मैंने बॉलीवुड में बहुत सही समय पर कदम रखा- राज कुमार By Shanti Swaroop Tripathi 08 Nov 2017 | एडिट 08 Nov 2017 23:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर रंगमंच से फिल्मों तक का राज कुमार राव का सफर कम अनूठा नहीं है. राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता राज कुमार राव की फिल्मों करियर उतार चढ़ाव लेता रहा है. ‘काई पो चे’, ‘सिटी लाइट्स’, ‘क्वीन’, ‘शाहिद’ तक सफलता की ओर अग्रसर थे, लेकिन 2015 में ‘डॉली की डोली’ और ‘हमारी अधूरी कहानी’ की असफलता ने उनके करियर पर सवालिया निशान लगा दिया. हालांकि 2016 में ‘अलीगढ़’ ने उन्हें एक बार फिर उत्कृष्ट अभिनेता साबित कर दिया. पर 2017 उनके लिए खुशियां ही खुशियां लेकर आता जा रहा है. इस वर्ष उनकी फिल्में लगातार सफलता दर्ज करा रही हैं. उनके अभिनय से सजी फिल्म ‘न्यूटन’ को ऑस्कर मे भेजा गया है. बहरहाल, वह इन दिनों विनोद बच्चन निर्मित तथा रत्ना सिन्हा निर्देशित फिल्म ‘‘शादी में जरुर आना’’को लेकर उत्साहित हैं. अपनी अभिनय यात्रा को लेकर क्या सोचते हैं ? मेरी अब तक की यात्रा कंटेंट ओरिएंटेड रही है.मुझे हर प्रतिभाशाली निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिला. कलाकार के तौर पर मुझे बहुत प्रयोगात्मक काम करने का मौका मिला.मुझे तो इस यात्रा में बहुत मजा आया.मुझे लगता है कि मैंने बॉलीवुड में बहुत सही समय पर कदम रखा,जब सिनेमा बदल रहा था,नए नए फिल्मकार आ रहे थे. मुझे लगता है कि मैंने अपनी एक जगह ढूंढ़ ली है. इस साल मेरी फिल्म ‘‘न्यूटन’’ ऑस्कर मे भेजी गयी है. आपकी फिल्म‘‘न्यूटन’’को ऑस्कर’’ में भेजने की खबर के साथ ही कुछ लोगो ने विवाद पैदा किए? अब इसकी वजह तो वही बता सकते हैं.हमने तो बड़ी इमानदारी के साथ यह फिल्म बनायी.एक सही मुद्दे को फिल्म में उकेरा. दर्शकों को फिल्म और मेरा काम पसंद आ रहा है.जिन्होने विवाद पैदा किए,उन्हे फिल्म को ऑस्कर में भेजने का निर्णय करने वालों ने खुद ही जवाब दे दिया.हमें कुछ कहने की जरुरत ही नहीं पड़ी.वैसे भी मैं सिर्फ अपने काम पर ध्यान देता हॅूं,विवादों पर नहीं.हमारे यहॉं हर किसी को अपनी राय व्यक्त करने का हक है. आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या रही? बहुत खुशी हुई.हमें इतने बड़े अवार्ड समारोह में अपने देश का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिला है.पर यह शुरूआत है.अभी लंबा संघर्ष हैं,जिसके लिए हमें काफी मेहनत करनी है.पर हमें हमारी टीम पर पूरा भरोसा है. अभी मैं शिकागो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल से वापस आया हूं.वहां पर ‘न्यूटन’को काफी पसंद किया गया.वहां पर तमाम अमरीकन फिल्मकार भी थे.उनका मानना था कि लंबे समय बाद भारत से ऐसी फिल्म आयी है.वास्तव में लोकतंत्र भारत के अलावा कई अन्य देशों में भी है.हर देश में लोकतंत्र के चलते कुछ समस्याएं भी हैं. इसलिए लोग इस फिल्म के साथ रिलेट कर रहे हैं.एक इंसान जो कि सिस्टम में रहकर इमानदारी से काम करता है,साथ में ही वह अपने सिस्टम को भी फालो करता है. दर्शक ऐसी दुनिया को देख पा रहा है,जिसके बारे में सुना था.झारखंड और नक्सल प्रभावित इलाका,जहां पर चुनाव कराना आसान नहीं. फिल्म ‘‘शादी में जरुर आना’ ’क्या है? यह एक ड्रामा लव स्टोरी है, साथ में कॉमेडी भी है.कहानी कानपुर व इलाहाबाद मे स्थित है.रोचक कहानी है.बतौर निर्देशक रत्ना सिन्हा की यह पहली फिल्म है.निर्माता विनोद बच्चन से सभी वाकिफ हैं.हमारे साथ पहली बार इस फिल्म में कृति खरबंदा हैं.एक लंबे समय बाद ऐसी प्रेम कहानी आ रही है,जिसमें शादी वाले दिन ही किरदार बदल जाते हैं.‘बरेली की बर्फी’में भी किरदार में बदलाव आता है,पर उसमें कॉमिक मसला था.जबकि इस फिल्म में कुछ और ही मसला है. आपकी फिल्म में प्यार में आपका किरदार बदला लेता है.तो क्या प्यार में बदला लेना ही एकमात्र...? ऐसा कुछ नहीं है.प्यार तो प्यार ही होता है.प्यार में झगड़े भी होते हैं.मान मनव्वल भी होता है.प्यार में प्यार के साथ काफी कुछ आता है,उसे संभालना आना चाहिए. इससे अधिक कहानी के बारे में नही बता सकता.पर सत्तू और आरती शादी वाले दिन अलग हो जाते हैं,पर फिर वह मिलते हैं,तब क्या स्थितियां होती हैं.लेकिन पर हमेशा जिंदा रहता है.जबकि दोनो जिंदगी के अलग मोड़ पर मिलते हैं और दोनो के व्यक्तित्व बदल चुके हैं. फिल्म का नाम ‘‘शादी में जरुर आना’’क्यां? क्योंकि फिल्म में शादी बहुत महत्वपूर्ण है.शादी मुख्य आकर्षण का केंद्र है,पर शादी में आया जाता है या नही,यही देखने वाली बात है. फिल्म ‘‘शादी में जरुर आना’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे? मेरे किरदार का नाम सत्येंद्र मिश्रा उर्फ सत्तू है,जो कि सरकारी दफ्तर में काम करता है.मध्यम वर्गीय जिंदगी जी रहा है.नौकरी लगते ही उसकी शादी की बात चलती है. शादी की बात चलने पर पिता के कहने पर वह लड़की आरती से मिलता है और दोनो में प्यार हो जाता है.आरती के भी अपने कुछ अरमान है.पर शादी तय होती है. शादी के दिन सत्तू का दिल टूट जाता है.उसके बाद वह आईएएस आफसर बन जाता है.फिर जिंदगी के पड़ाव में वह दुबारा उस लड़की से मिलता है. क्या आप मानते हैं कि कहीं भी सफलता पाने के लिए इंसान को ठोकर लगनी जरुरी है,फिर चाहे वह प्यार में ही ठोकर क्यों न लगे? -बहुत जरुरी है.सफलता की बजाय असफलता सै इंसान ज्यादा सीखता है.असफलता सिखाती है कि आपको जिंदगी में क्या नहीं करना चाहिए.सफल होने पर हम नही सोचते कि सफलता कैसे मिली.असफल होने पर हम दिमाग लगाते हैं और कारण ढूढ़ते हैं.फिर हम सारे कलकुलेशन लगाते हैं. आपने खुद की जिंदगी में कब कब कलकुलेट किया है? मैने ज्चादा कलकुलेट नहीं किया.मैं कहानी सुनते समय ज्यादा कलकुलेट करता हूं कि मुझे यह कहानी वाली फिल्म करनी चाहिए या नहीं.जिंदगी में कलकुलेट नहीं करता.बहुत ही ज्यादा इम्पल्सिब यानी कि जल्दबाज इंसान हूं.संयम नही है.मुझे कहानी अच्छी लगती है,तो कर लेता हूं.मैं अपनी जिंदगी अपनी षर्तां पर जीने की कोशिश करता हॅूं.जब इच्छा घूमने की होती है,तो घूमने निकल जाता हूं. ‘‘शादी में जरुर आना’’की कहानी सुनते समय किस बात ने आपको यह फिल्म करने के लिए प्रेरित किया? कहानी अच्छी लगी.रत्ना सिंहा सुलझी हुई कमाल की महिला हैं.सत्तू और आरती के किरदारों की जेन्यून प्रेम कहानी लंबे समय से नहीं आयी.छोटे शहरों की जिंदगी को बहुत वास्तविक धरातल पर पेश किया गया है.फिर किरदारों में जो बदलाव आता है,उसने भी प्रेरित किया.मुझे लगा कि यह अच्छा मौका है कि एक ही फिल्म में मुझे एक ही किरदार के दो पहलू जीने का मौका मिल रहा है. आपकी पिछली फिल्म ‘बरेली की बर्फी’और यह फिलम ‘शादी में जरुर आना’ दोनों ही रोमांटिक फिल्में हैं,पर इनमें अंतर क्या है? ‘बरेली की बर्फी’ और ‘शादी में जरुर आना’’इन दोनों की कहानी छोटे शहरों की होते हुए भी काफी अलग हैं.मेरे किरदार बहुत अलग है.‘बरेली की बर्फी’में मेरा प्रीतम विद्रोही का किरदार बहुत दबा हुआ था.प्रीतम विद्रोही जैसे किरदार बहुत कम मिलते हैं.जबकि ‘शादी में जरुर आना’’का सत्तू तो नेक्स्ट डोर ब्वॉय है.मध्यम वर्ग का है.लोग इस किरदार के साथ रिलेट कर पाएंगे. आप अभी भी मुंबईया मसाला फिल्मों से काफी दूर हैं? यदि आपका मतलब उन फिल्मों से है,जिनमें नाच गाना बहुत होता है,तो ऐसी फिल्में मेरे पास काफी आती हैं.पर इन फिल्मों में कहानी नहीं होती है.फिल्म में कहानी ना हो,तो मैं वह फिल्म स्वीकार नहीं कर सकता.मैं सिर्फ डांस करने के लिए कोई फिल्म नहीं कर सकता. हां! कहानी अच्छी है,तो मैं फिल्म कर सकता हूं.लेकिन यह स्थिति धीरे धीरे बदल रही है.अब बडे़ बड़े स्टार कलाकार भी कहानी को महत्व देने लगे हैं.तभी तो सलमान खान ने‘सुल्तान’या ‘बजरंगी भाईजान’ की.शाहरूख खान ने भी ‘रईस’की. तो यह बॉलीवुड में एक अच्छा बदलाव आ रहा है. भविष्य की योजनाएं? फिलहाल तो अभिनेता के रूप में काफी व्यस्त हूं.पर भविष्य में मैं खुद फिल्म निर्देशित करना चाहता हॅूं.और अपनी पसंद की कहानियां दर्शकों को सुनाना चाहता हूं.यदि संभव हुआ तो अपनी कहानी सुनाने के लिए निर्माता भी बन सकता हूं.इसके अलावा एक्शन फिल्म करने की इच्छा है.क्योकि मार्शल आर्ट से पुराना संबंध है.जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ता था.उस वक्त मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में हिस्सा लेने लखनउ गया था.मैं आज भी मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस करता रहता हूं.भले ही अब मैं मार्शल आर्ट की प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाता.मगर मैं मार्शल आर्ट में गोल्डमेडलिस्ट हूं. #interview #Rajkumar Rao #Shaadi Mein Zaroor Aana हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article