सुभाष घई के साथ बतौर मुख्य सहायक निर्देशक और फिर फिल्म ‘‘कांची’’ में सहायक रचनात्मक निर्देशक काम कर चुके अंशुमन झा ने बतौर अभिनेता अपने अभिनय करियर की शुरूआत दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘‘लव सेक्स और धोखा’’ से की थी. उसके बाद वह ‘‘यह है बकरापुर’’, ‘चौरंगा’, ‘मोना डार्लिंग’, ‘अंग्रेजी में कहते हैं’ और ‘नो फादर्स इन कश्मीर’, ‘हम भी अकेले तुम भी अकेले’ फिल्मों के अलावा ‘मस्तराम’ व ‘बब्बर का टब्बर’ जेसी वेब सीरीज में अपने अभिनय का जलवा दिखा चुके हैं. इन दिनों वह अपनी फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ को लेकर चर्चा में हैं, जो कि 13 जनवरी 2023 को सिनेमाघरों में पहुॅची है. अंशुमन झा ने इस फिल्म में ‘पशु प्रेमी’ का किरदार निभाने के साथ ही इसका निर्माण भी किया है, जबकि फिल्म के निर्देशक विक्टर मुखर्जी हैं.
प्रस्तुत है अंशुमन झा से हुई बातचीत के अंश..
करियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?
- 2002 में पृथ्वी थिएटर पर मेरा पहला नाटक हुआ था. 2002 से 2023 यानी कि 21 वर्ष. इस दौरान मैंने पढ़ाई भी की.जब आप कोई काम जिंदगी में जल्दी शुरू करते हैं, तो उसके कुछ फायदे कुछ नुकसान होते हैं. नुकसान यह हे कि मैं जो कुछ आज बोल रहा हॅूं, वह मैं बीस वर्ष की उम्र में भी बोलता था. लेकिन तब मुझे गंभीरता से नही लिया जाता था.अब इसलिए गंभीरता से लिया जाता है,क्यांकि अब मैं वयस्क हॅूं. पैंतिस वर्ष का लड़का हूॅॅं.मेरा मानना है कि समस्या परसेप्शन में है न कि मुझमें.
आपके सवाल का जवाब यदि स्पष्ट रूप से दॅूं तो बैरी जॉन के यहा से अभिनय का कोर्स करना भी एक टर्निग प्वाइंट था.‘मनी हनी’ करना भी टर्निंग प्वाइंट था.उससे मैने अभिनय के बारे में बहुत कुछ सीखा.पृथ्वी थिएटर पर पहला नाटक करना, सुभाष घई के साथ चीफ असिस्टैंट के रूप में काम करना.‘लव सेक्स और धोखा’ के लिए ऑडीशन देना, जब हमने अपनी पहली फिल्म ‘मोना डर्लिंग’ बनायी. और अब ‘लकड़बग्धा’ बड़ा टर्निंग प्वाइंट है.निजी स्तर पर पिछले वर्ष मैंने अमरीकन लड़की सियारा से शादी की,यह भी मेरे लिए बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा.
फिल्म ‘लकड़बग्घा’ की कहानी का बीज कहां से मिला?
- हमारे दिमाग में एक एक्शन दृश्य 2014 से घूम रहा था. जब मैं विक्टर मुखर्जी के साथ अरूणाचल प्रदेश में एक वेब सीरीज में अभिनय कर रहा था,तभी एक दिन मैने विक्टर से इस दृश्य का जिक्र किया था और तय हुआ कि हम इस पर एक्शन फिल्म का निर्माण करेंगे. इसके अलावा हमें भारतीय नस्ल के कुत्तों को बचाने की बात करने वाली फिल्म बनानी थी.फिर हमने हिंदुस्तान के सबसे बड़े कॉमिक बुक लेखक आलोक शर्मा से कहानी लिखवायी. जिसमें हमने कुछ रीयल घटनाओं को जोड़ा.मसलन-कलकत्ता में 2018 में घटी घटना को भी जुड़वाया, जब मटन के नाम पर कुत्ते का मांस बेचा जा रहा था.हमारी फिल्म इस घटनाक्रम के बारे में नही है,मगर उस घटना से ही फिल्म की शुरूआत होती है.हमने अपने इर्द गिर्द हो रही सत्य घटनाओं को फिल्म में पिरोने पर जोर दिया.2021 में पूरे पांच वर्ष बाद कार्बेट नेशनल पार्क में एक आहिना /लकड़बग्घा दिखायी पड़ा था. फिल्म में हमने विलेन को लकड़बग्घा का अपहरण कर उसका व्यापार करने की बात की है.कलकत्ता के पोर्ट से गैर कानूनी तरीके से तमाम जानवर विदेशों में भेजे जाते हैं. सुंदरवन भी वहीं नजदीक है. तो इन सारे सत्य घटनाक्रमों को हमने काल्पनिक कहानी के ताने बाने में बुनवाया है. हमने सिक्किम पुलिस की ऑफिसर इक्शा को फिल्म में पेश किया है,जो कि मार्शल आर्टिस्ट व बाक्सर भी हैं.इक्शा ने जबरदस्त काम किया है.वह प्रतिभाशाली कलाकार हैं.2018 में कुत्ते के मांस वाली घटना ‘चाइना टाउन’ रेस्टारेंट में घटी थी,तो हमारी फिल्म में ‘चाइना टाउन’ भी अहम किरदार है.
फिल्म के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगेंं?
- फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ में मेरा अर्जुन बख्शी का किरदार बहुत ही रीयल है. दुबला पतला है. कूरियर ब्वॉय के रूप में काम करने के अलावा बच्चों को मार्शल आर्ट सिखाता है. कुत्ते पालता है.मैं संदेश देना चाहता हॅूं कि अगर आप साधारण हैं,तो सबसे अधिक शक्तिशाली हैं. क्यांकि आपके पास खोने को कुछ नही है.
एक्शन फिल्म ‘‘लकड़बग्घा’’ में इजरायली मार्शल आर्ट ‘क्राव मागा’ को महत्व दिए
जाने की कोई खास वजह रही?
- मैंने बचपन में टायकोंडे सीखा था. इसके अलावा भी मार्शल आर्ट के कई फार्म की स्टडी की. मैंने कुछ फिल्में भी देखीं.तो पाया कि हर मार्शल आर्ट में किक और पंच होते हैं. जुड़ो, कराटे, मार्शल आर्ट इन सब का एक तयशुदा फार्म है.इनका मकसद खुद की सुरक्षा करना है.पूरे विश्व में क्राव मागा ऐसा मार्शल आर्ट है,जो हर दिन इवाल्व हो रही है.यह हैंड टू हैंड स्ट्ीट फाइट है.यह तय किया था बॉडी डबल का उपयो गनही करना है. वायर का उपयोग नही करना है.इसे ख्ुद ही करना है.इसलिए इसे सीखना जरुरी था. तो हमने मुंबई में छह माह तक विक्की अरोड़ा से सीखा. फिर में न्यूयार्क गया. वहां पर फिल्म ‘अवेंजर्स’ के कलाकारों को क्राव मागा सिखाने वाले साही से सीखा. क्राव मागा में सामने वाले इंसान का कद या शारीरिक डील डौल मायने नहीं रखता. नाक पर एक मुक्का मारूं,तो पांच छह सेकेंड उसे खड़े होने में लगेगा, तब तक मैं उसके शरीर के तीन हिस्सों पर चोट कर उसे अधमरा कर सकता हॅूं. क्राम मागा का जानकर एक डाक्टर की तरह इंसान की हर नस को अच्छी तरह से समझता है.
विदेशों में आपकी फिल्म ‘लकड़बग्घा’’ को क्यां पसंद किया जा रहा है?
- हिंदुस्तान के लोगों को भ्रम है कि सुंदरता स्टेथिक है, जबकि यह सच नहीं है. सिनेमायी स्टेथिक को समझना पड़ेगा. मैं फ्रांस के मशहूर कैमरामैन को इसलिए लेकर आया कि वह कोलकाता को उस नजर से देखेगा, जिसे मैं या विक्टर मुखर्जी देख ही नहीं सकते.क्योंकि हमें लगता है कि कोलकाता के बारे में हम सब कुछ जानते हैं. पर जब हम न्यूयार्क जाते हैं,तो वहां पर हर छोटी से छोटी चीज पर गौर करते हैं, क्योंकि हम वहां पर पले बढ़े नहीं है. इसलिए हमने विदेशी तकनीकी टीम की सेवाएं ली हैं. हमारा मकसद सर्वश्रेष्ठ फिल्म व अच्छी कहानी लोगों तक पहुॅचानी है.
इस फिल्म को देखने के बाद दर्शक अपने साथ क्या ले जाएगा?
- अगर आपको जानवर पसंद है, तो आपको उनसे और अधिक प्यार हो जाएगा. आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास होगा.अगर आपको जानवरों से प्यार नहीं है, तो फिल्म देखने के बाद अवश्य हो जाएगा. आपको अहसास होगा कि हमरी जिम्मेदारी है कि हम स्ट्ीट कुत्तों के साथ ही हर जानवर का ध्यान रखें.भारतीय नस्ल के कुत्तों को एडॉप्ट करें. एक्शन प्रेमियों को फिल्म देखते हुए मजा आएगा.
आपने एक विदेशी महला सिएरा से विवाह किया है, उसके बारे में कुछ बताना चाहेंगें?
- जी हॉ! हमने पिछले साल ही विवाह किया है. मेरी पत्नी सिएरा मूलतः अमरीकन हैं.वह बहुत पढ़ाकू हैं.यूके की रॉबर्टसन युनिवर्सिटी की स्नातक हैं.खाने की शौकीन हैं.मैं भी खाने का बहुत शौकीन हॅूं. जब मेरी मम्मी की तबियत बहुत खराब थी, उन्हें कैंसर था, तब मैं उनकी दवाइयां लेने धर्मशाला गया हुआ था.मैने उनका इलाज अम्सर्टडम के अलावा धर्मशाला में कैंसर को ठीक करने वाले तिब्बतियन डॉक्टर से भी करवाया. सिएरा से मेरी पहली मुलाकात एअरपोर्ट पर हुई थी, जब मैं अपनी मॉं की दवाएं लेकर वापस लौट रहा था. उनसे बात शुरू हुई थी सॉरी से, क्यांकि उन्होने अपना बैग मेरे पैर पर चढ़ा दिया था.उसके बाद हमने एक ही हवाई जहाज में अगल बगल में बैठकर यात्रा की. उस वक्त दिमागी रूप से ऐसे हालात में था कि प्यार या रोमांस या रिश्ते बनाने की बात दिमाग में आ ही नहीं सकती थी.उस वक्त मेरा पूरा ध्यान मां में लगा हुआ था. पर ईश्वर ने उन्हे मेरे पास भेजा.सिएरा को हिंदुस्तान से बहुत प्यार है. वह धर्मशाला में पॉंच सौ घ्ांटे का योगा की शिक्षा हासिल की थी.वह अमरीका में योगा सिखाती थीं.उन्होने भी गीता पढ़ना शुरू कर दिया. उनको खाना बनाना काफी पसंद है. मेरी मम्मी भी उनसे दो बार मिली थीं. मम्मी के देहांत के वक्त भी सिएरा भारत में थीं.वह शाकाहारी हैं.जानवरों से प्यार करती हैं.वह अच्छे परिवार से आती हैं.सब कुछ अनायास और उस वक्त हुआ, जब हम सोच नहीं सकते थे.फिर ‘मस्तराम’ की शूटिंग के वक्त वह मेरे साथ थीं. वह बेहतरीन इंसान हैं. उनके अंदर भारतीयपना है.
‘‘लकड़बग्घा’’ के बाद की क्या योजना है?
- अभी कुछ दिन पहले ही फिल्म ‘हरी ओम’ की शूटिंग खत्म की है.यह बाप बेटे की कहानी है.इसमें रघुबीर यादव की मुख्य भूमिका है.इसके अलावा मेरे निर्देशन में बनी फिल्म ‘लार्ड कर्जन की हवेली’ जून जुलाई में है.