अपने समय के मशहूर अभिनेता, निर्माता व निर्देशक स्व. पृथ्वीराज कपूर की बेटी उर्मिला सियाल के बेटे जतिन सियाल ने अपने करियर की शुरूआत अपने मामा स्व. शशि कपूर के साथ फिल्म ‘‘अजूबा’’ में बतौर सहायक निर्देशक थे। बाद में जतिन सियाल ने ऋषि कपूर के साथ बतौर सहायक निर्देशक फिल्म ‘‘आ अब लौट चले’’ की। लेकिन उसके बाद निर्देशन की बजाय जतिन सियाल ने अभिनय की राह पकड़ ली. तब से उनका अभिनय करियर लगातार हिचकोले लेते हुए चलता जा रहा है। अब वह डिजिटल माध्यम यानी कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कदम रख चुके हैं। जतिन सियाल बहुत जल्द ‘‘सोनी लिव’’ पर 10 सितंबर से स्ट्रीम होने वाली राजश्री ओझा निर्देशित वेब सीरीज ‘पॉटलक’ में गोविंद शास्त्री के किरदार में नजर आएंगे।
प्रस्तुत है जतिन सियाल से हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..
सहायक निर्देशक से अभिनय तक अपने अब तक के कैरियर में क्या उतार चढ़ाव देखते हैं?
जी हॉ! मैंने अपने करियर की शुरूआत बतौर सहायक निर्देशक की थी। फिर मैं अभिनेता बन गया और तब से मैं फिल्म व टीवी सीरियल में लगातार बेहतरीन किरदार निभाते आया हूँ। हर दूसरे कलाकार की तरह मुझे भी काफी संघर्ष करना पड़ा। मैने अपनी प्रतिभा के अनुरूप फिल्म व टीवी में पूरी मेहनत व लगन के साथ काम करने की कोशिश की। मुझे जो भी मौके मिले, उन्हे बेहतर तरीके से अपने अभिनय से संवारा। किस्मत ने साथ दिया तो यहां तक पहुॅच गए। मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूँ कि मुझे आज भी चुनौतीपूर्ण व यथार्थ परक किरदार निभाने के अवसर मिल रहे हैं। जहां तक उतार चढ़ाव का सवाल है, तो अभिनय जगत में उतार चढ़ाव चलते ही रहते हैं। मेरे करियर में भी काफी उतार चढ़ाव रहे। मैं तो इसे पार्ट ऑफ गेम ही मानता हॅूं।
वेब सीरीज ‘पॉटलक’ को लेकर क्या कहेंगें?
यह एक पारिवारिक हास्य वेब सीरीज है। पॉटलक परिवारों को एक साथ लाने के संबंध में है। यह कहानी अवकाश प्राप्त गोविंद शास्त्री जी के परिवार के इर्द गिर्द घूमती है। वह पहले किसी कंपनी में सीईओ थे। नौकरी से अवकाश प्राप्त करने के बाद वह पाते हैं कि उनका परिवार विखरा हुआ है। सभी अलग अलग जगह काम कर रहे हैं और रह रहे हैं। अब वह चाहते हैं कि अपना पूरा परिवार एक ही छत के नीचे इकट्ठा रहे। सभी एक ही जगह आ जाए। वह पॉटलक का बहाना लेकर पूरे परिवार को इकट्ठा करते हैं। फिर जो नासमझी के चलते विरोध के स्वर उभरते हैं, सहमति के स्वर उभरते हैं, वह जिंदगी में किस तरह से हास्य के साथ लिए जाते है,वही सब इसमें हैं।
वेब सीरीज ‘पॉटलक’ के अपने किरदार को किस तरह से परिभाषित करेंगे?
इसमें मैंने गोविद शास्त्री का किरदार निभाया है, जो कि फुल आफ लाइफ हैं। उनकी सोच यह है कि अवकाश ग्रहण करने के बाद ही एक नई जिंदगी शुरू होती है। अवकाश ग्रहण करने के बाद काम की जिंदगी खत्म होकर एक पारिवारिक जिंदगी का नया अध्याय शुरू होता है। वह नई नई चीजें सीखने को लेकर बहुत ही ज्यादा इच्छुक हैं। वह नए नए कार्यकर उसमें अपने परिवार को भी लिप्त करना चाहते हैं। वह अपनी तरफ से पूरे परिवार को एक ही जगह रखना चाहते हैं, जिसका कुछ सदस्य विरोध भी करते हैं कि अब आप इस उम्र में यह सब क्या शुरू कर रहे हैं। पर वह अपने इसी मकसद के साथ ही जिंदगी जीते हैं।
आप स्व.पृथ्वीराज कपूर के पोते हैं। तो इस वेब सीरीज की शूटिंग के दौरान कपूर परिवार के मिलन के दिनों को याद किया होगा?
कपूर परिवार का हिस्सा होने के नाते मैं पीढ़ियों के मार्गदर्शन और प्यार को आकर्षित करने और गोविंद शास्त्री के रूप में इसे पर्दे पर लाने में सक्षम था। इस वेब सीरीज में एक प्यार करने वाले परिवार के कई तत्व हैं, जो एक साथ भोजन करके सभी बाधाओं को पार करते हैं। और यह मेरे लिए बहुत ही व्यक्तिगत बात है।
वेब सीरीज ‘‘पॉटलक’’ की निर्देशक राजश्री ओझा 2010 के बाद अमरीका में रह रहीं थी। अब वापस लौटकर इस सीरीज का निर्देशन किया है। आपने उनमें दूसरे निर्देशकांे के मुकाबले किस तरह का फर्क महसूस किया?
मैं निजी स्तर पर उनके संबंध में ज्यादा कुछ जानता नही हॅूं। वह एक बेहतरीन निर्देशक हैं। मैं अपने स्वभाव के अनुसार हर निर्देशक के साथ अच्छे ढंग से पेश आता हूं और सेट पर अपने काम पर ही सारा ध्यान देता हॅूं।
‘‘पॉटलक’’ देखने के बाद आधुनिक जीवन शैली जी रही नई पीढ़ी के बीच क्या संदेश जाएगा?
हमने इस वेब सीरीज में पूरे परिवार को एक साथ रहने की बात की है। आप देखिए, कोरोना महामारी में हमने देखा कि किस तरह पूरा परिवार एक जुट हुआ, फिर चाहे वह आधुनिक पीढ़ी हो या पुरानी पीढ़ी हो। आधुनिक जीवन शैली जी रहे लोगों में भी परिवार की बात है। महामारी के दौरान लोगों का काम बंद हुआ और सब एक साथ रहने लगे, इससे एक पारिवारिक बॉंडिंग मजबूत हुई। हमारी वेब सीरीज में भी यही सीख है कि आप कहीं भी जाइए, कुछ भी काम कीजिए, मगर परिवार को मत भूलिए। परिवार के सदस्यों के साथ सिर्फ संपर्क ही नहीं रखना है, बल्कि उनके साथ उठना बैठना, विचार विमर्श करना, उनके साथ अपने सुख दुःख साझा करना, एक बॉडिंग बनाकर रखना यह आपकी पूरी जिंदगी के लिए जरुरी है। परिवार का मतलब सिर्फ आपकी पत्नी व बच्चे नहीं है। परिवार में पिता जी, माता जी व भाई बहन सभी आते हैं।
आप 1995 से टीवी से जुड़े हुए हैं। पिछले 25-26 वर्ष के दौरान जो बदलाव आए हैं, उसे किस तरह से देखते हैं?
मैने टीवी में सबसे बड़ा बदलाव वीकली शो का डेली शो होते देखा है। अब तो डेली शो आम बात हो गयी है। पर जब मैने काम करना शुरू किया था, उस वक्त वीकली शो हुआ करते थे। जब वीकली शो होते थे, तब माह में चार एपीसोड आते थे। उस वक्त लेखक व निर्देशक पूरी मेहनत करते थे। हमें भी शूटिंग के वक्त कोई जल्दबाजी नहीं होती थी। मगर डेली सॉप की संस्कृति में हर काम जल्दबाजी में हो रहा है। प्रसारण की तलवार सदैव लटकती रहती है, इसके चलते हर काम जल्दबाजी मे की जाती है। तो स्वाभाविक तौर पर तमाम चीजों को नजरंदाज किया जाने लगा। गुणवत्ता के साथ समझौता किया जाने लगा। जब हमने काम शुरू किया था, उन दिनों टीवी पर काफी बेहतरीन रचनात्मक काम हो रहा था।
तो यह माना जाए कि अब टीवी पर कलाकार के तौर पर जो संतुष्टि मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही है?
जी हॉ! हर दिन इस बात का अहसास होता है कि कुछ बेहतर होना चाहिए। फिर भी मैं यहीं कहॅूंगा कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। यही फिलॉसफी भी है।
दैनिक सीरियल कई वर्ष तक चलते हैं। जिसकी वजह से कलाकार एक ही किरदार लंबे समय तक निभाते हुए मोनोटोनस नही हो जाता?
ऐसा होता है। और इससे बचने के लिए कलाकार कुछ नही कर सकता। कई सीरियल पंाच से दस साल चल जाते हैं। यदि एक ही किरदार को दस साल चलाना है,तो क्या किया जाए।
इन दिनों यह चर्चा हो रही है कि पुरूष कलाकारों को टीवी सीरियल की बनिस्बत वेब सीरीज में अपनी प्रतिभा को दिखाने का अवसर ज्यादा मिलता है?
शायद इसकी वजह यह है कि टीवी सीरियल महिला प्रधान हो गए हैं। पर यह सच है कि सास बहू मार्का घरेलू सीरियल ही ज्यादा प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें महिला किरदार ही हावी रहते है। पुरूष कलाकार के हिस्से करने को ज्यादा कुछ आता नहीं। ससुर दामाद को लेकर सीरियल बने नहीं। पर अब जो वेब सीरीज ‘पॉटलक’ मैंने की है, इसमें मेरा किरदार गोविंद शास्त्री के नजरिए से ही कहानी चलती है। तो यह पूरी तरह से पुरूष प्रधान है। सिर्फ लिंग के हिसाब से ही नही बल्कि कहानी का स्पेक्ट्म भी काफी विस्तृत हो गया है।