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रंगमंच, टीवी और फिल्म हर माध्यम में अपनी प्रतिभा का जलवा विखेर चुकी अभिनेत्री ईरा दुबे ने 2007 में फिल्म ‘मेरी गोल्ड’ से बॉलीवुड में कदम रखा था. उसके बाद से उन्होंने ‘आयशा‘, ‘टर्निंग 30‘, ‘एम क्रीम‘ और ‘डियर जिंदगी‘ जैसी फिल्मों में अहम भूमिकाएं निभाई हैं।
इन दिनों वह “सोनी लिव” पर स्ट्रीम हो रही कुणाल दास गुप्ता, पवनीत गखल, गौरव लुल्ला और विवेक गुप्ता द्वारा निर्मित और राजश्री ओझा द्वारा निर्देशित वेब सीरीज ‘पॉटलक‘ में आकांक्षा शास्त्री के किरदार में नजर आ रही है।
प्रस्तुत है इरा दुबे से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश...
आपकी माता जी लिलेट दुबे भी अभिनय के क्षेत्र मे है,इसलिए आपने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया?
ऐसा ही है। मैं खुद इस बारे में काफी सोचती हॅूं। मैने एक लघु फिल्म का निर्माण किया है। मुझे आगे चलकर फिल्म निर्माण व निर्देशन भी करना है। मैं बचपन से अपनी मां को रंगमंच पर अभिनय करते हुए देखकर सोचती थी कि मुझे भी ऐसा कुछ करना है। वहीं से मुझे यह नशा या कीड़ा लग गया। मैं अमरीका गयी थी। वहां पर मैंने थिएटर की ट्रेनिंग हासिल की।
2007 में आपकी फिल्म ‘मेरी गोल्ड’ आयी थी। तब से अब तक के कैरियर को आप किस तरह से देखती हैं?
मैं मस्त किस्म की लड़की और कलाकार हॅूं। मेरा मानना है कि निजी व प्रोफेशन के स्तर पर भी हर चीज अपने सही समय पर आती है। हम यहां प्रवेश करते समय इस बात को समझते रहते हैं कि यहंा जितनी अधिक सफलता मिलती है, उतना ही अधिक असफलता मिलती है। इसलिए कलाकार की चमड़ी मोटी होनी चाहिए। उसे सफलता, असफलता रिजेक्शन, उतार चढ़ाव को इस प्रोफेशन का हिस्सा मानकर चलना चाहिए। ज्यादा खुश या ज्यादा गमगीन होने की जरुरत नहीं है। कलाकार के तौर पर केवल अपने क्राफ्ट को गंभीरता से लेने की जरुरत है। क्राफ्ट को बेहतर बनाने का प्रयास सदा करते रहना चाहिए। इसके लिए रंगमंच या सिनेमा कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. यह रियाज है। अपने क्राफ्ट को जिंदा रखने के लिए यह अत्यावश्क है।
थिएटर, फिल्म, टीवी व ओटीटी सहित हर माध्यम में आपने काम किया.किस माध्यम पर आपको ज्यादा संतुष्टि मिली?
एक कलाकार के तौर पर रंगमंच पर, मगर निर्माता व निर्देशक के तौर पर सिनेमा में। फिलहाल मैं सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही वेब सीरीज ‘पॉटलक’ को लेकर काफी उत्साहित हॅूं।
‘पॉटलक’ से जुड़ने के पीछे क्या वजहें रहीं?
इसके निर्माता गौरव और निर्देशक राजश्री ओझा के साथ मैंने दस वर्ष पहले फिल्म ‘आएशा’ की थी, तो उनसे मेरा परिचय रहा है। इस बार जब उन्होने मुझे ‘पॉटलक’ की कहानी सुनायी, तो मुझे इसमें यह बात अच्छी लगी कि इसमें मेरा किरदार एक वर्किंग मदर/कामकाजी मां का है। जो कि आजकल युवा पीढ़ी की औरतों के लिए आम बात है। हम अपने आस पास देखते हैं कि मां बनने के बाद भी वह काम करती रहती हैं। यानी कि वह घर, काम व बच्चों की परवरिश के बीच सामंजस्य बनाकर रखती हैं। ऐसे में उन्हें एक सहयोगी पति की जरुरत होती है। एक ऐसे पार्टनर की जरुरत होती है, जो जिम्मेदारी वहन करने के लिए तैयार हो। इसी रोचक बात ने मुझे ‘पॉटलक’ करने के लिए उकसाया। जब मैंने सुना कि इस कहानी के मेरे किरदार के तीन छोटे छोटे बच्चे हैं, तो मेरी प्रतिक्रिया आम बॉलीवुड हीरोईनो की तरह प्रतिक्रिया नहीं रही कि मुझे इतनी छोटी उम्र में मां का किरदार नहीं निभाना है। मुझे लगता है कि आज के जमाने में यह महत्वपूर्ण नहीं है। मेरी नजर में जितनी ज्यादा वास्तविकता, जितना अधिक नारी सशक्तिकरण दिखा रहे हो, मां होने के नाते भी सब कुछ कर सकती है। दूसरी बात मैं जो कहना चाहती हॅूं कि यह जो परिवार की जगह है, वह जरुरी है। हम चाहे जितना दावा करें कि भारत में युवा पीढ़ी आत्मनिर्भर है, वह परिवार से ताल्लुक नहीं रखती, वह सब झूठ है। क्योंकि हर किसी के लिए परिवार ही सब कुछ है। कोविड के दौरान हम सभी को इस बात का अहसास हुआ कि हमें अपनों से कितना लगाव है। हमें कितना उनकी जरुरत है. तो यह बात भी मुझे ‘पॉटलक’ में रोचक लगी। इसके अलावा कई बार हमें लगता है कि हम अपने परिवार से थक गए हैं, परेशान हो गए हैं, ढेर सारी समस्याएं है, सभी अपनी अपनी समस्याएं लेकर आते हैं। इतनी नोकझोक और विचारों का टकराव होता है। सभी की अपनी अपनी जिंदगी है। पर जब मुसीबत का वक्त आता है, तब परिवार ही साथ देता है। यह बात भी मुझे पसंद आयी। इसके अलावा इसका लेखन व कलाकारों का चयन बहुत ही बेहतरीन है। मुझे लगता है कि इस तरह की कहानी टीवी पर तो नहीं है। एक क्विर्की, आधुनिक परिवार को लेकर जो रिश्ते दिखाए हैं, जिस तरह के चरित्र गढ़े गए हैं,वह कमाल का है, इसमें ताजगी है। नयापन है। बहुत ही अधिक यथार्थपरक है। हर किरदार की अपनी विशेषताएं हैं, ‘पॉटलक’ बहुत मजेदार है।
आपके किरदार का नाम क्या है? आप उसे किस तरह परिभाषित करेंगी?
मैंने इसमें परिवार की सबसे बड़ी बहू आकांक्षा शास्त्री का किरदार निभाया है। आकांक्षा का अपने पति संग बहुत ही गहरा व बेहतरीन रिश्ता है। हम आपस में अपनी ड्यूटी व जिम्मेदारी को साझा करते हैं। आकांक्षा की पांच वर्ष की बेटी है। फिर बिना किसी योजना के ही दो जुड़वा बच्चे हो जाते हैं। यदि किसी की जिंदगी में कम उम्र मे ही तीन-तीन बच्चे है, तो क्या करेंगे, कैसे सब कुछ सही ढंग से करेंगे. जिंदगी, घर, बच्चों की परवरिश और काम/नौकरी के बीच सामंजस्य कैसे बिठाएंगी? पति पत्नी में से कौन काम करेगा और कौन घर पर बैठेगा? अब परिवार के अंदर लिंग भेद नही रह गया है। अब ऐसा नहीं है कि बच्चे की देखभाल करने के लिए पति घर पर नहीं बैठ सकता। आधुनिक दंपति के बीच इस तरह की समझदारी अत्यावश्यक है। फिर आकांक्षा का अपने सास ससुर के साथ रिश्ता है। इसमें सास बहू के बीच नोकझोक को नहीं दिखाया है। सास बहू आपस में दोस्त अथवा एक दूसरे का सहयोग करने वाले भी हो सकते हैं। ‘पॉटलक’ में दिखाया है कि दूसरे परिवार से आने वाली बहुओं का इस परिवार के हर सदस्य, फिर चाहे वह उनका पति हो या सास हो, बहुत ही समझदारी वाला रिश्ता है। पर इस बीच हर तरह का संघर्ष और चुनौतियां होती हैं।
मसलन इसमें आकांक्षा और उसके पति के बीच एक मुद्दा है कि हम घर किराए पर ले अथवा खरीदें। मुंबई जैसे महानगर में यह बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसी तरह की इसमें कई छोटी-छोटी चीजों को लेकर रोचक कहानी गढ़ी गयी है।
‘पॉटलक’में नारी सशक्तिकरण की बात किस तरह से है?
इस वेब सीरीज में जितने भी महिला किरदार हैं, वह सभी अपनी शर्तों पर अपनी जिंदगी जी रही हैं। इसमें दो भाई व छोटी बहन है। बड़े भाई की पत्नी आकांक्षा वर्किंग ओमन है। इससे यह बात उभरकर आती है कि कोई भी औरत वर्किंग मदर के रूप में भी सफल हो सकती है. दूसरे भाई की पत्नी अपने व्यापार मंे काफी सफल है। पर यह दंपति बच्चे नहीं चाहता। यह उन युवा दंपतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हे बच्चे नहीं चाहिए. जो मां बाप नही बनना चाहते। इसमें कुछ भी गलत नही है। यह औरत की अपनी च्वॉइस है। परिवार की तरफ से उन पर बच्चे पैदा करने का दबाव नही होना चाहिए। यह भी नारी सशक्ति करण ही है। तीसरी जो परिवार की सबसे छोटी सदस्य यानी कि बहन है, जो कि इस सीरीज की सूत्रधार है, वह कहानी की प्रोटोगॉनिस्ट है, वह एक लेखक है। वह अपना करियर अपनी शर्तों पर बनाना चाहती है। अब एक हादसे की वजह से मुसीबत यह आ गयी है कि उसे वापस घर आकर अपने माता पिता के साथ रहना है। तो इसमें इस बात का चित्रण है कि जब मुसीबतें आती हैं, तो हम अपनी जिम्मेदारियों को भूल नहीं जाते हैं।
आकांक्षा के लिए परिवार और करियर में से क्या महत्वपूर्ण है?
दोनो। इस वेब सीरीज में कंफलिक्ट तो उसकी द्विविधा ही है। द्विविधा यही है कि वह किस तरह से बैलेंस करे। अपने बच्चों से उसे बहुत लगाव है। वह नैनी के भरोसे अपने बच्चों को नहीं छोड़ती। वह बच्चों के संग बहुत ज्यादा इंवॉल्ब है। वह अपने पति को भी काफी जिम्मेदारी देती है कि वह बच्चे को देखें, संभाले। लेकिन वह अपना काम नही छोड़ना चाहती। एक वक्त वह भी आता है, जब पति व पत्नी के बीच टकराव हो जाता है कि कौन काम करेगा और कौन घर संभालेगा? किसका करियर ज्यादा जरुरी है।
आकांक्षा के किरदार अथवा पॉटलक के अन्य महिला किरदारों को देखकर युवा पीढ़ी की लड़कियों को क्या समझ आएगा?
यही समझ में आएगा कि वह हमेशा अपनी च्वॉइस/ पसंद पर भरोसा करें। आप अपनी पसंद पर शक न करें। अगर आपको शादी करनी है, बच्चे पैदा करने हैं, तो कीजिए या नही करना है, तो मत कीजिए। लेकिन जब आप किसी निर्णय पर पहुँचते हैं,तो फिर उससे पीछे मत हटिए। आप दबाव में आकर कोई फैसला न लें।
निजी जिंदगी में आप स्वयं करियर व परिवार में से किसे प्राथमिकता देना चाहेंगी?
अभी तो मेरी शादी नहीं हुई है। मेरे बच्चे नहीं है। ऐसे में मेरे लिए आकांक्षा का किरदार निभाना काफी रोचक था। मेरी बहन के जुड़वा बच्चे हैं। मैंने उनको बहुत नजदीक से देखा है. कोविड में उनके साथ समय बिताने का अवसर मिला। पर जैसा कि मैने कहा कि मेरी अभी तक शादी ही नहीं हुई है, तो फिलहाल मेरे लिए मेरा करियर ही मायने रखता है। लेकिन जब मैं पंद्रह सोलह वर्ष की थी, तब से मुझे पता था कि मुझे परिवार चाहिए, मुझे बच्चे चाहिए। कभी कभी ऐसा भी होता है कि आप कब किस बात को प्राथमिकता देते हैं। कुछ समय के लिए आपका करियर सबसे ज्यादा जरुरी होगा। पर बच्चे होने पर आप स्वयं कैरियर को दोयम दर्जे पर रखना चाहेंगी। यह आम बात है। इससे किसी को भी डरना नही चाहिए।
राजश्री ओझा के साथ आपने दस वर्ष बाद काम किया है क्या बदलाव महसूस किया?
राजश्री ओझा लंबे समय से भारत की बजाय अमरीका में थीं। तो मैं नौ वर्ष से उनसे मिली नहीं थी। तो उनसे मिलना, उनके साथ समय बिताना और उनके साथ काम करना मुझे काफी अच्छा लगा। उनकी कार्यशैली काफी प्रेरणादायक रही। बीस दिन के अंदर हमने पूरे आठ एपीसोड फिल्माए। हम सभी दिल्ली में बायो बबल में रहकर शूटिंग कर रहे थे। उन्होंने जबरदस्त एनर्जी के साथ काम किया। मैंने पाया कि उनमें सिनेमा का ज्ञान पहले की आपेक्षा कहीं ज्यादा है।
आपने एक लघु फिल्म का निर्माण व निर्देशन किया है। उसके बारे में बताएं?
मैंने “द डॉटर” नामक एक लघु फिल्म का निर्माण किया है, जिसमें नसिरूद्दीन शाह और मैंने अभिनय किया हैं। यह पिता व बेटी के रिश्ते की कहानी है। इसमें अल्कोहालिजम यानी कि शराब का मुद्दा भी है। इसकी थीम यूथेनीजिया और अल्कोहालिजम तथा रिश्ते को लेकर है। अभी मैंने इस फिल्म को सनडांस इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भेजा है।