कुछ माह पहले ओटीटी प्लेटफार्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर आयी सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘सीरियस मैन’ में नवाजुद्दीन की पत्नी ओजा के किरदार को निभाकर बॉलीवुड में छा जाने वाली अदाकारा इंदिरा तिवारी अचानक ही चर्चा का केंद्र बिंदु बन गयी थी। आम दर्शक से लेकर बॉलीवुड के निर्देशकों के बीच सिर्फ इंदिरा तिवारी के अभिनय की चर्चा होने लगी।मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘सीरियस मैन’ इंदिरा तिवारी के करियर की प्रदर्शित होने वाली पहली फिल्म जरुर है, मगर उन्होेंने इस फिल्म से पहले सुमन मुखोपाध्याय की फिल्म ‘नजरबंद’ और पॉल रतनराज की फिल्म ‘सृष्टि’ की शूटिंग कर चुकी थी।फिल्म ‘नजरबंद’ ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ के अलावा ‘न्यू न्यूयॉर्क इंडिया फिल्म फेस्टिवल’ में धूम मचा चुकी हैं। इतना ही नहीं इंदिरा तिवारी बहुत जल्द संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘गंगूबाई काठियावाड़ी’’ में भी नजर आने वाली हैं। प्रस्तुत है इंदिरा तिवारी से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश
आपकी पृष्ठभूमि क्या है?यह अभिनय का चस्का कैसे लगा?
मैं मूलतः भोपाल से हूँ। मेरा जन्म व परवरिश भोपाल में हुई है। आप यह भी कह सकते हैं कि मैं अखबारों में पली बढ़ी हूँ। क्योंकि मेरी माँ का कला की तरफ बहुत रूझान था। मेरे नाना जबलपुर में शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। मेरी माँ मुझे व मेरी छोटी बहन ऐश्वर्या को सदैव कला के क्षेत्र में कुछ न कुछ करने के लिए प्रेरित किया। वह हमेशा हम दोनों को कुछ न कुछ नया सीखने के लिए प्रेरित किया करती थीं। हमें उन्होंने कभी भी खेलने का मौका दिया ही नहीं। शायद हम बचपन के दौर से गुजरे ही नहीं।कभी संगीत की, कभी नृत्य की,तो कभी पेटिंग की ट्रेनिंग ही हमारी चलती रहती थी।
भोपाल में बाल भवन है, जहां पर 15 वर्ष की उम्र तक के बच्चों को पेंटिंग, नृत्य वगैरह सहित विविध विधाओं में प्रशिक्षण हासिल करते हैं। बचपन से ही पेंटिंग/चित्रकला में मेरा रूझान था, तो मेरी माँ मुझे पेंटिंग सीखने के लिए बाल भवन लेकर गयीं। वहां पर पहले से बनी हुई पेंटिंग रखी होती थी और हमसे कहा जाता था कि इसकी कापी/नकल कर दो। मेरे मन मंे सवाल उठता था कि कापी क्यों करनी है। हम अपना कुछ मौलिक चित्र/पेंटिंग क्यों नहीं बना सकते? मैंने शिक्षक से पूछा कि हम अपना कुछ नया क्यों नहीं बना सकते? तो शिक्षक ने कहा कि आपका आज पहला दिन है, आप इस बारे में नीचे जाकर पूछ लीजिए। नीचे एक नाटक की रिहर्सल चल रही थी, तकरीबन 15 बीस बच्चे थे। मेरे हाथ में ड्राइंग बुक थी।
तो मैं एक कोने में बैठकर उनकी हरकतों को पन्नों पर बनाने लगी। उन्होंने देखकर मुझे अहसास हुआ कि यह काम तो ज्यादा रोचक है। मुझे कई लोग काम करते हुए नजर आ रहे थे। मैंने वहां शिक्षक पी जी त्रिवेदी से पूछा कि मैं यहां बैठ सकती हूँ, उन्होंने कहा कि बैठ सकती हो, पर किसी दिन काम भी करना पड़ेगा। फिर मैंने मूर्तिकला की क्लास की। क्राफ्ट की भी क्लास की। पेंटिंग में आना जाना किया करती थी। मजा आ रहा था। अचानक एक दिन एक नाटक में अभिनय करने वाली एक लड़की की तबियत खराब हो गयी। सर ने मुझसे उस किरदार को करने के लिए कहा।उसके बाद मैंनेे कई नाटक किए। मैंने स्कूल की पढ़ाई करते हुए भोपाल के लगभग सभी रंगकर्मियों के साथ नाटक किए। पर मां की इच्छा का मान रखने के लिए पेंटिंग भी सीख रही थी। फिर 2008 में मुझे पेंटिंग में राष्ट्रपति पुरस्कार मिला। मेरी मम्मी हर दिन चित्रकारी/पेंटिंग के लिए कोई न कोई नया विषय सुझाती रहती थीं।
आपके मम्मी पापा क्या करते हैं?
मेरे पापा जी बचपन में गुजर गए थे। मेरी मम्मी ने ही हमें पाला, परवरिश दी। मेरी मम्मी पहले हैंडलूम में नौकरी करती थीं। फिर उन्होंने अपना एक एनजीओ ‘‘इंदिरा ओमन एंड चिल्ड्रेन एज्यूकेशन सोशल वेलफेअर सोसायटी’ शुरू किया। सभी की मदद किया करती थी। मैं भोपाल की सभी पेंटिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लेती रहती थी। हमें पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिलती रही। स्कूल में इज्जत मिलती थी।
आपने पेंटिग के अलावा क्या क्या सीखा?
2008 में मुझे चित्रकला, मूर्तिकला और हस्तकला के लिए राष्ट्रपति से पुरस्कार मिला था। मेरे गुरू विनय सप्रे थे। फिर मैंने स्नातक की पढ़ाई कला मंे ही की। मैं चित्रकारी/पेंटिंग ही करना चाहती थी। पर मैं पेंटिंग करने के अलावा नाटकों में अभिनय कर रही थी। फिर अचानक नाटक की यात्रा शुरू हो गयी। एक दिन मेरे नाटक के गुरू ने मुझसे कहा कि मुझे भोपाल तक सीमित नहीं रहना चाहिए। मुझे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जाना चाहिए। मैंने राट्रीय नाट्य विद्यालय के लिए फार्म भरा और मेरा चयन हो गया।
भोपाल में आपने किन लोगों के साथ थिएटर किया। आपने जो पहला नाटक किया था, उसका नाम क्या था?
मैंने रंगकर्मी और फिल्म अभिनेता राजीव वर्मा के साथ वर्कशॉप किया था। पर मैंने थिएटर की शुरूआत विभा मिश्रा जी के साथ की थी। के जी के साथ पहला नाटक ‘बेटी पढ़कर क्या करेगी’ किया था, इस नाटक का शो करने हम दिल्ली ‘नेशनल बाल भवन’ गए थे। तब हम काफी छोटे थे। उसके बाद भोपाल में मनोज नायक, संजय नूतन, आलोक चटर्जी के साथ काम किया। छाउ में माधव जी के साथ काम किया। मैंने लगभग हर निर्देशक के साथ थिएटर किया। हबीब तनवीर के आखिरी दिनों मैं उनके नाटक में काम कर रही थी। पर उनके देहांत के चलते इस नाटक का शो हो नहीं पाया।
आपने लगभग दस वर्ष पहले प्रकाश झा की फिल्म ‘आरक्षण’ मंे भी छोटा सा किरदार निभाया था?
उस वक्त मैं हाई स्कूल की पढ़ाई के साथ भोपाल में थिएटर कर रही थी। प्रकाश झा की टीम ने संपर्क किया,तो मैंने कर लिया था। मैंने फिल्म ‘पीपली लाइव’ मंे भी पत्रकार का छोटा सा किरदार निभाया था। पर मेरी पहली फिल्म ‘नजरबंद’ थी, जिसकी शूटिंग मैं कोलकाता मंे कर रही थी, तो जो कलाकार इस फिल्म में कैमियो कर रहे थे, मैं उनके साथ बहुत अच्छे ढंग से पेश आयी। क्योंकि आरक्षण’ व ‘पीपली लाइव’ में अमिताभ बच्चन सहित दूसरे वरिष्ठ कलाकारों ने मेरे साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया था। फिर मैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में अभिनय का प्रशिक्षण लेने चली गयी।
आपको बॉलीवुड में किस तरह का संघर्ष करना पड़ा?
मुझे शुरुआती बाधाओं का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि मैंने जो कुछ भी हासिल किया है उसे बरकरार रखने की मेरी चुनौती अभी शुरू हुई है। मेरी लाइफ स्टाइल सिंपल है, मैं बहुत कम में खुश हूँ। एक अगस्त 2018 को मेरा प्रशिक्षण पूरा हुआ, मगर उससे पहले ही मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार से पुरस्कृत निर्देशक सुमन मुखोपाध्याय की फिल्म ‘नजरबंद’ मिल गयी थी। 15 अगस्त 2018 को कोलकाता पहुंचकर मैंने ‘नजरबंद’ की शूटिंग की।फिर मैंने पॉल रतनराज की फिल्म ‘सृष्टि’ की शूटिंग की। उसके बाद मुझे सुधीर मिश्रा की फिल्म ‘सीरियस मैन’ मिली। इस फिल्म की शूटिंग खत्म होने से पहले ही संजय लीला भंसाली सर के साथ फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ करने का अवसर मिल गया। इसकी शूटिंग खत्म होने से पहले ही कोरोना महामारी के चलते सब कुछ धीमा पड़ गया।
फिल्म ‘सीरियस मैन’ को काफी पसंद किया गया। इस फिल्म के प्रदर्शन के बाद फिल्म इंडस्ट्री से आपको किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली?
जब मैं फिल्म ‘सीरियस मैन’ की शूटिंग कर रही थी, तभी मुझे संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ मिल गयी थी। मुझे अंदर से इस बात का अहसास था कि अगर मैं ‘सीरियस मैन’ न कर रही होती, तो मैं ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ तक न पहुँच पाती। ‘सीरियस मैन’ के बाद काफी प्रतिक्रियाएं मिली। कई महिलाओं ने मुझसे फोन करके कहा कि मैंने माँ का किरदार काफी अच्छे ढंग से निभाया है। अनुराग कश्यप सहित कई फिल्म निर्देशकों ने भी फोन कर बधाई दी। अनुराग कश्यप ने कहा कि अच्छी पटकथा उनके हाथ मे आने पर वह मेरे साथ फिल्म करना चाहेंगे। मनोज बाजपेयी ने भी प्रशंसा की। इससे मुझे प्रोत्साहन मिला। मगर ‘सीरियस मैन’ के बाद मेरे पास माँ और किसी की पत्नी के किरदार के ही ऑफर आ रहे थे, जिन्हें मैंने बड़ी विनम्रता से इंकार कर दिया। मेरा मकसद विविधतापूर्ण किरदार निभाना ही है।
सुधीर मिश्रा और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ काम करने के अनुभव?
उन्होंने मुझे कभी भी एक नवागंतुक कलाकार होने का अहसास नहीं कराया।
फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ कैसे मिली? इस फिल्म के संदर्भ में कुछ बताना पसंद करेंगी?
संजय लीला भंसाली मेरे ड्रीम डायरेक्टर रहे हैं, उनके साथ काम करना मेरा सपना रहा है, जो कि पूरा हो गया। उनके साथ काम करके मजा आया।इससे अधिक अभी कुछ नहीं बता सकती।
पहली फिल्म के रूप में ‘नजरबंद’ चुनने की क्या खास वजह रही?
पहली बात तो फिल्म की कहानी बहुत अच्छी है। दूसरी बात जब सुमन सर ने मुझे फोन किया, तो उन्होने कहा- “मैं एक फिल्म लिख रहा था, तो तुम्हारा ख्याल आया। मैंने एक बार एनएसडी में तुम्हे देखा था। मैं ऑडीशन में यकीन नहीं करता। क्योंकि अभिनय तो उसी क्षण का मसला है, ऐसे में तीन माह पहले किसी का ऑडीशन लेकर जज करना ठीक नहीं। हो सकता है कि हम अपनी फिल्म के लिए ऑडीशन लेकर उसे अनुबंधित कर लें, पर वह सेट पर अच्छा काम न करे, तो। तुम्हे मेरे साथ काम करना है या नहीं।” मैंने उनकी इस साफ बात को सुनकर हामी भर दी थी। फिर जब मैने इस पर होमवर्क करना शुरू किया, तो मजा आया। यह एक बहुत ही कठिन प्रेम कहानी है। यह फिल्म आशापूर्णा देवी की लघु कहानी पर आधारित है। यह पूरी आउट डोर फिल्म है। यह एक यात्रा है, एक खोज है, इसलिए इसका 85 प्रतिशत फिल्मांकन सड़क पर हुआ है। यह फिल्म चंदू और वसंती की कहानी है।
‘नजरबंद’ के अपने किरदार को किस तरह परिभाषित करेंगी?
मैंने इसमें वसंती का किरदार निभाया है। वसंती ‘टच मी नॉट’ जैसे पेड़ की तरह है। पर एक यात्रा के बाद जब आप उसे खोलते हैं,तो वह ‘टच मी नॉट’ वाला पेड़ नहीं रह जाती। वह पूरी यात्रा खुदको संभालकर रखती है, मगर यात्रा खत्म होते ही वह खुद को समर्पण भाव से खोल देती है। अंत में वह किसी भी बंधन में नहीं रहती।इसे निभाने में मजा आया।
‘नजरबंद’ करने के आपके अनुभव क्या रहे?
बहुत मजा अया। मुझे पहली ही फिल्म में बेहतरीन निर्देशक और बेहतरीन सह कलाकार तन्मय मिले। शूटिंग के दौरान हमें किरदार को अपने हिसाब से गढ़ने की पूरी स्वतंत्रता मिली। यह छोटे बजट की फिल्म है। सुविधाएं कम हैं। वैनिटी वैन नहीं है। इस फिल्म में काम करके मैंने सबसे बड़ी महत्वपूर्ण बात यह सीखी कि कम सुविधाओं के साथ हम कितना बेहतर काम कर सकते हैं।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में मैथड एक्टिंग पर ज्यादा जोर दिया जाता है। जबकि बॉलीवुड की व्यावसायिक फिल्मों में मैथड एक्टिंग नहीं चलती?
पहली बात तो स्पष्ट कर दॅूं कि पहले ऐसा होगा,पर अब राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में तीन वर्ष के दौरान केवल मैथड एक्टिंग पर जोर नही दिया जाता।राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में काफी सारे मैथड की शिक्षा दी जाती है। पहले वर्ष में यथार्थ परक अभिनय पर जोर दिया जाता है। दूसरे वर्ष में क्लासिक के इर्द गिर्द की पढ़ाई होती है।पर तीसरे वर्ष पूरी तरह से आधुनिक शिक्षा दी जाती है। अलग अलग निर्देशक आते हैं और वह अलग अलग विधा की शिक्षा देते हैं। ‘नजरबंद’ में मैने ‘मैथड एक्टिंग’ को पकड़ी थी, क्योंकि किरदार की माँग थी।
अब तक के आपके काम को देखकर आपकी मम्मी की क्या प्रतिक्रिया है?
मेरे नाना नानी काफी खुश हैं।वह तो ‘आरक्षण’ में मेरे तीन दृश्य देखकर ही खुश हो गए थे। मम्मी की प्रतिक्रिया एकदम साधारण रहती है। वह दिल खोलकर प्रशंसा कम करती हैं। वह हमेशा तटस्थ रहती हैं, शायद इसी कारण मैं आज भी जमीन से जुड़ी हुई हूँ।
आपने सुमन मुखोपाध्याय, सुधीर मिश्रा व संजय लीला भंसाली के निर्देशन में काम कर लिया। यह दिग्गज निर्देशक हैं। इनसे क्या सीखा और क्या फर्क महसूस किया?
प्रकाश झा के साथ फिल्म ‘अपहरण’ में मैंने कैमियो किया था। उस वक्त मैं स्कूल में थी। तो उस वक्त मैने उनको दूसरों के साथ काम करते हुए देखा था। मैं उस वक्त आब्जर्वर थी। मैंने देखा कि कलाकार से काम कैसे करवाना है, इसमंे महारत हासिल है। मेरे कुछ दृश्य अमिताभ बच्चन सर के साथ थे। मैंने पाया कि वह सिर्फ अपने ही नहीं बल्कि सह कलाकार के संवाद भी याद रखते हैं। ‘पीपली लाइव’ में मैंने रघुवीर यादव को काम करते हुए देखा और काफी कुछ सीखा था। ‘सीरियस मैन’ के वक्त मैंने पाया कि निर्देशक के तौर पर सुधीर मिश्रा अपने कलाकार के साथ हर दृश्य को लेकर विचार विमर्श करते हैं। संजय लीला भंसाली सर की कार्य शैली काफी अलग है। उनके सेट पर एक दिन में सिर्फ एक दृश्य फिल्माया जाता है, पर पूरा मन लगाकर काम होता है। उनके साथ काम कर लेने के बाद कलाकार विश्व के किसी भी बड़े निर्देशक के साथ काम कर सकता है। उनके साथ काम करते हुए दिमाग खोलकर काम करना होता है।
इसके अलावा क्या कर रही हैं?
लॉक डाउन में पेंटिंग्स काफी बनायी। अब लॉक डाउन में दूसरों का काम देखा। अब मुझे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म करनी है, तो कुछ विदेशी भाषाएं भी सीख रही हूँ। ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के प्रदर्शन के बाद मेरी इमेज बदलने वाली है। तो इस वक्त मैं अपनी प्रतिभा व अपने व्यक्तित्व को निखारने में ही लगी हुई हूँ। मैं कविताएं भी लिखती हूँ। अभी मैं आलिया भट्ट की पेंटिंग्स बना रही हूँ। मैं आलिया भट्ट के साथ काम करते हुए उनसे प्रभावित हुई, तो सोचा कि उन्हें क्या उपहार दिया जाए? उनके पास तो सब कुछ है। तब मैंने सोचा कि मैं उनकी पेंटिंग्स बनाकर उनको उपहार में दूंगी। मैं कैनवास पर उनका चित्र बना रही हूँ। जैसे ही यह काम पूरा होगा, मैं अपनी यह कला उन्हें उपहार में दूंगी।