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INTERVIEW: ऑथैंटिक रीयल किरदार लोगों को पसंद नहीं आते - नवाजुद्दीन सिद्दीकी

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By Mayapuri Desk
INTERVIEW: ऑथैंटिक रीयल किरदार लोगों को पसंद नहीं आते - नवाजुद्दीन सिद्दीकी
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पंद्रह वर्षों का संघर्ष खत्म होने के बाद नवाजुद्दीन सिद्दीकी की गिनती बॉलीवुड के अति व्यस्त कलाकारों में होने लगी है। अब फिल्मकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी को ध्यान में रखकर फिल्म की स्क्रिप्ट व किरदार गढ़ने लगे हैं.कुछ समय पहले प्रदर्शित फिल्म ‘‘मॉम’’ में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.फिलहाल वह कुशान नंदी निर्देशित फिल्म ‘‘बाबूमोशॉय बंदूकबाज’’को लेकर चर्चा में हैं।

क्या आपने फिल्म‘‘बाबूमोशॉय बंदूकबाज’’ में बंगाली किरदार निभाया है?

यह बंगाली किरदार नही है.बंगला में ऐसा कोई शब्द नहीं है.मगर फिल्म‘‘आनंद’’में इस शब्द का इजाद हुआ था.फिल्म ‘आनंद’ में राजेश खन्ना के किरदार को यह नाम दिया गया था मोशॉय का मतलब होता है-मिस्टर।

फिल्म‘‘बाबूमोशॉय बंदूकबाज’’को लेकर क्या कहेंगे और आपका किरदार क्या है?

यह फिल्म‘कॉंट्रैक्ट किलिंग’के इर्दगिर्द घूमती है.लोग किस तरह महज चंद पैसों के लिए किसी भी इंसान की जान लेते रहते हैं,उसकी कहानी है.इसमें मैंने बाबूमोशॉय बंदूकबाज का किरदार निभाया है, जिसके अपना कोई सिद्धांत या वैल्यू नहीं हैं.पूरी तरह से प्रोफेशनल हैं.किसी की इज्जत नहीं करता.फिल्म को देखने के बाद दर्शकों की हमदर्दी इस किरदार को मिलेगी,मुझे नहीं लगता.यह आम फिल्मी हीरो जैसा नही है.पर इसका ह्यूमर बहुत कमाल का है.थोड़ा क्रुकी टाइप का किरदार है.हमारे दर्शक फिल्मों में जिस हीरो को देखते आए हैं,वैसा यह हीरो नही है.हमारी फिल्मों में अब तक हीरो का मतलब सिर्फ अच्छा काम करने वाला ही माना जाता है, जिसमें कोई बुरायी नजर नहीं आती.हीरो सर्वगुण संपन्न होता है.इन सारी बातों को मेरा किरदार तोड़ता है.मेरे किरदार में हर तरह की बुराइयां हैं. उसका प्यार शारीरिक है.पर यदि हम वास्तविक जीवन में देखें,तो हर इंसान लगभग इसी तरह का होता है.हर इंसान में कुछ अच्छाईया व कुछ बुराइयां होती हैं।  publive-image

इस फिल्म में जो माहौल है,क्या उसे आपने कभी देखा?

यदि आप मुंबई से बाहर निकले छोटे कस्बे व शहरों में जाएं, तो आपको इस तरह का कल्चर नजर आएगा. मैं बहुत घूमता रहा हूं.तो मैंने भी बहुत सारी चीजें देखी हैं.अनुभव किए हैं.जब हम किसी किरदार को निभाते हैं,तो हमारा जो अनुभव होता है,वह किसी भी किरदार को निभाते समय हमारे काम आता है. मेरी यात्रा बहुत लंबी है.मैं अपने दूरदराज गांव से निकलकर दिल्ली,मुंबई सहित कई शहरों में आया गया हूं.इस बीच हजारों लोगों से मुलाकात हुई,जिसमें हर तरह के लोग रहते हैं.मैंने उनकी चारित्रिक विशेषताओं को अनुभव किया, उनकी बॉडी लैंग्वेज,उनकी चाल ढाल को समझता रहा हूं.वही मेरे अभिनय में काम आता है।

बाबूमोशॉय बंदूकबाज के किरदार के लिए आपको अपनी तरफ से किस तरह की तैयारी करनी पड़ी?

यह पहला किरदार है,जिसके लिए मुझे अपनी तरफ से बहुत कम तैयारी करनी पड़ी.किरदार का लुक साधारण सा है.जिसे निर्देशक ने तय किया.किरदार को किस तरह से आगे लेकर जाना है,और इसका जो क्रुर्कीनेस है,उस पर मुझे काम करने की जरूरत पड़ी।

अब तक गैंगस्टर या कांटै्क्ट किलिंग पर तमाम फिल्में बनी हैं.उनसे ‘बाबूमोशॉय बंदूकबाज’अलग कैसे है?

देखिए,गैंगस्टर और कांट्रैक्ट किलिंग बहुत अलग है.कांट्रैक्ट किलिंग में सिर्फ पैसे के लिए किसी की भी हत्या की जाती है.यह फिल्म अब तक बनी सभी फिल्मों से इस मायने में अलग है कि इस फिल्म में पहली बार एक कांट्रैक्ट किलर की निजी जिंदगी को बहुत ही यथार्थ के धरातल पर दिखाया गया है. उसकी जिंदगी इतनी ईमानदारी से चित्रित की गयी है कि उसे देखकर आपको गुस्सा आएगा।publive-image

आप मानते हैं कि आपकी फिल्म समाज का हिस्सा है.पर जब फिल्मों पर आरोप लगता है कि किसी फिल्म को देखकर किसी ने अपराध किया, तो फिल्मकार इंकार क्यों करते हैं?

सच कहूं तो फिल्मों से प्रेरित होकर अपराध की घटनाएं तो बहुत कम सुनायी पड़ती है.हकीकत में पूरे विष्व में यथार्थ के धरातल पर जितने खतरनाक व अति दर्दनाक वाकिए हो रहे हैं,उनको तो फिल्मों में कभी दिखाया ही नहीं जाता.फिल्में तो बहुत साफ सुथरी बन रही हैं.मेरी राय में तो हमारे समाज में या पूरे विश्व में जो कुछ हो रहा है,वह सब सिनेमा में आना चाहिए.2 दिन पहले चार साल की बच्ची के साथ रेप हुआ, इसे भी फिल्म में दिखाया जाना चाहिए.निजी जिंदगी में बहुत खतरनाक और दर्दनाक घटनाएं हो रही हैं,यदि यह सब फिल्मों में दिखाएं तो षायद लोगों की चेतना जगे।

यदि फिल्में साफ सुथरी बन रही हैं. तो फिर सेंसर बोर्ड ने आपकी फिल्म ‘‘बाबूमोशॉय बंदूकबाज’’पर 48 कट्स क्यों लगा दिए?

हम कब कह रहं हैं कि हमारी फिल्म साफ सुथरी है.हमारी फिल्म बहुत ही रीयल है.समाज में जो कुछ घटित हो रहा है,उसका प्रतिबिंब है. जीवन में जो कुछ घटित हो रहा है, उससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता.यदि आप मुंह मोड़ रहे हैं,तो आप हिपोक्रेट हैं.सेंसर बोर्ड भी हिपोक्रेसी कर रहा है.क्योंकि समाज में जो कुछ हो रहा है,वही हमने अपनी फिल्म में दिखाया है.देखिए,प्यार मोहब्बत खेत व खलिहान में नहीं होता.प्यार तो घर की चार दीवार के अंदर,घर के कमरे व घर के आंगन में  होता है. हमने वही सब दिखाया हैं। फिल्म में जो संवाद हैं,जो भाषा है,वह भी आम जीवन का हिस्सा है.जब हम एक ऑथैंटिक व रीयल किरदार को निभाते हैं,तो हमें उसके आस पास के सारे नॉयसेंस को जोड़ना पड़ता है.तभी वह किरदार वास्तविक लगता है.अन्यथा फेक किरदार हर फिल्म में नजर आते हैं.हम रियालिस्टिक सिनेमा नहीं देखना चाहते.क्योंकि उसमें हमें अपना आइना नजर आता है.हमारी फिल्म देखकर सेंसर बोर्ड वालों को लगा कि उन्होने जो कुछ कभी किया था,वह इसमें दिखाया गया।publive-image

कुछ लोग कहते है कि आपको अपनी आलोचना सुनना पसंद नहीं है?

मुझे अपनी आलोचना सुनना पसंद है,पर मेरी आलोचना करने वाला इंसान उस काबिल हो.जो इंसान किसी काबिल नहीं, वह इंसान किसी को भी गाली दे देता है.जब मेरी कोई आलोचना करता है,तो मैं उसकी शिक्षा के बारे में जानकारी हासिल करता हूं वह मेरे जितना शिक्षित या मेरे जितना अनुभव रखता है.यदि एक इंसान समझदार, जानकारी रखने वाला व अनुभवी है,तो वह मुझे दस गाली दे सकता है.मैं उसकी हर गाली को स्वीकार करुंगा,उस पर विचार करुंगा.उससे सीखूंगा। क्योंकि वह काबिल है.काबिल इंसान की बात सुननी चाहिए.जो नालायक हैं,घर पर बैठे रहते हैं,काम कुछ करते नहीं हैं,सिर्फ सोशल मीडिया पर शेखी बघारते रहते हैं, उनको मैं कोई तवज्जो नहीं देता.ट्वीटर पर बेवजह गाली देने वालों की कौन सुनता है?

आप सोषल मीडिया आप खुद क्या लिखना पसंद करते हैं?

मैं अपनी फिल्म को प्रमोट करता हूं,पर अपने विचारों को सोशल मीडिया पर नहीं डालता.मुझे पता है कि यदि मैंने अपने विचार सोशल मीडिया पर डाले, तो ट्रोलर हमला बोलने में कसर बाकी नहीं रखेंगे, कोई कुछ भी बोलेगा.publive-image

फिल्म के निर्देशक कुशान नंदी को लेकर क्या कहेंगे?

कुशान नंदी बहुत ही ज्यादा बीहड़ व अलग सोचते हैं.उनके अंदर क्रुकीनेस है.एकदम सीधा कुछ नही सोचते.इसलिए मुझे कुशान नंदी बहुत पसंद है।

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