फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’में केवल नपुंसकता मुद्दा नहीं है - भूमि पेडनेकर By Mayapuri Desk 28 Aug 2017 | एडिट 28 Aug 2017 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर महज दो फिल्मों ‘दम लगा के हाइशा’ और ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ से भूमि पेडनेकर ने अपनी पहचान एक उत्कृष्ट अदाकारा के रूप में बना ली है.अब कहा जा रहा है कि वह मुद्दों पर आधारित फिल्में ही करना चाहती हैं.बहरहाल, अब भूमि पेडनेकर ‘‘शुभ मंगल सावधान’’ को लेकर चर्चा में है, जो कि नामर्दगी /पुरूष नापुंसकता पर आधारित है। ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ के प्रदर्शन के बाद किस तरह का रिस्पॉन्स मिला? बहुत अच्छा रिस्पांस मिला दर्शकों का बहुत बड़ा प्रेम मिला है.मुझे संतुष्टि मिली कि दर्शकों को फिल्म पसंद आयी.मैं जिस तरह के इंपैक्ट की बात सोच रही थी,वैसा ही इंपैक्ट इस फिल्म ने किया है.फिल्म का पैसा कमाना जरुरी होता है,जिससे निर्माता दूसरी फिल्म आसानी से बना सके.मगर उससे भी अधिक जरुरी होता है फिल्म का लोगां तक पहुंचना.मेरे लिए फायदा यह हुआ कि अब मेरे प्रशंसकों की संख्या बढ़ चुकी है। सबसे बड़ी बात यह है कि जब हमने इस फिल्म को शुरू किया था,तब हमारे देश के 54 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं थे.पर हमने यानी कि अक्षय कुमार व फिल्म से जुड़े लोगों ने फिल्म की शूटिंग के साथ ही शौचालय बनवाने के लिए लोगों को प्रेरित करना शुरू किया। फिल्म के प्रमोशन के दौरान भी हमने इस बात पर जोर दिया.परिणाम सुखद हैं.आज की तारीख में मेरे पास जो ऑंकड़े आए हैं,उसके अनुसार अब हमारे देश में शौचालय विहीन घरों की संख्या 54 प्रतिशत से घटकर 38 प्रतिशत हो गयी है। पर इस फिल्म पर सरकारी प्रोगंडा करने व उपदेश बांटने का आरोप लगा? मुझे तो ऐसा कुछ नहीं लगा.यह एक पूरी तरह से मनोरंजक फिल्म है.हम इस फिल्म में टॉयलेट की समस्या पर बात कर रहे हैं.अब यदि हम इस पर बात नहीं करेंगे,तो जो लोग इस समस्या से जूझ रहे हैं,उन तक हमारी बात कैसे पहुंचेगी और उनके हृदय में परिवर्तन नही आएगा.मैं तो चंदन सिनेमा में जहां सौ रूपए की टिकट है और मल्टीप्लैक्स भी गयी, जहां छह सौ रूपए की टिकट है,तो मैने पाया कि लोग हॅंस रहे थे, उन्हे फिल्म देखते हुए मजा आ रहा था। तो अब आप सिर्फ मुद्दे वाली फिल्में करना चाहती हैं? -मैं पुरूष व औरतों दोनों को प्रभावित करने वाली वह फिल्में कर रही हूं,जो कि समाज पर कमेंट करती हैं.‘शुभ मंगल सावधान’ एक क्रूकी रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है.इसी के साथ इसमें उस समस्या पर बात की गयी है,जिस पर हमारे समाज में खुलकर बात नहीं होती। फिल्म ‘‘शुभ मंगल सावधान’’को लेकर क्या कहना चाहेंगी? यह फिल्म दिसंबर 2013 में प्रदर्शित लेखक व निर्देशक आर एस प्रसन्ना की तमिल रोमांटिक फिल्म ‘‘कल्याण समयाल साधम’’का हिंदी रीमेक है.यह अरेंज कम लव कम अरेंज मैरिज है.पर इस फिल्म का मुद्दा प्रेम विवाह या अरेंज मैरिज नही है। इस फिल्म का मुद्दा काफी बोल्ड व गंभीर है.एक ऐसा मुद्दा है,जिस पर हम बात नहीं करते। मेरी नजर में फिल्म की कहानी एक कपल की है, जिनकी शादी होने वाली है,पर कुछ समस्या आ गयी है.पर सबसे बड़ी समस्या मुदित की नापुसंकता नही है.सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुदित के नपुंसक होने के चलते मुदित व सुगंधा के रिश्ते में नासमझ/ गड़बड़ी पैदा हो रही है दो परिवारों के बीच संबंध खराब हो रहे है.पर फिल्म देखते समय दर्शक मनोरंजन पाएगा,वह हंसते हंसते लोटपोट होगा। इस फिल्म में सुगंधा पूरे समाज के सामने कहती है कि मैं मुदित से प्यार करती हूं,मुझे मुदित में कोई कमी नहीं लगती.वास्तव में सुगंधा को भरोसा है कि मुदित उसे खुशहाल गृहस्थी देगा.देखिए,हर लड़के का अपना आत्म सम्मान भी होता है.तो सुगंधा के सामने सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि मैं हर किसी से लड़ लूंगी,मगर मैं मुदित के आत्मसम्मान को ठेस लगने से कैसे बचाउं?उसे दुबारा कैसे खड़ा करुं.यह बहुत बड़ी चीज होती है। अपने किरदार पर रोशनी डालेंगे? मैने इस फिल्म में एक साफ्टवेअर कंपनी में काम करने वाली सुगंधा का चरित्र निभाया है.सुगंधा दकियानूसी परिवार की है,जो कि रात में घर से बाहर पार्टी वगैरह नहीं जा सकती.जबकि उसके मॉं बाप ने बड़े प्यार से उसे परवरिश दी है.वह किसी की बकवास नहीं सुन सकती.उसका सपना रहा है प्रेम विवाह करने का.सुगंधा की महत्वाकांक्षा है कि मैं अपनी एक खूबसूरत गृहस्थी बसाउं.इसी के साथ वह एक सषक्त नारी का रूप भी है.इस किरदार मे कई लेअर हैं। जब आपको इस फिल्म का आफर मिला,तो आपने किससे राय ली थी? सर..मैने इस फिल्म की पटकथा अपनी मां को पढ़ने के लिए दी.उन्होने मुझसे कहा कि मुझे यह फिल्म जरुर करनी चाहिए.मेरे लिए मेरी मॉं की राय ही सबसे अहम होती है.यह साफ सुथरी फिल्म है.हम समस्या का मजाक नहीं उड़ा रहे.कहीं कोई अश्लीलता नहीं परोसी है.हमारा मकसद इस फिल्म को पूरे परिवार तक पहुॅचाना है.यह फिल्म महज युवा पीढ़ी के लड़के या लड़कियों की नहीं है.जब शादी का संबंध बन रहा हो,तो यह पूरे परिवार का मसला होता है,महज दो इंसानां का नहीं.वैसे मेरे मन में इस फिल्म को करने को लेकर कोई हिचक नहीं थी.फिल्मकार आनंद एल राय जहां से आते हैं,उससे मुझे भरोसा था कि वह फिल्म में नापुंसकता का मजाक नहीं उड़ाएंगे. और न ही अश्लील ढंग से बात करेंगे। इस फिल्म में पुरूष नपुंसकता पर बात की गयी है?पर यह समस्या तो महिलाओं में भी हो सकती है? जी हॉ! हमारी फिल्म इस बात को भी उठा रही है.हमारी फिल्म पुरूषों की तरफदारी के लिए नहीं है.हमारे समाज में होता यह है कि जब पुरूष नपुंसक होता है,तो उसका महज मजाक उड़ाया जाता है.मगर शादी के दो साल बाद भी लड़की मां नहीं बनती है,तो उस पर बांझ सहित कई तरह के लांछन लगाकर उसे प्रताड़ित किया जाता है,उस वक्त कोई यह नही सोचता कि उस लड़की के पति में कमी के चलते भी ऐसा हुआ होगा.फिल्म में मर्द को दर्द होता है,उनके दिल टूटते हैं,आदि की बात कही गयी है.नामर्दगी या नापुंसकता एक बीमारी है.पर हम इस बीमारी का मजाक उड़ाते हैं,इसलिए बेचारा पुरूष इस पर खुलकर बात नहीं कर सकता.हम औरतों के प्रति हम दर्दी भी नहीं जता रहे.पर हमारी फिल्म समाज का सबसे बड़ा टैबू ध्वस्त करने वाली है कि हर पुरूष परफैक्ट नहीं है.हमारी फिल्म का मकसद सिर्फ इतना है कि बीमारी को लेकर बातचीत शुरू हो। यह फिल्म किस अर्थ में ज्यादा अहम हो जाती है? यह फिल्म इसलिए अहम है कि इसमें नामर्दगी की समस्या को शादी होने से पहले ही बताया गया है,ऐसे समय में लड़की बड़ी आसानी से उस पुरूष को छोड़ सकती है.देखिए, शादी के बाद एक रिश्ता बन जाता है.जिसे बचाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी नारी पर होती है.जबकि शादी से पहले उस पर बंदिश नहीं होती है. शादी से पहले वह बंधन नहीं होते हैं.ऐसे में सुगंधा का मुदित के साथ रहने के पीछे एकमात्र वजह दोनों का प्यार है.वास्तव में हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या यह है कि ‘सेक्स’ शब्द का उच्चारण करना भी सहज नहीं माना जाता. ‘सेक्स’ भी हमारे यहॉं टैबू है.और पुरूष को सुप्रीम बना दिया गया है। इस तरह की परिस्थिति यानी कि नामर्द या स्तंभन की कमजोरी वाले पति के मिल जाने की समस्या का सामना करने के लिए आप खुद हर लड़की को क्या सलाह देना चाहेंगी? -मैं सलाह दॅूंगी कि वह अपने पार्टनर के प्रति संजीदा रहें.उसे भावनात्मक साथ/सपोर्ट दें. रिश्तों में पैदा होने वाली हर समस्या से उबरने का एकमात्र रास्ता एक दूसरे के प्रति संजीदगी,एक दूसरे पर यकीन बनाए रखना और भावनात्मक रूप से किसी को भी टूटने न देना है.देखिए,हमारे समाज में एक शादी शुदा नारी के साथ क्या क्या नहीं होता है.दहेज प्रताड़ना,घरेलू हिंसा,मारपीट वगैरह...ऐसे समय में पति को लाट मार कर निकल जाना चाहिए,पर हम भारतीय नारियां उस वक्त भी रिश्ते को टूटने से बचाने के लिए ऐसा कदम नहीं उठाती हैं.यह सब सह जाती हैं.ऐसे में महज एक बीमारी के समय आप उसे छोड़कर चल दें,इसे सही नहीं ठहराया जा सकता.क्योंकि बीमारी किसी भी इंसान के हाथ में नहीं होती है। सोशल मीडिया को लेकर आपकी सोच क्या है.और आपकी नई फिल्म ‘शुभ मंगल सावधान’को आप सोशल मीडिया पर किस तरह प्रचारित कर रहे हैं? ‘शुभ मंगल सावधान’एक क्रूकी हास्य फिल्म है.यह फिल्म सिर्फ युवा कपल ही नहीं अधेड़ उम्र के कपल को भी उनकी समस्या के प्रति सचेत करेगी, उन्हे मोटीवेट करेगी। सोशल मीडिया की रीच तो दूरदर्शन से ज्यादा हो गयी है। दूसरी बात सोशल मीडिया से जुड़े लोग ज्यादा खुले दिमाग के हैं,तो वह हमारी फिल्म को जल्दी स्वीकार कर सकते हैं.यदि खुले दिमाग के न हों,तो हमारे ‘सेक्स’ बोलने से ही लोग चिढ़ जाते.पर सोशल मीडिया पर लोग सुनते हैं और खुलकर बात करते हैं.हमारी फिल्म एक सेक्सुअल समस्या पर बात करती है,एक कपल के बारे में हैं.हम चाहते हैं कि लोग इस पर बात करें। #Bhumi Pednekar #interview #Shubh Mangal Saavdhan हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article