साउथ इंडियन फिल्मों के लोकप्रिय स्टार तथा हिन्दी फिल्मों में नगेटिव पॉजिटिव दोनों तरह की भूमिका निभाते सोनू सूद आज किसी पहचान के मौहताज नहीं। इन दिनों वो जेपी दत्ता की फिल्म ‘पलटन’ में एक आर्मी ऑफिसर की भूमिका निभा रहे हैं। क्या कहना है सोनू का इस फिल्म को लेकर।
फिल्म को लेकर आपका क्या कहना है ?
मैं बॉलीवुड में नया था। उन दिनों एलओसी बनने वाली थी। उसी दौरान मुझे जेपी सर को मेरा नाम रिकंमड करते हुये सैफअली ने कहा था कि बढ़िया एक्टर होने के अलावा एक फौजी वाली पर्सनेलिटी वाला एक्टर है सोनू सूद। आप उससे एक बार मिल लो। लेकिन उसी दौरान मेरी फिल्म ‘ भगत सिंह’ षुरू हो गई, लिहाजा मैं एलओसी से अपनी डेट्स मैच नहीं कर पाया। हालांकि मेरी दिली तमन्ना थी, सोल्जर के तौर पर पर्दे पर आने की। वो सपना आज जाकर पूरा हुआ। जब मुझे पलटन के लिये बुलाया गया जो मेरे लिये गर्व की बात थी इस पलटन का हिस्सा बनना। यहां मैं फिल्म में मेजर विश्णू सिंह का रोल निभा रहा हूं जिन्हें टाइगर नाथुला बोलते थे। उनसे चीनी बहुत डरते थे। ये वॉर भी नाथुला बां स में हुइ्र थी। आज भी उन्हें टाइगर नाथुला के नाम से जाना जाता हैं। मैं बहुत खुश हूं कि मुझे जेपी सर ने इस रोल के काबिल समझा।
इस भूमिका के लिये क्या कुछ तैयारियां करनी पड़ी ?
जेपी सर ने मुझे मेजर की कुछ सामग्री दी जिसमें उनकी और उनके परिवार की पिक्चर्स थी तथा उनके बारे में ढेर सारी जानकारी थी। दूसरे मेरी मदर हिस्ट्री की प्रोफेसर रही हैं। उनकी एक पूरी लायब्रेरी है। लिहाजा जब भी मुझे ऐसा कोई रोल मिलता है तो मैं उनके यहां से उस रोल से संबधित बुक निकालता हूं जिसमें मुझे ढेर सारी जानकारी मिल जाती हैं। इस भूमिका से संबधित भी वहां से काफी जानकारी हासिल हुई।
चाइना के साथ 1967 में हुये युद्ध की आपको कितनी जानकरी थी ?
अन्य लोगों की तरह मुझे भी पता नहीं था। बस हल्का सा सुना जरूर था कि नाथुला में कुछ हुआ था। हम बहुत सारे किस्से कहानीयां सुनते हैं लेकिन उनके बारे में ज्यादा नहीं सोचते। मैं जब इस फिल्म से जुड़ा, उसके बाद मुझे उस युद्ध की ढेर सारी जानकारी मिली। जो मेरे लिये किसी आश्चर्य से कम नहीं थी कि क्यों उस युद्ध को छिपाया गया। 1962 के बारे में सब को इसलिये मालूम है क्योंकि उस वॉर में हमारे बहुत सारे सैनिक मारे गये थे। नींद में उन पर अटैक किया गया था और हम वो युद्ध हार गये थे। हालांकि 1967 के वॉर के बारे में भी लोगों का पता होना चाहिये था। वो काम अब ये फिल्म करेगी। जिसे देखने के बाद इतिहास के कुछ बिना लिखे पन्ने खुलेगें।
लेह में शूटिंग का कैसा तर्जुबा रहा ?
चूंकि फिल्म का शूट लेह में था और उस वक्त मैं एक साउथ की फिल्म शूट कर रहा था। उसके बाद मैं हैलीकॉप्टर से लेह के एक होटल पहुंचा और भागता हुआ होटल में दाखिल हुआ, उसके बाद फटाफट ड्रैस पहनी और सेट की तरफ भागा। सेट पर ढेर सारे रीयल फौजी भाई खड़े थे। ये सब देखते हुये मेरे कुछ कोआर्टिस्टों ने मुझसे पूछा कि तू भाग रहा है दौड़ रहा है। तेरा सांस नहीं फूल रहा। जबकि हम तो यहां कम आक्सिजन की वजह से तो पिछले चार दिन से परेशान हैं, हमारा सिर दर्द करता रहता है, सांस की भी प्रॉब्लम रहती है। अब, मुझे तो लगा कि मुझ पर वहां के मौहाल का असर था, वहां फौजी भाईयों को देख या मैने जो आर्मी की वर्दी पहनी हुई थी उसका असर था या फिर मेरी फिटनेस की वजह से मौंसम का मुझ पर कोई असर नहीं हो पाया था।
आपने जैकी चेन के साथ काम किया है और यहां आप चाइना के साथ युद्ध कर रहे हैं ?
मैं युद्ध नही कर रहा बल्कि उस युद्ध में षामिल एक किरदार निभा रहा हूं। बेशक मैं एक्टिंग कर रहा था लेकिन हिन्दुस्तानी होने को जो जज़्बा है वो कहीं न कहीं आपके भीतर होता ही है। मैं कलाइमेक्स का एक सीन कर रहा था जिसमें मुझे रोना था लेकिन मुझे असली में रोना आ रहा था। वो टेक बार बार रीटेक हो रहा था और मैं बार बार अपने आप रो रहा था। सीन कट हो जाने के बाद वहां खड़े फोजी भाईयों में से तीन चार ने मेरे पास आकर कहा कि सर हर बार आपकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। क्या आंखों में कुछ डालते हो ? मैने उन्हें बताया कि ये माहौल और सीन की असर है जिसमें अपने आप आंसू बहने लगते हैं।