राजनीति में जाने के बाद परेश रावल ने अपने आपको गिनी चुनी सलेक्टिड फिल्मों तक ही सीमित कर लिया। इन दिनों वह सजंय दत्त की जीवनी पर बनी फिल्म ‘संजू’ में उनके पिता सुनील दत्त की भूमिका के लिये चर्चा में हैं। हाल ही में फिल्म को लेकर उनसे एक बातचीत।
इन दिनों आप चुनिंदा फिल्मों में ही काम कर रहे हैं ?
अभी तक ढेर सारी भूमिकायें निभा चुका हूं लिहाजा ढेर सारी फिल्में करने का क्रेज अब खत्म हो चुका है। मेरे पास ऑफर्स आते हैं लेकिन अगर मेरे सामने दुबला पतला रोल आता है या डायरेक्टर कमजोर है, इसके अलावा पैसे भी नहीं है तो मैं उस फिल्म के लिये ना कर देता हूं।
यहां आपने सुनील दत्त साहब की भूमिका निभाई है। उनके बारे में आप कितना जानते थे ?
मेरे लिये यह डिफिक्ल रोल इसलिये रहा, क्योंकि दत्त साहब के कोई खास मैनेरिज्म नहीं थे, वह बहुत ही नार्मल किस्म के इंसान थे और उसी प्रकार के नार्मल किस्म के रोल किया करते थे, लिहाजा उनके साथ मैनेरिज्म वाली कोई बात नहीं थी। दूसरा मुझे देखना था कि बतौर पिता, बेटे के लिये उनकी क्या पीड़ा थी, दूसरी तरफ पत्नि नरगिस को कैंसर था, जो कि एक जानलेवा बीमारी थी और संजू की भी ड्रग्स लेने की आदत जानलेवा ही थी, तीसरी तरफ उनका पॉलिटिक्ल कॅरियर था। उन दिनों उस पर भी लोगों की उंगलियां उठ रही थी। एक तरफ जो परिवार देश सेवा में जुटा हुआ था, दूसरी तरफ उनका बेटा बम ब्लास्ट जैसे देशद्रौही इल्जाम में फंसा था। अब सोचिये कि ऐसे में वह बाप किस पीड़ा से गुजर रहा होगा। उस बाप के परिवार के लेकर संघर्ष को पकड़ कर मैं चला और उसमें आप दिखे न दिखे चलेगा, वहां उनकी पीड़ा और संघर्ष दिखना चाहिये था।
इन दिनों संजू की भूमिका को लेकर रणबीर कपूर की तारीफ हो रही है ?
अगर मैं सही कहूं तो रणबीर कपूर ने संजू की भूमिका को लेकर इतना ब्रिलेंट काम किया है कि उसे देखकर मुझे भी लगा कि जहां तक हो सका मैं भी दत्त साहब की तरह लंगू और उन्हीं की तरह बीहेव करता दिखाई दूं। ज्यादा तो नहीं लेकिन पर्दे पर आपको थोड़ा बहुत सुनील दत्त दिखेगा ही दिखेगा।
भूमिका में आपके लिये सबसे चेलेंजिंग क्या था ?
दत्त साहब की अच्छाई और उनका लोगों के प्रति करूणाभाव, उसे साकार करना मेरे लिये काफी चेलेंजिंग रहा। आप देखिये कि उस आदमी की लाइफ में इतना संघर्ष चल रहा था, बावजूद इसके उन्होंने कभी किसी को बुरा भला नहीं कहा, कभी किसी के साथ गाली गुप्तार नहीं की और न ही किसी को ब्लेम किया। उन्होंने बस अपने बेटे को सही राह पर लाने की कोशिश की। यह सब एक अच्छा इंसान ही कर सकता है।
दत्त साहब की सबसे अच्छी बात आपको क्या लगी ?
इतना सब कुछ होने के बाद भी उन्होंने कभी अपने परिवार को तितर बितर नहीं होने दिया। बेटे पर आतंकवादी का दाग लगा था, उस दाग को धोने की उनकी भरकस कोशिश को मैं सलाम करता हूं, क्योंकि वह हमेशा देश के कानून के मुताबिक ही चले, उन्होंने कभी बेटे के लिये कोई सिफारिश लगाने कोशिश नहीं की। कितने अफसोस की बात है कि जब देश के कानून ने सजंय को आरोपमुक्त किया तो वह सब देखने और सुनने के लिये पिता जिन्दा नहीं थे।
संजय के प्रति समाज के नजरिये को लेकर क्या कहना है ?
सजयं तो फिर भी एक सेलेब्रेटी है, लेकिन जब भी कोई आम शख्स निर्दोष होने के बाद जेल से आरोपमुक्त हो बाहर आता हैं उसके बाद भी समाज उसे अपराधी की तरह ही देखता है। यही मिली जुली प्रतिक्रियायें संजय के लिये भी रही।
फिल्म के प्रति संजय दत्त के नजरिये को लेकर आपका क्या कहना है ?
यहां उसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी क्योंकि उसे पता था कि फिल्म के निर्देशक राजू हिरानी उसकी बहुत सारी कमजोरियों को शायद न दिखाना चाहे, लेकिन संजय ने सामने आकर वह सब भी फिल्म में डालने के लिये कहा, कि जो लोगों को पता नहीं था, क्योंकि उसका कहना था कि जब आप मेरी बायोपिक बना रहे हो तो उसमें नेगेटिव पॉजिटिव सब कुछ होना चाहिये, जिससे लोगों को पता चले कि गलत होने या गलत करने का क्या दर्द होता है।