रवीना टंडन मानव सभ्यता के विकास में बाधक हैं- रणवीर शौरी By Mayapuri Desk 29 Apr 2019 | एडिट 29 Apr 2019 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर ‘ट्रैफिक सिंग्नल’, ‘भेजा फ्राय’, ‘ए डेथ इन द गंज’, ‘तितली’ और ‘कड़वी हवा’ सहित कई सफल और विचारोत्तेजक फिल्मों का हिस्सा रहे अभिनेता रणवीर शौरी की 2019 में अब तक बाल फिल्म ‘टेनिस बडीज’ के अलावा ‘सोन चिड़िया’ प्रदर्शित हो चुकी है.अफसोस की बात यह रही कि ‘सोन चिड़िया’को दर्शकों ने सिरे से नकार दिया. फिलहाल वह ‘मेट्रो पार्क’ सहित कुछ वेब सीरीज में काफी पसंद किए जा रहे हैं। हाल ही में उनसे हुई बातचीत इस प्रकार रही.. आपकी पिछली फिल्म ‘सोन चिड़िया’ दर्शकों को पसंद नहीं आयी. जबकि इसमें आपका किरदार ही मुख्य किरदार था? - जी हाँ! मुझे निराशा हुई। जब आपने स्क्रिप्ट सुनी थी और जब फिल्म बनकर रिलीज हुई, तो आपने क्या फर्क महसूस किया? - स्क्रिप्ट अच्छी थी. फिल्म उससे अच्छी बनी थी, पर मुझे अहसास हुआ कि दर्शकों की रूचि वक्त के हिसाब से बदलती जा रही है. इसके अलावा उनका अपना एक मूड़ भी होता है. अथवा मार्केटिंग को दोष दिया जा सकता है. मेरे हिसाब से इस फिल्म को अच्छे दर्शक मिलने चाहिए थे,जो कि नहीं मिले. मेरे लिए निराशा भी है. खुद को पुनः तलाशने का मादा भी है और कहीं न कहीं गुस्सा भी है। गुस्सा अपने आप पर आता है या दर्शकों पर? - सामान्यतः अपने आप पर ही गुस्सा आता है.मगर इस बार थोड़ा गुस्सा दर्शकों पर भी आया। मगर कहा जाता है कि दर्शक हमेशा सही होता है? - आपने एकदम सही कहा. मैं भी यही मानता हॅूं. मेरा मानना है कि यदि इसी फिल्म को हम किसी अन्य वक्त में, बेहतर मार्केटिंग के साथ लगा दें, तो यही फिल्म ज्यादा अच्छे रिजल्ट दे सकती है। तो आप मानते हैं कि मार्केटिंग से जुड़े लोग भी फिल्म को बर्बाद करते हैं? - भाई, आजकल सारा खेल ही मार्केटिंग का हो गया है. फिल्म तो कोई भी बना लेता है. मुख्य दारोमदार मार्केटिंग व डिस्ट्रीब्यूशन पर होता है.अब तो लगता है कि दर्शकों की बजाय सारा गुस्सा मार्केटिंग वालों पर निकलना चाहिए। भारतीय सिनेमा रचनात्मक क्षेत्र है, जिसका सौ साल का इतिहास है, मगर धीरे-धीरे यह मार्केटिंग पर निर्भर होकर रह गया? - सिनेमा ही क्यों, आप हर चीज को देख लें. इस मोबाइल को देख लें. हर चीज मार्केटिंग के भरोसे ही चल रही है. सब कुछ बाजारवाद के अधीन होकर रह गया है. आप कौन सा मोबाइल खरीदेंगे, यह भी मार्केटिंग पर ही निर्भर करता है। आप मानते हैं कि बाजारवाद ने रचनात्मकता को नुकसान पहुंचा दिया ? - हॉ! भी और ना भी. मार्केटिंग अपने आप में रचनात्मक काम है. मार्केटिंग नई तरह की रचनात्मकता को क्रिएट कर रहा है. तो वही वह रचनात्मकता को नुकसान भी पहॅुचा रहा है। एनएफडीसी और चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी फिल्मां का निर्माण कर रहे हैं.पर फिल्मों को थिएटर में पहुंचाने के बारे में नहीं सोचती? - ऐसा पहले होता था, अब नहीं. एनएफडीसी की लीना लाठ ने काफी काम किया है. चिल्ड्रेन फिल्म सोसाइटी में भी काफी बदलाव लाने के प्रयास जारी हैं. पर इनका वीजन वही है, जो सरकार का होता है। सरकारों के बदलने का सिनेमा पर क्या असर पड़ता है? - मैं नहीं मानता. मैंने भारत में सरकारें बदलते देखी हैं, मगर सिनेमा जहां का तहां है. वही पिंजरे में बंद तोता की तरह भारतीय सिनेमा है. हमारे यहां सिनेमा पर कई तरह की पाबंदियां लगाई जाती हैं. एक वर्ग को पसंद नहीं आती, तो बैन की मांग से लेकर पत्थर बाजी तक होती है. इससे सिनेमा आजाद होकर नहीं चल सकता. सेंसर बोर्ड के रवैये के चलते फिल्मकार की कलम लिखते समय भी रूक जाती है. तो रचनात्मकता पर वहीं से हस्तपक्षेप शुरू हो जाता है.इसके अलावा जब तक देश में शिक्षा का स्तर नहीं बढ़ेगा, बेरोजगारी खत्म नहीं होगी, खुशहाली नहीं आएगी, तब तक कला का भी सही विकास नहीं होता. सिनेमा अंततः कला व मनोरंजन के बीच का है. हमारे देश में जो सिनेमा पूर्णरूपेण मनोरंजन परोसता है, जिसमें कला का कोई योगदान नहीं होता, वह काफी पैसा कमाता है। तो ओेटीटी का प्लेटफार्म यानी कि डिजिटल माध्यम में वेब सीरीज वगैरह सिनेमा को आगे ले जाएगा? - सौ प्रतिशत..मैं देख रहा हूं कि सिनेमा के माध्यम से जो रचनात्मक आवाजें दर्शकों तक पहुंचने का प्रयास कर रहीं थी, उन्हें अब वेब सीरीज के रूप में एक नया माध्यम मिल गया है. यह बहुत अच्छी चीज है.पर अफसोस की बात यह है कि इन पर भी मार्केटिंग की परछाई आनी शुरू हो गयी है. मेरी वेब सीरीज ‘मेट्रो पार्क’ में कोई सेक्स या हिंसा नहीं है.आप पूरे परिवार के साथ बैठकर देख सकते हैं. वैसे मैं सेक्स, हिंसा, ड्रग्स को बुरा नहीं मानता. पर इनका उपयोग करके सेंशनेशनल चीजें परोसना गलत है। रवीना टंडन का मानना है कि वेब सीरीज को सेंसर शिप के अंदर लाना चाहिए? - गलत बात है. ऐसे लोग मानव सभ्यता के विकास में बाधक हैं. मैं तो फिल्मों पर से सेंसरशिप हटाने की मांग कर रहा हूं। आप अपने करियर से कितना खुश है? - मेरी कई बेहतरीन फिल्में बनकर तैयार है, पर वह सिनेमाघर नहीं पहुंची. इरफान खान के साथ पाँच साल पहले एक फिल्म की थी. नाम याद नही, मगर फिल्म आज तक रिलीज नहीं हुई. नवदीप सिंह ने निर्देशित किया था. एक फिल्म ‘ले ले मेरी जान’ है, इसमें मेरे साथ अनुपम खेर हैं. यह भी चार साल से बनकर तैयार है.‘सहारा’ के लिए एक फिल्म ‘कैरी आन पांडू’ की थी. यह हवलदार पर फिल्म थी. मगर रिलीज नहीं हो पायी। #bollywood #Raveena Tandon #Ranvir Shorey #interview हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article