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कई पुरस्कृत लघु फिल्मों तथा सफलतम राजस्थानी फिल्म ‘‘भोभर’’ के बाद फिल्म निर्देशक गजेन्द्र शंकर श्रोत्रिय एक अति बोल्ड फिल्म ‘‘कसाई’’ लेकर आए हैं, जो कि 23 अक्टूबर को ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘शेमारू मी बॉक्स ऑफिस’’ पर आने वाली है.
प्रस्तुत है ‘‘मायापुरी’’ पत्रिका के लिए गजेन्द्र शंकर श्रोत्रिय से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश...
अपनी अब तक की यात्रा के बारे में विस्तार से बताएं?
- मैं मूलतः उदयपुर निवासी हूं. मेरी स्कूल की पढ़ाई उदयपुर में हुई. फिर मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए जयपुर आ गया.मैने जयपुर के ‘मालवीया रीजनल इंजीनिरिंग कॉलेज (अब इसका नाम बदलकर एनआई टी) हो गया है. मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उदयपुर चला गया.कुछ दिन नौकरी की. फिर कुछ दोस्तों के साथ मिलकर भवन निर्माण से जुड़ गया. 1999 से जयपुर में ही हूं. उसके बाद मैं साफ्टवेअर कंसल्टिंग करने लगा. पिछले दस बारह वर्षों से फिल्मों का चस्का लगा हुआ है.
वास्तव में साफ्टवेयर कंसल्टिंग के दौरान ग्राफिक और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभालता था. एडिटिंग में मजा आने लगा, तो मैंने कुछ वीडियो बनाकर एडिट किए. फिर कुछ लघु फिल्में बनायीं. उन दिनों ‘पैशन फार सिनेमा डॉट काम’ काफी चर्चा में था. इससे अनुराग कश्यप सहित कई लोग जुड़े हुए थे. तो मैंने भी इसके लिए कुछ लिखा. कई दिग्गज फिल्मकारों से परिचय भी हुआ. यह लोग वन मिनट की फिल्मों का फेस्टिवल किया करते थे, जिसमें मेरी एक मिनट की फिल्म को पुरस्कृत भी किया गया था. इससे मुझे प्रोत्साहन मिला. फिर मैंने लगातार एक मिनट की लघु फिल्में बनाना जारी रखा. कई फिल्म फेस्टिवल में उन्हें भेजा. पुरस्कृत भी हुई. उसके बाद 2010 में मैंने जयपुर के ही दोस्त व कहानीकार राम कुमार सिंह की कहानी पर ही राजस्थानी फिल्म ‘‘भोभर’’ बनायी, जो कि 17 फरवरी 2012 को रिलीज हुई थी. इसमें राजस्थान के ही कलाकार थे और मुझे नुकसान नहीं हुआ था.
फिल्म की पृष्ठभूमि शेखावटी की थी. इसका विश्व प्रीमियर ग्रीस के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में हुआ था. फिल्म की काफी चर्चा हुई थी. इससे मेरा हौसला बढ़ गया. इस बीच में पटकथाएं लिखता रहा. मेरी एक पटकथा का चयन 2015 में महिंद्रा की ‘मुंबई मंत्रा’ की स्क्रीन राइटिंग प्रतियोगिता में भी हुआ था. इस पर फिल्म बनाने की मैंने काफी कोशिश की,पर फिल्म बन न सकी. हर फिल्म और हर पटकथा का अपना भविष्य होता है. उन्ही दिनों मेरी मुलाकात कहानीकार चरण सिंह पथिक से हुई थी.
जिनकी एक कहानी पर विशाल भारद्वाज ने फिल्म ‘पटाखा’ बनायी थी. मैंने उनकी कुछ कहानियां पढ़ी, तो मुझे लगा कि ‘‘कसाई’’ कहानी पर अच्छी फिल्म बन सकती है. मैंने पटकथा लिखी. मगर इसके लिए कोई निर्माता नहीं मिल रहा था. सभी की राय थी कि ग्रामीण परिवेश की कहानी वाली फिल्म को दर्शक नहीं मिलते. अंततः इस फिल्म को भी हमने अपने कुछ दोस्तों की मदद और अपने घर का पैसा लगा कर बनाया. मैंने इसकी पटकथा लिखी और निर्देशन भी किया है. अब यह फिल्म 23 अक्टूबर को ‘‘शेमारूमी बॉक्स ऑफिस’’ पर रिलीज हो रही है. इसके दूरदर्शन के अधिकार भी मेरे पास हैं. सिनेमाघर खुलने के बाद स्थिति ठीक रही, तो इसे सिनेमाघरों में भी रिलीज करने की मेरी योजना है।
आपने अब तक कितनी लघु फिल्में बनायी?
- मैंने तीन से चार मिनट की दस लघु फिल्में बनायी थी. उन दिनों ‘‘फिल्माका डॉट काम’’ नामक वेब साइट थी, वह हर माह प्रतियोगिता रखते थे और तीन से चार मिनट की अवधि की ही लघु फिल्में मांगते थे. पुरस्कृत फिल्म के निर्देशक को फिल्म बनाने के लिए कुछ धन भी देते थे. तो मैंने इसके लिए काफी लघु फिल्में बनायीं. एक फिल्म ‘‘सोलीट्यूड’’ थी, जो कि एक सिंगल मदर और उसके बेटे की कहानी थी. मैंने आधे घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘‘पिकनिक’’बनायी थी. यह एक थ्रिलर फिल्म थी. यह मेरी पहली लघु फिल्म थी, जो मैंने प्रशिक्षित तकनीशियनों के साथ मिलकर बनायी थी. यह कुछ फेस्टिवल’ में गयी थी. फिर मैंने 17 मिनट की लघु फिल्म ‘‘आई एम सॉरी’’ भी बनायी थी,जो कि पिता पुत्र के रिश्तों पर थी. से ‘‘शिकागो फिल्म फेस्टिवल’ में भी दिखाया गया था. ‘जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में यह पुरस्कृत भी हुई थी.फिर ‘आई एम सॉरी’ भी उत्कृष्ट तकनीशियनों को लेकर बनायी थी।
आपने चरण सिंह पथिक की कई कहानियों में से ‘कसाई’ को ही फिल्म बनाने के लिए क्यों चुना?
- यूँ तो पथिक जी की हर कहानी में सिनेमाई अपील होती है. उनकी अधिकतर कहानियों में यह बात है कि उन पर अच्छी फिल्म बन सकती है. मैंने इस कहानी को कुछ वर्ष पहले पढ़ी थी. पर यह कहानी मेरे साथ सदैव बनी रही. मुझे लगा कि इस पर फिल्म अवश्य बननी चाहिए. कहानी की सुंदरता यह है कि एक राजनीतिक नाटक होने के बावजूद यह एक थ्रिलर की तरह चलती है. इसमें रहस्यवाद भी है।
संक्षेप में फिल्म की कहानी बता सकेंगे?
- यह कहानी उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे राजस्थान के एक गांव की है. जहां दो परिवार हैं.एक परिवार भग्गी पटेल (अशोक बांठिया) का है, जो कि किंग मेकर है. सरपंच कौन बनेगा, इसमें उसकी अहम भूमिका रहती है.भग्गी पटेल की पोती मिश्री (रिचा मीणा) है. दूसरा परिवार सरंपच (वी के शर्मा) का है. सरपंच का बेटा लखन (रवि झांकल ), लखन की पत्नी गुलाबी (मीता) और लखन का बेटा सूरज (मयूर मोरे) है. लखन जल्द गुस्सा होने वाला और बिना सोचे समझे कोई भी कदम उठाने वाला इंसान है. सूरज का मिश्री संग प्रेम संबंध है. यह राज खुलने पर सरपंच और भग्गी पटेल के संबंध बिगड़ जाते हैं. जबकि अब तक यह सरपंच का चुनाव भग्गी पटेल की मदद से ही सदैव जीतते रहे हैं. परिणामतः लखन अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाता और गुलाबी के सामने ही सूरज की हत्या कर देता है. अब एक तरफ उसे इस कांड से निपटना है और दूसरी तरफ गांव की राजनीति गर्मा जाती है, तो वहीं तीसरी तरफ गुलाबी अपने बेटे के लिए न्याय की मांग कर रही है. उधर सरपंच और लखन यानी कि बाप बेटे के बीच ‘अल्टर इगो’ है. सरपंच बहुत शांत दिमाग के हैं, पर उनकी एनर्जी उनके बेटे लखन में नजर आती है. लखन बेटे की हत्या को अंधविश्वास के तहत भोपा (अल्ताफ खान) की मदद से दबाना चाहता है, तब गुलाबी विरोध में डटकर खड़ी हो जाती है।
फिल्म का नाम ‘कसाई’ क्यों? और इस फिल्म के माध्यम से आप कहना क्या चाहते हैं? इस सवाल पर निर्देषक गजेंद्र शंकरश्रोत्रिय कहते हैं-
- कसाई एक रूपक है. सूरज की मौत तो सरपंच के घर के अंदर ही होती है, पर कहानी बनायी जाती है कि पीपल के पेड़ पर रह रहे कसाई यानी कि भूत ने सूरज को मार दिया. इससे पूरे गाँव के अंदर दहषत का माहौल बनाकर स्थिति को संभालना चाहते हैं. यहां रूपक यही है कि हर इंसान के अंदर एक कसाई होता है,जिसका ‘‘ग्रे’’ शेड्स होता है. जैसे-जैसे उसके स्वार्थ से उसका टकराव होता है, इंसान के अंदर का जो कसाई है, इंसान के अंदर का जो ‘ग्रे’ हिस्सा है, वह अपना रूप दिखाने लगता है. इस रूपक के तौर पर हमने इसमें ‘कसाई’ का उपयोग किया है. इसके अलावा यह कहानी भारतीय राजनीति के बुनियादी स्तर की खोज करती है. क्योंकि कथा ग्राम-पंचायत चुनावों की बूंद से आगे बढ़ती है. इसे एक प्रेम कहानी के रूप में भी देखा जा सकता है, जो इंसानी महत्वाकांक्षाओं से हार जाता है. वहीं कहानी का मुख्य महिला पात्र गुलाबी सभी बाधाओं का सामना करते पितृसत्ता को चुनौती देती है और जो सही के लिए खड़ी होने की हिम्मत दिखाती है।
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फिल्म में भाषा कौन सी रखी है?
- इसमें बुन्देली और बृज भाषा को स्थान दिया है.फिल्म की कहानी करोली जिले की हैं. भरतपुर और करोली तो उत्तर प्रदेष की सीमावर्ती जिले हैं, जहां मथुरा व ग्वालियर की भाषा का पुट आता है।
कितने दिन में फिल्म की शूटिंग पूरी की है?
- हमने दो कैमरा सेट अप के साथ 17 दिन में इसकी शूटिंग पूरी की. हमने इस फिल्म को पथिक जी के गांव व उनके घर के अंदर फिल्माया है. इत्तेफाक की बात यह है कि मेरी पहली फिल्म ‘‘भोभर’’ की शूटिंग भी लेखक के घर में ही हुई थी और दूसरी ‘‘कसाई’’ की भी षूटिंग कहानीकार के घर में हुई।
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फिल्म में गाने कितने हैं?
- दो गाने हैं. लेकिन वह बैकग्राउंड में ही आकर चले जाते हैं. एक डेढ़ मिनट का गाना है, जो कि गुलाबी की मनःस्थिति को दर्शाता है. एक आधे मिनट का वहां का फोक संगीत लांगुरिया है. वहां पर कैला देवी का बहुत बढ़िया मंदिर है. उस मंदिर में माता जी के भजन लांगुरिया के रूप में बजते हैं।
इसके बाद की क्या योजना है?
- कई स्क्रिप्ट लिखी हुई है. काम तो कर रहा हॅूं.देखते हैं, कब किस पटकथा पर फिल्म बन पाती है।
- शान्तिस्वरुप त्रिपाठी