तान्हाजी- द अनसंग वॉरियर में आपका क्या किरदार है?
मैं इसमें छत्रपति शिवाजी के सेनापति तान्हाजी मालुसरे का किरदार निभा रहा हूं।
इस फिल्म में अपनी पत्नी काजोल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
काजोल के साथ एक बार फिर से काम करना ऐसा लग रहा था जैसे मैं घर पर ही हूं । तान्हाजी मेरी 100वीं फिल्म हैं। हम सबके सामने भी एक दूसरे से वैसे ही व्यवहार करते थे जैसे हम घर पर करते हैं तो मेरे लिए कुछ अलग नहीं था.
आपने और काजोल ने साथ में कई फिल्मों में काम किया है इस बार साथ काम करने का अनुभव अलग कैसे था?
मैंने और काजोल ने प्यार तो होना ही था, दिल क्या करें और यू मी और हम में साथ काम किया है । तान्हाजी में मैं एक साहसी मराठा मिलिट्री लीडर तानाजी मलूसरे का किरदार निभा रहा हूं वहीं काजोल ने मेरी पत्नी सावित्रीबाई मालुसरे का किरदार निभाया है। तो घर पर और सेट पर ऐसा कोई अंतर ही नहीं था (हंसते हुए) .
तान्हाजी आप की 100वीं फिल्म है, इसके बारे में आप क्या कहेंगे?
100वीं फिल्म के साथ-साथ यह मेरे लिए इसलिए भी स्पेशल है क्योंकि इसमें मैं एक ऐतिहासिक किरदार निभा रहा हूं । जब आप किसी ऐतिहासिक किरदार को निभाते हैं तो आपकी ये जिम्मेदारी होती है कि आप उस किरदार को गलत तरीके से ना दिखाएं।
कैसा यह सच है कि फिल्म में बहुत भारी स्टंट्स दिखाई गई है?
इस फिल्म की शूटिंग के दौरान मुझे बहुत बार चोट लगी है। अभी भी मेरे पैर में चोट है।
तान्हाजी में सैफ अली खान भी हैं, आप क्या कहना चाहेंगे इसके बारे में?
सैफ फिल्में उदय भान का किरदार निभा रहे हैं मैंने उन्हें 1999 में सैफ के साथ 'कच्चे धागे' किए थे । फिर हमने 2006 में ओमकारा किया। दुर्भाग्यवश हमें जितना काम करना चाहिए साथ में उतना काम नहीं किया है। तानाजी में सैफ के जैसे ही पर्सनैलिटी के इंसान की जरूरत थी। मुझे लगता है सैफ इस किरदार के लिए परफेक्ट है। मैं अपने को एक्टर्स के साथ काम करके बहुत एंजॉय करता हूं। मैं बस तान्हाजी के रिलीज होने का इंतजार कर रहा हूं।
तान्हाजी - द अनसंग वॉरियर आपकी 100वीं फिल्म है। एक अभिनेता के तौर पर इस इंडस्ट्री में आप का एक्सपीरियंस कैसा रहा?
सच कहूं तो मुझे ऐसा लग रहा था कि तान्हाजी मेरी पहली फिल्म है, बस इसमें दो जीरो और जुड़ गए हैं। मैं अब भी उतना ही नर्वस हूं, जितना अपनी पहली फिल्म 'फूल और कांटे' के रिलीज के वक्त था। आपको पता होगा क्योंकि आप वहीं पर थे सन एंड सैंड में जहां मेरी पहली फिल्म की उद्घोषणा की पार्टी रखी गई थी। एक अभिनेता के तौर पर मैं हर फिल्म में बराबर मेहनत करता हूं। यह नर्वसनेस सब में एक ही जैसा होता है चाहे वो आपकी कोई भी फिल्म क्यों ना हो। अगर मुझे अपनी फिल्मों की यात्रा को एक शब्द में बयां करना होगा तो मैं कहूंगा संतुष्टि। जब मैं अपनी पहली फिल्म कर रहा था तो मुझे यह भी नहीं लग रहा था कि वो पूरी होगी पर अब तो 99 फिल्में और बन गए हैं।
जब आप अपने करियर में पीछे मुड़कर देखते हैं तो कैसा महसूस होता है?
जब आप काम करते हैं तो आप प्रतिदिन कुछ ना कुछ सीखते हैं, आप अपनी गलतियों से सीखते हैं, दूसरों की गलतियों से सीखते हैं। आप हर फिल्म, हर किरदार से कुछ न कुछ सीखते हैं और मैंने इतने दिनों में जो सीखा है वह यह है कि अपने काम के प्रति ईमानदार रहो और सबसे महत्वपूर्ण बात अपने काम से मतलब रखो। अपने काम से प्यार करना बहुत जरूरी है।
भावी एक्टर्स को आप क्या कहना चाहेंगे?
सबसे पहले उनको यह निर्णय लेना होगा कि उन्हें स्टार बनना है या एक्टर बनना है। अगर आपको एक्टर बनना है तो आपका डेडीकेशन और आपकी प्रतिभा काफी है। पर यदि स्टार बनना है तो आपको पब्लिक रिलेशन पर ध्यान देना होगा, पार्टीज में जाना होगा सही समय पर सही वक्त पर दिखना बहुत जरूरी होता है इसके लिए। एक एक्टर स्टार बन सकता है पर यदि आप सिर्फ स्टार बनने पर ध्यान देंगे तो शायद आप एक्टर ना बन पाएं।
जब फिल्म के निर्देशक ओम राउत ने आपको स्क्रिप्ट सुनाई तो आपका पहले रिएक्शन क्या था?
जब डायरेक्टर ने मुझे यह स्क्रिप्ट सुनाई तो मुझे लगा कि तान्हाजी के बलिदान के बारे में पूरी दुनिया को बताना जरूरी है। ऐसे कई हिरोस हैं जिनके बारे में सबको नहीं पता। मुझे लगता है कि स्कूल में जो हमने उनके बारे में दो पैराग्राफ पढ़ा है सिर्फ वही पढ लेने से उनके साथ न्याय नहीं होगा। वो अच्छे से जानने के योग्य है। तान्हाजी जी की तरह बहुत से ऐसे हीरोस है जिनके बारे में हम नहीं जानते हैं। इस फिल्म से हम ऐसे ही हीरोज की कहानियों को दिखाने की शुरुआत कर रहे हैं।
आप पर यह इल्जाम लगाया जा रहा है कि आपने तान्हा जी में इतिहास को गलत दिखाया है इसके बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने बस ट्रेलर देखा और निर्णय पर पहुंच गए। हमने ट्रेलर में बहुत कुछ नहीं दिखाया है और सिर्फ ट्रेलर देखकर फिल्म के बारे में कुछ भी सोच लेना गलत है। हमने जो कुछ भी फिल्म में दिखाया है वह औथेंटिक है, इतिहासकारों से विचार-विमर्श करके दिखाया गया है। फिल्म को मनोरंजक बनाने के लिए सिनेमैटिक लिबर्टिस का प्रयोग किया है, पर उससे किसी के भाव को ठेस नहीं पहुंचेगा।
आपने बोनी कपूर की फिल्म 'मैदान' की शूटिंग की कोलकाता में। शूटिंग का एक्सपीरियंस कैसा रहा?
मैंने रेनकोट और युवा की शूटिंग भी कोलकाता में की थी और मैं एक लंबे समय बाद अब मैदान की शूटिंग कहां कर रहा हूं। मैं काफी लंबे वक्त से कोलकाता में शूटिंग करने का इंतजार कर रहा था। मैं यह जरूर कहूंगा कि 10 दिन जो मैंने मैदान की शूटिंग की है कोलकाता में , इस दौरान मैंने इतनी मिठाईयां खाई है कि मेरा 4 किलो वजन बढ़ चुका है।
'मैदान' में सैयद अब्दुल रहीम का किरदार निभाना कैसा रहा?
तान्हा जी की तरह मुझे लगता है सैयद अब्दुल रहीम भी एक हीरो हैं जिनके बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते। सैयद अब्दुल रहीम आधुनिक भारतीय फुटबॉल के आर्किटेक्ट है। जब वो भारतीय फुटबॉल टीम के मैनेजर और कोच थे तब हमारी टीम को 'ब्राजील ऑफ एशिया' का जाता था। आज के जनरेशन को इस बारे में कुछ नहीं पता। जब फिल्म के मेकर्स ने मुझे बताया था तो मुझे भी यह सारी बातें झूठी लग रही थी पर फ़िर मैंने उनके बारे में गूगल किया, पढ़ा और तब मैंने महसूस किया कि एक-एक शब्द उनके बारे में सच है।
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