हरियाणा से मुंबई तक का सफर कितना सटग्रलिंग रहा ?
- स्ट्रगलिंग तो काफी रहा क्योंकि कालका एक बहुत छोटी सी जगह है जहां से मैं आता हूँ। वहां से छोटे छोटे रंगमंच करके फिर नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से पढ़ना और वहाँ से दो इनिंग्स में मुंबई आना। पहले मैं 1989 में यहां आ गया था तब डीडी वन का ज़माना था। इक्के दुक्के सीरियल बन रहे थे। बहुत काम मुंबई में होता नहीं था तो यहां पर आकर मैं चॉल में रहने लगा। वहाँ पर एक दिन मकान मालिक ने कहा की आज एक दिन आपके कमरे में मेरे बेटे का बर्थडे मनाएंगे तो आप लोग छत पर जाकर सो जाओ तो मैं एक्टर संजय मिश्रा और विनीत कुमार एक साथ रहते थे और ऊपर जा कर सो गए। तो सुबह जब मैं उठा तो मुझसे उठा ही नहीं जा रहा था क्योंकि सारी रात टंकी की सीपेज पानी मेरे पीठ पर लग रही थी और मुझे पता नहीं चला और उस साल मैं इतना बीमार हो गया यहाँ पर की मुझे डॉक्टर ने कहा कि आप ये शहर छोड़ दें क्योंकि यहाँ का ह्यूमिड वेदर आपको सूट नहीं करेगा जो आपकी पीठ के लिए हानिकारक है। मुझे न चाहते हुए भी 1989 में ये शहर छोड़ कर जाना पड़ा। एक तो काम नहीं होता था बहुत स्ट्रगल थी इक्के दुक्के सीरियल थे जैसे चाणक्य, महाभारत, रामायण और डिसकवरी ऑफ़ इंडिया बन रहा था जिसमें इतनी भीड़ थी की लोग एक दूसरे के पीछे खड़े होते थे। बहुत मुश्किलें आयी फिर मैंने यहाँ से जाकर राष्ट्रीय नाटकीय विद्यालय रंगमंडल ज्वाईन कर लिया। रंगमंडल एक थिएटर कंपनी है जो नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के अंडर काम करती है क्योंकि मैं वहीं से पास्ड आउट था तो मुझे वहाँ पर काम मिल गया तो 6 साल वहाँ काम करने के बाद मैं दोबारा 1997 में मुंबई आया तब सैटेलाइट चैनल्स खुल चुके थे। काम बढ़ गया था तो कुल मिला कर मुंबई तक का सफर 2 पारियों में खेला गया। 1989 -1990 जो असफल रही उसके बाद दूसरी पारी 1997 में शुरू हुई जो चल रही है और वो भी काफी कठिन रहा क्योंकि इतना आसान नहीं होता खुद को मुंबई में एस्टब्लिश करना। सतीश कौशिक का एक सीरियल था मुझे चाँद चाहिए। उसमें पद्मिनी कोल्हापुरी की बहन को लॉच कर रहे थे तो उनके बड़े भाई का रोल मुझे मिला। यहाँ से मेरा सफर शुरू हुआ। फिर उसके बाद धीरे धीरे मैंने कई रोल्स किये सहारा टीवी पर एक रोल मिला जिसे मैंने अच्छे से निभाया और आगे के रास्ते खुलने लगे। लेकिन मेन रोल तब भी नहीं मिलते थे. अश्विनी धीर जिन्होंने ऑफिस ऑफिस बनाया उन्होंने मुझे रोल्स देने शुरू किये और उन्होंने ही मुझे बाद में लापतागंज नाम का बड़ा सीरियल दिया जिसमें मैंने मुकंदी लाल गुप्ता का मेन रोल प्ले किया जिसमें मैंने पाँच साल काम किया और मुझे इंडियन टेलीविज़न अकादमी अवॉर्ड मिला, ज़ी बोरोप्लस गोल्ड अवॉर्ड मिला और मैं टीवी इंडस्ट्री में चर्चित हो गया। इसी सीरियल के बाद मुझे भाबीजी घर पर है में तिवारी जी का रोल ऑफर हुआ। ये कुल मिला कर जर्नी रही। इस दौरान मैंने फिल्मों में भी काम किया जैसे मुन्नाभाई एमबीबीएस, पीके, धूप लेकिन कुछ कहने लायक नहीं है क्योंकि रोल छोटे छोटे थे और फिल्मों में जब तक बड़े रोल न मिले तो बात बनती नहीं है। वो आयी गयी बात हो जाती है। लेकिन टीवी में मुझे अच्छे रोल मिलने शुरू हो गए थे तो फिल्मों का सफर थोड़ा रुक गया। अभी मैं भाबी जी घर पर हैं की वजह से टीवी में ही व्यस्त हूँ क्योंकि रोल अच्छा है, पैसे मिलते हैं, और एक एक्टर का इंटरनल सैटिस्फैक्शन भी है तो ये पूरा एक सफर रहा कालका से लेकर मुंबई तक का दो पारियो में
एक्टर बनने के बारे में कब सोचा ?
रोहिताश गौड़- ये मैंने स्कूल में ही सोच लिया था जब मैं सेंट्रल स्कूल चंडी मंदिर में पढ़ता था। स्कूल में हाउस एक्टिवटीज में मैं हिस्सा लेता था। मैंने अपने आप में एक्स्प्लोर किया कि मैं गाना बहुत अच्छा गाता हूँ मिमिक्री बहुत अच्छी करता हूँ हमने एक प्ले किया था अधिकार का रक्षक उसमे मैंने लखन नाम के एक नौकर की भूमिका निभाई जो बहुत सराही गयी। वहां से मुझे अंदर से एक आवाज़ आयी कि मेरा ये फील्ड है मुझे इसमें जाना है मुझे बहुत मज़ा आने लगा इसमें। मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था। मैथमेटिक्स और साइंस में बहुत कमज़ोर था और मुझे इसमें मज़ा भी आने लगा। मैंने स्कूल टाइम में ये तय कर लिया की जो भी हो इसी लाइन में जाऊंगा।
लापतागंज से लेकर ‘भाबीजी घर पर हैं’ तक आप एक हाउसहोल्ड नाम बन चुके हैं कैसा लगता है जब लोग आपको आपके कैरेक्टर के नाम से बुलाते हैं ?
रोहिताश गौड़- बहुत अच्छा लगता है। जब मैं लापतागंज करता था तो लोग मुकंदी लाल गुप्ता कहते थे भाबीजी करता हूँ तो तिवारी जी कहते हैं तो ये फीलिंग बहुत अच्छी है। क्योंकि इसका मतलब ये है कि आपने उस कैरेक्टर को जीवंत किया। आपका नाम न लेकर अगर वो आपके चरित्र का नाम ले रहे है इसका मतलब है की आप एक एक्टर के रूप में सक्सेसफुल हुए हो। आपने उनके दिल में जगह बनाई है उस चरित्र के माध्यम से और एक एक्टर के तौर पर ये मुझे सटिस्फैक्शन देता है ख़ुशी मिलती है इस बात से यहां तक की मतलब एयरपोर्ट पर जा रहे होते हैं तो पीछे से आवाज़ आती है तिवारी जी या अभी हम कानपूर गए तो कोई आदमी नहीं था जो तिवारी जी न बोल रहा हो बस यही ख़ुशी है। एक अभिनेता को और क्या चाहिए।
‘भाबीजी घर पर हैं’ में रोल आपको कैसे मिला?
रोहिताश गौड़- हुआ ये था की भाबीजी घर पर है के राइटर मनोज संतोषी के साथ मैंने एक सीरियल किया था मोहल्ला मोहब्बत वाला जो तिग्मांशु धूलिया डायरेक्ट करते थे। तो उस समय से मेरी इनसे मित्रता थी। जब ‘भाबीजी घर पर हैं’ लॉन्च हुआ तो उन्होंने मुझसे संपर्क किया की मैं ऐसी एक स्टोरी लिख रहा हूँ जिसमें बहुत अच्छा चरित्र है जो तुम्हारे पर बहुत सूट करता है लेकिन मैं ये करने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि मेरे दिल में ये था की ये नया चैनल है पता नहीं चले की नहीं, तो मुझे बड़े चैनल के लिए काम करना था तो मैंने उन्हें मना कर दिया। उन्होंने दूसरे एक्टर को लेकर भाबीजी घर पर है का पायलट एपिसोड बनाया। पता नहीं क्या था लेकिन न डायरेक्टर खुश थे न राइटर। तो उन्होंने फिर से मुझे कॉल किया। उन्होंने मुझे कहा कि रोहित देखो ये अच्छा चरित्र है और मेन रोल है जिसमें चार ही कैरेक्टर्स है जिसमे एक आसिफ भाई है और एक आप हैं। दोनों हीरो है और इस उम्र में आपको हीरो का रोल कौन देगा। मैंने अपनी वाइफ रेखा से पूछा कि क्या मुझे ये करना चाहिए क्योंकि ये एक नया चैनल है कल को पता चले की चैनल ही बंद हो गया तो उसने कहा कि मेन रोल कहीं पर भी मिल रहा हो आपको करना चाहिए और इसके बाद मैंने हाँ कर दी। जब सीरियल लॉन्च हुआ तो हमारी कोई पब्लिसिटी नहीं हुई जब शो की रेटिंग आयी तो शाहरुख़ खान के रियलिटी शो की रेटिंग और हमारी रेटिंग एक ही थी और बाकी शोज जिन पर हज़ारों लाखों रूपए खर्च हुए वो पीछे रह गए। शो ने पांच साल पूरे किये हालांकि उतार चढ़ाव भी आये जब हीरोइन शिल्पा शिंदे शो छोड़ कर चली गयी. शो थोड़ा सा लड़खड़ाया पर फिर खड़ा हो गया तो इसे नियति ही कहेंगे।
शो के प्रोड्यूसर्स के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
रोहिताश गौड़- बेहतरीन प्रोड्यूसर्स है दोनों। मैंने इतना काम किया है पर मैंने ऐसे प्रोड्यूसर्स नहीं देखे सबसे अच्छी बात ये है कि इनकी कोई इंटरफेरेंस नहीं रहती सेट पर। दोनों बहुत कूल है बहुत अच्छे से स्क्रिप्ट पर काम किया जाता है। संजय कोहली खुद स्क्रिप्ट पर काम करते है शशांक जी, शिखावत जी और मनोज जी के साथ बैठ कर क्रिएटिव इनपुट्स देते है और हमसे क्रिएटिव इनपुट्स लेते हैं। बहुत ही दोस्ताना सा माहौल है हमारे बीच में। प्रोड्यूसर वाली कोई बात ही नहीं है। पैसे को लेकर भी बहुत क्लियर हैं हम। जो कहते हैं, जैसे कहते हैं वैसा हो जाता है तो लगता ही नहीं है कि बहुत बड़े सीरियल में काम हो रहा है। जहां डेली शूटिंग हो रही है सेट का माहौल भी बहुत अच्छा है बहुत आराम से काम होता है। नौ से नौ की शिफ्ट होती है जिसमें आराम से शुरू करते हैं और आराम से खत्म कर देते हैं एक एक्टर को और चाहिए ही क्या होता है, उसे यही चाहिए कि सुकून से काम हो।
मायापुरी को लेकर आपकी क्या मेमोरी है ?
रोहिताश गौड़- मायापुरी मैं तब पढ़ता था जब मैं स्कूल में था उस वक़्त जितनी भी दुकानें थी वहां पर मायापुरी ही आया करती थी। फिल्म इंडस्ट्री कि देसी मैगज़ीनें जिसे कहते हैं, वो मायापुरी है। इतनी पुरानी मैगज़ीन है मायापुरी जो उस समय जन जन में चर्चित थी हर घर में मायापुरी होती थी. पुराने लोग उस समय इसको फिल्म मैगज़ीन के नाम से जानते थे।
दर्शकों के लिए कोई मैसेज ?
रोहिताश गौड़- अभी हमने 1200 एपिसोड पूरे किये हैं। कुछ समय पहले 1000 किये थे। अब इसी तरह से हज़ारों एपिसोड्स में हमारा साथ दें। आप इसे देखें, सराहें अपने इनपुट्स दें, हमें कॉन्फिडेंस दें कि हम ब्प्क् का भी रिकॉर्ड तोड़े। जो 14 साल चला है। तारक मेहता का भी रिकॉर्ड तोड़े। ‘रिश्ता क्या कहलाता है’ ने तीन हज़ार एपिसोड्स पूरे किये और हम उनसे भी ज्यादा करें तो ये तभी संभव है जब दर्शक साथ देंगे हमारा।
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