हिंदी फिल्मों के जाने माने अभिनेता अमोल पालेकर सरकार के खिलाफ अपने एक बयान को लेकर सुर्खियों में आ गए हैं। साथ ही नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) के कार्यक्रम में भाषण रोके जाने पर बॉलीवुड अभिनेता-निर्देशक अमोल पालेकर ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम में बुलाया गया लेकिन उन्हें खुलकर विचार नहीं रखने दिया गया। इससे साफ है कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है, लेकिन वह चुप नहीं रहेंगे।
अमोल ने कहा, एनजीएमए की निदेशक वहां मौजूद थीं। उन्होंने कहा कि अपनी बात रखने से पहले मुझे बताना चाहिए था। इस पर मैंने कहा कि क्या पहले मेरा भाषण सेंसर किया जाता। मैंने भाषण में एनजीएमए के उन नियमों की ही बात की, जिन्हें बदल दिया गया है। मेरे मुद्दे से हटकर भाषण देने की बात पूरी तरह से गलत है। मुंबई के दो कलाकारों की प्रदर्शनी भी होनी थी। इसकी इजाजत देते हुए तारीख तय कर दी गई थी। बाद में उन्हें मना कर दिया गया। क्या यह सरकार के इशारे पर किया जा रहा है? मैं यह मुद्दा लोगों के सामने रख रहा था, लेकिन मुझे रोक दिया गया। इससे मैं आहत हूं। अगर हम एनजीएमए में नहीं बोल पाएंगे तो कहां बोलेंगे।
आपको बता दें, कि सोशल मीडिया पर शनिवार को एक वीडियो वायरल हो रहा था, जिसमें पालेकर को संस्कृति मंत्रालय की आलोचना करते देखा जा रहा है। एनजीएमए की मुंबई और बंगलूरू स्थित गैलरी से एडवाइजरी कमेटी को हटा दिया गया है, जिसके विरोध में वह अपनी बात रख रहे थे। मंच पर मौजूद एनजीएमए के सदस्यों ने टोकाटाकी की और उन्हें कार्यक्रम से जुड़े मुद्दे पर ही बात रखने को कहा। फिर भी पालेकर ने भाषण जारी रखा। हालांकि, लगातार टोका-टाकी के चलते वह भाषण बीच में ही रोककर बैठ गए।
कार्यक्रम की आयोजक जेसल ठक्कर ने कहा कि वह पालेकर का बहुत सम्मान करती हैं। उनका इरादा उन्हें ठेस पहुंचाने या भाषण को रोकने का नहीं था। हमने उनसे सिर्फ प्रभाकर बर्वे से संबंधित यादों को साझा करने को कहा था। यह कार्यक्रम उनकी मृत्यु के 24 साल बाद हो रहा था। वहीं, पालेकर के मामले में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि मोदी सरकार बस यही काम कर रही है। उसके खिलाफ बोलो तो देशद्रोह हो जाता है। सरकार किसी को बोलने नहीं दे रही है। यही न्यू इंडिया है। देश बदल रहा है। मोदी इन्हीं अच्छे दिनों की बात करते थे।
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने ट्वीट किया कि हमारे सांविधानिक अधिकारों का पूरा सार, सरकार और उसके नेताओं की आलोचना करने की स्वतंत्रता पर आधारित है। कोई भी आलोचना से ऊपर नहीं है। अमोल पालेकर को भाषण पूरा नहीं करने देना अलोकतांत्रिक और निंदनीय है।