दुनिया में दर्द है, मुसीबतें हैं , और उलझने हैं, ऐसे में एक बार फिर चिरयुवा अभिनेता शेखर सुमन अपने नए शो ‘इंडियाज लाफ्टर चैम्पियंस’ में बतौर जज दिखाई दे रहे हैं। जाने माने लेखक डॉक्टर हरविंदर मांकड़ ने उनसे एक खास मुलाकात की, वो शानदार लम्हे कवर स्टोरी के रूप में आपके सामने पेश है...
कहते हैं कोई कोई शख्श अपनी काया, अपना वजूद , अपनी खूबसूरती उस खुदा से, ईश्वर से खुद लिखवा कर आता है. अनुभव, उत्सव जैसी फिल्मो से अपना फिल्मी सफर शुरू करने वाले जाने माने अभिनेता, होस्ट शेखर सुमन , अपने आप में ऐसी ही एक मिसाल हैं। उम्र को धत्ता बताने वाले देवानंद, रेखा, हेमा मालिनी जैसे एवर ग्रीन अभिनेता के तौर पर वो किसी भी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इंडियाज लाफ्टर चैम्पियंस एक बार फिर नए आकार, नए फ्लेवर और नए अंदाज में सुपर हिट हो रहा है। एक कॉमेडी शो को जज करना कितना मुश्किल काम है यह वही बता सकते है जिसे कॉमेडी की गहरी समझ हो। क्योंकि कॉमेडी में कोई भी एक पंच , आपको सुपर स्टार बना सकता है और कोई एक लूज लाइन आपको शो से बाहर भी कर सकती है। कुछ खट्टी, कुछ मीठी, बातों का सिलसिला लेकर हरविंदर मांकड़ ने किये दस सवाल। यानी दस का दम। आइये देखते है की वाक्पटुता में माहिर शेखर सुमन कैसे सहज ऐसी गहरी बात कर जाते हैं, जो बड़े बड़े फिलास्फर नहीं कह पाते ।
ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती
’शेखर जी, एक ऐसा शो जो पहले सीजन में सुपर हिट रहा, इतने वर्षो वैसा कुछ दोबारा देखने को मिला भी नहीं। आज वर्षो बाद एक बार फिर वही अंदाज, बल्कि उससे भी ज्यादा माहिर खिलाडी लेकर यह शो इंडियाज लाफ्टर चैम्पियंस फिर से आया है, आपको तब और अब में क्या अंतर दिखाई देता है ?
हरविंदर जी , पहला सवाल ही आपने वो किया है कि जैसे गागर में सागर भर सकता है। मुझे यही लगता है की ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, वो एक जगह से दूसरी जगह चली जाती है। पर उसका तेज , उसकी चमक, पूरी शानो शौकत के साथ वही रहती है। जब मैं कॉमेडी शो जज नहीं कर रहा था तो फिल्में कर रहा था। जिंदगी का चक्र ऐसा है! जिस हँसी खुशी के साथ यह शो तब आया था, उसी शानदार एहसास के साथ यह दोबारा नए फ्लेवर में आया है। और मैं जहाँ तक समझता हूँ , आज इसकी ज्यादा जरूरत है। कोरोना के बाद आँसू ही थे, जो आँखों से होठो तक चिपके दिखाई देते थे, अब इस शो के माध्यम से आँखों में वापिस चमक, और होंठो में मुस्कान लौट आयी है। सौभाग्य है मैं एक ऐसे शो का हिस्सा बन पाया जिसमे लोगो के चेहरे पर एक बार फिर मुस्कराहट , कहकहे और हसीं देखी जा सकती है।
चिरयौवन का दस्तावेज
’देवानन्द, रेखा, हेमा मालिनी के बाद एक मात्र एवर ग्रीन चिरयुवा , खूबसूरत अभिनेता सिर्फ और सिर्फ आप हैं। कैसे कोई हमेशा तरोताजा, जवान और उत्साही नजर आ सकता है. इस खासियत का राज बता दीजिये, क्योंकि जवानी सबको भाति है और हर कोई आप जैसा हैंडसम दिखना चाहता है।
हा .. हा .. यह सब लोगों का प्यार है. अगर आप प्यार और मोहब्बत से जुड़े रहें, पूरे बर्ह्माण्ड से जुड़े रहे, उसकी बनायीं रचनाओं से जुड़े रहे, ईश्वर के स्नेह और छत्र छाया का आभास पाते रहें तो यह ऊर्जा, स्फूर्ति या तेज जो भी आप कह रहे हो हरविंदर, वो इंसान के चेहरे पर दिखाई देने लगती है। यह कुदरत की रौशनी है, जो साफ दिल से निकल कर आपके चेहरे और वजूद को पूरी दुनिया में देखने के काबिल बना देती है। हम उम्र के दायरे में फसने लगते हैं और खुद को और दूसरों को उम्र के चश्मे से देखने लगते हैं। यह गलत है. उम्र कुछ भी हो.अगर आपकी रूह, आपकी सोच , आपकी काम करने की ललक युवा है तो हर उम्र में आप छा सकते हैं, कमाल कर सकते हैं। लोग आपको चाहते हों , आप लोगों को चाहते हों , आपकी कर्मठ सोच हो , सकारत्मक हो तो, आपके अंदर ऐसी रौशनी पैदा होती है जो फिर कभी बुझती नहीं है। लोगों के प्यार ने मुझे ऐसा बनाया है, और अगर कोई आखिर है तो मैं आपकी दुआओं के सदके तब तक ऐसा ही दिखूंगा, ऐसा ही बोलूंगा, ऐसा ही नजर आऊंगा। मोहब्बत जो सामने से मिलती है वो एक ऐसी ताकत है जिसे कोई टॉनिक पूरा नहीं कर सकता. मोहब्बत देते रहिये, आपका शेखर सुमन, आपकी खिदमत में हमेशा हंसने हंसाने और आपका मनोरंजन करने आता रहेगा।
काबलियत से ही सफलता
’बेहद खूबसूरत सोच है आपकी शेखर जी, चलिए अगले सवाल की तरफ रुख करते हैं, लोगों में अक्सर उत्सुकता रहती है कि, जो लोग लाफ्टर चैंपियंस शो में प्रतिभागी हैं, उन्हें आप खुद चुनते हैं या वो चुन कर पहली बार आपके सामने सीधा स्टेज पर आते हैं?
जी, उसी समय पहली बार ही सुनता हूँ. मैं यह भी बताना चाहूंगा की इनका आंकलन किन चीजों के आधार पर किया जाता है। पहला यह होता है की वो स्टेज पर कितने सहज हैं। कितनी सरलता से वो अपनी बात कह पातें हैं। वो कितने स्वभाविक हैं। फिर देखा जाता है की उनके अंदर आत्मविश्वास कितना है। फिर उनका लुक कैसा है, आज कल यह देखना भी जरूरी है उनकी लुक अपने आप में प्रेजेंटेबल होनी चाइये। इसके बाद आ जाइये की उनका कंटेंट , तथ्य कितना मजबूत है। उनका ंजजपजनकम क्या है। और सबसे बड़ी बात की उनकी टाइमिंग कितनी परफेक्ट है। कॉमेडी में टाइमिंग का बहुत महत्व है। और आखिरी चीज है डिलीवरी , यानी वो जो बात कह रहा है वो श्रोता , या दर्शकों तक किस रूप में पहुँच रही है। यह चीजे हैं जो एक प्रतिभागी को परफेक्ट प्रतिभागी बनाती है।
हम पहली बार उसी समय इसे देखते हैं और एक एक्सरे मशीन की तरह यह सब हमारे दिलो दिमाग पर छपता चला जाता है। में इन सब चीजों के मापदंड पर परखता हूँ, देखता हूँ, सोचता हूँ और फिर , मेरे अंदर का शेखर सुमन , उस पूरी प्रस्तुति को आंकलन करके अपने विचार और नम्बर देता है। क्योंकि हम जो कहते है, वो दर्शक भी देखा रहे होते हैं, हमारी बात और दर्शक की बात जब एक आधार पर सामान होती है तो ही सही मायने में हम जज बन कर सही न्याय कर पाते हैं।
फ्लेवर और तेवर
’इस बार के इंडियाज लाफ्टर चैम्पियंस का फ्लावर कुछ हट के लग था है। आपका अंदाज कुछ हट के लग रहा है। इसका कोई खास कारण है?
फ्लेवर और तेवर यह हमेशा तीखे और हट के होने चाहिए। ताकि सामने वाले को स्वाद भी आये, मजा भी आये और उसे लगे की कॉमेडी में कुछ ऐसा दिखा है जैसा उसने पहले कभी नहीं देखा। इस बार हमने कोशिश यही की है की जितने भी प्रतिभागी आएं वो कॉन्टेंट नया और यूनीक लेकर आएं। ऐसा कैसा शूरवीर है तू, जो सबको रुला दिया
असली जाबांज वही शख्स है जिसने, रोते को हसा दिया
आओ यह नेक काम करें, आओ मुस्कान बांटे , आओ सबको सहज गुदगुदाएं , आप कुछ पल एक साथ मुस्कराएं , आओ.. खुशिया घर ले जाएं.
इश्क खुदा की देन है
’जिंदगी में आपके लिए सबसे ज्यादा जरूरी और महत्वपूर्ण क्या है , इश्क, इनकम या ईगो?
इश्क!!, मेरे ख्याल से इश्क से दुनिया शुरू हुई थी और इश्क के सहारे ही चल रही है। अगर आपको अपने काम से इश्क है, अगर आपको लोगों से इश्क है, अगर आपको अपने आपसे इश्क है, तो हर दिन उत्सव हो जाता है। मेरे करियर की शुरुआत ही इश्क और ‘उत्सव’ से हुई थी, इसलिए आज तक उत्सव ही मना रहा हूँ. इश्क खुदा की देन है, इश्क खुदा की रेहमत है, इश्क खुदा की बरकत है, अगर इश्क रूहानी है तो। जिस्मानी इश्क तो जिस्म के साथ ढल जाता है, मगर रूहानी इश्क आपको आपके काम में सफल करता है, आपको मंजिल तक पहुंचाता है।
रही बार ईगो की तो, ईगो हमेशा आपको गिराती ही है।
इतनी सी बात समुन्दर को खल गयी !
इक कागज की कश्ती
मुझ पे कैसे चल गयी !!
सो, जिंदगी में हरविंदर, ईगो आपको डुबो देगी और इश्क आपको किनारे पर पहुंचा देगा। इश्क में डूबे रहो और देखो हर लम्हा, हर सोच, हर आपका कदम आपको खुशी और मुस्कराहट के साथ मंजिल के करीब लेता जायेगा।
फिल्म और रंगमंच मेरी आत्मा में बसे हैं
’फिल्मो, रंगमंच , वेब सीरीज या टी वी , आपने सभी जगह अपना अस्तित्व दिखाया है। सबसे सहज आप खुद इनमें से किस जगह पाते है ?
देखिये, हरविंदर, जैसे आपने भी बहुत काम किया है। कार्टूनिस्ट भी हो, लेखक और डायरेक्टर भी हो , मगर जो मजा आपको मोटू पतलू बना कर आता है, शायद ही किसी और चीज में आता होगा। ऐसे ही मेरी शुरुआत फिल्मों से हुई थी। मैंने चालीस के करीब फिल्में की हैं. और आज भी कर रहा हूँ। बंद अँधेरे ऑडोटोरियम में पैसे देकर जो दर्शक आपको देखने आया है तो समझिये आपका दर्जा वही ऊपर उठ गया। फिल्मो का मिजाज टी वी से बहुत भिन्न होता है। ऐसे समझिये की फिल्म देखने गए दर्शक का पूरा ध्यान आप पर केंद्रित रहता है. बंद अँधेरे ऑडोटोरियम में कोई दर्शक पैसे खर्च के आपको देखने आया है तो समझिये आपका दर्जा वहीं ऊँचा उठा गया। क्योंकि बहाना वो ऐसा नहीं करेगा की स्विच ऑन कर दिया या स्विच ऑफ कर दिया। बंद कमरे में तीन घंटे तक आप पूरी तवज्जो से फिल्म को देखते हैं तो उसका रुतबा और स्वाद सबसे उम्दा अपने आप ही हो जाता है।
थिएटर में एक समूहिक ऊर्जा रहती है उसका आनद सबसे अलग है।अगर सभी लोग ताली बजाते है तो आपको भी एक अलग एहसास होता है और आपके हाथ भी खुद ब खुद ताली बजाने लगते हैं। यह सम्मोहन फिल्म ही दे सकती है। बड़े पर्दे का सितारा होना अपने आप में किसी कलाकार को भी एक अलग संतुष्टि देता है। टी वी या वेब तो लगभग एक जैसे ही हैं, दोनों टी वी पर ही देखने पड़ते हैं।
हाँ, रंगमंच अपने आप में एक अलग फ्लेवर लिए रहता है. सामने बैठे दर्शक आपको जब अभिनय करते साक्षात् देखते हैं तो उनका असर अभिनेता और दर्शक दोनों के लिए अविस्मरणीय होता है।
टी वी और वेब भी शर्धापूरन हैं क्योंकि वहां भी घर घर जाकर दर्शको के करीब होने का मौका मिलता है।
सबसे पहला लेट नाईट शो
’अगर में थोड़ा पीछे जाऊँ तो दूरदर्शन के इलावा जब प्राइवेट चैनल शुरू हुए , शायद 1998 में मेरी पसंद का, और लगभग सभी की पसंद एक नए अंदाज का भारत का पहला लेट नाईट रियलिटी टॉक शो आया था, वो था मूवर्स एंड शेकर्स। जो आपने होस्ट किया था। आज तक उसकी कमी महसूस की जाती है। क्या आप उस शो को दोबारा शुरू नहीं कर सकते ?
हरविंदर , तुम्हारे मुँह में घी और शक्कर , तुमने वो कह दिया जो वाकई सच होने जा रहा है। हिंदुस्तान का सबसे पहला लेट नाईट शो होने का खिताब उसे ही दिया गया था. क्योंकि उससे पहले नो बजे तक टी वी लगभग बंद हो जाता था। मगर मूवर्स एंड शेकर्स ने इतिहास बदल डाला। जिसमे मोनोलोग भी हुआ करता था, व्यंग भी होता था और बिल्कुल अलग तरीके का इंटरव्यू मैं लिया करता था। अब वाट आ गया है की उसे दोबारा दर्शको के सामने लाया जाये और पहले से भी भव्य तरीके से वो आने जा रहा है। एक बार फिर शेखर सुमन का अलग अंदाज होगा, हस्तियों से मुलाकात होगी और वो सब, जिसकी तमन्ना आप कर रहे हो, वो सब लेकर हम बहुत जल्दी आपके टी वी पर अवतार लेंगे. बस थोड़ा इंतजार का मजा लीजिये।
हर दौर में कसॅमेडी का अलग अंदाज होता है
’गोप, आगा,मेहमूद, केश्टो मुखर्जी ,राजेंदर नाथ, जॉनी वाकर, देवेन वर्मा, और आजकल के हीरो की कॉमेडी और आपके लाफ्टर चैम्पियंस में आज के दौर के कॉमेडियन में क्या फर्क महसूस करते हैं आप?
दोनों अपनी जगह अपने आप में लाजवाब थे। हर दौर का अलग दर्शक होता है। हर दौर का अलग वातावरण होता है। समय बदलता है। दर्शक और श्रोता बदलते हैं। उनकी पसंद, नापसंद बदलती है। उस दौर में स्क्रिप्ट दी जाती थी और लगभग सभी कॉमेडियन या हास्य कलाकार उसे अपने एक खास अंदाज में निभाते थे। वो अपने दायरे से बाहेर नहीं निकलते थे। एक इमेज जो किसी के साथ बांध दी जाती थी ,वो कलाकार बरसों बरस उसी इमेज और उसी स्टाइल को निभाता रहता था।
मगर आज का जमाना नए प्रयोगों का है। आज का कंटेंट भाषा और बदलती दुनिया के हिसाब से प्रेक्टिकल हो गया है। खामियां तब भी थी, खामियां आज भी हैं। मर्यादा का तब बहुत ख्याल रखा जाता था। आज , कभी कभी कुछ लोग कॉमेडी के नाम पर मर्यादा लांघ जाते हैं. हालांकि वो अच्छी बात नहीं है। हास्य ऐसा होना चाहिए जिसे हिंदुस्तानी परिवार एक साथ बैठकर देख सके।
सभी अपने अपने फन में माहिर होते हैं , तभी मंच तक पहुँचते हैं. बस मेरा एक ही सुझाव है की मर्यादा का ख्याल रखें, आपकी भाषा, आपका कहने का अंदाज कभी भी गलत और अश्लीलता की वो बारीक रेखा न लाँघ जाये, की परिवार को बच्चों से नजरे चुरानी पड़ें , अगर इसका ख्याल रखोगे तो आपको चमकने से कोई नहीं रोक सकता।
सब्र और मेहनत से ही सफलता
’आज की पीढ़ी बहुत जल्दी हिम्मत हार जाती है,युवा सफल नहीं होते तो गलत रास्ते की तरफ बढ़ जाते हैं। क्या आप नए लोगों को कोई सन्देश देना चाहेंगे ?
सब्र बहुत जरूरी है। सिर्फ अपनी शक्ल देखकर हीरो बनने चल देना आज के युग में मूर्खता है। क्योंकि सामने बहुत बड़ा कॉम्पिटिशन है। आपको अपने आपको सिद्ध करना है। तो जिस भी लाइन को आप चुने उसकी पूरी तैयारी करके आएं, और चार या पांच साल का एक लॉक्ड पीरियड सोच कर आएं की इतने टाइम में कोशिश करूंगा , अगर कामयाब हो गया तो बहुत बढ़िया, वरना शायद मेरे भाग्य में कोई और लाइन लिखी है। इस सोच के साथ जब आप आएंगे तो पॉजिटिव रहेंगे और एक मकसद समझ कर कोशिश करेंगे। हार और जीत खुदा के हाथ है. किस्मत ने जहाँ आपको पहुंचान है, वो वहीं पहुंचाएगी। आपका काम कोशिश करना है। बाकि ऊपर वाले पर छोड़ दीजिये. निराश मत होइए , और प्रतिभा के साथ आइये,
दुनिया में हर काम हर किसी के लिए नहीं बना होता। इस बात पर यकीन रखिये। हौसला मत छोड़िये और कोई गलत रास्ता अखित्यार मत कीजिये। आपके माता पिता की बहुत सारी उमीदें आप से जुडी होती है। अच्छे इंसान की तरह कोशिश कीजिये। सफल हुए तो मुस्कराइए, असफल होइए तो भी मुस्कराइए और सोचिये एक दरवाजा बंद हुआ तो ईश्वर दस नए दरवाजे जरूर खोलेगा। यकीनन खोलेगा।
शिक्षा सबसे जरूरी है
’शेखर जी, अगर कोई एक चीज जिसे आप हिन्दुस्तान में बदलना चाहें तो वो क्या बदलना चाहेंगे?
मेरे दोस्त, में चाहूंगा की मेरा हर हिंदुस्तानी शिक्षा को ग्रहण करे। पूरी दुनिया में मेरे वतन जैसा कोई वतन नहीं है। मेरे वतन के लोगों जैसे लोग नहीं हैं। मिलनसार, मेहनतकश, बस अगर दुःख होता है तो इसी बात का की अभी भी काफी आबादी शिक्षा से वंचित है। अगर मेरे अंदर वो ईश्वर, वो परवरदिगार एक शक्ति दे की मैं कुछ बदल सकू और बस सभी को स्कूल जाने को कहूंगा.शिक्षा सरल और उनकी पहुँच तक पहुंचाऊंगा। ताकि अपने सिमित साधनों में भी वो पढ़-लिख सकें। ताकि उन्हें कोई शोषित न कर सके। बिना पढ़े किसी कागज पर हस्ताक्षर न करें.कोई उन्हें बेवकूफ न बना सके। वो तरक्की करें, आगे बढ़े। और अभावों से भरे जीवन से निजाद पा जाएं।
उनकी आने वाली पीढ़ी शिक्षित और सक्षम हो ताकि मैं एक बार फिर गर्व से कह सकूं
सारे जहां से अच्छा , हिन्दुस्तान हमारा
मायापुरी मेरी पारिवारिक पत्रिका
’फिल्मी दुनिया में अगर परिवार की तरह कलाकारों और सितारों की जिंदगी के करीब कोई पत्रिका गयी है तो वो मायापुरी है, पिछले पचास वर्षों से, यानि आधी सदी से यह हफ्तावार पत्रिका, आपके हर कदम की सहभागी रही है. आपको मायापुरी से कैसा लगाव महसूस होता है ?
बचपन से अगर फिल्मी पत्रिकाओं की बात करें तो एक दो मशहूर बड़े ग्रुप की फिल्मी मैगजीन ही नजर आया करती थी। मगर वो अपने आपको आसमान के पार दिखती थी जिस तक हर रीडर या नए अभिनेता का पहुँच पाना संभव नहीं लगता था। अचानक मायापुरी हम लोगों की जिंदगी में आ गयी। मायापुरी ने कलाकारों और उनके प्रशंशकों के बीच की दूरी को मिटा दिया। ऐसा लगा की आप हाथ बढ़ा के सितारों को छू सकते हैं. उनसे बात कर सकते हैं। कलाकार और दर्शक के बीच का जो रिश्ता था वो मायापुरी ने पारिवारिक बना दिया।
इससे पहले आम आदमी की कलाकारों तक पहुँच नहीं थी। वो सितारों की तरह बहुत दूर दिखाई देते थे। मायापुरी ने उन्हें फैंस का दोस्त बना दिया।
मैं आज तक डिजिटल मायापुरी को हर हफ्ते पढ़ता हूँ। क्योंकि इसमें कभी कोई झूठी, गॉसिप या लॉजिक से परे बात नहीं होती। सरल, सीधी, और पुख्ता बात होती है. जिससे सही जानकारी दर्शक और फैन तक पहुँचती है। जोकि आज के युग में बहुत जरूरी है।
होस्ट एंड लेखकः-हरविंदर मांकड़