संजय लीला भंसाली निर्मित और मंगेश हडवले निर्देशित रोमांटिक ड्रामा फिल्म‘‘मलाल’’से संजय लीला भंसाली की भांजी, फिल्म एडीटर बेला सहगल की बेटी और ‘कसम सुहाग की’,‘हम हैं लाजवाब’, ‘सम्राट’’ जैसी फिल्मों के निर्देशक मोहन सहगल की पोती शर्मिन सहगल बॉलीवुड में कदम रख रही हैं। यह फिल्म 2004 की सफलतम तमिल फिल्म ‘‘ 7 जी रेनबो कालोनी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म है। लेकिन फिल्म ‘‘मलाल’’ की हीरोईन बनने से पहले शर्मिन सहगल फिल्म ‘मैरी कॉम’ में उमंग कुमार के साथ और ‘बाजीराव मस्तानी’ में संजय लीला भंसाली के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम कर चुकी थी।
फिल्म ‘‘मलाल’’से जुडे़ लोग शर्मिन सहगल के अभिनय के प्रति समर्पण की तारीफ करते हुए बताते हैं कि किस तरह घायल होने के बावजूद शर्मिन सहगल ने स्टंट सीन की शूटिंग की थी।
प्रस्तुत है उनसे ‘‘मायापुरी’’के लिए हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..
फिल्मी माहौल की परवरिश के चलते आप फिल्म हीरोईन बन गयी?
-इसमें कोई दो राय नहीं है कि मेरी परवरिश फिल्मी माहौल में हुई है। और मेरे मामा नामचीन फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली हैं। मैंने चार साल की उम्र में शाहरुख खान को फिल्म ‘देवदास’ के लिए शूटिंग करते देखा था। उस वक्त मैं सेट पर खेलती थी। मगर 17 साल की उम्र तक मैंने अभिनेत्री बनने के बारे में नहीं सोचा था। उस वक्त तक मैं डॉक्टर बनना चाहती थी। इसीलिए मैंने इंटर में बॉयलॉजी, केमिस्ट्री, सायकोलाजी, स्पेनिश और थिएटर विषय ले रखे थे। 17 वर्ष की उम्र में मैं जब ज्यूनियर कॉलेज में इंटर की पढ़ाई कर रही थी, तब मैं बहुत मोटी थी। उन दिनो तीन लड़के मेरा मजाक उड़ाया करते थे। थिएटर विषय के चलते मैं नाटको में अभिनय कर रही थी और मुझे हमेशा लड़के का किरदार निभाने को मिलता था। वार्षिक समारोह में एक नाटक में मैं लड़का बनी थी, मेरा मजाक उड़ाने वाले लड़के दर्शकों के बीच बैठकर मेरे किरदार पर हंस रहे थे। यहीं से मेरे दिमाग में आया कि यदि मैं अभिनय करुंगी, तो मेरे मोटापे का कोई मजाक नहीं उड़ाएगा। दूसरी बात मुझे एक ही िंजंदगी में कई लाइफ जीने का अवसर मिलेगा। बस इसी सोच ने मुझे अभिनेत्री बनने के लिए उकसा दिया। पर अभिनेत्री बनने की डगर आसान नहीं रही। अभिनेत्री बनने के लिए मुझे वजन कम करना पड़ा। पूरे पांच साल तक शारीरिक, मानसिक और इमोशनल पीड़ा से गुजरना पड़ा।
आपने अपने मामा संजय लीला भंसाली से कहा और उन्होंने आपको फिल्म ‘‘मलाल’’ में हीरोईन बना दिया?
-गलत...अपनी मां से आज्ञा लेकर मैंने मामा जी संजय लीला भंसाली से मिली। उन्होंने मुझे ट्रैंनंग देनी शुरू की,खुद को दूसरों के सामने किस तरह प्रजेंट किया जाए, यह सिखाया। मेकअप करना भी उन्हांने ही सिखाया। उससे पहले मैं लिपस्टिक भी नहीं लगाती थी। वजन कम करना शुरू किया.फिर फिल्म माध्यम को समझने के लिए ‘मैरी कॉम’ में उमंग कुमार के साथ बतौर सहायक काम किया। काफी कुछ सीखा। कैमरा एंगल आदि की जानकारी मिली.उसके बाद ‘‘बाजीराव मस्तानी’’में मैं संजय (संजय लीला भ्ांसाली) सर की सहायक बनी। कास्ट्यूम का काम मैंने ही देखा। बहुत डांट खायी। पूरे पांच साल की मेरी मेहनत व सिनेमा के प्रति समर्पण भाव को अच्छी तरह से परखने के बाद ही मूझे ‘मलाल’ में हीरोईन बनने का अवसर दिया गया।
आपके मामा संजय लीला भंसाली जब आपको डांटते होंगे,तो आपको गुस्सा आता होगा?
-गुस्सा नही,मगर कई बार उनकी डांट सुनकर रोना आता था। लेकिन मुझे यह रोना उनकी डांट की वजह से नहीं आता था। क्योंकि वह मुझे डांटते नही थे, बल्कि वह मुझसे जो कुछ करने को कह रहे थे,उस वक्त वह मुझे मेरी क्षमता से बाहर लग रहा था। उनका मकसद था कि मैं अपनी क्षमता से परे जाकर काम करूं। वह मेरे अंदर कि सारी सीमाओं को तुड़वाना चाहते थे। अब हर बार तो हम अपनी क्षमता के पार नहीं जा सकते, और जब ऐसा होता है तो जादू हो जाता है। मुझे उनकी किसी भी बात का कभी बुरा नही लगा। मैंने सीखा कि मुझे हर दिन 100 प्रतिशत देना है। यदि किसी दिन 99 प्रतिशत हुआ, तो मुझे अगले दिन वह 1 प्रतिशत पूरा कर 101 प्रतिशत देना है। मैंने अपने मामा से सीखा कि मुझे हर दिन बेहतर होना है। जब कुछ सीखने को मिलता है, तो डांट खानी ही पडती है। बिना डांट खाए,तो हम सीख नहीं सकते।
मिजान के साथ काम करने के अनुभव?
-मैं और मिजान एक साथ एक ही स्कूल में पढ़े हैं। मैं और मीजान पिछले 17 वर्षों से दोस्त हैं। स्कूल के बाद भी हम दोनो हमेशा दोस्त रहे हैं। स्कूल में हम दोनो एक साथ थिएटर किया करते थे। मैंने ही मिजान को संजय (संजय लीला भ्ांसाली) सर से मिलवाया था। वास्तव में 2015 में मैं संजय सर के साथ फिल्म ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ में सहायक के रूप में काम कर रह थी। एक दिन हमें रणवीर सिंह पर कॉस्टयूम का ट्रायल लेना था। मगर उस दिन रणवीर सिंह कहीं बाहर शूटिंग कर रहे थे। तब मैंने मिजान से मदद मांगी थी। मिजान ने उसी वक्त आफिस आकर कॉस्टयूम का ट्रायल दिया था। यह देखकर संजय सर खश हुए थे। बाद में मिजान ने संजय सर के साथ ‘‘पद्मावत’’ में बतौर सहायक काम किया।
बतौर निर्देशक मंगेश हडवले?
-मंगेश सर बहुत अच्छे व शांत स्वभाव के इंसान है। सेट पर वह मुझ पर कभी नहीं चिल्लाए। उन्होंने मुझे कलाकार बनाया। उन्होने मुझे दबाकर नहीं रखा, बल्कि बहुत खुलापन दिया। मेरे अंदर के कलाकार को बाहर निकालने में उन्होने बहुत मेहनत की। मैंने उम्मीद नहीं की थी कि मंगेश सर मुझे सेट पर इतनी छूट देंगे। उनकी वजह से ही मैं सेट पर खुद की तलाश कर पायी।
संजय लीला भंसाली ने खुद ‘‘मलाल’’ में आपको निर्देशित क्यों नहीं किया?
-शायद मैं उस लायक नही थी। मैंने पहले ‘मैरी कॉम’ में सहायक के तौर पर काम किया, उसके बाद ‘बाजीराव मस्तानी’में सहायक बनी। क्योंकि पहले मैं बतौर सहायक भी उनके साथ खड़ी होने लायक नहीं थी। अभी मुझे संजय सर के निर्देशन में काम करने लायक बनना है। अब बतौर कलाकार मैं संजय सर के साथ काम कर सकती हूं या नहीं, इसका निर्णय संजय सर तब करेंगे, जब वह मेरा ऑडीशन लेंगे। देखना है कि यह वक्त कब आता है। जिस दिन मेरे अंदर उनके सामने खड़े होने का आत्मविश्वास आ जाएगा, तब मैं खुद उनसे कहूंगी कि मेरा ऑडीशन लीजिए।
भविष्य में किस तरह की फिल्में करने वाली हैं?
-सच कहूं तो बहुत कुछ करना है.लेकिन फिलहाल ‘‘मलाल’’ के प्रर्दशन के बाद दर्शकों के रिस्पांस का इंतजार है.दर्षक बताएंगे कि मुझे अपना बोरिया बिस्तर बांधकर कहीं चले जाना चाहिए या अभी और मेहनत करनी पड़ेगी या किस तरह की कमियों को दूर करना है। मेरी तमन्ना कास्टयूम ड्रामा वाली फिल्में करनी हैं। मैंने कास्ट्यूम ड्रामा वाली फिल्म ‘‘बाजीराव मस्मानी’’ में बतौर सहायक काम किया था। मुझे कॉमेडी भी करना है.मुझे पता है कि मैं कॉमेडी अच्छा नहीं कर सकती। पर मेरा व्यक्तित्व फनी है। मुझे अपने अंदर के फनी पक्ष को और अधिक उभारना है। ड्रामा,रोना धोना गुस्सा होना यह सब तो करना ही है।