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दीपावली त्यौहार, मैं अपने ससुराल परिवार और मायके परिवार के साथ मनाना पसंद करती हूं। दीपावली के वो तीन दिन यूँ चुटकियों में कैसे खत्म हो जाते है और हमें फिर से अगली दिवाली तक का इंतजार करना पड़ता है। बचपन में मैं जितनी उत्साह के साथ यह त्यौहार मनाती थी, वैसा ही उत्साह अब मेरी बेटी में भी नजर आने लगा है। मैं बचपन में घर की संपूर्ण सजावट और साफ सफाई के कार्यक्रम देखती तो मुझे दीपावली त्यौहार के आहट का अंदाजा हो जाता था। त्यौहार का आनंद, पूजा, रिश्तेदार दोस्तों की रौनक और स्कूल की छुट्टी, यह सब कुछ एक साथ मिलकर दीपावली त्यौहार को एक संपूर्ण उत्सव के उजाले से भर देता था। मैं बता नहीं सकती कि हम बच्चे कितनी बेसब्री से दीपावली का इंतजार करते थे। आज जब अपने घर में मैं दीपावली की सजावट देखती हूं तो बचपन की याद आ जाती है। बेटी आराध्या भी समझने लगी है कि कुछ स्पेशल होने वाला है। मुझे पटाखों का खास शौक कभी नहीं रहा, मेरी बेटी को भी नहीं है, हाँ, अपने दादाजी के साथ आराध्या फुलझड़ियां जरुर जलाती है। घर जब ढेर सारे कंदीलों से जगमग जाता है तो मन में भी हजार दीपों के उजाले रोशन हो जाते है। आप सबको दीपावली की शुभकामनाएं।