सीरियल ‘नथ जेवर या जंजीर’ में मेरा दादी का किरदार नगेटिव होते हुए भी काफी चुनौतीपूर्ण है-प्रतिमा कानन By Mayapuri Desk 26 Aug 2021 | एडिट 26 Aug 2021 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर पिछले 45 वर्षों से अभिनय जगत में सक्रिय अदाकारा प्रतिमा कानन किसी परिचय की मोहताज नही हैं। उन्होने षुरूआत के बीस वर्ष थिएटर को समर्पित कर थिएटर में अभिनय के नित नए आयाम विखेरती रहीं। फिर 1997 में फिल्म “सिक्स्थ सेंस” से फिल्मों में कदम रखा। तब से वह अब तक तीस से अधिक सफलतम फिल्मों के अलावा तकरीबन बीस सीरियलों में अभिनय कर अपनी एक अलग छाप छोड़ी हैं। इन दिनों वह ‘दबंग टीवी “पर प्रसारित हो रहे सीरियल “नथ: जेवर या जंजीर” में अति सषक्त किरदार निभाते हुए नजर आ रही हैं। यह सीरियल एक सामाजिक कुप्रथा “नथ उतराई” पर आधारित एक विचारोत्तेजक सीरियल है। प्रस्तुत है प्रतिमा कानन से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष... सीरियल “नथ जेवर या जंजीर” करने की वजह क्या रही? अपने आप में यह विषय काफी अच्छा है। इस तरह की प्रथा जिन जगहों पर चल रही है,वहां कैसे अहसास/फीलिंग होती होगी, जिनकी नथ उतराई होती है, उनकी अपनी फीलिंग/अहसास तो होते ही हैं, पर जो लोग इस प्रथा को लेकर चलते हैं, उनका किस तरह का चरित्र होगा, इसे समझने व परदे पर उकेरने की बात ने मुझे प्रभावित किया। मैने अब तक ज्यादातर नगेटिब किरदार ही निभाए हैं। लेकिन इस सीरियल में मेरा दादी का किरदार नगेटिब होते हुए भी काफी चुनौतीपूर्ण है। वह दादी होते हुए घर के अंदर बहुत ही साधारण आम दादीयों की ही तरह है। घर के हर सदस्य से बड़े प्यार मोहब्बत के साथ पेश आती है। बात करती है। उसे देखकर कोई सोच नही सकता कि यह स्ट्रोंग या इतनी नगेटिब होगी। पर जब ठाकुरों की प्रथा की बात आती है या कुछ भी गलत होता है, तो एकदम से बंदूक तानती है। उसकी बात लोगों को मानना ही है। तो इस सषक्त किरदार ने मुझे इसके साथ जुड़ने के लिए प्रेरित किया। दूसरी बात इस सीरियल का मकसद ‘नथ उतराई’ जैसी कुप्रथा के खात्मे के लिए लोगों के बीच जागरूकता लाना है। तो मैने भी इस नेक काम के साथ जुड़ने का फैसला किया। देखिए, गरीब लोगों के घरों में कुछ नही होता है। इसलिए मजबूरन यह गरीब लोग अपनी बेटियों का इस तरह से उपयोग करते हैं। यानी कि गरीबी से मजबूर होकर वह अपनी बेटियों का सौदा ‘नथ उतराई’ प्रथा के तहत करते हैं। लेकिन एक औरत होने के नाते मुझे यह बात समझ में आयी कि ‘नथ उतराई’ की षिकार होने वाली बच्चियों पर क्या बीतती होगी? वह क्या सोचती होगी? यह किसी ने नहीं जाना। पर हमारे इस सीरियल में एक बच्ची महुआ इसके खिलाफ खड़ी होती है और फिर जो जंग षुरू होती है, वह देखना ही ठीक रहेगा। गरीब व ठाकुरों के बीच रिष्तों व जंग को लेकर भी यह एक बेहतरीन विषय है।यह विषय लोगों को न सिर्फ रूलाएगा, बल्कि हिलाकर रख देगा। ‘नथ उतराई’ प्रथा को लेकर आपने पहले कुछ पढ़ा था? आपकी क्या सोच रही है? मैंने इस बारे में पहले कुछ नहीं पढ़ा था। जब इस सीरियल के निर्माता व निर्देषक मेरे पास इस सीरियल से जुड़ने का ऑफर लेकर आए, तब ‘नथ उतराई’ प्रथा के बारे में जानकर मुझे आष्चर्य के साथ साथ दुःख हुआ। मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ। मेरी राय में यह प्रथा हर सभ्य समाज के लिए कलंक है। फिर मैने लेखक के साथ बैठकर इस संबंध में अधिक से अधिक जानकारी हासिल की। पहले इसके लेखन व निर्देषन इम्तियाज पंजाबी जी कर रहे थे। उस वक्त इस सीरियल को लेकर उनकी सोच थोड़ी सी अलग थी। पर अब आतिफ कर रहे हैं। वह एकदम युवा हैं और उनकी अपनी सोच व विचार हैं। वह कुछ अलग है। इस सीरियल सभी के अहसास का उजागर होना जरुरी है। सीरियल में मेरे किरदार दुर्गा यानी कि दादी को लगता है कि क्या हुआ, हम ठाकुर हैं, तेरी नथ उतराई हो रही है, पर बदले में तेरे घर इतनी रकम पहुँच जाएगी। लेकिन जब अपने घर की बात आती है,वह कहती है-”ठाकुरों की बेटियां व्याही जाती हैं, उनकी नथ नहीं उतरती।’ अब आगे कहानी में क्या बदलाव आएगा,यह हमें नही पता.पर ठाकुराईन होने के नाते उसे ‘नथ उतराई ‘प्रथा में कोई बुराई नजर नहीं आती। आपने अपने 25-26 वर्ष के कैरियर में क्या बदलाव महसूस किए? मेरा अभिनय कैरियर काफी लंबा है। और इस लंबे कैरियर के दौरान काफी बदलाव आ चुके हैं। इमानदारी की बात तो यह है कि काम या रचनात्मकता या कला को लेकर गंभीरता कहीं बहुत पीछे रह गयी है। अब जो कलाकार अभिनय करने के लिए आ रहे है, वह कला की सेवा करने या कला के वशीभूत होकर नही आ रहे हैं, बल्कि रातों रात शोहरत और धन कमाने के मकसद से आ रहे हैं। टीवी चैनल को भी इस बात से कोई फर्क नही पड़ता कि किसी किरदार में कोई प्रतिभाषाली कलाकार होना ही चाहिए। मुझे यह कहने में कोई संकोच या परहेज नही है कि घर में बैठी एक आम औरत भी कभी भी उठकर अभिनय करने लगती है। मैं इसे गलत नही कह रही हॅूं। यदि हमारे अंदर जरा सी भी प्रतिभा है और उसे दिखाने के लिए हमें कोई प्लेटफॉर्म मिलता है, तो उस प्लेटफार्म पर अपनी प्रतिभा का प्रदर्षन किया जाना चाहिए। प्रतिभा जाया नही होनी चाहिए। मगर मेरा मानना है कि कम से कम जानकारी, थोड़ी सी ट्रेनिंग लेनी जरुरी है। अब आप इसे भले ही मेरी पुरानी सोच कहें। मैने पहले बीस वर्ष तक थिएटर किया, उसके बाद फिल्मों से जुड़ी.फिल्म व टीवी सीरियलो में अभिनय करते हुए 26 वर्ष हो रहे हैं। यह 45 वर्ष का अनुभव मेरे लिए फायदेमंद है। किसी अन्य के लिए नहीं,पर मेरे लिए फायदेमंद है। मैने आज तक पीआर षिप नही की। मैं आज तक सिर्फ अपनी प्रतिभा व अनुभव की बदौलत इस मुकाम पर पहुंची हॅूं और निरंतर काम करती जा रही हॅूं। पता नही क्यों मैं अपना प्रचार कर ही नही पाती। मेरा अपना मानना है कि मेरे अंदर हूनर है और यदि मैं किसी किरदार को निभा सकती हॅूं, तो ठीक है, लोग बुलाकर काम देंगे। और मैं कछुए की चाल से जैसे यहाँ तक पहुंची हॅूं,वैसे ही आगे भी पहुँच जाउंगी। आपने अब तक जिन फिल्मों व सीरियलों में अभिनय किया, उन सभी में आपके किरदारों व आपके अभिनय को पसंद किया गया। फिर भी फिल्म या टीवी इंडस्ट्री ने आपको कभी वह तवज्जो नहीं दी, जो कि देनी चाहिए थी? इसकी क्या वजह रही? मेरे पास आपके इस प्रष्न का कोई उत्तर नही है। क्योंकि यह बात मैं खुद भी नही समझ पायी। मैं खुद सोचती रहती हॅूं कि मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? हो सकता है इसकी वजह यह हो कि मेरे अंदर पीआर षिप करने का गुण नही है। इसलिए खुद को हमेशा बेवजह भी सूर्खियों में नहीं रखती। मेरी बनिस्बत आप बेहतर जानते हैं कि फिल्म व टीवी इंडस्ट्री किस हिसाब से काम करती है। लिखने पढ़ने का कितना शोक है? मैं उपन्यास व कहानियाँ पढ़ती रहती हूं। पर मैं लिखती नही हॅूं। जबकि मैं अक्सर ऐसे लोगो से प्रभावित होती हॅूं जो कि लिखते हैं। मैं अक्सर सोचती हॅूं कि यह लिखते समय कैसे चीजों को बुनते होंगे। कई बार लोगों ने मुझसे कहा कि मुझे लिखना चाहिए, पर मैने कभी भी कोशिश नही की। आपने थिएटर में काफी काम किया है। इन दिनों थिएटर की जो दुर्दषा है, उसकी वजह टीवी माध्यम की बढ़ती लोकप्रियता है? जी हॉ! जब हम थिएटर करते थे, तो हमने सिर्फ थिएटर ही किया। उस वक्त हमारी सोच भी फिल्म या टीवी इंडस्ट्री की तरफ नहीं जाती थी। 1995 में जब मैं मुंबई आयी और ष्याम बेनेगल व सागर सरहदी जी से मेरी मुलाकात हुई, तो दोनो ने मुझसे कहा कि,’आपको नहीं लगता कि आपने आने में बहुत देर कर दी है।’ तब मैने उन्हे जवाब दिया था-” सर मुझे यहाँ आने के बाद अहसास हो रहा है कि मैने देर कर दी। पर जब तक मैं दिल्ली में थिएटर कर रही थी, तब मुझे फिल्मों या टीवी सीरियलों से जुड़ने का ख्याल तक नही आया। मुझे जो ज्ञान लेना था, वह मैंने भरपूर लिया। “कभी कभी मुझे लगता है कि हमारे अंदर इतनी प्रतिभा तो थी कि हम पहले भी आ सकते थे। पर उसके लिए मुझे दुःख नही है। क्योंकि थिएटर करते हुए हमने बहुत कुछ पाया। लेकिन मराठी व गुजराती थिएटर आज भी काफी लोकप्रिय हैं.मगर हिंदी थिएटर के हालात काफी दुर्दषा पूर्ण है.ऐसा क्यों? सर यह हालात आज हुए हैं। हम जब दिल्ली में थिएटर किया करते थे, उन दिनों हमने एनएसडी की रैपेटरी में काम किया है, पैसा होता था। और उस वक्त हम कलाकारों को पैसे का इतना मोह भी नहीं होता था। हम सभी खुद को कला के प्रति समर्पित भाव से झोंक देते थे। तब हम कला के प्रति एक जुनून व भूख के लिए काम करते थे। लेकिन अफसोस की बात यही है कि आज की तारीख में पैसा बहुत अहम हो गया है। मुझे लगता है कि आज की तारीख में लोगों के पास विषयों का अभाव है। अच्छे नाटक लिखने वालों का अभाव है। ऐसे अच्छे नए नाटक नहीं लिखे जा रहे हैं, जिसे दर्शक पैसे खर्च कर देखना पसंद करे। वही सदियों से चले आ रहे नाटक ही किए जा रहे हैं। कई अच्छे लेखकांे को अवसर नही मिल रहा है। नाटक ही नही सब कुछ बहुत ही ज्यादा कमर्षियल हो गया है। अब लोग कमर्षियल नाटक लिख रहे है, जिनका मूल्य नही है। ऐसे नाटक टिकाउ नही है। लोग स्लैप्स्टिक कॉमेडी के नाम पर कुछ भी परोस रहे हैं। मराठी व गुजराती थिएटर में नित नए प्रयोग हो रहे हैं। वह नाटक इतने जीवंत होते हैं कि लोग पैसा देकर देखने जाते हैं। हिंदी थिएटर में ऐसा क्यों है, समझ में नही आता। हिंदी थिएटर की दुनिया में गिने चुने ग्रुप ही षेष बचे हैं, जो कार्यरत हैं। मैने कईयों से बात की, तो उनकी षिकायत है कि उन्हे उनके नाटकों को परफार्म करने, शो करने के लिए अच्छे हॉल नही मिलते। हम जब दिल्ली में थिएटर कर रहे थे, उस वक्त हमारे हर नाटक के शो हाउसफुल होते थे। लोग नाटक देखने के लिए पागल रहते थे। अब षायद थिएटर के पतन की एक वजह यह भी है कि लोग थिएटर पर अभिनय की थोड़ी सी ट्रेनिंग लेते ही सीधे मुंबई आकर टीवी सीरियल व फिल्मों में अभिनय करके शोहरत बटोरने के लिए संघर्ष करने लगते हैं। और उन्हे लगता है कि अब वह महान कलाकार बन गए हैं। एक वक्त वह था जब हर सीरियल के हर एपीसोड में कलाकारों के नाम दिए जाते थे। अब ऐसा नही होता। अब तो पता ही नही चलता कि किस सीरियल में कौन सा कलाकार अभिनय कर रहा है? जी हॉ! मैने पहले ही कहा कि पिछले 20 वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। अब सीरियल में किसी भी कलाकार का नाम नही दिया जाता, यह बात निजी स्तर पर मुझे बहुत बुरी लगती है। मैं इस बात को अहसास करती हूँ। दर्शक या आम जनता कभी सीरियल या फिल्म के नाम पर ज्यादा गौर नहीं करती, पर वह कलाकारों के नाम जरुर जानना चाहती है। दर्शक जानना चाहता है कि उसे जिस कलाकार का अभिनय पसंद आ रहा है, उसका नाम क्या है? पहले जब सीरियल के षुरू होने या अंत में हम कलाकारों का नाम आता था, तो हमें भी एक पहचान मिलती थी। हम तो यही चाहते है कि यह सिलसिला पुनः षुरू हो जाए। यह इतना अधिक असुरक्षित क्षेत्र है कि यहां कलाकारों में एक जुटता भी नही है। आपका सर्वाधिक लोकप्रिय नाटक कौन सा रहा, जिसके सबसे अधिक शो हुए हों? मेरे तीन नाटक बहुत लोकप्रिय हुए थे। पहला ‘आधे अधूरे’, जिसमें मैने सावित्री का किरदार निभाया था। दूसरा ‘आषाढ़ का एक दिन’, जिसमें मैने अंबिका का किरदार निभाया था। तीसरा रंजीत कपूर के साथ मैने नाटक ‘खूबसूरत बहू’ किया था, जो कि संगीतमय नाटक था। उन दिनों मैं एनएसडी रेपेटरी में थी। यह मेरा सौभाग्य था कि इन नाटकों की ही बदौलत एक वर्ष के अंदर मुझे ‘ए’ग्रेड मिला था। यह तीनों नाटक सुपर डुपर हिट रहे थे। वैसे तो मेरे सभी नाटकों के हमेशा ही हाउसफुल शो हुए थे। आपने ऐसी कोई किताब या नाटक पढ़ा हो, जिस पर आप चाहती हों कि फिल्म या सीरियल बने? भीष्म साहनी का लिखा हुआ एक नाटक है- “कर्मावली”, जिस पर लोग नाटक कर चुके हैं। इस नाटक का मुख्य किरदार मेरा प्रिय पात्र है, जिसे मैं फिल्म या सीरियल या नाटक में निभाना चाहती हूं। मेरी इच्छा है कि इस पर बनने वाली फिल्म में मुझे अवसर मिले। वैसे मैने सुना है कि कोई इस पर फिल्म बना रहा है। अब ओटीटी प्लेटफार्म आ गए है। वेब सीरीज काफी लोकप्रिय हो रही हैं। हर कलाकार ओटीटी की तरफ भाग रहा है। क्या ओटीटी से टीवी इंडस्ट्री को नुकसान होगा? नहीं... क्योंकि वेब सीरीज के दर्शक एक अलग सोच वाले लोग हैं। जबकि टीवी सीरियल घर की औरते सर्वाधिक देखती हैं। यह कभी खत्म नही हो सकता। मगर वेब सीरीज यानी कि ओटीटी के आने से पुरूष कलाकारों को कुछ बेहतरीन काम करने के अवसर मिल रहे हैं। टीवी सीरियलों में बेचारे पुरूष कलाकार केवल खड़े ही रहते हैं, सारा कुछ महिला कलाकार ही करती हैं। #Nath: Jewar Ya Zanjeer #Pratima Kanan #Pratima Kanan interview #serial 'Nath: Jewar Ya Zanjeer' हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article