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औरतें कम उम्र में ही मैच्योर्ड हो जाती है- नंदा

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By Mayapuri Desk
New Update
औरतें कम उम्र में ही मैच्योर्ड हो जाती है- नंदा

यह

लेख

दिनांक

  19-6-1983

मायापुरी

के

पुराने

अंक

456

से

लिया

गया

है

!

सुलेना

मजुमदार

अरोरा

नंदा

जो

अपने

जमाने

में

एक

खूबसूरत

हीरोइन

थी

,

वह

आज

भी

एक

खूबसूरत

अदाकारा

है

जो

धीरे

-

धीरे

अपने

सुनहरे

परिवक्ता

में

प्रवेश

कर

चुकी

है।

कल

तक

हीरोइन

होने

के

पश्चात्

भी

जो

नंदा

बेबी

नंदा

थी

वह

आज

एक

मैच्योर्ड

कलाकार

के

रूप

में

पर्दे

पर

गई

औरतें कम उम्र में ही मैच्योर्ड हो जाती है- नंदा

अब

तक

जिन्होंने

अपनी

खूबसूरत

अदा

अंदाज

सूरत

और

नाज

को

हीरोइन

के

रूप

में

उजागर

किया

वह

शराज

उसी

खूबसूरती

के

साथ

माँ

,

भाभी

के

रूप

में

पर्दे

पर

रही

है।

यूँ

तो

आजकल

माँ

-

भाभी

का

रोल

बहुत

होता

,

परन्तु

इन्हें

जो

चरित्र

भूमिका

दी

जाती

,

वह

एक

अलग

किस्म

की

दमखम

वाली

होती

है

जैसे

प्रेम

रोग

’। 

फिल्

मीस्तान

में

कुछ

ही

दिन

पहले

मजूदर

का

सैट

लगा

था

,

जहाँ

मुझे

नंदा

जी

फिर

मुस्कराती

हँसती

खिलखिलाती

,

नज़र

आई

,

वही

जोश

खरोश

ताज़गी

,

परन्तु

परिवक्ता

की

चाँदनी

माथे

पर

ताजगी

की

तरह

सजाये

,

मैंने

इन्टरव्यू

की

बात

कही।

तो

अपने

कमर

छूते

केश

राशि

को

उंगलियों

से

मरोड़ती

वे

बोलीं

घर

पर

जाओ

,

लेकिन

इस

वक्त

मेरे

पास

वाकई

कुछ

कहने

को

है

ही

नहीं।

लेकिन

अब

जब

तक

मजदूर

रिलीज

हो

जाए

,

मैं

अपनी

फिल्मों

के

बारे

में

क्या

बात

करूँ

यूँ

भी

कौन

सी

मैं

दस

बारह

फिल्मों

में

काम

कर

रही

हूँ

?

मैंने कहा की

जो

प्रश्न

करूंगी

उसके

लिए

फिल्मों

की

गिनती

नहीं

चाहिए

,

बस

मन

की

एक

झांकी

दिखा

दीजिए।

तो उन्होंने कहा बहुत

खूब

.

के

.

दैन

यू

कम

टूमौरो

मैंने पूछा क्यों

आज

आपके

पास

वक्त

नहीं

है

?

उन्होंने कहा है

तो

पर

... 

 मैंने उन्हें बीच मैं रोकते हुऐ  बोला, पर

कुछ

नहीं

आज

ही

शॉट

के

बाद,

मैंनें

कुछ

जोर

दिया

जिस

पर

वे

मान

गई।

नंदा जी इस वक्त जब आप फिर से फिल्म इंडस्ट्री की हवा में साँस ले रही हैं आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि, जो लोग पहले आपको पहचानते थे वे अब आपको कुछ-कुछ भूलने लगे हैं? सिर्फ इंडस्ट्री वाले ही क्‍यों दर्शक वर्ग में युवा वर्ग आपसे बहुत ज्यादा परिचित नहीं हैं ?

कौन

कहता

है

युवा

वर्ग

परिचित

नहीं

है

?

फिल्

एक

ऐसा

माध्यम

है

जिससे

आपका

परिचय

हर

वक्त

दर्शकों

से

होता

रहता

है

.

मेरी

पुरानी

फिल्में

आज

भी

जोर

शोर

से

थियेटर

में

लगती

हैं

कई

-

कई

सप्ताह

हाउस

फल

चलती

है।

बीच

में

मैं

इस

इंडस्ट्री

से

कुछ

साल

के

लिए

जुदा

हो

गई

थी

परन्तु

मैंने

हर

पल

लोगों

को

अपना

नाम

उनकी

जुबां

पर

लाते

देखा

है

,

लोग

तो

शिकायत

किया

करते

थे

कि

,

नंदा

आज

कल

फिल्में

स्वीकार

क्

यों

नहीं

कर

रही

है।

मैं

तो

अपने

समय

में

कम

चर्चित

थी

,

बीच

में

मेरी

चर्चा

कम

हुई

जब

मैंने

फिल्में

स्वीकार

करना

बंद

कर

दिया

था

और

अब

भी

लोग

मेरी

चर्चा

करते

हैं।

यह

कहने

की

बात

नहीं

है

युवा

वर्ग

(

आज

की

)

बहुत

इंटेलिजेन्ट

है

,

वे

आजकल

फिल्

सिर्फ

मजे

के

लिए

नहीं

देखते

है

,

कि

आज

की

फिल्में

और

कल

की

फिल्में

सभी

देखते

हैं

सिर्फ

देखते

ही

नहीं

उसमें

काम

करते

कलाकारों

की

आलोचना

भी

करते

हैं

इस

तरह

वे

हमें

नहीं

भूले

हैं।

लेकिन आप यह तो मानती हैं न कि आपने फिल्‍म इंडस्ट्री छोड़ कर कुछ अच्छा नहीं किया था?

व्हॉट

रबिश

मैंने

कभी

इस

इंडस्ट्री

को

छोड़ा

ही

नहीं

था,

हाँ

यह

सही

बात

है

कि

कुछ

दिनों

के

लिए

मैंने

फिल्में

स्वीकार

करना

बंद

कर

दिया

था।

औरतें कम उम्र में ही मैच्योर्ड हो जाती है- नंदा

इस तरह तो आपने अपने चाहने वाले और फिल्‍म इंडस्ट्री पर अन्याय किया क्‍योंकि आप जानती है कि आप एक  बहुत अच्छी आर्टिस्ट हैं और इस इंडस्ट्री को आपकी सख्त जरूरत थी उस वक्त?

मुझे

इस

बात

का

अफसोस

है

कि

,

मैंने

फिल्में

नकार

करके

अपने

फैंस

को

डिसपोइंट

किया

लेकिन

मैं

क्या

कर

सकती

थी

,

मेरी

अपनी

भी

कुछ

फीलिंग

है

कुछ

प्रिसीपल

हैं।

मैं

कभी

अपना

प्रिसीपल

तोड़

नहीं

सकती

मैंने

कभी

तोड़ा

है

.

लेकिन

जब

मैंने

देखा

कि

इस

इंडस्ट्री

में

कोई

एथिक्स

नहीं

रह

गई

लोग

सिर्फ

फिल्

बनाने

के

लिए

फिल्

बना

रहे

हैं

तथा

कल

तक

जो

इंडस्ट्री

एक

पूजा

का

स्थान

थी

,

वह

आज

बच्चों

का

खेल

बनने

लगी

है

लोग

पैसे

के

पीछे

अपनी

मॉरेलटी

खोने

लगे

हैं

तो

मैंने

कुछ

समय

के

लिए

अपने

आप

को

इस

इंडस्ट्री

से

अलग

कर

लिया।

मुझे

यकीन

था

कि

यह

दूषित

वातावरण

अधिक

दिनों

तक

नहीं

चलने

वाला

है

,

कभी

कभी

समय

जरूर

बदलेगा

और

मेरा

ख्याल

है

कि

अब

समय

बदल

गया

है।

फिल्

इंडस्ट्री

में

डिवोशन

और

ईमानदारी

लौट

रही

है

,

इसलिए

मैंने

भी

अपनी

कला

को

फिर

मौका

दिया

है।

नंदा जी आपकी बातों में जो फोर्स है उससे ऐसा लगता नहीं कि मैं एक कोमल नारी के समक्ष बैठी हूँ लगता है एक क्रांतिकारी पुरूष के सामने बैठी मैं यह कहकर उन्हें हँसा देने में सफल रही, वे हँसी के माधूर्य को बीच में दबोच कर बोलीं

हाँ

,

मुझमें

आत्मविश्वास

है

और

लोगों

को

यह

गलत

फहमी

है

कि

,

आत्मबल

सिर्फ

पुरूषों

में

रहता

है

,

फोर्स

सिर्फ

पुरूषों

में

है

,

नहीं

नहीं

,

यह

गलत

बात

है

एक

नारी

अगर

बचपन

से

जिम्मेदारियाँ

उठाने

लगे

तो

एक

दिन

वह

किसी

पुरूष

को

मात

दे

सकती

है।

जैसे

आपने

दिया

?

मैंने

उनके

हृदय

में

घुमड़ते

भाव

ताड़

लिये

,

वह

तुरंत

बोलीं

--

हाँ

जैसे

मैं

,

बचपन

से

जिम्मेदारियाँ

उठाते

हुए

यह

कंधे

अब

मजबूत

हो

गये

हैं।

अब

तो

सब

कुछ

हल्का

फुल्का

लगता

है

,

सब

जिम्मेदारी

रेशम

के

तार

सी

लगती

है।

छोटी

सी घर

में

बच्चों

में

तीसरी

संतान

थी

लेकिन

पापा

के

गुजरने

से

एकाएक

मैं

बड़ी

हो

गई, ना

जाने

वह

कैसा

आत्मविश्वास

था

,

जिसने

मुझे

आगे

बढ़ने

की

प्रेरणा

दी

नंदा जी, नारी होते हुए भी आपने बहुत हिम्मत दिखाई लेकिन आपको कभी यह शौक नहीं होता कि कभी आप भी भरोसे से चले, हमेशा खुद राय लेते थक नहीं जाती?

हाँ

,

कभी

-

कभी

जब

एकांत

होती

हूँ

,

जब

खिड़की

पर

खड़ी

होकर

दूर

क्षितिज

का

कोई

कोना

सूरज

की

अंतिम

किरणों

से

लाल

होते

देखते

है

तो

ऐेसा

लगता

है

कि

कभी

मैं

भी

अपनी

राय

निर्देश

पर

चलूँ

,

परन्तु

एक

पल

की

तीखी

चुप्पी

और

हताश नंदा

जी

हँस

पड़ती

है।

परन्तु

ऐसा

कोई

नजर

ही

नहीं

आता

जो

मुझे

सही

राह

दिखाने

योग्य

हो

,

जो

इस

लायक

हो

कि

मेरे

अपने

निर्देश

से

भी

उम्दा

निर्देश

दे

सके।

मुझसे

भी

अच्छा

सोचने

और

करने

वाला

हो

फिर

थक

कर

मैं

फिर

से

स्वंय

निर्णय

लेती

हूँ

और

अब

तो

खुद

निर्णय

लेने

की

आदत

पड़

गयी

है।

औरतें कम उम्र में ही मैच्योर्ड हो जाती है- नंदा

“शायद इसलिए आप शादी नहीं कर रहीं है क्योंकि आपको ऐसा व्यक्ति नजर ही नहीं आ रहा है, न?

हाँ

,

शायद

ठीक

कह

रही

हो

,

यहाँ

सभी

लोग

शादी

को

एक

खानापूर्ति

समझने

लगे

हैं

सात

फेरे

कुछ

रस्में

बस

लेकिन

शादी

को

मैं

एक

रस्म

नहीं

मानती हूँ

,

यह

एक

बॉन्ड

है

,

अंदर

से

किसी

को

पाने

की

,

अपना

बनाने

की

तमन्ना

है

,

उसके

सुख

-

दुख

में

शामिल

होने

की

तीव्र

इच्छा

ही

शादी

को

बाध्य

कर

सकती

है,

मैं

सिर्फ

इस

वजह

से

शादी

नहीं

करूंगी

कि

,

भई

मुझे

शादी

करना

है।

यँ

तो

बहुत

से

प्रपोजल

आते

हैं

कहते

हैं

मेरे

पास

गाड़ी

है

,

पैसा

है

दस

बंगले

हैं

बस

एक

बीवी

की

कमी

है

,

तो

जनाब

मैं

उस

तरह

की

नहीं

हूँ

कि

सिर्फ

कमी

को

भरने

के

लिए

शादी

कर

लूँ

,

नहीं

मैं

मानसिक

इन्वॉल्वमेन्ट

को

महत्त्वपूर्ण

मानती

हूँ

अच्छा एक बात तो बताईये कि आपको आज चरित्र अभिनेत्री के कंपटीशन में कैसा महसूस हो रहा है ?

कंपटीशन

से

मैं

पहले

भी

कभी

घबराई

नहीं

थी

जब

कि

मैं

टॉप

की

हीरोइन

थी

और

जब

दस

और

अच्छी

हीरोइनें

मेरे

साथ

स्पर्धा

में

थी

तो

जब

उस

वक्

नहीं

घबराई

तो

अब

कैसे

कुछ

फील

करूँ।

बल्कि

कंपटीशन

तो

मुझे

अच्छा

लगता

है

पता

तो

चलता

है

कि

चलो

इतने

वेहतरीन

कलाकारों

से

मैं

कंपीट

कर

रही

हूँ।

सुना है अपने समय में आप बहुत ज्यादा नकचढ़ी थी, यानि हमेशा तेवर आपके नाक पर होते थे?

यह

कहाँ

से

सुना

तुमने

.

मैं

तो

हमेशा

सबके

साथ

बहुत

नाॅर्मली

बिहेव

करती

थी

.

उस

समय

के

सभी

कलाकार

,

हीरो

चरित्र

अभिनेता

खुद

मेरे

पास

आकर

अपना

दुःख

दर्द

मुझे

बताते

थे।

अब

तुम्हीं

सोचो

कि

जो

लोग

मुझसे

अपना

दुख

दर्द

बतायें

वो

मुझे

कितना

अपना

समझते

होंगे

.

अगर

मैं

नकचढ़ी

होती

तो

क्यों

कर

मैं

किसी

का

दुख

दर्द

बाँटती।

कई

घंटों

में

उनके

साथ

बात

करती

क्

यों

मैं

उन्हें

सही

राय

देने

की

कोशिश

करती

,

शायद

मेरा

इतना

कहना

ही

काफी

है।

औरतें कम उम्र में ही मैच्योर्ड हो जाती है- नंदा

“नंदा जी आप अपने घर में एक बेटी नहीं बेटा बनकर रहीं हैं न, तो क्या आप बता सकती हैं कि बेटा बनकर तो आपने बहुत कुछ किया लेकिन लड़की के कितने गुण आपने इख्तियार किये ?

मैं

लड़की

हूँ

और

स्त्रियोचित्त

सभी

गुण

मुझमें

हैं

,

सिर्फ

स्त्रियों

की

तरह

मुझे

हतोत्साहित

होना

नहीं

आता

(

मैं

सभी

स्त्रियों

की

बात

नहीं

कर

रही

हूँ

)

बाकी

मैं

किसी

भी

घरेलू

लड़की

की

तरह

ऐसा

खाना

बना

सकती

हूँ

कि

अच्छे

से

अच्छा

कुक

भी

हाथ

मलते

रह

जाये।

मैंने

कुकिंग

क्लास

ज्वाइन

की

थी,

नृत्य

भी

आता

है

मुझे

,

संगीत

में

भी

रूचि

रखती

हूँ

बच्चों

से

मुझे

बहुत

प्यार

है

अब

बताओं

कि

या

मैं

दोनों

की

भूमिका

नहीं

निभा

रही

हूँ

?  

“कुछ अपने बारे में बताइये ?

इतने

देर

से

तो

बता

रही

हूँ

“अच्छा बताईये कि क्या आप जिद्दी हैं?

मैं सिर्फ अपने प्रिंसिपल्स के मामले में जिद्दी हूँ, चाहे धरती इधर से उधर हो जाए मैं अपने प्रिंसिपल्स नहीं छोड़ सकती

“आपका भाई जयप्रकाश नारायण तो अब निर्माता भी बन गया है, आप उन्हें एक बहन के नाते क्‍या सहायता दे रहीं है?

मेरा

भाई

बहुत

महत्वाकांक्षी

है

,

वह

जो

कुछ

करेगा

अपने

आप

करेगा

वह

ऐसा

ही

चाहता

है

आखिर

प्रिंसिपल

का

वह

भी

पक्का

है,

हाँ

मेरी

मॉरल

सपोर्ट

तो

है

ही।

आप ज्यादा फिल्में क्‍यों नहीं कर रही है? 

मैंने

एक

समय

में

बहुत

फिल्में

की

हैं

.

मैं

आराम

से

काम

करने

के

पक्ष

में

हूँ,

मुझसे

हर

राह

में

और

फिल्म

झपटी

नहीं

जाती

.

आखिर

क्

यों

मैंने

बहुत

पैसा

कमा

लिया

है

यह

बात

तो

है

नहीं

कि

पैसे

के

खातिर

काम

करना

है

,

जो

आये

लपक

लो।

हीं

मैं

तो

सिर्फ

अपने

अंदर

छुपी

एक

और

नंदा

जिसका

दूसरा

नाम

प्रतिभा

है

,

उसको

संतुष्ट

करने

के

लिए

कभी

कभार

दो

चार

फिल्में

स्वीकार

कर

लेती

हूँ,

मैं

किसी

दौड़

में

शामिल

नहीं

होना

चाहती।

आपके जमाने में जो आपके हीरो थे वे आज भी हीरो हैं जब कि आप माँ भाभी बीच में बात काटते हुए वे मेरे इस अंतिम सवाल का जवाब बहुत ही सुन्दर नजाकत के साथ देती हैं

देखो

यह

तो

दर्शकों

पर

निर्भर

करता

है

कि

वे

कब

तक

किसे

किस

रूप

में

पसंद

करें,

यूँ

भी

कहा

जाता

है

कि

औरत

कम

उम्र

में

अधिक

मैच्योर्ड

हो

जाती

है।

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