‘फिल्म ‘रोमियो अकबर वाल्टर’ स्पाय फिल्म होते हुए भी मानवीय कहानी है..’- रॉबी ग्रेवाल By Shanti Swaroop Tripathi 02 Apr 2019 | एडिट 02 Apr 2019 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर स्पाय/जासूस किसी भी देश का हो और वह चाहे जिस देश में रहकर अपने वतन के लिए काम कर रहा हो, उसकी जिंदगी व उसके कारनामें सदैव अति रोमांचक, मानवीय और देशभक्ति से परिपूर्ण होते हैं.ऐसी रोमांचक कहानी को हर इंसान सुनना चाहता है.ऐसे में आर्मी बैकग्रांउड के फिल्म लेखक व निर्देशक रॉबी ग्रेवाल कैसे इस तरह के विषय से दूरी बनाकर रख पाते. यॅूं तो रॉबी ग्रवाल की यह चौथी फिल्म है, पर रॉबी ग्रेवाल की बतौर निर्माता पहली फिल्म ‘यहां’ थी, जो कश्मीर की पृष्ठभूमि में थी, जिसका निर्देशन सुजॉय घोष ने किया था. उसके बाद रॉबी ग्रेवाल ने ‘मेरा पहला पहला प्यार’ सहित कुछ फिल्में निर्देशित की और अब वह स्पॉय व रोमांचक फिल्म ‘रॉ’ लेकर आ रहे हैं। कहानी के प्रेरणा स्रोत पिता : रॉबी ग्रेवाल को स्पॉय फिल्म ‘रॉ’ बनाने की प्रेरणा अपने पिता मेजर एन एस ग्रेवाल से ही मिली. वह कहते हैं-‘‘मेरे पिता एन एस ग्रेवाल आर्मी में रहे हैं.उन्हांने मिलिट्री इंटेलीजेंस में भी काम किया था. 6-7 साल पहले की बात है. हम लोग घर पर यूं ही बैठे बात कर रहे थे. तब मेरे पिता ने 70-71 में सेना का जो माहौल था, 1971 में जो भारत पाक युद्ध हुआ, उस वक्त के हालात आदि को लेकर कई कहानीयां सुनायी. यह कहानियां और आर्मी का वह संसार मुझे बड़ा रोचक लगा. आर्मी इंटेलीजेंस का जो संसार मैंने सुना, वह मैंने देखा नहीं था. अपने पिता के मुंह से कुछ कहानियां सुनने के बाद इस संसार को समझने की मेरे अंदर रूचि जागी. तब मैंने पढ़ना शुरू किया.जितना मैं पढ़ता गया, उतना मैं पैशिनेट होता गया.आखिर एक इंसान अपने वतन के लिए अपना सब कुछ छोड़कर किसी दूसरे देश में क्यों जाता है? जबकि वह अच्छी तरह से समझता है कि दूसरे देश में पकडे़ जाने पर उसका अपना वतन भी उसे पहचानने से इंकार कर देगा. उनके अंदर किसी प्रकार का डर नहीं होता. वापस ना आ पाने का भी कोई डर नहीं होता. तो यह सारी दुनिया मुझे बड़ी रोचक लगी और मुझे लगा कि इस पर एक कहानी आम लोगों को बतायी जानी चाहिए. फिर मैंने रिसर्च शुरू किया. कहानी लिखनी शुरू की. मैं इस विषय पर जितना अंदर घुसता गया, मेरा मजा बढ़ता गया.एक दिन पूरी पटकथा तैयार हो गयी. अब फिल्म दर्शकों के सामने आने जा रही है।’’ रिसर्च वर्कः इस फिल्म के प्रेरणा स्रोत मेरे पिता कहे जाएंगे.उन्होंने जो कहानी सुनायी, उससे मुझे यह समझ आया कि स्पॉय ओर आर्मी की दुनिया क्या है?एक जासूस किसी दूसरे देष में जाकर किस तरह से ऑपरेट करते हैं. उसके बाद मैंने काफी कुछ पढ़ा.कुछ किताबें भी पढ़ीं.इंटरनेट पर जो सामग्री उपलब्ध थी, उसे पढ़ा. फिर जो लोग उस दौरान आर्मी इंटेलीजेंस में काम कर रहे थे, उनमें से कइयों से मैंने मुलाकात की. हर किसी ने गोपनीयता की शर्त रखकर ही मुझसे मुलाकात की, इसलिए नाम तो उजागर नही कर सकता. जिन लोगों से मैंने बातचीत की, उनसे कमाल की कहानियां सुनने को मिली,जो कि इंटरनेट पर कहीं नहीं हैं. जब मैंने इन लोगों से बात की,तो मुझे उनके अंदर के एहसास/इमोशंस, जब वह वहां काम कर रहे थे,सहित बहुत ताजा तारीन जानकारी मिली. इसी वजह से मेरी फिल्म में बहुत कुछ ह्यूमन एंगल हावी है. मेरे लिए पैशिनेट यही रहा कि मैंने अपनी रिसर्च ह्यूमन पक्ष को लेकर किया. मैंने रिसर्च के दौरान 70-71 में जो लोग आर्मी इंटेलीजेंस में जुड़े थे उनसे और जो लोग आज काम कर रहे थे, उनसे भी बात की. तो मुझे उस वक्त और आज के वक्त का भी फर्क पता चला. फिर मैंने दोनों के बीच का विश्लेषण किया। फिल्म के कथानक का बैकड्राप 1971 का भारत पाक युद्ध ही है. मगर उस वक्त के युद्ध की कहानी नहीं है.यह पूर्णरूपेण दूसरे देश में कार्यरत ‘रॉ’ के जासूसों और उनकी जिंदगी पर है। फिल्म ‘रॉ’ क्या है? - साधारण शब्दों में कहूं तो 71 का युद्ध षुरू हो चुका है.‘रॉ’ के मुखिया एक आम इंसान को ढूंढ़कर उठाते हैं और उसे जासूस की ट्रेनिंग देकर पाकिस्तान भेजते हैं.पाकिस्तान भेजे जाने के बाद वह भारत का जासूस क्या करता है? उसके सामने किस तरह की समस्याएं आती हैं? उससे वह कैसे जूझता है और किस तरह वह अपने द्वारा उपलब्ध जानकारी देश को देकर इस युद्ध में भारत को विजयी बनाने में योगदान देता है. पूरी फिल्म बहुत ही ज्यादा इमोषनल है, जिसका मुझे गर्व है. मेरा दावा है कि जब आप फिल्म देखकर उठेंगे तो आपके दिल में हिंदुस्तानी होने का गर्व होगा। फिल्म ‘रॉ’ में किसने क्या किरदार निभाया है? फिल्म में जैकी श्रॉफ ने इंटेलीजेंट चीफ यानी कि मुखिया का किरदार निभाया है. जिस इंसान को उठाकर ‘रॉ’ एजेंट बनाते हैं, उस किरदार को जॉन अब्राहम ने निभाया है, जिसके रोमियो, अकबर और वाल्टर नाम है. सिंकदर खेर ने पाकिस्तानी जासूस का किरदार निभाया है. जॉन अब्राहम के अपोजिट मौनी रॉय हैं. मौनी राय बैंक में काम करती हैं. सुचित्रा कृष्णमूर्ति के साथ एक बहुत बड़े दैनिक अखबार की मैनेंजिंग एडिटर हैं. रघुवीर यादव ने पाकिस्तान में रहने वाले उस इंसान का किरदार निभाया है, जो वहां पर जॉन अब्राहम की मदद करता रहता है। ‘रॉ’ में मानवीय एंगल के साथ देशभक्ति : दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. कहानी एक इंसान की है, इसलिए मानवीय पक्ष ज्यादा उभकर आया है. पर फिल्म खत्म होने पर हर दर्शक को समझ आएगा कि यह इंसान क्या था और इसने देश के लिए क्या किया? तब वह मानवीय पक्ष देशभक्ति का पक्ष बनकर उभरता है. देखिए, फिल्म की कहानी अच्छाई या बुराई की कहानी नहीं है. हमारी फिल्म किसी दूसरे देश को भी गलत नही ठहराती है. हमारा अपना जासूस अपने वतन के लिए अपने काम को अंजाम दे रहा है, पाक से जुड़ा इंसान अपने वतन के लिए अपने काम को अंजाम दे रहा है. भारतीय सैनिक और पाकिस्तानी सैनिक दोनों अपने अपने वतन के लिए काम कर रहे हैं. इनमें से कोई हीरो या कोई विलेन नही है.दोनों वतन के लिए काम कर रहे हैं। फिल्म की शूटिंग : हमने इस फिल्म को 46 दिनों में ज्यादातर गुजरात में फिल्माया है. हमने गुजरात में उन जगहों पर फिल्म को फिल्माया है, जहां इससे पहले किसी भी फिल्म की शूटिंग नहीं हुई है. मसलन जूनागढ़. हमने उन जगहों पर शूटिंग की जहां 1971 का माहौल नजर आए, जहां मॉल्स नहीं है. मैंने उन शहरों में शूटिंग की है, जहां दुनिया रूकी हुई है. विकास पहुंचा नहीं. पांच दिन कश्मीर व पांच दिन नेपाल में षूटिंग की. कुछ इंटीरीयर दृश्य मुंबई में फिल्माए हैं। सुषांत सिंह राजपूत की जगह जॉन अब्राहम का आना : पहले हमने फिल्म ‘रॉ’ के साथ सुशांत सिंह को ही जोड़ा था. पर बाद में शूटिंग की तारीखों को लेकर टकराव शुरू हो गया, तो हम आपसी सहमति से अलग हो गए. फिर हम जॉन अब्राहम से मिले और बात बन गयी। जॉन अब्राहम के साथ अनुभव? जॉन अब्राहम मेरे लिए इंटेलीजेंट एक्टर हैं. पहली बार जब मैं उनसे मिला, तो मुझे समझ आ गया कि उनके अंदर स्क्रिप्ट को समझने की अद्भुत शक्ति है.किसी कलाकार को जिस बात को मैं दस बार मिलकर समझा पाता था, वही बात जॉन पहली मीटिंग में ही समझ गए. यदि कलाकार फिल्म और किरदार का सुर समझ जाए, तो निर्देशक के तौर पर हम आधी लड़ाई जीत जाते हैं. वैसे भी हम दोनों सीधे लोग हैं. हम दोनों के अंदर कोई पाखंड नहीं है. स्टार होते हुए भी उन्होंने कभी भी स्टारपना नही दिखाया। लोग ‘रॉ’ क्यों देखना चाहेंगे? - हर भारतीय फिल्म देखते हुए खुद को भारतीय होने पर गर्व महसूस करेंगा. इसलिए फिल्म देखनी चाहिए. स्पाय फिल्म होते हुए भी यह मानवीय कहानी है, जिसमें भावनाओं का सैलाब है. इसमें मैंने हिंदुस्तानीयत को उभारा है. एक स्पाय दूसरे देश में खुद को खतरे में डालने जाता है. यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिए. मैं लोगों को दिखाना चाहता हूं कि वह लोग कौन होते हैं, जो स्पाय बनते हैं. फिल्म रीयल या काल्पनिक : फिल्म की पृष्ठभूमि पूरी तरह से 1971 का रीयल है.कहानी रीयल है, मगर किरदार काल्पनिक हैं.ऐतिहासिक धरातल पर फिल्म पूर्णरूपेण वास्तविक है। #bollywood #John Abraham #RAW #Romeo Akbar Walter #Robby Grewal हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article