INTERVIEW: ‘‘अगर आपको इतिहास की जानकारी नहीं हैं तो आप भी वही गलतियां करोगे जो इतिहास में हुई’’ - तिग्मांशु धूलिया By Mayapuri Desk 21 Jul 2017 | एडिट 21 Jul 2017 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर हासिल, चरस, साहब बीवी और गैंगेस्टर, बुलेट राजा तथा पान सिंह तोमर जैसी फिल्मों के सर्जक अभिनेता, लेखक निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की एक अलग सी फिल्म ‘ राग देश रिलीज हुई है। राज्य सभा टीवी द्धारा निर्मित ये फिल्म आजादी से पहले एक ऐसी घटना पर आधारित हैं जिसका इतिहास में कहीं कोई जिक्र नहीं है। फिल्म को लेकर तिग्मांशु से हुई एक मुलाकात। फिल्म का टाइटल राग देश कुछ के बारे में क्या कहना है? जब फिल्म पर काम हो रहा था तो इसके टाइटल के बारे में भी सोचा था। उन दिनों वॉर फिल्में ललकार, आक्रमण या हमला आदि नामों से जानी जाती थी लेकिन इस तरह के नाम2017 में ठीक नहीं लग रहे थे। फिर सोचा कि फिल्म की कहानी क्या है। कहानी उस वक्त की है जब आजाद देश का जन्म हुआ था यानि देश गान हुआ, टेंग ऑफ द नैशन। देश का गीत है ये। फिर याद आया कि हमारे इंडियन क्लासिक में भी तो एक राग है देश राग। बस वहीं से दिमाग में आया कि क्यों फिल्म का नाम राग देश रखा जाये। राज्य सभा टीवी से कैसे जुड़ना हुआ ? राज्य सभा के सीईओ गुरदीप सिंह जो फिल्म के प्रोडयूसर हैं, आकर मिले थे। वे मेरी फिल्में देखते रहे हैं। दरअसल राज्य सभा का एजेंडा साल में दो तीन फिल्में बनाने का है। उनकी एक कमेटी है जिसके छह सात मेंबर्स होते हैं। उनमें जावेद अख्तर साहब भी हैं। वहां डिसाइड हुआ कि उन फिल्मों के लिये नेशनल अवार्ड विनर डायरेक्टर्स चाहिये। उनमें गुरदीप सिंह जी ने मुझे भी चुना। उन्होंने मुझे दो सब्जेक्ट दिये एक सरदार पटेल था और एक ये, लेकिन सरदार पटेल केतन मेहता बना चुके हैं मैं उस वक्त उनका एडी हुआ करता था। मैने ये सब्जेक्ट चुना। वो इसलिये क्योंकि मुझे ऐसी फिल्म बनाने का फिर कभी मौका नहीं मिलने वाला था। अगर मैं इस तरह का सब्जेंक्ट किसी के पास लेकर भी जाता तो मुझे पागल समझा जाता। आपको लगता है कि राग देष टाइटल का मतलब हर कोई समझ पायेगा? इससे पहले दंबग का मतलब भी कहां पता था, फिल्म का प्रमोशन हुआ तो लोगों को पता चला। इस फिल्म का प्रमोशन भी पिछले एक महिने से चल ही रहा है। इस विषय पर भी तो कई फिल्में बन चुकी है, उनमें श्याम बेनेगल की नेता सुभाष चंन्द्र बोस भी थी? अगर श्याम बेनेगल की बात की जाये तो उन्होंने नेता जी की बायोपिक बनाई थी, ये बायोपिक नहीं है यानि ये किसी व्यक्ति विशेष की कहानी नहीं है ये इतिहास के उस चैप्टर की बायोपिक है जिसमें बताया गया है नेता जी और उनकी आजाद हिन्द फोज, जिसकी लड़ाई सकेन्ड वर्ल्ड वॉर में ब्रिटिश आर्मी से हुई थी, और उन पर गद्दार और देश द्रौही होने के चार्जिज लगे थे। जिसे फेमस रेडर्फोट ट्रायल कहा जाता है। फिल्म उस घटना पर बेस है। आप इतिहास के स्टूडेन्ट रहे हैं। क्या आपको इस घटना का पता था? बिलकुल नहीं। मैं तो आजादी के बारे में भी यही समझता था कि ये हमें महज आजादी जिन्दाबाद के नारे लगा लगा कर मिली है या अंग्रेज सेकेन्ड वर्ल्ड वॉर के बाद इतना थक चुके थे कि उन्होंने सोचा होगा कि अब हिन्दुस्तान जैसे बड़े देश को कौन संभाले, इसलिये उन्होंने यहां से चले जाने का मन बना लिया था। लेकिन जब मैने रिसर्च की तो पता चला कि हिन्द फोज में पेंतालिस हजार फोजी थे जिसमें छब्बीस हजार युद्ध में मारे गये थे। तब पता चला कि जिस आजादी का हम मजाक उड़ा रहे हैं उसके लिये कितना खून बहाया गया था। इस तरह की फिल्म में किरदारों पर बहुत मेहनत की जाती है। इस फिल्म में नेताजी का किरदार निभाने वाला इतना सटीक एक्टर कंहा से ढूंढा? दरअसल मेरी एक और फिल्म है ‘यारा’ जो छह अक्टूबर को रिलीज होने जा रही है। उसकी कहानी चार ऐसे लोगों की कहानी है जो गैंगस्टर हैं। उसमें एक किरदार केनी कर रहा है जो आसाम का है। मैने उसे बुलाया औेर उसका मेकअप करवाया, ड्रेसिस पहनाई तो वो बिलकुल परफेक्ट लगा, दरअसल वो आसाम का है इसलिये लुक के अलावा उसकी टोन में भी बंगलीपन था। लिहाजा वो नेताजी के लुक में बिलकुल परफेक्ट लगा। एक्टर भी वो बहुत बढ़िया है। फिल्म कहती क्या है? फिल्म क्या, इतिहास बताता है कि उससे आपको सीखना है कि अगर आपको इतिहास की जानकरी नहीं है तो जो गलतियां इतिहास में की गई हैं वही आप भी करोगे। हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Latest Stories Read the Next Article