हमारी फिल्म 'सांड की आंख' नरगिस दत्त की फिल्म 'मदर इंडिया' को ट्रिब्यूट है- तुषार हीरानंदानी By Shanti Swaroop Tripathi 21 Oct 2019 | एडिट 21 Oct 2019 22:00 IST in इंटरव्यूज New Update Follow Us शेयर तुषार हीरानंदानी ने 2004 में फिल्म ‘मस्ती’ से बतौर लेखक बॉलीवुड में कदम रखा था. उसके बाद ‘क्यां हो गया ना’, ‘डैडी कूल’, ‘अतिथि तुम कब जाओगे’, ‘हाउसफुल 2’, ‘ग्रैंड मस्ती’, ‘एक विलेन’, ‘एबीसीडी’, ‘टोटल धमाल’ और ‘हाउसफुल 4’ जैसी फिल्में लिखते रहे हैं. सोलह साल के अपने करियर में अब पहली बार वह निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखते हुए फिल्म ‘सांड की आंख’ लेकर आ रहे हैं। निर्देशक बनने में सोलह साल का वक्त लग गया? - जब लेखन की दुकान ठीक ठाक चल रही थी, तो उसे बदलना ठीक नहीं समझ रहा था. सच यह भी है कि मैं लगातार निर्देशक बनने का प्रयास कर रहा था, मैंने कुछ सब्जेक्ट पर काम भी किया था.कलाकारां के चयन पर भी काफी समय लगाया, पर अंततः मुझे ही मजा नहीं आया, तो आगे बात नहीं बढ़ी. कई बार ऐसा हुआ, जब मैं पीछे हट जाता था.पता नहीं क्यों लास्ट मोमेंट में कहानी में मेरी रूचि खत्म हो जाती थी. सच कहूं तो मेरे अंदर धैर्य बहुत कम है. फिर भी इस फिल्म में मैंने कहानी में अपना धैर्य खत्म नहीं होने दिया है। बतौर लेखक आप हमेशा ‘मस्ती’ और ‘ग्रैंड मस्ती’ जैसी सेक्स कॉमेडी वाली फिल्में लिखते रहे हैं. मगर निर्देशक के तौर पर आपने ‘सांड की आंख’ एकदम अलग तरह की फिल्म चुनी? - यह आर्ट फिल्म नहीं है. बल्कि इमोशंस, संवाद, फन मोमेंट के साथ यह एक पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म है। चंद्रो तोमर व प्रकाशी तोमर की कहानी के संबंध में आपको जानकारी कैसे मिली? - पांच साल पहले की बात है. उस वक्त मैं ‘बालाजी मोशन पिक्चर्स’ में हेड ऑफ स्टोरी डेवलपमेंट’ के रूप में कार्यरत था और मेरी पत्नी ‘धर्मा प्रोडक्षंस’ में किएटिव हेड के रूप में कार्यरत थीं. मैं फिल्मों की कहानी व पटकथा लेखन में व्यस्त था. अच्छे पैसे मिल रहे थे. मैं तो सबसे अधिक पैसा पाने वाला लेखक था.मैं बहुत आराम की जिंदगी जी रहा था.उन्हीं दिनों मैंने आमिर खान का शो ‘सत्यमेव जयते’देखा. मैं इसका हर एपिसोड देखता था. क्योंकि इसके हर एपिसोड में प्रेरणादायक कहानी होती थी. एक एपिसोड में विश्व प्रसिद्ध शॉर्प शूटर दादीयों चंद्रो तोमर व प्रकाशी तोमर की कहानी देखी, तो मझे लगा कि इन पर फिल्म बननी चाहिए. मैंने अपनी पत्नी से कहा कि मैं इनकी कहानी वाली फिल्म निर्देशित करने की सोच रहा हूं. मेरी पत्नी ने मेरा हौसला बढ़ाया.हमने काम शुरू किया. इस फिल्म के निर्माण में काफी समस्याएं आयी. पूरे पांच वर्ष बाद अब यह फिल्म सिनेमाघरों में दीवाली के अवसर पर पहुँचने वाली है। इस फिल्म के साथ अनुराग कश्यप और रिलांयस इंटरटेनमेंट कैसे जुड़़ा? - वास्तव में अनुराग कश्यप जब भी मुझसे मिलते थे, तो एक ही सवाल करते थे कि मैं निर्देशक कब बन रहा हूं. क्योंकि मैं जिस तरह की फिल्में लिख रहा था, वह उन्हें पसंद नहीं था. जब उन्हें पता चला कि मैं चंद्रो तोमर व प्रकाशी तोमर की कहानी को परदे पर लाना चाहता हूँ, तो वह निर्माता के तौर पर हमसे जुड़ गए. फिर रिलायंस इंटरटेनमेंट भी हमारे साथ जुड़ गया. कलाकारां के चयन में काफी समय लगा, पर आज मैं कह सकता हूं कि तापसी और भूमि से बेहतर कलाकार हो ही नहीं सकते। आपने कहा कि समस्याएं आयीं? - जी हाँ! मारी फिल्म ‘सांड की आंख’ की कहानी बहुत आसान है. दो औरतों की कहानी है. मगर इसे परदे पर लाना आसान नहीं रहा. जब मैंने व मेरी पत्नी ने निर्माताओं को यह कहानी सुनानी शुरू की, तो कहानी सुनने के बाद सामने वाला मुझे व मेरी पत्नी को पागल समझता था कि हम उत्तर प्रदेश की दो बुड्ढी पर फिल्म बनाना चाहते हैं. आप भी जानते हैं कि पांच साल पहले कंटेंट वाला सिनेमा बनना व बिकना शुरू नहीं हुआ था.आज कंटेंट वाली फिल्में सफलता बटोर रही हैं. मेरी राय में सिनेमा में कंटेंट के साथ साथ मनोरंजन भी होना चाहिए। इस पर रिसर्च करने की जरुरत पड़ी? - पूरे दो साल का वक्त लगा. क्योंकि हमने पहले लिखा. फिर जब हम दादी से मिले, तो कुछ अलग ही बात समझ में आयी. हमने उनसे पूछा कि ‘आपको परिवार में किसी ने रोका नहीं, ’तो उन्होंने कहा-‘‘अगर रोका होता और हम उनसे झगड़ने लगते, तो यहां तक पहुंचते ही नहीं. जब लोग कुछ कहते थे, तो हम अपने कान बंद कर लेते थे और आगे चलते थे. ’तो मुझे लगा कि यह कितना सही एटीट्यूड है जिंदगी में आगे बढ़ने का. फिर जगदीप ने बहुत फ्रेश लाइन व कॉमेडी लाइन लिखी। रिसर्च कर कहानी को सजाने में दो साल लगे. हमने कुछ नए किरदार भी रचे. मसलन कोच के रूप में विनीत सिंह का और परिवार के मुखिया के तौर पर प्रकाश झा का किरदार. अब हमारी फिल्म में करीब करीब 60 किरदार हैं। आपको ऐसी क्या प्रेरणा मिली कि इस बार आप पीछे नहीं हटे? - जब हम अपने लेखकों के साथ जौहरी गाँव जाकर चंद्रो और प्रकाशा दादी से मिले, तो हमें अहसास हुआ कि इनकी जिंदगी तो सबसे ज्यादा मनोरंजक है. जब मैं इनसे मिला, तो यह 82 और 85 वर्ष की थीं. और इन औरतों ने तो 60 साल की उम्र में नए कैरियर की शुरुआत कर पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया.इस बात ने मुझे बहुत एक्साइट किया. इन दादीयों की बातों ने मेरे दिल को छू लिया. मेरी आंखों से आंसू आ गए. यह अब 85 साल की हैं, तो बहुत बुड्ढी दिखती भी हैं. पर आज भी इनके अंदर बहुत एनर्जी है.आज भी वह हमारे साथ स्टेज पर आकर बात करती हैं.आज भी वह चश्मा नहीं पहनती हैं. आज भी बंदूक चलाती हैं. बंदूक चलाकर सही निशाना भी लगाती हैं। फिल्म ‘सांड की आंख’ की कहानी पर कुछ रोशनी डालेंगे? - यह कहानी है मेरठ के जौहरी गाँव की दो वृद्ध शॉर्प शूटर चंद्रो और प्रकाशी तोमर की. यह फिल्म इन दोनों की 16 से 80 साल की यात्रा है. प्रकाश झा परिवार के मुखिया हैं. विनीत सिह कोच बने हैं. फिल्म में विलेन नहीं. पर परिवार के मुखिया हैं, तो उनका माइंडसेट पहले दिन से एक ही रहता है. तापसी के बेटे के किरदार में साध रंधावा हैं. सीमा के किरदार में प्रीता है। आपने फिल्म में दो शॉर्प शूटर महिलाओं की उम्र को महत्व दिया है या उनकी उपलब्धियों को? - कहानी का मुख्य सिरा तो उम्र ही है. मगर जो इन दोनों दादी ने काम किया,वह भी अहम है. इन्होंने अपने लिए नहींं बल्कि अपनी बेटियां व पोतियों के लिए किया. देखिए, उत्तर प्रदेश व हरियाणा के सीमावर्ती इलाके में लोग स्पोर्ट/खेल में ज्यादा रूचि लेते हैं. भारत के ज्यादातर खिलाड़ी इसी इलाके से हैं. खेल से जुड़े होने के चलते इन्हें आर्मी,पुलिस या बीएसएफ नौकरी मिल जाती है.खेत तो सभी के पास हैं. पर अगर आप आर्मी, पुलिस या बीएसएफ में जाएंगे, तो इन्हें एक बड़ा दर्जा मिलता है. इनके अंदर देश के लिए कुछ करने का जज्बा है.यह बहुत बड़ी चीज है। इन दादीयां ने जो कदम उठाया, उसके पीछे सोच यही थी कि लड़कियां खेले और उन्हें नौकरी मिल जाए. आज उनकी एक लड़की आर्मी में है. एक पुलिस में और एक बीएसएफ में है. सभी के पास नौकरी है. यह लोग बहुत अच्छा काम भी कर रही हैं.तो हमारी फिल्म इस बारे में है.आज हम ‘बेटी बचाओ, ‘बेटी पढ़ाओ’ मुहीम चला रहे हैं, पर इन दादीयां ने तो कब का चलाया था. इन दादीयो ने अपनी बेटियों के लिए त्याग किया है. फिल्म में इनकी पूरी यात्रा है. इन्होंने पूरा रिस्क उठाया है। फिल्म की शूटिंग कहां की? - हमने पूरी फिल्म 48 दिन में जौहरी गांव में ही फिल्मायी गई है. मगर गरीबी नही बेची. जब मैं पहले दिन जौहरी गांव गया और दादी को मिला तो उनके औरा से मैं इतना प्रभावित हुआ कि मैंने तय किया कि मैं फिल्म इसी गांव में बनाऊंगा. मैंने उनके घर के बगल वाले घर के अंदर ही शूटिंग की. मैंने अपने कैमरामैन और आर्ट डायरेक्टर को पहले दिन ही हिदायत दे दी थी कि मैं निर्देशक के तौर पर फिल्म में अपने देश की गरीबी को चित्रित करने में यकीन नहीं करता.फिल्म में आपको यह गांव बहुत सुंदर नजर आएगा। कलाकारों के चयन में समस्याएं? - शुरूआत में काफी समस्याएं आयी. बड़ी उम्र के किरदार निभाने के लिए जल्दी अभिनेत्रियां तैयार नहीं हो रही थी. पर तापसी पन्नू और भूमि पेडणेकर ने रिस्क उठायी. मैं इन दोनों को सलाम करता हूं. आज लोग आलोचना कर रहे हैं, क्योंकि उनको भी लगता है कि यह सबसे बड़ा यूएसपी है. देखिए, इस तरह की फिल्म से जुड़ना आर पार का मसला है. बीच वाला कोई रास्ता नहीं है. हमारे यहां मूर्खतापूर्ण सोच यह है कि हीरो 60 साल तक भी हीरो रहते हैं, पर हीरोइन नहीं चलती है. यहां हीरोइन शादी कर लेती है, तो कह देते हैं कि बूढ़ी हो गयी.वास्तव में सभी अपने अंदर के डर की वजह से हमारी फिल्म से दूर भाग रही थीं। मैंने अपनी इस फिल्म में अपनी पसंदीदा फिल्म ‘मदर इंडिया’ को ट्रिब्यूट दिया है. इस फिल्म में नरगिस दत्त ने जो बेहतरीन परफार्मेंस दी थी, मैं तो उसका कायल हॅूं. ‘मदर इंडिया’ में नरगिस दत्त ने भी युवा से वृद्धावस्था तक का किरदार निभाया है। सुना है आपने कलाकारों का प्रोस्थेटिक मेकअप नहीं कराया? - हमने प्रोस्थेटिक मेकअप का उपयोग नहीं करवाया.क्योंकि हम अपनी दोनों हीरोईनों को सुंदर दिखाना चाहते थे. मैंने उनकी साठ साल की उम्र की फोटो देखी, तो वह उसमें बहुत खूबसूरत नजर आ रही थीं. प्रोस्थेटिक मेकअप से चेहरा एकदम बदल जाता है, इंसान एकदम अलग दिखने लगता है. अभी जिसे जो कमेंट करना है, करने दीजिए.फिल्म देखकर यह सब खुद ब खुद संतुष्ट हो जाएंगे. फिल्म देखकर कोई कुछ नहीं कहेगा. मैं हर दर्शक से दावा करता हूं कि फिल्म के शुरू होने पर दस मिनट तक उन्हे परदे पर भूमि व तापसी के होने का अहसास होगा, उसके बाद वह भूल जाएंगे, वह सिर्फ चंद्रो व प्रकाशी को ही देखेंगे. मेकअप में यह दोनो चंद्रो व प्रकाशी ही नजर आती हैं। हमने हीरोइनों के चेहरे पर वैक्स का उपयोग किया है. मेकअप आर्टिस्ट पल्लवी ने इनके चेहरे ‘चेहरे के मास्क’ की जगह तीन लेअर का वैक्स मास्क का उपयोग किया है. पहला मास्क, फिर फाउंडेशन लगता था.उसके बाद दूसरा मास्क लगता था. फिर तीसरा मास्क उसे स्थिर करने के लिए लगाते थे. इसमें काफी तकलीफ होती थी.समय भी लगता था. गर्मी के मौसम में एक दिन में तीन बार ऐसा करना पड़ता था. जिसके चलते हर दिन कम से कम सात घंटे तो इनके मेकअप में ही चले जाते थे. सावधानी बरतने के बावजूद भूमि पेडणेकर का चेहरा जल गया था। ‘हाउस फुल 4’और ‘मेड इन चाइना’ भी आपकी फिल्म के साथ रिलीज हो रही हैं? - हर फिल्म की अपनी तकदीर होती है. मुझे उम्मीद है कि हम सभी के लिए यह सुखी वाली दीवाली होगी। मायापुरी की लेटेस्ट ख़बरों को इंग्लिश में पढ़ने के लिए www.bollyy.com पर क्लिक करें. अगर आप विडियो देखना ज्यादा पसंद करते हैं तो आप हमारे यूट्यूब चैनल Mayapuri Cut पर जा सकते हैं. आप हमसे जुड़ने के लिए हमारे पेज width='500' height='283' style='border:none;overflow:hidden' scrolling='no' frameborder='0' allowfullscreen='true' allow='autoplay; clipboard-write; encrypted-media; picture-in-picture; web-share' allowFullScreen='true'> '>Facebook, Twitter और Instagram पर जा सकते हैं.embed/captioned' allowtransparency='true' allowfullscreen='true' frameborder='0' height='879' width='400' data-instgrm-payload-id='instagram-media-payload-3' scrolling='no'> #interview #Saand Ki Aankh #mayapuri #Tushar Hiranandani हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article