फिल्म ‘बधाई हो’ में नीना गुप्ता की सास का किरदार निभाने वाली अदाकारा सुरेखा सीकरी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. एक नहीं बल्कि दो राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी सुरेखा सीकरी कई फिल्मों के अलावा ‘सात फेरे’ व ‘बालिका वधू’ जैसे सीरियलों के माध्यम से अपने अभिनय का जलवा दिखा चुकी हैं।
आप फिल्म ‘बधाई हो’ को आप किस नजरिए से देखती हैं?
- यह फिल्म कुछ मुद्दों को लेकर बनायी गयी मनोरंजन से भरपूर फिल्म है. इसमें सामाजिक मुद्दे को हल्के फुल्के हास्य व मीठी बातों के साथ चित्रित किया गया है. फिल्म में जब कौशिक दंपति बड़ी उम्र में माता पिता बनने की स्थिति में हो जाते हैं, तब उनकी मां यानी कि बड़े पोतो की दादी जिस तरह से रिएक्ट करती है, उस पर यह फिल्म है. वर्तमान समय में जब एक षादी योग्य युवा बेटे को पता चलता है कि उसकी मां फिर से गर्भधारण कर चुकी है, तो उसे सामाजिक षर्मिंदगी होती है. दादी को भी उस वक्त कुछ अजीब सा लगता है, जब पोते के बड़े हो जाने के बाद उनकी बहू फिर से गर्भधारण करती है. तो मध्यमवर्गीय परिवार के इर्दगिर्द घूमने वाली यह मीठी सी प्यारी सी कहानी है. इसमें जिस तरह से अलग अलग लोगों की अलग अलग प्रतिक्रिया आती है, उससे हर दर्षक रिलेट करेगा।
इस फिल्म में आपका किरदार क्या हैं?
- मैंने दादी का किरदार निभाया है, जिनके दो बेटे हैं. बड़ा बेटा अभी भी मेरठ में रह रहा है. पर वह अपने छोटे बेटे और बहू के साथ दिल्ली में रह रही है. छोटे बेटे के किरदार में गजराज राव और बहू प्रियंवदा के किरदार में नीना गुप्ता है. दादी के दो पोते हैं. बड़ा पोता नकुल 25 साल का और छोटा पोता 12 वीं कक्षा में पढ़ रहा हैं. ऐसे में एक दिन 50 साल की उम्र में प्रियंवदा गर्भवती हो जाती है, तो उसकी अपनी प्रतिक्रिया है. उसे अपने आसपास के लोगों से ताने सुनने मिल रहे हैं. इसी के साथ फिल्म में उसके अपने दोनों बेटों के साथ जो रिष्ते हैं, उस पर भी रोषनी डाली गयी है. इस फिल्म में इस बात पर भी रोशनी डाली गयी है कि कई बार अपने भी अपने होकर अपने नहीं रहते. पर फिल्म के अंत तक सारी समस्याएं खूबसूरती से सुलझ जाती है. मतभेद सुलझ जाते हैं. जब दादी को पता चलता है कि उसकी बहू बड़ी उम्र में प्रेगनेंट हुई है, तो वह अपनी बहू से कहती है-‘लोग क्या कहेंगे? मेरे अपने रिष्तेदार क्या कहेंगे? अब तो मेरी पूरी नाक कटा दी. ’सच यह है कि बहू प्रियंवदा के गर्भधारण की खबर से वह बहुत स्तब्ध रह जाती है. उसका मानना हैं कि अब ऐसा नहीं होना चाहिए. वह अपनी बहू से कहती भी है कि यह कोई उम्र है, इस तरह की हरकतें करने की. लेकिन धीरे धीरे वह इस बात का अहसास करती है कि इसमें कुछ भी गलत नहीं हुआ है. ऐसा होना स्वाभाविक है. फिर आप जानते हैं कि मूल धन से ब्याज ज्यादा प्रिय होता है. तो नए पोते या पोती के आने की खबर से उसे खुशी भी मिलती है।
टीवी सीरियल ‘बालिका वधू’ में भी आप एक परंपरावादी और दकियानूसी दादी के किरदार में थी. अब फिल्म ‘बधाई हो’ में भी आप दकियानूसी दादी के किरदार में ही हैं?
- ‘बालिका वधू’ की दादी और ‘बधाई हो’ की दादी के बीच कोई समानता नहीं है. ‘बधाई हो’ में एक षहरी मध्यमवर्गीय परिवार की दादी है. पर महानगर में रहते हुए भी उसकी सोच पुरानी है. इसी के साथ वह खुषमिजाज भी है. जबकि ‘बालिका वधू’ की दादी राजस्थान के ग्रामीण अंचल की एक दबंग महिला है.वह पूरे परिवार पर अपनी पकड़ बनाकर रखती है.अपने विचारों के खिलाफ किसी को कुछ करने नहीं देती. परिवार के सदस्यों के कारनामों से वह षॉक्ड होती भी थी, और नहीं भी. दोनों दादीयों ने दुनिया देखी है. दोनों दादी का समाज से लड़ने का तरीका अलग है. ‘बालिका वधू’ की दादी अपनी परंपराओं, रीति रिवाजों को लेकर चलती है. ‘बधाई हो’ में भी वह अपने ट्रेडीषन नहीं छोड़ रही है. उसके पुराने ख्यालात भी हैं. पर समय के साथ वह एडजस्ट होती रहती है।
शहरी लोग अपने आपको अत्याधुनिक मानते हैं. तब अधेड़ उम्र में किसी औरत के पुन मां बनने पर शर्मींदगी क्यों होती है?
- मेरी समझ से महानगरों के लोग भी इतना अत्याधुनिक नहीं हुए है. वह सिर्फ दिखावे की जिंदगी जीते हैं. अपने पहनावो को लेकर जरूर अत्याधुनिक हो गए हैं. पर अभी भी वह भारतीय संस्कृति के साथ ही जी रहे हैं. हां! कुछ लोगों पर धीरे धीरे पाष्चात्य का असर हो रहा है. पर वह भी मध्यमवर्गीय में कम, उच्च वर्ग में ज्यादा है. अब लोग इंटरनेट के माध्यम से तरह तरह की फिल्में, तरह तरह के कार्यक्रम देखते रहते हैं. इसके बावजूद मेरा दावा है कि महानगर का दर्षक भी ‘बधाई हो’ की कहानी और इसके किरदार के साथ रिलेट करेंगे. क्योंकि फिल्म की कहानी लगभग हर घर की कहानी है. रिष्तों को लेकर हर घर में इसी तरह की कहानी होती है. ग्रामीण अंचल में हर घर के अंदर जो कुछ होता है, वह सामने आता है. पर महानगरों में लोग छिपा लेते हैं।
2006 के बाद अब 2018 में ‘बधाई हो’ में काम किया. इतना लंबा अंतराल क्यों?
- आप अच्छी तरह से जानते हैं कि मैं टीवी सीरियल ‘बालिका वधू’ में लंबे समय तक मैं व्यस्त थी. हर माह 26 दिन हमें शूटिंग करनी पड़ती थी. तो फिल्मों के लिए समय नहीं मिला. बीच में अमोल गुप्ते के साथ एक बच्चों की फिल्म ‘स्निफ’ में छोटा सा किरदार किया था।
ऐसा नहीं है कि मुझे फिल्में नहीं करनी है. मुझे फिल्में लगातार करनी हैं. मगर हम जिस उम्र के पड़ाव पर पहुंच गए हैं, उस उम्र की महिला कलाकारों के लिए अच्छे किरदार लिखे नहीं जाते.हालांकि पुरूष कलाकारों के लिए तो बहुत अच्छे किरदार लिखे जा रहे हैं. पुरूष पात्र फिल्म में घर से ऑफिस तक कहीं भी फिट हो जाते हैं. मगर समाज में भी अब तक औरतों की भूमिका बहुत संकुचित रही है. शायद इसी कारण हमारे फिल्म के लेखक निर्देशकों का ध्यान भी बड़ी उम्र की महिला पात्र लिखने की तरफ नहीं जाता. लेकिन पिछले दो ढाई वर्षों में सिनेमा तेजी से बदलाव हुआ है. अब क्या हुआ है कि लेखक व निर्देषकों की एक नयी आवाज आ गयी है. यह वह लोग हैं, जो कि जमीन से जुडे़ हुए हैं. इसी के चलते अब हमारी उम्र के महिला कलाकारों के लिए भी अच्छे किरदार लिखे जा रहे हैं. अब जिस तरह की अच्छी पटकथाएं लिखी जा रही हैं, उससे इस बात का अहसास हो रहा है कि शायद फिल्मकारों को अचानक महसूस हो चुका है कि अब फिल्म की स्क्रिप्ट अच्छी होनी चाहिए. इससे मेरी उम्मीदें बढ़ी हैं कि अब मेरे लिए भी किरदार लिखे जाएंगे. आने वाले समय में आप मुझे कई फिल्मों में अच्छे किरदार निभाते हुए देख सकेंगे. मुझे उम्मीदें बहुत हैं।
क्या कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?
- सच कहूं तो ‘बधाई हो’ के बाद कोई दूसरी फिल्म रिलीज होने के लिए तैयार नहीं है. बीच में एक फिल्म की बातचीत चली थी, पर उसका अंजाम अच्छा नहीं रहा. इसी तरह दो सीरियलों की भी बातचीत चल रही है. पर जब शूटिंग शुरू कर दूं, तब उसके बारे में बातचीत करना ठीक रहेगा.देखिए, मुझे तो अभिनय करना अच्छा लगता है. मुझे काम करते हुए बड़ा मजा आता है. सीरियल हो या फिल्म, हर जगह मैं पूरी मेहनत से काम करती हूं और हर जगह हर किरदार को बेहतर तरीके से निभाती हूं।