Boycott Thappad / अब फिल्मों में नहीं बल्कि फिल्मों पर हो रही है 'राजनीति' By Pooja Chowdhary 27 Feb 2020 | एडिट 27 Feb 2020 23:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर आखिर समाज क्यों कर रहा है ‘थप्पड़’ का विरोध?(Boycott Thappad) फिल्में समाज का आईना होती हैं और समाज में होने वाली तमाम घटनाओं से प्रेरित होती हैं। जब ऐसा है तो फिर 'थप्पड़' का विरोध क्यों(Boycott Thappad)...? अनुभव सिन्हा ने जब समाज की सच्चाई को बड़े पर्दे पर बयां किया तो अब उसी का विरोध क्यों? एक महिला जो अपने अस्तित्व पर पड़े एक थप्पड़ पर विरोध जता रही है, उसका विरोध क्यों? इस शुक्रवार तापसी पन्नू स्टारर फिल्म 'थप्पड़' रिलीज़ हो गई है। फिल्म में बेहद ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे 'घरेलू हिंसा' को बेहद ही अनूठे अंदाज़ में उठाया गया है। लेकिन क्या फिल्म को राजनीति में घेरकर इसके असल मुद्दे को समाज तक पहुंचने से रोका जा रहा है। क्यों हो रहा है 'थप्पड़' का विरोध?(Boycott Thappad) एक समय था जब फिल्में राजनीति पर बना करती थीं। जैसे राजनीति, अपहरण, गुलाब गैंग, गुलाल, नायक, सत्ता...लेकिन लगता है अब दौर बदल चुका है। अब फिल्मों में राजनीति नहीं बल्कि फिल्मों पर राजनीति होती है। दीपिका पादुकोण की छपाक और तापसी पन्नू की 'थप्पड़' इसका ताज़ा उदाहरण है। हालांकि पिछले दो- एक सालों के आंकड़े टटोलेंगे तो ऐसे और भी कई नाम मिल जाएंगे। फिलहाल इनकी ही बात कर लेते हैं। सीएए(CAA) और एनआरसी(NRC) का मुद्दा आज क्या रूप ले चुका है इसका अंदाज़ा दिल्ली हिंसा में मरने वालों के आंकड़ों को देखकर लगाया जा सकता है। और अब 'थप्पड़' को इन्ही मुद्दों से जोड़ दिया गया है। तापसी का सीएए और एनआरसी विरोधी मार्च में शामिल होना उनका निजी फैसला था..लेकिन समाज के ठेकेदारों ने इसे उनकी प्रोफेशनल लाइफ से जोड़ा और शुरू हो गया 'थप्पड़' का विरोध।(Boycott Thappad) इस पर तापसी ने क्या कहा ? फिल्म थप्पड़ के बायकॉट की जब बात उठी तो तापसी का व्यू भी सामने आया। तापसी ने कहा - 'किसी हैशटैग को ट्रेंड कराने के लिए 1000-2000 ट्वीट्स की जरूरत होती है। क्या इससे किसी फिल्म पर वाकई फर्क पड़ता है? मुझे तो नहीं लगता मेरे सोशल और पॉलिटिकल व्यूज कई लोगों से अलग हो सकते हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि लोग जाकर मेरी फिल्म नहीं देखेंगे। एक एक्टर कभी भी फिल्म से बड़ा नहीं होता। एक फिल्म में सैकड़ों लोग काम करते हैं। किसी एक ऐक्टर की सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा पर फिल्म देखना न देखना तय करना मूर्खता है।' सच है जनाब....फिल्म केवल डायरेक्टर और एक्टर की ही मेहनत से नहीं बनती। बल्कि हज़ारों हाथ जुड़े होते हैं एक फिल्म के निर्माण में। हज़ारों पेट होते हैं जो भरते हैं एक फिल्म से और सैंकड़ों घर चलते हैं एक फिल्म से। तो भला किसी एक की राय का असर सभी पर क्यों..? ज़रा सोचिए। फिल्म 'थप्पड़' को देखकर घरेलू हिंसा का विरोध कीजिए फिल्म के विरोध पर अफसोस नहीं...चाहे छपाक हो या फिर थप्पड़। जिस तरह तापसी या दीपिका को उनकी निजी राय रखने के लिए रोका नहीं जा सकता। ठीक उसी तरह लोग भी आज़ाद हैं फिल्म को देखने या ना देखने के लिए। लेकिन अफसोस है उन मुद्दों की अनदेखी का जो शायद समाज बदलने का दम रखते हैं। सामाजिक सोच बदलने की ताकत रखते हैं और महिलाओं की थोड़ी ही सही लेकिन भारतीय समाज में उनकी अहमियत बढ़ाने की बात करते हैं। छपाक और थप्पड़ दोनों ही फिल्में एक ठोस मैसेज देती हैं समाज को। सिर्फ निचले तबके ही नहीं बल्कि खुद को गूढ़ और विवेकी का तमगा देने वाले उस समाज को भी जो हर गलत काम बंद दरवाज़े के पीछे करता है। इसीलिए सवाल उठा है कि आखिर समाज क्यों कर रहा है 'थप्पड़' का विरोध(Boycott Thappad)? और पढ़ेंः कई सवाल खड़े करता है तापसी पन्नू की नई फिल्म ‘हसीन दिलरुबा’ का पोस्टर #bollywood news in hindi #Bollywood updates #Tapsee Pannu #Anubhav Sinha #Thappad #Thappad Movie Review #Boycott Thappad #Protest against Thappad #Thappad Boycott #Thappad Movie #Thappad Movie Boycott #Thappad Review हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article