‘‘उनका सपना मुझे एक नामी कलाकार के रूप में देखने का था’’- शारिब हाशमी

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By Shyam Sharma
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‘‘उनका सपना मुझे एक नामी कलाकार के रूप में देखने का था’’- शारिब हाशमी

प्रसिद दिवंगत पत्रकार जेड ए जोहर के बेटे शारिब हाशमी ने उनका पेशा न अपनाते हुये अभिनय की राह चुनी। हालांकि शुरू में उसे शक था कि क्या उसकी साधारण शक्लोसूरत का बंदा एक्टर बन पायेगा, लिहाजा आत्मविश्वास की कमी के तहत वह सहायक निर्देशक बन गया। बाद में कुछ अरसा लेखन भी किया। एक दिन उसके द्धारा देखा गया सपना उस वक्त सच होता दिखाई दिया जब निर्देशक नितिन कक्कड़ ने उसे अपनी फिल्म ‘फिल्मीस्तान’ में बतौर लीड एक्टर साइन किया। फिल्म में शारिब के अभिनय की मीडिया सहित सभी ने खुलकर तारीफ की। इन दिनों शारिब, जेगम इमाम की फिल्म ‘ नक्काश’ में अपनी भूमिका को लेकर चर्चा में है। हाल ही में फिल्म को लेकर उससे हुई एक बातचीत।

फिल्मीस्तान के बाद बॉलीवुड का आपके प्रति कैसा रिस्पांस रहा ?

बहुत अच्छा। लेकिन उन दिनों मुझे और फिल्मीस्तान में मेरे कोआर्टिस्ट इनामुल हक को उसी तरह के किरदार मिल रहे थे लिहाजा मैं उन सभी को नकारते बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहा था। कुछ दिन बाद मुझे एक फिल्म मिली ‘फुल्लू’ । चो गांव खेड़ों में सैनेट्रीपैड्स को लेकर एक बेहद जागरूक फिल्म थी। फिल्म भावेश जोशी में एक सांग किया फिर वोडका डायरी की तथा बत्ती गुल मीटर चालू में मेरा एक सूत्रधार का किरदार था।

‘‘उनका सपना मुझे एक नामी कलाकार के रूप में देखने का था’’- शारिब हाशमी

मौजूदा फिल्म नक्काश को लेकर क्या कहना है ?

जैसा कि मैने पहले भी कहा कि पहली फिल्म के बाद जो भी स्क्रिप्ट आती थी उनके रोल या तो पहली फिल्म के जैसे होते थे या उससे मिलते जुलते होते थे। लिहाजा मैं काफी संभल कर काम कर रहा था। ये फिल्म जब मुझे ऑफर हुई तो मैने देखा कि ये पहली फिल्म के बिलकुल अपोजिट थी और मेरा किरदार भी कतई अलग था लिहाजा मैं शुरू से ही इस फिल्म को लेकर एक्साइटिड रहा। दरअसल एक दिन इनामुल ने रात एक बजे मुझे काल किया कि फौरन मेरे घर आजा, जबकि मैं मलाड रहता था और वो दूसरे सिरे यारी रोड रहता था। मैं करीब दो बजे उसके पास पहुंचा तो उसने मुझे इस सब्जेक्ट का जिक्र किया, जो मुझे बहुत पंसद आया। मैने उसी क्षण डिसाइड कर लिया था कि ये फिल्म तो मुझे करनी ही है। अगले दिन फिल्म के राइटर डायरेक्टर जैगम इमाम ने मुझे पूरी कहानी सुनाई, उसके बाद में तो मेरा डिसिजन और पुख्ता हो गया था।

किरदार क्या है ?

मेरे किरदार का नाम समद है जो बनारस में ई रिक्षा चलाता है। अल्ला रखा किरदार जो इनाम ने निभाया है,  जो एक खानदानी नक्काश है और बरसों से बनारस के मंदिरों में देवी देवताओं की तसवीरें बनाता है। उसका मैं करीबी दोस्त हूं। मैं अपने अब्बा को हज पर ले जाना चाहता हूं, अब चूंकि मैं एक गरीब आदमी हूं इसलिये सिर्फ सपना ही देख सकता हूं। आगे कहानी में कुछ ऐसे बदलाव आते हैं जिनकी बदौलत मेरे किरदार का भी ट्रांसमीशन होता है, लेकिन उन बदलावों के बारे में मैं फिलहाल नहीं बता सकता।

फिल्म में कुछ विवादास्पद संवाद हैं उन्हें लेकर क्या कहना है ?

अभी फिल्म का ट्रेलर आया है। लेकिन जब फिल्म रिलीज होगी तो आपको पूरी कहानी समझ आयेगी। हां अभी मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि ये एक साफ सुथरी फिल्म है, जो अपनी बात पूरी ईमानदारी से बयां करती हैं। इसका सबसे बड़ा सुबूत ये है कि सेंसर ने फिल्म को बिना किसी कट् के यू सर्टिफिकेट दिया है ।

‘‘उनका सपना मुझे एक नामी कलाकार के रूप में देखने का था’’- शारिब हाशमी

बेसिकली फिल्म क्या कहना चाहती है ?

यही  कहती है कि हर किसी को अपने धर्म पर चलना चाहिये तथा दूसरे धर्मो का सम्मान करना चाहिये। यही फिल्म का सार भी है। फिल्म के अंत में पूछा गया कि अल्ला कौन है तो जवाब में कहा गया वे ईश्वर के भाई हैं। आप कह सकते है कि पूरी फिल्म इन दो लाइनों में सिमट कर रह जाती है। यहां न तो किसी को उकसाया गया है न ही किसी को भड़़काने की कोशिश की है। फिल्म सिर्फ मिलाने की कोशिश करती है।

फिल्म की शूटिंग कहां कहा की गई ?

पूरी शूटिंग बनारस में की गई, जिसे करीब एक महीने में कंपलीट कर लिया था।

क्या फिल्म किसी घना विशेष घटना पर आधारित है ?

नहीं ऐसा नहीं है। लिहाजा इसे आप फिक्शन के तरीके से ही लें। लेकिन फिल्म में समाज की सच्चाई की झलक पूरी ईमानदारी से दिखाई देती है।

चूंकि फिल्म पूरी तरह से मुस्लिम परिवेश को लेकर है। बनारस में शूट के दौरान किसी दुश्वारी का सामना तो नहीं करना पड़ा ?

ऐसा बिलकुल नहीं हुआ,जबकि हम मुस्लिम टोपियां पहन कर शूट कर रहे थे। हमने असली मंदिरों में शूटिंग की, असली मस्जिदों में भी शूटिंग हुई, लेकिन कहीं भी कोई अप्रिय घटना पेश नहीं आई। बनारस की बात की जाये तो अगर सुबह आप बनारस के घाटो पर चले जाये और वहां सिर्फ बैठ जाये तो आपको जो सुकून मिलता है वो कल्पना से परे होता है, आपको निर्मल आनंद का अनुभव प्राप्त होता है।

‘‘उनका सपना मुझे एक नामी कलाकार के रूप में देखने का था’’- शारिब हाशमी

इसके अलावा और क्या कुछ कर रहे हैं ?

अभी हाल ही में मैने दो वेब सीरीज की हैं जो रिलीज होगीं। उनमें एक का नाम हैं ‘द फैमिलीमैन’ उसे राज एन डीके ने डायरेक्ट किया है जिन्होंने गो गोवागॉन और हैप्पी एंडिग आदि फिल्में बनाई हैं। जो एमजॉन प्राइम पर रिलीज होगी। फिल्म में मैने अडंरकॉप की भूमिका निभाई है। उसमें मनोज बाजपेयी तथा शरद केलकर मुख्स भूमिकाओं में दिखाई देगें। दूसरी फिल्म का नाम है ‘असुरा’, जिसे उनीसेन ने डायरेक्ट किया है और वो वूट पर रिलीज होगी। उसमें अरशद वारसी, प्रिया गायनका तथा वरूण सोबती आदि कलाकार हैं। यहां भी मैं सीबीआई ऑफिसर की भूमिका में दिखाई देने वाला हूं।

आपके पिता एक नामी पत्रकार थे, वे आपको किस रूप में देखना चाहते थे ?

उनका सपना था कि मैं उनके सामने एक नामी कलाकार बनूं। कलाकार तो बना लेकिन वे मुझे कलाकार बनते हुये नहीं देख पाये।

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