए सीधे चैथी सीढ़ी पर पहुॅचना चाहता है। वह केवल अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के बारे में ही सोचता है। जो यह समझता है कि परिवार क्या है, वास्तव में सफलता क्या है और इसका मतलब जिम्मेदारी है। एक तरह से यह एक लड़के से एक आदमी बनने की कहानी है।
तो वहीं इसमें टीटू और मौसमी की प्रेम कहानी भी हैं। जो बाद में उसकी पत्नी बन जाती है और कैसे उनके विविध जीवन दर्शन उन्हें एक दूसरे में अपने रिश्ते और विश्वास को नेविगेट करने में मदद करते हैं। यह कई मायनों में आधुनिक मध्यवर्गीय जोड़ों और परिवार का रिश्ता है।
यानीकियह‘आश्रम’केसत्तीसेकाफीअलगहैटीटू?
जी हाॅ! अब तक लोगों ने मुझे जिन किरदारों में पर्दे पर जो देखा है, उससे टीटू अंबानी का किरदार बहुत ही अलग है। एक बार जब दर्शकों ने आप पर भरोसा करना शुरू कर दिया, विभिन्न परियोजनाओं के साथ आपकी सराहना की, तो यह आपको नई चीजों को आजमाने में मदद करता है और आपको नए आधार और कहानियों का पता लगाने में मदद करता है।
दीपिकासिंहकेसाथकामकरनेकाअनुभव?
मैंने उन्हें ‘दिया और बाती हम’ में देखा था। मगर सेट पर रिहर्सल के ेदौरान हम किरदार मंे घुस जाते हैं। उस वक्त वह हमें संध्या की बजाय मौसमी ही थी।
कलाकारकेतौरशूटिंगकरनेकातरीकाएकजैसाहोतेहुएभीआपकोफिल्मववेबसीरीजइनदोमाध्यमोंमेंक्याफर्कनजरआताहै?
ढाई घंटे की फिल्म में हर किरदार पर ज्यादा फोकश नहीं किया जा सकता. ढाई घ्ंाटे में आप कितने लोगों की कहानी बता सकते हैं. वही तीन या चार लोगों की. जबकि वेब सीरीज में आप ढेर सारे लोगों की कहानी बता सकते हैं. इसलिए मुझे लगता है कि वेब सीरीज में काम करना कलाकार के इंज्वाॅयमेट मोमेंट होता है. कलाकार को कई दृश्यों में खेलने का मौका मिलता है. पर फिल्म मेें हर किरदार की सीमाएं होती हैं।
लेकिनआपकोनहींलगताकिदोनोमंेयहफर्कभीहैकिजबफिल्मसिनेमाघरमेंसोमवारकोप्रदर्शितहोतीहै, तोबहुतकुछलेयादेजातीहै. जबकिओटीटीपरफिल्मयावेबसीरीजकेआनेपरवैसाएक्साइटमेंटनहींहोता?
आपकी यह बात भी सच है. लेकिन कोविड के वक्त सारी फिल्में ओटीटी पर चली गयीं और अब तो ओटीटी पर जब वेब सीरीज स्ट्ीम होती है, तो उसके रिव्यू वगैरह उसी तरह से आते हैं, जिस तरह से फिल्म के प्रदर्शन पर रिव्यू आते हैं. अब वेब सीरीज पर भी काफी लेख आने लगे हैं.दर्शकों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो कि पूरी वेब सीरीज को एक दो दिन में बिंज वाच कर सोशल मीडिया पर अपनी प्रतिक्रिया पोस्ट करता है. फिल्म आपको बाॅक्स आॅफिस से समझ में आता है और वेब सीरीज का मसला आपको रिव्यू व सोशल मीडिया पर आने वाले कमेंट से समझ में आता है. ओटीटी पर फिल्म और वेब सीरीज के स्ट्रीम होने के दो घंटे बाद से प्रतिक्रिया मिलने लग जाती है. पर सिनेमा की खूबी यह है कि वह कलाकार को स्टारडम दिलाता है. घर में लेटे लेटे टीवी पर या मोबाईल पर वेब सीरीज देखना अलग बात है. मगर महत्वपूर्ण व बड़ी बात यह होती है कि एक दर्शक टिकट खरीदकर आपकी फिल्म सिनेमाघर में देखने जा रहा है. देखिए, फिल्म का अपना एक चार्म है. अब फिल्म के लिए ओटीटी बहुत बड़ा प्रतिस्पर्धी बन गया है. ओटीटी पर हजार रूपए देकर पूरे वर्ष भर बहुत कुछ देख सकते हैं. मगर फिल्म के लिए तो हर बार तीन सौ से चार सौ रूपए की टिकट खरीदनी पड़ती है. तो कलाकार के अंदर इतनी क्षमता होनी चाहिए कि वह लोगों को उनके घर से निकलवाकर टिकट खरीदवा कर फिल्म देखने बुला सके।
आपकीनजरमेंथिएटरक्याहै?
थिएटर अति गंभीर मसला है। मंच पर अभिनय और निर्देशन में अधिक प्रतिबद्धता होती है। इसलिए अक्सर मैं किसी न किसी तरह से थिएटर से जुड़ने की कोशिश करता हूं। मैंने हाल ही में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के अभिनय छात्रों के साथ काम किया है। मैं द ड्रामा स्कूल मुंबई फाउंडेशन के निदेशक मंडल में भी हूं।
लोगोंकीरायमेंलंबेसमयतकफिल्मोंमेंअभिनयकरतेरहनेसेकलाकारकाफीमोनोटोनसहोजाताहै।बीच-बीचमेंथिएटरकरनेसेयहमोनोटोनसटूटताहै।क्याइसीकारणआपभीथिएटरसेजुड़ेरहतेहैं?
मुझे मोनोटोनस नहीं लगता। कई बार फिल्मों में आपको एक ही तरह के किरदार में बांध दिया जाता है। तब यह मोनो टोनस बन जाता है। यदि आप हर फिल्म में हीरो के दोस्त का किरदार निभाएंगे, तो मोनोटोनस होना स्वाभाविक है। तो यह कलाकार पर भी निर्भर करता है कि आप खुद को तोड़ने के लिए किस तरह के किरदार कर रहे हैं। यदि मैं ‘छिछोरे’ जैसा किरदार हर फिल्म में करेंगें, तो आप लोग कहेंगे कि यह तो काॅमेडी कर रहा है। मगर उसके बाद मैंने वेब सीरीज ‘आश्रम’ मंे सत्ती के किरदार मे बहुत अलग तरह का काम किया। अब फिल्म ‘टीटू अंबानी’ में तो एकदम अलग तरह का किरदार है। इसके बाद मेरी दो फिल्में आने वाली हैं, जिनमें मेरा एकदम अलग रंग नजर आएगा। इसके लिए जरुरी है कि कलाकार को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलना पड़ेगा। लेकिन कई बार कलाकार को आर्थिक सुरक्षा के मुद्दे का ख्याल रखना पड़ता है। इसलिए अच्छे पैसे मिल रहे हो,तो वह एक ही तरह के किरदार वाली चार फिल्में कर लेता है। तो कलाकार को तय करना होता है कि वह अपने प्रोफेशन या अपने हूनर को विकसित करने या धन कमाने के लिए काम कर रहे हैं। यह निणर््ाय ही बताता है कि आप मोनोटोनस हो रहे हैं या नहीं।
इसकेअलावाक्याकररहेहैं?
मैंने अनिरूद्ध राॅय चैधरी के निर्देशन में फिल्म ‘लास्ट’ की है। इसके अलावा दो अन्य फिल्में हैं, जिनका नाम अभी उजागर नहीं कर सकता।
कोईऐसाकिरदारजिसेआपनिभानाचाहतेहों?
मुझे निगेटिव किरदार निभाना है। मेरा चेहरा काफी क्यूट व संुदर है, ऐसे में यदि मैं विलेन का किरदार निभाऊंगा, तो खुद को स्वीकार करवाना मेरे लिए चुनौती होगी।