बॉलीवुड में सैफ अली खान की गिनती स्टाइलिश व उम्दा कलाकार के रूप में होती है.वह सिर्फ अभिनेता ही नहीं बल्कि उत्कृष्ट फिल्मों के निर्माता भी हैं.उनका करियर बुलंदियों पर था. मगर फिल्म ‘हमशकल्स’ की असफलता के साथ ही उनका करियर डांवाडोल हुआ.उनकी पुरानी प्रोडक्षन कंपनी भी बंद हो गयी.अब वह नए जोश के साथ कार्यरत हैं. हाल में नेट्फ्लिक्स पर वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ में पंजाबी पुलिस इंस्पेक्टर के किरदार में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.अब वह गौरव चावला निर्देशित फिल्म ‘बाजार’ को लेकर काफी उत्साहित हैं।
आपका करियर बुलंदियां पर जा रहा था. मगर ‘हमशकल्स’ की असफलता के साथ आपका करियर डॉंवाडोल हो गया. कहां क्या गड़बड़ी हुई ?
-मैं खुद नही जानता. उसके बाद मैने ‘बुलेट राजा’, ‘फैंटम’, ‘हैप्पी एंडिंग’ की. पर क्या गड़बड़ी हुई, मैं नहीं जानता.आज मुझे लगता है कटेंट का जमाना आ गया है.अब जबकि सेट पर सभी मेरी परफार्मेंस से खुश रहते हैं,तो फिर करियर क्यों डांवाडोल हुआ पता नहीं चला. शायद मैंने फिल्में गलत चुन ली थीं. या समय खराब था।
तो आप मानते है कि आपने सही कंटेंट वाली फिल्में नही चुनी ?
- श्योर...शायद यह मेरी गलती रही. पर अब मैं अपनी तरफ से हर तरह की सावधानी बरत रहा हूं.मुझे लगता है कि फिल्म ‘बाजार’ देखकर एक बार फिर लोगों का विश्वास मेरे प्रति बढे़गा.
फिल्म ‘बाजार’ क्या सोच कर की ?
- वास्तव में मुझे किरदार बहुत पसंद आया. इस पर मैंने बहुत मेहनत भी की. जब निखिल आडवाणी ने मुझे यह किरदार सुनाया था,तो मैं बहुत उत्साहित हो गया था.देखिए, यदि मैं बच्चे,पत्नी व परिवार को घर पर छोड़कर घर से बाहर निकलता हूं. तो उसकी ठोस व सही वजह होनी चाहिए.मुझे लगा कि इस फिल्म के हर सीन को करने में इतना मजा आएगा कि मुझे घर से बाहर निकलना गलत महसूस नहीं होगा. आप मानेंगे नहीं, इस फिल्म को करते समय मैं बहुत एक्साइटेड रहता था. शूटिंग करके घर पहुंचता था और दिमाग में रहता था कि कितनी जल्दी सुबह हो और मैं सेट पर पहुंच जाऊं. यदि एक कलाकार किसी फिल्म के लिए एक्साइटमेंट महसूस करे,तो मेरी समझ से वह फिल्म स्पेशल फिल्म होनी चाहिए.हमारे यहां बिजनस फैमिली में कुछ परिवार ऐसे हैं,जो कि माफिया किस्म के हैं.उनके पास पोलीटिकल कंट्रोल भी होता है. तो उनके ऑपरेटिंग सिस्टम व उनके घर में क्या होता है, इसे जानने की उत्कंठा हर किसी की होती है. वह सब इस फिल्म में है।
फिल्म के किरदार को कैसे डिफाइन करेंगे?
-शकुन ठाकुर गुजराती है. अहमदाबाद से गुजरात आया है. काफी छोटी उम्र से संघर्ष करता रहा है. अब वह डायमंड मार्केट का किंग और शेयर बाजार की बड़ी हस्ती है. यह खतरनाक, पावरफुल, बिजनसमैन है. गुजराती भाषा बोलता है. वह जब बोलता है, तो बहुत खतरनाक अंदाज में ही गुजराती में बात करता है.उसकी बातों को सुनकर ही लोगों को डर लगता है. देखिए, फिल्म में कॉमेडी कहीं नहीं है. एक गंभीर फिल्म हैं..शकुन ठाकुर भारतीय सिनेमा के इतिहास में पहला ऐसा किरदार होगा, जो कि गुजराती भाषा बोलते हुए डराएगा. अन्यथा हम सभी जानते हैं कि गुजराती भाषी कितना मीठा बोलते हैं. तो इस तरह के किरदार को निभाना मेरे लिए बहुत बड़ा चैलेंज था।
तो इस किरदार को निभाने के लिए आपको कुछ खास तैयारी करनी पड़ी ?
- सबसे पहले तो मुझे गुजराती भाषा सीखनी पड़ी.मुझे गुजराती एसेंट पर ज्यादा ध्यान देना पड़ा.मैंने कुछ गुजराती गीतों की लाइनें भी सीखी. मैं यह नहीं कहता कि अब मुझे फर्राटेदार गुजराती भाषा बोलनी आ गयी.पर कुछ एसेंट सीखा. जिससे हर किरदार कैरीकेचर की बजाय रीयल लगे. अब उम्र के इस पड़ाव पर थोड़ी सी सफेदी आ गयी है.तो बालो में सफेदी भी लगायी है. इसी तरह मैंने वेब सीरिज ‘सेक्रेड गेम्स’ में मैंने पंजाबी पुलिस इंस्पेक्टर का किरदार निभाया. पर इस फिल्म में गुजराती है।
देखिए, अब बॉलीवुड की फिल्मों में एक नया ट्रेंड चला है कि हर फिल्म में कुछ अलग तरह के किरदार पेश किए जाएं. मसलन-एक फिल्म में रणवीर सिंह ने मराठी भाषी किरदार निभाया. एक फिल्म में किरदार उत्तराखंड की कुमायुनी भाषा बोलते हुए नजर आए. धीरे धीरे सिनेमा का माहौल बदल रहा है. आपको हर फिल्म में अलग भाषा नजर आएगी. अब तक फिल्मों में हम कलाकार के किरदार का लुक चेंज करते थे, पर उसकी भाषा वही रहती थी. अब हम लुक के अनुरूप उसकी भाषा भी बदल रहें हैं. किरदार के बात करने का अंदाज भी बदल रहे हैं।
सुना है कि फिल्म ‘बाजार’ की शूटिंग करते समय आपने भी एक नई मुंबई को अहसास किया?
- जी हां! देखिए, वेब सीरिज ‘सेक्रेड गेम्स’ के अलावा फिल्म ‘कालाकांडी’ के बाद अब फिल्म ‘बाजार’ मुंबई की पृष्ठभूमि में है. पर तीनों में आपको मुंबई एक अलग रंगत में नजर आएगा.अब तो हमारे पास ऐसे कैमरे आ गए हैं कि बिना लाइटिंग के तामझाम के हम शूटिंग कर लेते हैं. फिल्म बाजार फिल्माते हुए हमने एक अलग मुंबई देखा. पुराना दक्षिण मुंबई के टाउन में जहां हम लोग कभी शूटिंग करते नहीं हैं. हमने शेयर बाजार के अलावा ग्रांट रोड की गलियों में भी शूटिंग की है. इस वजह से भी फिल्म ‘बाजार’ काफी रियालिस्टिक हो गयी है.हमने डोम रेस्टोरेंट में शूटिंग की.‘बाजार’ में आपको मुंबई किसी विलायत से कम नजर नहीं आएगा. पूरा क्लासिक मुंबई दिखाया है।
परिवार, सपने व करियर इनके बीच तालमेल कैसे बैठाया जा सकता है?
- देखिए, इन सारी चीजों का संबंध पैसे से है. हम करियर पर ध्यान देते हैं कि करियर संवरेगा, तो पैसा आएगा. हर सपना कहीं न कहीं पैसे से जुड़ा होता है. हम सोचते हैं कि पैसा होगा तो परिवार में खुशियां होंगी. मैं यह नहीं कहता कि पैसे हमें नही चाहिए. पैसे मुझे भी चाहिए. हर इंसान को चाहिए. बस मेरी कोषिष यह होती है कि हम दो वक्त सकून से भोजन कर सकें.यदि कभी मेडिकल बिल आ जाए, तो उसे हम दे सकें.क्योंकि जब हम अच्छा खाना खाते हैं, तो मजा आने के साथ साथ सुरक्षित होने का अहसास होता है. हां!! कभी कभार व्हिस्की पी ली. पर मेरी नजर में पैसे भी ज्यादा जरूरी परिवार के साथ समय बिताना है. शिक्षा बहुत जरूरी है. यदि परिवार में आपसी प्यार हो तो इंसान बहुत सी तकलीफें यहां तक कि पैसे की कमी भी झेल सकता है.देखिए, मेरी जिंदगी बहुत साधारण है.पर मेरी आदत है रात को सोने से पहले किताब पढ़ना. मैं बिना किताब पढ़े सो नहीं सकता।
आपने अपनी नई प्रोडक्शन कंपनी शुरू की है.इसमें किस तरह की फिल्में बनाने वाले हैं?
- देखिए, फिलहाल एक फिल्म ‘जवानी जानेमन’ पर काम हो रहा है. इसके बाद किस तरह की फिल्म बनेगी, कह नहीं सकता. पर जब मैंने प्रोडक्शन हाउस शुरू किया था तो खुद को सुरक्षित करने के लिए शुरू की थी.प्रोडक्शन हाउस के बारे में मेरी सोच यह रही है कि कुछ लोग ऐसे होने चाहिए, जो मेरे बारे में सोचें. कुछ लोग मुझे ध्यान में रखकर फिल्म का कंटेंट विकसित करें.जैसे कि आदित्य चोपड़ा किया करते थे या कर रहे हैं.उस तरह से मैं अपने लिए कर रहा हूं. पर इतना दावा है कि मेरे प्रोडक्शन हाउस में जो भी फिल्में बनेंगी, अलग तरह की होंगी. काफी रीयल हांगी।
सिनेमा के बदलाव को आप किस तरह देखते हैं?
- अब सिनेमा हमारे देश को रिफलेक्ट करेगा. लोगों के दिमाग में जो चल रहा है, वह सिनेमा में नजर आएगा. हमारा सिनेमायी कल्चर बहुत सशक्त है.भारत देश का इतिहास भी समृद्ध है. मैं मानता हूं कि 80-90 के दशक में भारतीय सिनेमा में कुछ उलजलूल फिल्में बनी हैं. यानी कि हमारे सिनेमा में कुछ गड़बड़ियां हुई थी.पर अब हम सही ट्रैक पर आ गए हैं. अब अलग तरह की फिल्में बन रही हैं. अलग तरह के किरदार आ रहे हैं. कुछ ऐतिहासिक सब्जेक्ट पर काम हो रहा है. बायोपिक फिल्में भी बन रही हैं. तो अब सिनेमा में विविधता आ गयी हैं. वही मारधाड़ नाच गाना नहीं रहा. बायोपिक पर लोग ज्यादा भरोसा भी करते हैं. अब दर्षक पुरानी घिसीपिटी बॉलीवुड फिल्में नहीं देखना चाहता. दर्शक को कुछ रीयल चाहिए।
इसके बाद ?
- एक फिल्म ‘हंटर’ की शूटिंग शुरू करने वाला हूं. यह राजस्थान में फिल्मायी जाएगी. इस फिल्म में नागा साधू के किरदार में नजर आऊंगा. इसी के लिए मैं दाढ़ी व बाल बढ़ा रहा हूं. इसमें तलवार बाजी व दूसरे एक्शन भी हैं।