आज वो समय है जब कोई 5 साल का बच्चा भी अगर अपने माँ बाप से कहे कि उसे बॉलीवुड में एक्टर या एक्ट्रेस बनना है तो माँ-बाप ख़ुद उसकी तैयारी करवाते हैं पर 1949 में ऐसा बिल्कुल नहीं था. अव्वल तो किसी लड़के के लिए ही फिल्मों में काम करना मतलब बुरा काम करना था और लड़कियों के लिए थे बाकायदा गुनाह कहलाता था. लेकिन इसाबेल थोबर्न कॉलेज लखनऊ में पढ़ी कृष्णा सरीन उर्फ़ बीना राय इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थीं.
बचपन से ही उनका मन एक्टिंग में लगता था. वह कॉलेज टाइम से ही थिएटर, नाटक, एक्टिंग आदि करती रहती थीं. उनका परिवार आज़ादी से पहले लाहौर में रहता था और लाहौर से तो आप जानते ही हैं कि कितने फिल्मकार और संगीतकार मुम्बई आए थे.
मगर जब कृष्णा सरीन का परिवार बॉर्डर क्रॉस करके आया तो उन्हें उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में जगह मिली और उन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई लखनऊ में करवाई. (लखनऊ कानपुर की दूरी 100 किलोमीटर से भी कम है)
अब अपनी बेटी की ऐसी खतरनाक ख्वाहिश, कि उसे एक्टिंग करनी है और विज्ञापनों के लिए होने वाले एक कांटेस्ट में हिस्सा लेना है; माँ-पिता को बिल्कुल रास नहीं आई और उन्होंने साफ़ मना कर दिया. कृष्णा सरीन मनाती रहीं, मनुहार करती रहीं पर जब उनके माँ-बाप अड़ गए कि नहीं हम नहीं मानेंगे, तब कृष्णा ने आख़िरी बाण चलाते हुए खाना-पीना छोड़ दिया और वो भी जिद लेकर बैठ गयीं कि जबतक वह उसे मुंबई नहीं भेजेंगे वह खाना नहीं खाएगी.
बच्चे की जिद के आगे भला किसी माँ-पिता की चली है, आखिर वह भी टूट गए और उस कांटेस्ट में हिस्सा लेने के लिए मुम्बई भेज दिया. कृष्णा सरीन ने न सिर्फ उस कांटेस्ट में भाग लिया बल्कि वह उसे जीती भीं और उन्हें सन 1950 में 25000 रुपये जैसी बड़ी रकम का पुरस्कार भी मिला और साथ ही कृष्णा सरीन अब नाम बदलकर बन गयीं ‘बीना राय’
इस विज्ञापन के साथ-साथ किशोर साहू की फिल्म काली-घटा (1951) 13 जुलाई को रिलीज़ हुई. इस फिल्म के दौरान ही उन्हें एक्टर प्रेम नाथ से प्यार हो गया और फिल्म की रिलीज़ के दिन ही उन्होंने प्रेमनाथ से सगाई भी कर ली.
इसके ठीक एक साल बाद, 1952 में वह प्रेमनाथ की पत्नी बनी और इन दोनों ने अपना प्रोडक्शन हाउस खोल लिया. प्रेम नाथ और बीना ने फिल्म औरत (1953) में पहली बार काम किया. हालंकि यह फिल्म नहीं चली. इसके बाद शगूफा, समुन्द्र और वतन नामक फ़िल्में भी फ्लॉप हो गयीं.
लेकिन प्रदीप कुमार के साथ उनकी फिल्म घूँघट उनके कैरियर की बेस्ट फिल्म मानी जा सकती है. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला. फिल्म ताज महल और अनारकली में भी उनके एक्ट की सराहना हुई और उनके फैन्स की लिस्ट बढ़ती ही चली गयी.
प्रेम नाथ और बिना राय ने, जिनका असली नाम कृष्णा सरीन था; अपने बेटे का नाम ‘प्रेम कृष्ण’ रखा और प्रेम कृष्ण ने भी फिल्मों में काम किया. उन्होंने फिल्म ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’ में अहम रोल किया था और वही उनकी इकलौती हिट फिल्म भी है.
बीना राय ने एक समय बाद एक्टिंग छोड़ दी, हालाँकि उनका कहना था कि अब उनकी उम्र ज़्यादा हो गयी है इसलिए कोई उन्हें कास्ट करता ही नहीं है. उनकी तीसरी पीढ़ी में उनका पोता, सिद्धार्थ मल्होत्रा भी शोबिज़ इंडस्ट्री से जुड़ा हुआ है और सुपर हिट सीरियल संजीवनी डायरेक्ट किया है.
यूँ तो 1992 में प्रेमनाथ की मृत्यु के बाद वह अकेली हो गयी थीं पर 17 साल बाद 6 दिसम्बर 2009 को उन्होंने शरीर त्याग दिया लेकिन बहुत छोटे से अंतराल में भी बीना राय ने अपनी ऐसी पहचान बनाई जो आज तक कायम है.