लिपिका वर्मा
सलमान खान बतौर प्रेजेंटर अपनी होम प्रोडक्शन ’एस के एफ’ (सलमा खान फिल्म्स) अपनी अगली प्रोडक्शन हाउस द्वारा निर्मित फिल्म ‘नोटबुक’ के लिए जुटे सलमान खान सही टाइम पर पहुँच, हर एक मीडिया कर्मी से रूबरू हुए। मूड भी अच्छा ख़ासा ही था उनका। सलमान खान एक ऐसे इकलौते स्टार हैं जो अपनी मन की बात बेधड़क बोल दिया करते हैं।
पेश है सलमान खान के साथ लिपिका वर्मा की बातचीत के कुछ अंश -
आप अरबाज खान के शो ’क्विक हील’ में नहीं दिखाई दिए? लेकिन अपनी फिल्म ‘नोटबुक’ प्रमोट करने पहुँच गए ?
- हंस कर बोले, “जी हाँ! मैं अरबाज़ के शो ‘क्विक हील’ में भी अवश्य भाग लेना चाहता हूँ। किन्तु इस समय अपनी फिल्म ’नोटबुक’ प्रमोट करना मेरे लिए अत्यंत आवश्यक है। जनता को हमारी फिल्म ‘नोटबुक’ के बारे में जानकारी देना जरुरी है सो यह प्रोमोशंस मेरे लिए प्राथमिक है।
आपने कभी ’नोटबुक’ या डायरी लिखी होगी ?
- जी हाँ मैंने पहली बार जो ‘नोटबुक’ पर पन्ने लिखे थे और अगले दिन जब उन पन्नों को पढ़ा तो मुझे ऐसा एहसास हुआ कि जिन लोगों के बारे में मैंने लिखा है उनके लिए कुछ न कुछ प्रॉब्लम उठ खड़ी होगी। हालांकि, मैंने जो कुछ भी लिखा था, सच्चाई से लिखा था। सो अगले दिन मैंने उस को अलग तरह से लिखा और यह जो लिख रहा था उन लोगों को प्रॉब्लम से बचाने के लिए लिख रहा था। किन्तु इस पन्ने को भी जब मैंने पढ़ा तो इस बात का मुझे एहसास हुआ कि-अब झूठ लिखने पर मैं कहीं खुद प्रॉब्लम में न फंस जाऊं। सो वह दिन था और आज का दिन है मैंने, दोबारा कभी नोटबुक में नहीं लिखा। क्योंकि मेरी वजह से मैं खुद प्रॉब्लम में फंस जाऊं यह कूल नहीं लगता मुझे। और सच लिखने से कोई अन्य प्रॉब्लम में फंस जाये वह भी बुरा लगता।
आपने ओरिजिनल फिल्म देखी है क्या? कितनी मिलती जुलती है ?
- हमारी फिल्म भी बहुत खूबसूरती से लिखी गयी है। और हमने इसका बैकड्रॉप कश्मीर रखा है जो खूबसूरती से जुड़ता है। सो हमने खूबसूरती और प्रेम के मद्देनजर एक बहुत ही खूबसूरत कहानी बुनी है।
स्क्रिप्ट लिखने में आपका कितना हाथ है ?
- हंस कर बोले, ’मैं स्क्रिप्ट लिखने का क्रेडिट नहीं लेना चाहता हूँ। नहीं चली तो भारी पड़ जाता (हसे जोर से) दरअसल में यह स्क्रिप्ट मेरे पास बहुत पहले आयी थी। मैं इसको नहीं कर पाया क्योंकि अब कुछ वर्ष गुजर जाने से मेरी इमेज बदल गयी है। सो मैं यह फिल्म नहीं कर पाया। सो इस रोल के लिए सही हीरो चाहिए था। इसी बीच इक़बाल साहब के सुपुत्र (ज़हीर इक़बाल) जिन्होंने काफी मेहनत की है और मुझे लगा इनके लिए यह चरित्र सही बैठेगा सो ऑडिशन हुए और इन्हें बतौर हीरो चुन लिया गया।’
प्रनूतन को इस फिल्म की हीरोइन कैसे चुना आपने ?
- दरअसल मैंने प्रनूतन जो मोहनीश बहल की साहबज़ादी है उन्हें एक जगह ऑडिशंस करते हुए देखा था मैंने। और वह ऑडिशन्स मुझे अच्छा भी लगा था। जब मुझे पता लगा कि यह मोहनीश की साहबज़ादी है तब मैंने उनको फ़ोन करके पूछा - प्रनूतन को अपनी फिल्म के लिए ले सकता हूँ। तो उन्होंने कहा क्यों नहीं ? जरूर लीजिये। इनकी माताश्री एक अच्छी कलाकार है और फिर पिताजी भी कलाकर है तो प्रनूतन को कैसे मोहनीश काम करने से रोक सकते हैं। पर हाँ यह क़ानून पढ़ रही थी। सो मैंने मजाक में यह भी कहा कि मेरे कानूनी दाव पेच भी देख सकती यह। प्रनूतन ने भी बाकायदा ऑडिशन दे कर यह रोल हासिल किया है। बहुत मेहनत की है।
आप न्यू कमर्स को क्या सलाह देते हैं ?
- बस यही कहता हूँ प्रॉब्लम्स से दूर रहे। पर कभी कभी जीवन में प्रॉब्लम्स खुद ब खुद आपकी झोली में आ गिरते हैं। बस हमेशा अपने काम पर ध्यान केंद्रित करे रखे। मेहनत कर आगे बढ़ने की मंशा होनी चाहिए।
आपकी फिल्म में बहुत ही इमोशनल म्यूजिक सुनने और देखने को मिलता है, क्या कहना चाहेंगे म्यूजिक को लेकर आप?
- बस यही म्यूजिक हिंदी फिल्मों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण अंश होता है। हमने अपनी हरेक फिल्म में भी म्यूजिक का ख़ास ध्यान रखा है। इमोशनल और मेलोडी म्यूजिक आज भी चलता है और लोगों को पसंद आता है। सो हमारी फिल्मों में मेलोडी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान रहता है हमेशा। एक बार ऐसे गाने सुन ले तो आपको बारम्बार यही गाने सुनने की इच्छा होती है। मेलोडी गानों की रिकॉल वैल्यू बहुत होती है।, ’घुमरू घुमरू उस वक़्त भी सुनने में अच्छा लगा था और आज भी अच्छा लगता है।