यह लेख दिनांक 01-05-1988 मायापुरी के पुराने अंक 710 से लिया गया है
-अरूण कुमार शास्त्री
मुझे फूलो से प्यार है गुलाब की पत्तियां, जो सूखी रहती है, उन्हें भी मैं सहेज कर रखती हूँ. दोस्तो को गुलाब के फूल समर्पण करके मुझे आनंद मिलता है और मुझे खूब सूरत आवारगी की कभी कभी बदसूरत सजा भी मिली है और उसे भी मैंने चाहा है जबकि जमाने में वफा की उम्मीद किससे करेंगे आप? फिलहाल सुपर कैसेट की महफिल और फिल्म ‘कयामत से कयामत’ तक की केसैट के उद्घाटन का बेहद उत्तेजक मादक गुलाबी होठों के साथ आवारा एक रात.
मेरे सामने स्वरो और सुरो की दुनिया की राजकुमारी खडी मुस्कुरा रही थी. गोरे रंग के समुन्द्र में सुनहरी जुल्फों की मध्दम लहरे बड़ी-बड़ी आंखो में थिरकती ’ पुतलिया और बकौल अमीन सायनी उसके गालों की हल्की गहराई भी उभारती है उसके मुस्कुराने से और जनाब मेरा तो हाल मत पूछिये की मेरी निगाहें होठां पर टिक गई सच कहूँ मुझे लगा गुलाब की दो पत्तियां और कहूँ तो कलम थर्रा रही है लेकिन उनके सामने मैंने खड़ा बेचैन पाया और प्रदीप बांडेकर ने एक तस्वीर खींच कर मुझे मेरे कर्तव्य की याद दिलाई और मैंने पाठकों की सेवा में अपने को प्रस्तुत किया ये सौदंर्य चर्चा सिर्फ पाठको के मनोरंजन के लिए होठों के नीचे बाकी अदा में झुकी गर्दन स्वर यही से हवा में लहराते है और तब आप भी झूमते हुए अक्सर गाते है. मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है?
नाम नहीं बताऊंगा इशारो में बाते समझने में आपको उलझन नहीं होनी चाहिये.
एक सवाल मैंने सोनम से पूछा था कि खूबसूरती शरीर का धर्म है या आत्मा का?
यही सवाल स्वरों की अल्हड़ राजकुमारी से पूछा तो उसने कहां निश्चित रूप से आत्मिक सौदर्य प्रमुख है. तब मेरी उम्र बीस से कम थी और जब मुझे बताया गया कि मुझे राखी जी के लिए पाश्र्व गायन करना है तो इसके लिए अपनी आवाज को परिवक्त करना पड़ा!
इस गाने को सुनने के बाद राखी की प्रतिक्रिया क्या हुई? कभी आप उनसे मिली?
राज कुमारी ने खूबसूरत झूठ बोलने का उपक्रम किया-राखी जी से मेरी मुलाकात नहीं हुई लेकिन मेरे प्रशंसको ने मेरे इस गीत को बेहद पंसद किया और अब तक लगभग एक हजार से ज्यादा गाने गा चुकी हूँ.
राज कुमारी के झूठ में सच का भी पुट था. जब उनसे मैंने उनकी सुंदरतम रचना का नाम पूछा तो वह कोयल सी कुहने के अंदाज में पूछने पर बताया-मैं अपने हर गाने को अपनी तरफ से पूरी तन््मयता से गाती हूँ और यह बताना मुश्किल है कि मेरी कौन सी संतान सबसे अधिक सुन्दर है? क्राइस्ट की मां भी कंवारी थी इन कंवारी आंखो के देखते हुए विनम्रता से कंवारी माँ से आला सवाल पूछा-ओ-पी-नैय्यर की छुल्ठों के बीच क्या आप गाना पंसद करेगी. एक संगीतकार के रूप में आपकी क्या राय है. क्या उस संगीत साधक को अभी से वैराग्य और दवाओ के बीच उलझकर संगीत से वैराग्य का सामाजिक औचित्य क्या है? राज कुमारी इस गंभीर सवाल को अपनी सहज शैली में हल करती है-नैय्यर साहब के साथ काम करना किसी के लिए सौभाग्य का विषय हो सकता हैं उनके साथ काम करना गोया चंपा के पावों में घुंघरू बांधने जैसी बात होगी. नैय्यर साहब की धुने अभी भी जवां है. पूजा और सेवा तो ठीक है लेकिन अपनी रचनात्मक तेजीस्वता को छुपाकर रखना हम जैसी जैसो तरूणियो पाश्र्व गायिकाओं गायको के साथ अन्याय करने जैसा होगा आज भी नैय्यर साहब की फिल्मों में प्रतिष्ठा है फिल्मों और फिल्म के लोगो के प्रति उनकी आस्था अनास्था है. आज भी वे अगर फिल्म संगीत को अपनाये तो खुले हृदय से फिल्म संसार उनके सामने श्रद्धा से नतमस्तक होने को तैयार है. मेरे ही दिल में उनके साथ काम करने की बेचैनी नहीं नये स्वर उनके सुरांे के साथ हवा की तरह साथ साथ चलने को तैयार हैं.
राज कुमारी की बातों के रंग में श्रद्धा और विष्वास के साथ अपनी पूजा के लिए अपूर्व आस्था के दर्शन किये. एक शरारत सूझी और पूछा-किसी से दिल लगाया या नहीं?
वो खिलखिला कर हसंने लगी और पूरे मजमें की नजरें हम दोनो पर लेकिन राज कुमारी ने कहा-हाँ ! लगाया है दिल किसी और से नहीं सिर्फ अपने स्वरो और सुरो से!
आखरी सवाल-क्या ईश्वर के प्रति आस्था है?
मैं सरस्वती की आराधिका हूँ, जो शब्दो-स्वरो-सुरो की देवी है महा सरस्वती है, यू हर गाने की रिकार्डिंगं से पहले मैं शेगंवाली मां को याद करती हूँ.
लोगो की नजरें बड़ी सख्ती से हम दोनो को घूर रही थी और मैं चुपके से नमस्ते करके अमीन साहब के पास खड़ा हो गया. वे मुस्करा रहे थे और बातचीत के लिए आमंत्रित किया था. राज कुमारी का नाम अब भी नहीं बताऊंगा. लेकिन इस खूब सूरत शाम को नहीं भूलूंगा. कभी नहीं गुलाब की दो पत्तियां मुस्कराहट के साथ हवा में खुशबू बिखेर रही थी और सामने जूही की कली पल्लव पर्यक पर साभार महाकवि निराला लहर रही थी-उनसे भी मिला और मुलाकात का वायदा लिया और नवोदित गायक उदित का हौसला बढ़ाया.