पाखी टायरवाला ने अपने करियर की शुरूआत एक एक्ट्रेस के तौर पर फिल्म “ये क्या हो रहा” है और “झूठा ही सही” से की। अब पाखी डायरेक्शन में अपना हाथ आजमा रही हैं । उनकी डायरेक्शन में डेब्यू फिल्म “पहुना: द लिटिल विजिटर्स” है। पहुना के लिए पाखी से हमारी खास बातचीत हुई। इस दौरान पाखी मायापुरी मैग्जीन के ऑफिस पहुंची और फिल्म से जुड़े अनुभवों को शेयर किया।
आपने डेब्यू फिल्म के लिए पहुना: द लिटिल विजिटर्स ही क्यों चुना?
अगर आप देखें तो आजकल लोग विस्थापित हो रहे हैं भारत में, सीरिया और मेक्सीको में भी। हर जगह एक ही चीज़े हो रही है और इन सबमें बच्चों को सबसे ज्यादा भुगतना पड़ता है। लोग बच्चों से झूठ भी बोलते हैं कि दूसरे धर्म के लोग शैतान होते हैं क्योंकि वो दूसरे धर्म को मानते हैं दूसरे भगवान की पूजा करते हैं। दूसरी तरफ मुझे ये भी पता था कि अगर मैं कमर्शियल सिनेमा बनाउंगी तो मेरी दुसरी फिल्म के लिए मुझे कोई पैसा नहीं देगा। अगर मैं कमर्शियल सिनेमा बना भी देती तो मैं पहुना जैसी फिल्म फिर दोबारा नहीं बना पाती।
बच्चों के साथ काम करने अनुभव कैसा था?
बच्चों को मैनेज करना बहुत ही मुश्किल टास्क होता है। मुझे बच्चों को शोषण से भी बचाना था साथ ही उनसे काम भी कराना था। मुझे समय पर फिल्म खत्म करना होता था पर बच्चों को रात में निंद आ रही होती थी। रात में शूट करने के लिए मुझे उन्हें चॉकलेट का लालच देना पड़ता था पर एक लीमिट पर आकर हम शूट बंद कर देते थे। फिल्म एक चार महिना का बच्चा भी था जिसे हैंडल करना चुनौतिपूर्ण था। उसे हैंडल का सबसे कठिन काम था।
प्रियंका चोपड़ा फिल्म की प्रोड्यूसर हैं उनके साथ आपका कोलाबरेशन कैसे हुआ?
मुझे किसी ने बताया थी कि प्रियंका हिंदी फिल्मों में पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं हैं वो रिजनल फिल्मों में पैसा लगाना चाहती हैं। मैंने फिर प्रियंका की मां मधू चोपड़ा को अप्रोच किया। प्रियंका की ज्यादातर डिसीजन उनकी मां ही लेती हैं तो उन्हें फिल्म की कहानी बहुत पसंद आयी और उन्होंने उसे प्रियंका को भेज दिया और प्रियंका को भी फिल्म बेहद पसंद आयी।
पहुना: द लिटिल विजिटर्स को काफी अवॉर्ड्स मिल चुके हैं तो आपको कैसा महसूस हो रहा है?
मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। जर्मनी से पहले 3-4 फिल्म फेस्टिवल में फिल्म जा चुकी है। मुझे इस फिल्म के लिए क्रिटिक्स अवॉर्ड भी मिला। मैं पहले ऐसा सोचती थी कि पहुना फिल्म बच्चों के बारे में बच्चों के लिए नहीं है। जब मुझे इस फिल्म के लिए अवॉर्ड मिला तब लगा यह फिल्म अडल्ट के लिए है। मैं बहुत ही विनम्र थी क्योंकि ज्यूरी में 14 बच्चे थे जो अलग-अलग देश से थे। उन्होंने अपने स्पीच में कहा की उन्हें यह फिल्म बेहद पसंद आयी।
आपने फिल्म के लिए सिक्किम ही चुना?
मैं पहली बार अपने घर से दूर अपनी मां से दूर थी पर सिक्किम में मुझे ऐसा बिल्कुल महसूस नहीं हुआ कि मैं अलग-थलग हूं। ये अलग बात है कि वहां का तापमान जमा देने वाला था और वहां रास्ते ऊपर-निचे थे फिर भी आपको लोगों के चेहरे पर मुस्कान नज़र आयेगी। सिक्किम बेहद ही खूबसूरत राज्य है और भारत का पहला ऑर्गेनिक और प्लास्टिक मुक्त राज्य है। वहां साक्षरता की संख्या ज्यादा है और क्राइम रेट कम है। वहां के लोग उसे अपने लिए जन्नत बनाने में वयस्त है।