नवाजुद्दीन सिद्दीकी के अंदर अभिनय प्रतिभा कूट कूट कर भरी हुई है. मगर उन्हे यह बात बॉलीवुड के फिल्मकारों को समझाने में पूरे 14 वर्ष का समय लगा था, 14 वर्ष के संघर्ष के बाद जब नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सफलता पायी, तो उन्हें पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी. इन दिनों एक तरफ उनकी तनिष्ठा चटर्जी निर्देशित फिल्म ‘‘रोम रोम में’’ इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा रही है,तो वहीं वह फिल्म‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’को लेकर चर्चा में हैं.
14 साल का संघर्ष और उसमें लगातार सफलता अब इसमें किस चीज की कमी नजर आती है?
-कमी..देखा जाए तो वाकई किसी चीज की कमी महसूस ही नहीं होती.
जब पिछले दिन याद आते हैं, तब क्या महसूस करते हैं?
-पिछले दिनों को याद करके कोई फायदा नहीं है.वह एक वक्त था,यह एक वक्त है.वक्त के साथ चलना चाहिए.पिछले दिनों के साथ चलूंगा,तो कहीं ना कहीं अवसाद से घिर जाऊंगा, कड़वाहट आ जाएगी.
फिल्म ‘‘ठाकरे’’ का क्या रिस्पोंस मिला ?
-फिल्म‘‘ठाकरे’का बहुत अच्छा रिस्पोंस मिला.फिल्म ने बहुत अच्छी क्लैक्शन की है.जिस बजट में यह फिल्म बनी, उसे देखते हुए इसने अच्छा खासा कमाया.यह तो बहुत अच्छी बात भी है.इतनी हार्डकोर कंवेंशनल बायोग्राफी नहीं थी.इसमें गाने या रोचक बनावटी चीजें नहीं जोड़ी गयी थी.इसके बावजूद फिल्म चल गई.तो हमारा अप्रीसिएशन हुआ.
लेकिन मराठी की बनिस्पत हिंदी में इतना ज्यादा नहीं पसंद किया गया?
-लोगों ने फिल्म तो देखी,लेकिन कुछ लोग इसकी बातों से सहमत नही नजर आए.लोग फिल्म के थॉट प्रोसेस से कनेक्ट नहीं कर पाए.ऐसा हर फिल्म के साथ होता है.
जब आपको फिल्म‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’का ऑफर मिला,तो आपको किस बात ने इंस्पायर किया?
यह एक हल्की फुल्की फिल्म है,इस तरह की फिल्म मैं लंबे समय से करने की सोच रहा था. जब इस फिल्म का ऑफर आया,उस वक्त मैं ‘सैक्रेड गेम्स’’में इंटेंस रोल के जोन में था. तो मैं खुद भी चाहता था कि थोड़ी लाइट फिल्म करने का अवसर मिल जाए. मेरे लिए जरूरी था,,वरना मैं बीमार पड़ जाऊंगा. मेंटली बीमार पड़ जाऊंगा,इसीलिए मैंने यह फिल्म की.
किस किरदार ने आपके जेहन में सबसे अधिक असर किया?
-अफकोर्स.. ठाकरे ने.
क्या था थॉट प्रोसेस ?
-थॉट प्रोसेस ..यह तो सबसे बड़ी बात बायोपिक फिल्म है.जब आप किसी ऐसे इंसान का किरदार कर रहे हैं,जिनके हजारों लाखों वीडियो मौजूद हों,जिनको अभी हाल ही तक लोगों ने देखा है,वह आसान नही था.हमें यह ध्यान रखना पड़ा कि किरदार मिमिक्री न लगे.क्योंकि बॉलीवुड में बायोपिक को भी मिमिक्री बनाते हैं.वही ढाक के तीन पात कर देते हैं.मेरा तो मानना है कि बायोपिक फिल्म मत बनाओ.उसकी जगह कमर्शियल फिल्म बनाओ.किसने कहा कि बायोपिक बनाना जरूरी है.आप उसमें 5 गाने व ह्यूमर सहित मनोरंजन के सारे तत्व पिरो देते हो,यह गलत है.इसलिए जब मैने ठाकरे की बायोपिक की,तो उसमें यह सब नही रखने दिया था.जब मैं ठाकरे कर रहा था,तो मंडेला, थ्योरी फैब्रिक थिंग और गांधी यह तीन फिल्में.हमारे डायरेक्टर, प्रोड्यूसर व मेरे दिमाग में यही तीन फिल्में थी.जो एक स्टैंडर्ड थीं,जिन्हे मान कर हम चल रहे थे.जिसे वास्तव में बायोपिक कहां-कहां जाए
‘‘सैक्रेड गेम्स’’एक की बनिस्बत ‘‘सीक्रेट गेम्स 2’’को सफलता नहीं मिल पायी,क्यों ?
-जी हां! क्योंकि दूसरे सीजन में नए किरदार जोड़े गए थे,जिनको लोगों ने पसंद नहीं किया.
तो क्या यह लेखक की गलती थी?
नवाजुद्दीन सिद्दीकी- मुझे नहीं पता किसकी गलती थी. पर वह जो तीन-चार नए किरदार जोड़े गए,वह काम नहीं कर पाए.
‘‘सैक्रेड गेम्स’’ उपन्यास के लेखक पाउलो ने आपको बधाई दी?
यह तो मेरे लिए बहुत खुशी की बात है.ईश्वर का शुक्रिया कि विश्व के इतने बड़े लेखक ने मेरी परफार्मेंस की तारीफ की.उन्होंने बाकायदा अप्रिशिएट किया.मेरे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात कुछ हो ही नहीं सकती.उनसे मुझे एप्रिसिएशन मिल गया.अब मुझे दुनिया की और कोई चीज नहीं चाहिए.
फिल्म‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?
-मैंने इसमें दुबई में कार्यरत पुष्पेंद्र त्यागी नामक ऐसा किरदार निभाया,जिसकी उम्र 35-38 साल हो गयी है.पुष्पेंद्र की अब तक शादी नहीं हुई है.अब वह चाहता है कि किसी भी तरह से मेरी शादी हो जाए.वह यहां तक आ चुका है कि कैसी भी लड़की हो,सिर्फ लड़की होनी चाहिए.अब उसकी अपनी च्वॉइस खत्म हो चुकी है.वह चाहता है कि किसी भी तरह से उसकी शादी हो जाए.
क्या इस बात का भी कहीं जिक्र है कि उसकी शादी क्यों नहीं हो पा रही है?
-अपनी जवानी तो उसने काम करने में निकाल दी.जब उसको होश आया, तो पता चला कि उसकी काफी उम्र हो चुकी थी.तो अब चाहता है कि शादी हो जाए.इसलिए वह जगह जगह जाकर लड़कियों से मिलता भी है.हर लड़की उसको पसंद आती है,फिर चाहे वह कैसी भी हो.लेकिन लड़की के परिवार के लोग,पुष्पेंद्र में गलतियां निकाल कर रिजेक्ट कर देते हैं.अंतः वह तंग आकर कह देता है कि मुझे शादी करने के लिए लड़की चाहिए,फिर लड़की चाहे कैसी भी हो.
लड़की के मां बाप, पुष्पेंद्र को दुबई मेंं काम करने के कारण या अन्य वजह से रिजेक्ट करते हैं?
नवाजुद्दीन सिद्दीकी- वजह उसके कैरेक्टर में है.उम्र का तकाजा जो होता है,वह झटके मार रहा है.शादी के लिए इतना टैलेंट उसके अंदर नहीं है कि वह रिलेशनशिप बना लें।
इस कैरेक्टर के लिए आपको कुछ तैयारी भी करने की जरूरत पड़ी या नहीं?
-सही मायने में कहॅूं,तो इस फिल्म की शूटिंग शुरू होने के एक-दो दिन पहले तक तो मैं ‘सैक्रेड गेम्स’ कर रहा था. इसलिए मुझे तैयारी करने का ज्यादा मौका नहीं मिला.लेकिन फिल्म के दौरान इतना मजा आया कि बहुत सारी चीजें आसान हो गई.
अथिया शेट्टी के साथ क्या इक्वेशन बने आपके ?
-अथिया ने तो दो माह पहले से इस फिल्म के अपने किरदार के लिए तैयारी कर रखी थी.जब मैं सेट पर पहुंचा,तो पता चला कि उसको पूरी स्क्रिप्ट याद है.उसकी कार्यशैली ने भी मुझे इंस्पायर किया.परिणामतः जब मैं शूटिंग में गया,तो मैंने भी थोड़ा सीरियसली लेना शुरू किया.क्योंकि मैंने तो पहले इस फिल्म पर कोई काम किया नहीं था.वर्कशाप वगैरह भी नहीं किया था.
क्या आप का कैरेक्टर भी बुंदेलखंडी भाषा बोलता है ?
नवाजुद्दीन सिद्दीकी- हां! पुष्पेंद्र भी बुंदेलखंडी बोलेगा,लेकिन बहुत ही लाइट.क्योंकि पुष्पेंद्र ज्यादातर वक्त दुबई ही रहता है.
जिन किरदारो में भाषा को महत्व दिया जाता है,वह लोगों पर कितना इफेक्ट करता है?
x- इससे एक कैरेक्टर की ऑथेंटीसिटी पता चलती है.अगर हम बुंदेलखंड के क्षेत्र का कोई कैरेक्टर दिखा रहे हैं,और वह उसी तरह की भाषा में बात करता है,तो यथार्थ का इफेक्ट आता है.
आपकी आने वाली दूसरी फिल्में?
- तनिष्ठा चटर्जी निर्देशित फिल्म ‘रोम रोम मे’, मेरे भाई के निर्देशन वाली फिल्म‘‘बोले चूड़ियां’’, इसके बाद मैं सुधीर मिश्रा की फिल्म कर रहा हूं.
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