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राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता सुमन मुखोपाध्याय की हिंदी फीचर फिल्म ‘नजरबंद’ (कैप्टिव) का विश्व प्रीमियर एशिया के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण फिल्म फेस्टिवल यानी कि ‘25 वें बुसान इंटरनेशनल फेस्टिवल’ में संपन्न होगा। मूल रूप से हर वर्ष 8 अक्टूबर से शुरू होने वाला ‘‘बुसान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल’’ इस बार कोविड की वजह से 21 से 30 अक्टूबर के बीच ऑफलाइन और ऑनलाइन आयोजित होगा।
प्रख्यात बंगाली लेखक आशापूर्णा देवी की एक छोटी कहानी से प्रेरित फिल्म ‘नजरबंद’ में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की पैदाइश सुधीर मिश्रा व संजय लीला भंसाली के साथ फिल्में कर रही अभिनेत्री इंदिरा तिवारी इस फिल्म में वसंती तथा चंदू के किरदार में अभिनेता तन्मय धननिया नजर आएंगे, जिन्हें लोग ब्राह्मण, नमन, कचरा जैसी फिल्मों व कैट्स स्ट्क्सि और ‘मेड इन हेवन’ जैसी वेबसीरीज में देख चुके हैं।
कथानक:
फिल्म ‘नजरबंद’ की कहानी वसंती और चंदू की ‘प्रेम कहानी‘ है। कोलकाता की एक बड़ी जेल से पांच वर्ष बाद रिहा होने पर जेल के बाहर वसंती अपने पति का इंतजार कर रही होती है, पर उसका पति नहीं आता। उसी वक्त चंदू को भी जेल से रिहाई मिलती है। अनुभवी धोखेबाज इंसान चंदू खास मकसद से वसंती की मदद करने की पेशकश करता है। हालांकि वसंती इस अजीब आदमी चंदू के साथ बहुत सहज नहीं है। फिर भी वसंती झुग्गियों में अपनी झोपड़ी का रास्ता खोजने के लिए उसका सहारा लेती है। लेकिन जब यह दोनो इस स्थान पर पहुँचते हैं, तो उसे पता चलता है कि एक चमकदार मॉल और कुछ बहु-मंजिला इमारतों ने झुग्गियों को बदल दिया है। अपने पति या अपने सात साल के बेटे के ठिकाने के बारे में उसे कोई सुराग नहीं मिलता, इससे वसंती पूरी तरह निराश हो जाती है। चंदू जिद्दी महिला वसंती के परिवार की तलाश में शहर की भूलभुलैया मे वसंती के साथ ही रहता है। इस यात्रा में वह राजनीतिक गुंडे, मांस व्यापारी, पुलिस, रियल एस्टेट माफिया से उलझते जाते हैं। धीरे-धीरे दोनों को एक दूसरे का अतीत पता चलता है और जो आज सुबह तक एक-दूसरे के लिए अनजान थे, वह अब अपनी भावनाओं और असुरक्षा के गहरे दरारों में खो जाते हैं, क्योंकि वे गलत तरीके से चलते हैं। यह भावनाओं ( चिंता, अविश्वास, निर्भरता, घृणा, देखभाल, लालच, हताशा और आवश्यकता के साथ) की अधिकता में एक अजीब यात्रा है। उनकी यात्रा जारी रहती है और कोलकाता के धार्मिक कार्निवल में गायब हो कर अंत में बिहार के कोयला क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं। कट्टरपंथी, कभी-कभी भाग्यवादी होने के बाद उन घटनाओं के मोड़ पर पहुंच जाते हैं,जो चंदू और वसंती के जीवन में कई संभावनाओं को खोलती हैं।
फिल्म ‘नजरबंद’ के निर्माता पवन कनोडिया किसी परिचय के मोहताज नहीं है। 1991 से वह अपने प्रोडक्शन हाउस ‘एवीए फिल्म प्रोडक्शंस प्रा.लिमिटेड’ के बैनर तले विभिन्न शैलियों की 25 फिल्मों का निर्माण करते आए है। उनकी फ़िल्में टोरंटो, बुसान, बीएफआई, म्यूनिख अंतर्राष्ट्रीय समारोहों और न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स और मेलबोर्न में भारतीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित हो चुकी है। फिल्म के निर्माता पवन कनोडिया अपनी खुशी साझा करते हुए कहते हैं-“फिल्म ‘नजरबंद’ हमारे प्यार व परिश्रम का परिणाम है। हमें खुशी है कि इसका विश्व प्रीमियर ‘बुसान फिल्म समारोह’ में होने जा रहा है। यह एक शानदार शुरुआत है और हम अपनी फिल्म को दुनिया के साथ साझा करने के लिए इंतजार नहीं कर सकते।”
फिल्म के निर्देशक सुमन मुखोपाध्याय ने नजरबंद (2020) सहित कई फीचर फिल्मों का निर्देशन किया है। पॉशम पा (2019), असमाप्ता (2017), शीशेर कोबीता (2014), कंगाल मालसैट, (2013), महानगर /कोलकाता (2009), चतुरंगा (2008) और हर्बर्ट (2005) फिल्में निर्देशित कर चुके हैं। 2005 में उनकी फिल्म ‘हर्बर्ट’ ने सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था। उन्होंने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भाग लिया और पुरस्कार जीते और कई वृत्तचित्र, टीवी श्रृंखला, लघु फिल्में और सिने-नाटक भी बनाए। उन्हें मोशन पिक्चर एसोसिएशन, यूएसए और एशिया पैसिफिक स्क्रीन अवार्ड्स, ब्रिस्बेन से 2017 में स्क्रिप्ट डेवलपमेंट अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। वह अपनी नई फिल्म ‘नजरबंद’ की चर्चा करते हुए कहते हैं- “मैं इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के महत्वपूर्ण फिल्मोत्सव का हिस्सा बनने की खबर से खुश हूं। यह चयन मुझे फिल्म निर्देशक के रूप में एक नई प्रेरणा देता है।”
फिल्म के कैमरामैन लंदन में रहने वाले केट मैकडोनो, एडीटर टिन्नी मित्रा, संगीतकार प्रबुद्ध बनर्जी और बिगयाना दहल हैं. जबकि इसकी पटकथा लेखक अनुस्टुप बसु, असद हुसैन और सुमन मुखोपाध्याय हैं।
झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर फिल्मायी गयी फिल्म ‘नजरबंद’ का निर्माण पवन कनोडिया और एवीए फिल्म प्रोडक्शन द्वारा किया गया है।