मराठी रंगमंच, मराठी फिल्म और हिंदी फिल्मों में हमेशा सक्रिय रहे अभिनेता, लेखक, निर्देशक विक्रम गोखले का 26 नवंबर 2022 को 77 वर्ष की उम्र में बीमारी से निधन हो गया. पर वह अपनी कला व व्यक्तित्व के चलते आज भी लोगों के दिलो दिमाग में बसे हुए हैं. वह लगातार दो कार्यकाल तक कलाकारां की संस्था ''सिंटा'' के प्रेसीडेट भी रहे. वह हमेशा हर कलाकार के हित के बारे में ही सोचते थे. अभिनेता और 'सिंटा' के महासचिव अमित बहल तो विक्रम गोखले को पिता समान मानते थे.
अमित बहल, विक्रम गोखले को भुला नही पा रहे हैं. वह उनकी बातें करते हुए भावुक हो जाते हैं.अमित बहल से हमने जब विक्रम गोखले के संदर्भ में बातें की, तो अमित बहल ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपनी यादों को बताया…
विक्रम गोखले जी से आपकी पहली मुलाकात कब हुई थी?
विक्रमजी से मेरी पहली मुलाकात तब हुई थी, जब मैं संघर्षरत रंगमंच का कलाकार था. यह अस्सी के दशक की बात है. उस वक्त विक्रम गोखले जी तो मराठी के सुपरस्टार कलाकार थे. उन दिनों वह 'बैरिस्टर' नामक नाटक कर रहे थे. तो मैं उनके इस नाटक को रवींद्र नाट्य मंदिर और दीनानाथ हाल दोनों जगह पर देखने गया था. मराठी रंगमंच से मेरा शुरू से ही लगाव रहा है. क्योंकि मेरी मम्मी कॉलेज में हिंदी की प्रोफेसर थी, लेकिन उनका पूरा ग्रुप मराठी साहित्यकारों व रंगकर्मियों का था. तो मैंने पहली बार 'बैरिस्टर नाटक' में विक्रम गोखले जी को अभिनय करते हुए देखा था. मुझे यह पता था कि वह चंद्रकांत गोखले के बेटे हैं. उसके बाद फिल्म 'अग्निपथ' में उन्होंने अमिताभ बच्चन जी के साथ एक सीन किया था, उस दृश्य ने मेरे दिल को छू लिया था. उसके बाद विक्रम जी एक हिंदी नाटक निर्देशित करने वाले थे. यह उनके मराठी नाटक का हिंदी रूपांतरण ही था. जिसके लिए उन्हे एक युवा हिंदी भाषी कलाकार की तलाश थी. तो किसी के कहने पर उन्होने मुझे मिलने के लिए बुलाया था. इसलिए उनसे मुलाकात हुई थी. फिर जब मैं 'सारा आकाश' और 'छूना है आसमान' इन दो सीरियलों की शूटिंग करने पुणे गए थे, तब उनके नेफ्यू व उनकी बेटी से भी मुलाकात हुई थी. उनके नेफ्यू एयरपोर्ट पर कार्यरत थे. तभी मुझे पता चला था कि विक्रम गोखले जी और मेरा जन्म एक ही दिन यानी कि तीस अक्टूबर को हुआ है.
उसके बाद 'पद्मालय', जिसके मालिक स्व. कृष्णा की एक फिल्म ''इश्क है तुमसे'' की थी. इसमें विक्रम गोखले जी के अलावा हिमानी शिवुपरी, टीकू तलसानिया व नीना कुलकर्णी, डीनो मोरिया,रेशम टिपनिस भी थी. इस फिल्म में विक्रम जी ने मेरे पिता का किरदार निभाया था. इसी फिल्म के सिलसिले में हमारी पहली मुलाकात हुई थी.
'फिल्म 'इश्क है तुमसे' के वक्त स्व.विक्रम गोखले जी से मुलाकात के संदर्भ में कुछ विस्तार से बताएंगे?
फिल्म 'इश्क है तुमसे' के लिए हमारी हैदराबाद की सुबह आठ बजे की फ्लाइट थी. यानी सुबह छः बजे हमें एयरपोर्ट पहुंचना था. मैं और विक्रम जी एक साथ एयरपोर्ट पहुॅचे. विक्रमजी वही अपने ट्रेडमार्क्स वाली पोशाक यानी कि कुर्ता पायजामा में थे. वह ऑटो रिक्शा से उतरे, उनके हाथ में सामान था. जबकि मैं गाड़ी में पहुॅचा था, मेरा ड्राइवर भी था. तो मैंने उनसे मराठी में पूछा कि, 'सर आपकी मदद करुं?' उन्होंने तुरंत कहा-'किसलिए?'. मैंने उनसे मराठी में ही कहा-'' मैं फिल्म में आपके बेटे का किरदार निभा रहा हॅूं.'तब उन्होने कहा-''ठीक है. सामान ले लो.' मैंने ट्रॉली में अपना व उनका सामान लोड किया. चेकिंग होने के बाद हम एयरपोर्ट के लाउंज में बैठकर गपशप करते रहे. उनका व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा था, कि मैं क्या कहॅूं. विक्रम जी बारे में कुछ भी बात करने के लिए मैं तुच्छ इंसान हॅूं.
मुझे याद है कि हमने वड़ा पाव खाने के साथ ही चाय पी थी. फिर हमारे बीच मराठी भाषा में ही बातचीत होती रही. उन्होंने तीस अक्टूबर को अपने जन्म दिन से लेकर रंगमंच के तमाम अनुभवों के बारे में बताया. तो मैं उनसे बहुत प्रभावित हुआ था. हैदराबाद में रामोजीराव फिल्मसिटी स्टूडियो में हमारा 20 दिन का पहला शेड्यूल हुआ था. उस वक्त उन्हें लगा होगा कि यह बहुत पकाउ व इरीटेटिंग इंसान है. आखिर यह मुझसे कितना लेगा? जबकि मेरे दिमाग में था कि विक्रम जी अपने आप में एक इंस्टीट्यूशन हैं. फिर पता नहीं इनसे मुलाकात हो या न हो, इतनी लंबी बात करने का अवसर मिले या न मिले. आखिरकार मेरे सामने एक कलाकार थे, जिसके सामने बड़े से बड़े कलाकारों की हिल जाती थी. मुझे यह बात कहने में कभी झिझक नही होती. यह बात परेश रावल, शबाना आजमी, नसीरुद्दीन शाह ने भी कही है. जबकि यह सभी महान कलाकार हैं.
विक्रम जी सही मायनो में एक महान कलाकार थे. एक ऐसे कलाकार, जो एक दिन अचानक निर्णय लेते हैं कि, 'मैं एक्टिंग से बोर हो गया हूं. और 5 साल तक पुणे में जाकर खेती-बाड़ी करते रहते हैं. आखिर उनके अंदर कुछ तो जिगरा रहा हो. वह सिर्फ कलाकार ही नहीं, लेखक, निर्देशक, शिक्षक के साथ बेहतरीन एडमिनिस्ट्रेटर थे. मैंने अपनी जिंदगी में ऐसा आदमी आज तक नहीं देखा. मैं यह बात ऑन रिकॉर्ड बोल रहा हॅू.
बीस दिन हमने एक साथ रामोजीराव फिल्मसिटी में जो समय बिताया था, वह कमाल का अनुभव था. पूरे 20 दिन, हर रोज बातचीत व गपशप होती थी. उनके अंदर एक छोटा सा बच्चा था. खाने पीने को लेकर हर चीज में. हम सितारा में रुके हुए थे. वहां दो होटल हैं'- एक तारा एक सितारा. तारा तीन स्टार और सितारा पांच स्टार. तो विक्रम जी, आलोकनाथ, मैं, नीना कुलकर्णी, हिमानी जी! हम सभी मुख्य कलाकार सितारा में रुके थे, बाकी लोग तारा में रुके थे. तो अक्सर विक्रम जी कहते थे कि 'सितारा का भोजन बहुत खराब है. इसलिए हम लोग तारा में जाकर खाना खाएंगे. मैंने बोला, ठीक है! वहां का डोसा, वहां का चिकन 65, फ्राइड टोस्ट आमलेट सब अलग- अलग वैरायटी का भोजन था. बहुत ही यादगार शेड्यूल रहा. फिर दूसरा और तीसरा शेड्यूल हुआ. अफसोस यह फिल्म कुछ खास चली नहीं.
आपने विक्रम जी के साथ किसी सीरियल में भी काम किया था?
जी हॉ! उसके बाद हमने एक साथ एक सीरियल का पायलट एपीसोड किया था, जिसे स्वप्ना जोशी ने निर्देशित किया था.
विक्रम जी तो सिंटा के अध्यक्ष भी रहे?
आपने एकदम सही कहा. जब ओम पुरी जी का असामायिक निधन हुआ था, तब 'सिंटा' के प्रेसीडेंट पद के लिए विक्रम गोखले का नाम सामने आया था. विक्रम जी ने बाकायदा चुना लड़ा और भारी मतों से विजयी हुए थे. इतने वोट तो ओम जी को नहीं मिले थे, जितने वोट विक्रम गोखले को मिले थे? वह दूसरी बार भी चुने गए. मेरा उनका रिश्ता बहुत ही अलग था. वह अक्सर मनोज जोशी जी से कहते थे-''यह टकला है, यह पागल नहीं है. विक्रमजी तो बहुत कुछ बोलते थे.' पर मनोज जोशी मुझसे हमेशा कहते थे कि, 'उनके मन में कुछ है नहीं. और आपके मन में भी कुछ है नहीं. इसलिए आप दोनों की जमती है.''
आप लोग नेपाल जाने वाले थे?
हॉ! विक्रम जी के अस्पताल में एडमिट होने से करीब 25-30 दिन पहले की बात है. हम नेपाल जाने वाले थे. नेपाल में भारत की एक बहुत ही गलत छवि बन रही है. इन दिनों नेपाल की जनता चीन को कुछ ज्यादा सपोर्ट कर रही हैं. तो आईसीसीआर, इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशनशिप में हमारी संस्था 'सिंटा' के सीए संतोष केलकर की बहन वहां पर है. इसलिए दोनों देशो के बीच संबंधो को नए आयाम देने के लिए तय किया गया था कि 'सिंटा' की एक टीम वहां जाएगी, जिससे भारत और नेपाल के बीच कल्चरल अदान प्रदान होगा. यह पहली मीटिंग होनी थी, जिसमें मैं, मनोज जोशी, विक्रम जी के अलावा दो तीन और लोग जाने वाले थे. उसके बाद पत्रकार, दर्शक लेखक, निर्माता सहित कई लोगों की एक पूरी चार्टर्ड फ्लाइट जाने वाली थी. क्योंकि टेक्निकली हम नेपाल से बहुत बेहतर है. इसलिए वहां पर प्रॉपर वर्कशॉप भी होना था. एक प्रापर मीटिंग होनी. पर हमें पता चला कि विक्रम जी बीमार हैं, तो हमने अपने ऑफिस की मैनेजर मुग्धा से कहा था, अभी इस बारे में विक्रम जी को कुछ मत बताना. लेकिन 'सिंटा' के सी ए सीधे विक्रम गोखले जी के पास पहुॅंच गए. उसी वक्त विक्रम जी ने मुझे वीडियो काल किया,उस वक्त मैं एक फिल्म की शूटिंग कर रहा था. विक्रम जी ने कहा, ''अमित केलकर जी आए हुए. तो ठीक है. में नेपाल चलॅूंगा.'' मैंने अपना माथा पीट लिया कि विक्रम जी बीमार हैं और केलकर जी उनके पास चले गए.
सुना है कि विक्रम जी कुछ जमीन देकर गए हैं?
जी हॉ! विक्रम जी हमेशा हर कलाकार के बारे में सोचा करते थे. उन्होंने बुजुर्ग कलाकारों की बेहतरी व सुविधा के लिए एक एकड़ जमीन 'मराठी कलाकार संघ' अैर एक एकड़ जमीन 'सिंटा' को देकर गए हैं. उनकी पत्नी ने मुझे बताया कि विक्रम जी जमीन की रजिस्ट्री से लेकर सात बारा का उतारा सहित सारी कार्रवाही करके गए है.
'कोविड-19' के दौरान वह सीधे स्पीकर पर उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे, नरेंद्र मोदी, अमित शाह हर किसी से बात करते थे कि कलाकारों को किस तरह सुविधा दी जाए. उनका तो अपना एक स्टेटस रहा है. कोविड के वक्त बीमार होते हुए वह हमारी हर जूम मीटिंग का हिस्सा हुआ करते थे. मैं तो अक्सर मनोज जोशी से बातें करते थे कि विक्रमजी को पद्मश्री वगैरह क्यों नहीं मिली?
खैर, उन्हें नेशनल अवॉर्ड तो मिला था. उन्होंने रंगमंच, सिनेमा सहित हर क्षेत्र में जितना काम किया है, उतना किसी ने नहीं किया. पर उस इंसान ने अपने लिए कभी किसी से कुछ मांगा ही नहीं. हमने एक लीजेंड खोया है. मैंने तो अपना पिता खोया है.