मेरे लिए दिक्कत ‘मंटो’ की आत्मा को आत्मसात करने की थी- नवाजुद्दीन सिद्दीकी By Shanti Swaroop Tripathi 07 Aug 2018 | एडिट 07 Aug 2018 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर 15 वर्षों का संघर्ष खत्म होने के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी की गिनती बॉलीवुड के अति व्यस्त कलाकारों में होने लगी है। अब फिल्मकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी को ध्यान में रखकर फिल्म की स्क्रिप्ट व किरदार गढ़ने लगे हैं। जून माह में उन्हें फिल्म ‘मॉम’ के बेस्ट सपोटिंग एक्टर के अवॉर्ड से नवाजा गया। इन दिनों वह करीबन डेढ़ दर्जन फिल्में कर रहे हैं। जिसमें से ‘जीनियस’, ‘मंटो’, ‘ठाकरे’ प्रमुख हैं। गत वर्ष प्रदर्शित आपकी फिल्मों ‘रईस’, ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ और ‘मुन्ना माइकल’ को बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली? हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है। एक फिल्म असफल हो जाती है। तो इसके मायने यह नहीं होता कि वह बुरी फिल्म थी। मैंने हर फिल्म में बेहतरीन किरदार निभाए। गत वर्ष ही मेरी फिल्म ‘मॉम’ ने सफलता के रिकॉर्ड बनाए थे। मैंने हमेशा अपनी तरफ से अच्छी फिल्में ही चुनी। मैं ‘रामन राघव 2’ को अपने करियर की बेहतरीन फिल्म मानता हूं, पर यह फिल्म भी बाक्स आफिस पर नहीं चली थी। देखिए, तमाम लोग कभी स्वीकार नहीं करेंगे कि उन्होने फिल्म ‘बेशरम’ देखी थी। तो हमारे देश में पाखंड भी बहुत है। लोग हमेशा उन्हीं फिल्मों की चर्चा करते हैं, जो कि वह अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर देखते हैं। मेरी एक पुरानी फिल्म ‘मानसून शूटआउट’ तो अचानक बिना प्रचार के रिलीज की गयी थी। उस वक्त में ‘सेक्रेड गेम्स’ की शूटिंग में व्यस्त था। ऐसे में ‘मानसून शूटआउट’ को दर्शक नहीं मिले। यानी कि आप अपने करियर की प्रगति से खुश हैं? मेरे लिए यह खुशी की बात है कि इन दिनों मैं कई विभिन्न प्रकार की फिल्मों में विभिन्न तरह के किरदार निभा रहा हूं। मैं अलग अलग निर्देशकों के साथ काम करने का प्रयास कर रहा हूं। देखिए, मेरे पास इंसान के तौर पर एक ही जिंदगी हैं। मैं अपनी इस जिंदगी में ज्यादा से ज्यादा जटिल किरदारों को सिनेमा के परदे पर अपने अभिनय से संवारना चाहता हूं। मुझे पता है कि मेरी असफल फिल्मों की चर्चा आज भी होती है। मुझे भी उन फिल्मों के ना चलने का गम है, पर अब मेरे लिए खुशी की बात है कि मेरे द्वारा अभिनीत तमाम किरदारों को लोग याद करते हैं। यह मेरे लिए गौरव की बात है। एक फिल्म की सफलता तभी है,जब उसे लोग कई बार देखने जाएं। अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में आपकी फिल्में ही सर्वाधिक गयी? मेरे लिए यह खुशी की बात है कि मैं इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अपने देश का बार बार प्रतिनिधित्व करता हॅूं। भारतीय सिनेमा के लिहाज से ‘कॉन्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में फिल्म चुनी जाने से विश्व के तमाम देशों के फिल्मकारों, कलाकारों व लोगों को भी पता चलता है कि भारत में अच्छा सिनेमा बन रहा है। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में बहुत कम भारतीय फिल्में क्यों पहुंच पाती हैं? अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में पहुंचने के लिए ईमानदारी के साथ फिल्म बनाने की जरुरत होती है। फिल्म का क्राफ्ट अच्छा होना चाहिए। नकल नहीं चलती। आपके लिए बतौर अभिनेता सबसे बड़ी चुनौती क्या होती है? खुद को किसी अन्य इंसान की जिंदगी में ढालना सबसे बड़ी चुनौती होती है। क्योंकि हम वैसा बनने का प्रयास करते हैं। मैं न तो मैं मंटो हूं और न ही बालासाहेब ठाकरे। ऐसे में जब मैं मंटो, ठाकरे या मांझी बनने की कोशिश करूंगा, तो चुनौती ही होगी। फिल्म का हीरो बनना आसान है। चुनौती तब होती है, जब हम किसी अन्य के किरदार में ढलने की कोशिश करते हैं। काल्पनिक किरदार निभाने और किसी की बायोपिक फिल्म में अभिनय करने में से क्या कठिन है? किसी की भी बायोपिक फिल्म करना सबसे बड़ी चुनौती होती है। क्योंकि ऐसी शख्सियत को लेकर लोगों के दिमाग में एक ईमेज व एक चित्र होता है। आप उसकी शख्सियत के साथ ज्यादा छेड़छाड़ नहीं कर सकते। फिर भी आप बायोपिक फिल्मों पर ज्यादा जोर दे रहे हैं? आप ऐसा कह सकते हैं। पर मैं पटकथा व किरदार चुनता हूं। मैंने केतन मेहता के निर्देशन में दशरथ मांझी का किरदार निभाया। मैंने नंदिता दास के निर्देशन में सआदत हसन मंटो की बायोपिक फिल्म ‘मंटो’ की हैं, जो कि कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में धूम मचा रही हैं। अब मैं शिवसेना प्रमुख रहे स्व.बालासाहब ठाकरे की हिंदी व मराठी दोनो भाषाओं में बन रही बायोपिक फिल्म ‘ठाकरे’ कर रहा हूं। यह दोनों ही किरदार अपने आप में काफी चुनौतीपूर्ण हैं। सआदत हसन मंटो अपनी निजी जिंदगी में बहुत ही ईमानदार और सत्यवादी थे। मैं उनके किरदार को निभाते समय कैरीकेचर नहीं बनाना चाहता था। इसलिए उनके किरदार को निभाना मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती रही। पर मैंने अपने हिसाब से बहुत बेहतरीन काम किया। अब मैं फिल्म ‘ठाकरे’ कर रहा हूं। फिल्म ‘मंटो’ के लिए आपने किस तरह तैयारी की थी? सआदत हसन मंटो अंत तक सच के लिए संघर्ष करते रहे। वह समाज में फैले ढोंग को उजागर कर रूढ़िवादी सोच को बदलने की कोशिश करते रहे। जबकि उन्हें लगातार गालियां मिलती रहीं। उन पर कई मुकदमें भी हुए। पर वह डरे नहीं। यह फिल्म एक बायोपिक से कही ज्यादा है। इस किरदार में लगभग चार माह गुजारने के बाद मुझे अपने आप से शर्म आने लगी थी। हमारे समाज में हर कोई खुद को सच्चा दिखाने की कोशिश करता है। पर मंटो के हाथों में जो आइना है, उसमें सब कुछ साफ है। वह एक दम सच्चे इंसान थे। हमेशा सच के लिए खडे़ रहे। हकीकत में आज की तारीख में मंटो की तरह जिंदगी जीना बेहद मुश्किल है। हम सभी झूठ की जिंदगी जी रहे हैं। फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद मुझे अहसास हुआ कि जल्द से जल्द मुझे मंटो को अपने अंदर से निकाल देना चाहिए। मेरे लिए दिक्कत ‘मंटो’ की आत्मा को आत्मसात करने की थी। मैं कुछ ऐसा करना चाहता था कि परदे पर मेरे संवाद सुनकर लोगां को अहसास हो कि मंटो बोल रहे हैं। मैंने मंटो को नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के दौरान पढ़ा था। उनकी कहानियों पर नाटक किए थे। लेकिन वह कैसे थे? उनकी सोच कैसी थी? यह फिल्म के दौरान मैंने जाना। आपको फिल्म ‘ठाकरे’ में शीर्ष भूमिका निभाने का अवसर कैसे मिला? अचानक एक दिन शिवसेना नेता संजय राउत ने मुझे एक होटल में मिलने के लिए बुलाया। मेरे साथ चाय पीते हुए उन्होंने बताया कि वह बालासाहेब के जीवन पर फिल्म बना रहे हैं, जिसमें मुझे बाला साहेब ठाकरे का किरदार मुझे निभाना है। चाय खत्म होते ही हमारी यह मुलाकात खत्म हो गयी थी। उसके बाद मैं कई दिन तक नर्वस रहा। क्योंकि वह बहुमुखी और प्रतिभाशाली इंसान थे। उन्हें लोगों ने करीब से देखा है। उनके प्रशंसक उनकी हर अदा से वाकिफ हैं। फिल्म ‘ठाकरे’ के लिए किस तरह की तैयारी की? इस फिल्म की शूटिंग शुरू करने से पहले मैंने काफी तैयारियां की। सबसे पहले मैने बाला साहब के सभी करीबी लोगों से मिलकर छोटी से छोटी जानकारी हासिल की। उनके बेटे उद्धव ठाकरे ने मुझे अपना पूरा घर दिखाया। मैंने बाला साहब की दिनचर्या से लेकर उनकी हर अदा को बेहद गहराई से समझने का प्रयास किया। घर पर उनका अलग अंदाज होता था। जबकि स्टेज पर अलग नजर आते थे। फिर तीन माह तक मैंने मराठी भाषा सीखी। अब आप मुझसे लगातार 15 पेज के संवाद मराठी भाषा में बिना उच्चारण दोष के सुन सकते हैं। जबकि कुछ माह पहले तक मैं मराठी का एक षब्द भी नहीं बोल पाता था।मैंने ठाकरे साहब के तमाम वीडियो देखे। उनकी चालढाल के साथ उनके बोलने की अदा को आत्मसात करने की पूरी कोशिश की हैं। फिलहाल तो उनकी शूटिंग शुरू हुई है। इससे ज्यादा अभी बताना ठीक नही होगा। मेरा मानना है कि जब आप किसी इंसान की बायोपिक फिल्म में अभिनय करते हैं, तो जरूरी हो जाता है कि जिस इंसान का किरदार आप निभाने जा रहे हैं, उसकी चाल ढाल, उसकी सायकी के साथ साथ उनके विचारों, उसकी सोच को भी समझना बहुत जरूरी होता है। फिल्म ‘ठाकरे’ में हम बाल ठाकरे की पूरी जिंदगी व उनकी जटिल यात्रा को पूरी ईमानदारी के साथ पेश करने की कोशिश की जा रही है। मैं मानता हूं कि मेरी जिंदगी व मेरे करियर का यह सर्वाधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण किरदार है। ठाकरे की जीवन शैली से आपने क्या सीखा? मैंने निश्चित तौर पर बहुत कुछ सीखा है। उन्होंने अपना करियर कार्टूनिस्ट के रूप में शुरू किया था। ठाकरे साहब अंग्रेजी अखबारों के लिए कार्टून बनाते थे। 1960 में ‘मार्मिक’ नामक मराठी भाषा में साप्ताहिक अखबार निकाला। अपने पिताजी के साथ केषव सीताराम ठाकरे के राजनीतिक दर्शक को महाराष्ट्र में प्रचारित और प्रसारित किया। 1966 में उन्होंने राजनीतिक पार्टी शिवसेना की नींव रखी। बाद में मराठी और हिंदी अखबार भी निकाले। हर किसी में इतनी प्रतिभा नही होती है। आप बाल ठाकरे के किरदार को ‘मंटो’से भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण क्यों मानते हैं? इसकी मूल वजह यह है कि मंटो का कोई वीडियो नहीं है। उन्हें गुजरे हुए पचास वर्ष हो गए। इसलिए मैंने जिस तरह से उन्हे परदे पर चित्रित किया, उसे देखकर लोग यकीन कर लेंगे। पर बालासाहब ठाकरे के संबंध में इंटरनेट पर वीडियो सहित काफी सामग्री मौजूद है। उनके साथ कई वर्ष काम कर चुके लोग जिंदा हैं। आम लोगो ने भी उन्हें देखा है। कलाकार के तौर पर आप टीवी, फिल्म व वेब सीरीज में क्या फर्क पाते हैं? एक फिल्म में दो से ढाई घंटे की सीमित अवधि के अंदर पूरी कथा बयां करनी होती है। ऐसे में किरदार की जटिलताओं का विस्तार से चित्रण संभव नहीं है। जबकि वेब सीरीज में आठ घंटे की अवधि में ऐसा संभव है। जहां तक मेरा अपना सवाल है, तो मुझे जहां भी अच्छा काम करने का मौका मिलता है, मैं उसे लपक लेता हॅूं। आने वाली फिल्में कौन सी हैं? अनिल शर्मा की ‘जीनियस’, रितेश बत्रा की ‘फोटोग्राफ’ भी की हैं। कबीर खान के निर्देशन में फिल्म ‘83’ में रणवीर सिंह के साथ काम करने वाला हॅू। इसमें कपिल देव का किरदार रणवीर सिंह निभा रहे हैं। जबकि मैं उनके कोच का किरदार निभा रहा हॅू। मैं आथिया शेट्टी के साथ एक फिल्म ‘मोतीचूर चकनाचूर’ करने वाला हॅूं।जिसकी शूटिंग 23 सितंबर से लखनऊ में शुरू होगी। यह शादी को लेकर एक हास्य फिल्म है। फिल्म के निर्माता राजेश भाटिया और निर्देशक हैं-देबामित्रा हासन। इस फिल्म में जबरदस्त ह्यूमर है। इसमें आथिया शेट्टी एक उत्तर भारतीय टिपिकल लड़की के किरदार में नजर आएंगी। मैं अपने भाई शमास सिद्दीकी के निर्देशन में क्राइम थ्रिलर एक फिल्म ‘गेहॅूं गन्ना और गन’ में भी अभिनय करने वाला हूं। यह फिल्म मार्च 2019 में षुरू होगी। तनिष्ठा चटर्जी के निर्देशन में भी एक फिल्म करने वाला हॅूं। कार्तिक सुब्बाराज के निर्देशन में रजनीकांत व सिमरन बग्गा के साथ एक तमिल फिल्म भी करने वाला हूँ। इसे देहरादून, दार्जलिंग व चेन्नई में फिल्माया जाएगा। इसके अलावा बीबीसी के साथ एक अपराध कथा वाली सीरीज‘ ‘एम सी माफिया’ भी कर रहा हॅूं। यह फिल्म इसी नाम की 2008 की सफल किताब पर आधारित है। #bollywood #Nawazuddin Siddiqui #interview #Manto #Upcomings Films हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article