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में 3 मई 1953 को बम्बई में पैदा हुई शिक्षा सरम ही की थी कि मेरी शादी हो गई और फिल्मों में काम करने का सपना साकार न हो सक एक तो इसलिए मेरे डंडी प्रदीप कुमार मेरे फिल्मी कॅरियर के खिलाफ मे दूसरे शादी के बाद फिल्मों में काम करने का प्रश्न ही नहीं उठता था. हालांकि शादी के पश्चात निर्देशक राम महेश्वरी ने मुझे फिल्म में काम करने की आकर दी थी किन्तु मैंने स्वीकार नहीं की. मेरे विचार में फिल्मी कॅरियर और गृहस्वी साथ साथ नहीं चल सकती उसकी बज यह है कि फिल्मों में कुछ ऐसे हृदय भी करने पड़ते हैं जो स्कीन न सही किन्तु निजी जीवन में अच्छे नहीं लगते. से भी कोई और काम हो तो पतिमा एडजस्ट कर लेते है किन्तु फिल्मी कैरियर को बर्दाश्त नहीं करते. दुर्भाग्य से शादी सफल नहीं हो सकी. इसलिए मैंने अपने पति से तलाक ले लिया.
तलाक के बाद फिल्मों में काम करने का वातावरण अनुकूल लगा तो मैंने पुनः संघर्ष शुरु कर दिया. हालांकि हिंदी में पुनः विरोध किया. मगर मैं भी एक जिद्दी लड़की हूं. उनकी नहीं सुनी और ईडी के चाहते हुए भी मैं फिल्मों में आ गई, क्योंकि मैं अब मैच्योर हो गई है और अपना भला-बुरा बच्छी तरह से जानती हूं. फिल्मों में काम करने का फैसला करने के बाद मैं सबसे पहले राजधी बालों से मिली. उन्हें 'शिक्षा' के लिए अंक 215 मुझ जैसी एक लड़की की जरूरत थी. उन्होंने तुरन्त मुझे साइन कर लिया. 'शिक्षा' में मैं एक जवान विवा लड़की की भूमिका कर रही हूं मुसीबत झेलते हुए खुद को बातावरण के साथ ऐडजस्ट करती है.
डंडी के नाम का एक फाय हुआ कि जब मैं लोगों से मिलो तो मेरे साथ अच्छी तरह पेश आए किसी ऐसी बातें नहीं की जैसी कि ये आम संघर्ष करने वाली लड़कियों से करते हैं. दूसरे में ऐसे फालतू लोगों से मिली भी नहीं मैं तक जिन लोगों से मिली उनमें रामानंद सागर, प्रमोद जनत सुनीत दत्त, शक्ति सामंत, एस. डी. भारंग जैसे फिल्मकार विशेष रूप से उल्लेखनीय है और यह सब ही ईडी के दोस्तों में से हैं. इनमें दत्त साहब ने काफी प्रोत्साहन दिया है और बादा किया है कि यदि उनकी फिल्म में मेरे योग्य कोई रोल निकला तो वे जगर चांदेगे. उन्होंने यहां तक कहा है . कि यदि किसी ने या उन्होंने 'बन्दिनी' को पुनः बनाया तो उसके लिए बहु मेरे सिवा किसी और का नाम न लेगे. उसके लिए मैं बहुत फिट हू.
फिल्मों में हर प्रकार के रोल करना चाहती हूं. किन्तु 'चेतना' और 'सत्यम शिवम सुन्दरम' जैसी फिल्में करने का इरादा नहीं है क्योंकि इन फिल्मों में जो कुछ दिलाया गया है उसकी जरूरत नहीं थी. 'चेतना' में अन्त तक निभा नहीं कृते बंगाली कलाकारों में लंगर नहीं बल्कि एक्टिंग को गहराई होती है.'' बोदा ने भी बनाई है. वह अपने रंग के अकेले फिल्मकार है. इसके बावजूद वह उसमें यह बात नहीं पैदा कर सके जो कि बंगाली जो कि इसी कहानी पर बनी थी. दर हिन्दी फिल्मों में मेकिय से अधिक प्रचार पर जोर दिया जाता है-
प्रचार भी इस शो-बिजनेस के लिए बड़ा अनिवार्य है. शेषनये कलाकारों के लिए इसका बड़ा महत्व है. अगर सही ढंग से हो . तो कमाकार को बड़ी सहायता मिलती है- हेमा मालिनी को पति सिटी के आधार पर ही का रूप दिया जा सका. वरना 'सपनों का सौदागर में हेमा मालिनी के रोम में कोई खास बात न थी. कोमिला विर्क भी अपनी बॉडी को एक्सप्लाईट करके पब्लिसिटी हासिल कर रही है. किन्तु ऐसी पब्लिसिटी से कम ही लाभ होता हैं.
नगर रेहाना मुल्तान की टांगेन भी दिखाई जाती तो भो यह पता लग सकता था कि वह एक जिस्म बेचने बाली लड़की है. इसी तरह त्य शिवम् सुन्दरम्' में जीनत अमान के शरीर का सिकदर प्रदर्शन किया गया है उसकी कोई जरूरत नहीं थी. अगर किसी बड़े बैनर को फिल्म में जहां एक नये कलाकार की कोई आवाज नहीं होती ऐसा रोल करने की आकर भी आई तो मैं भर एक प्रयत्न करके निर्देशकको कन्सिस करने की कोशिश की इसपर भी अगर ऐसी फिल्म की भी तो वह मेरे लिए गधे को बात न होगी.
हो, मैं हिन्दी फिल्मों के अलावा बंगाली फिल्में भी कर रही हूं. दोनों में काम करने के बाद पता चला है कि हिन्दी और बंगाली फिल्मों के वातावरण में जमीन-आसमान का अन्तर है. यहां जो दिन है व यहां देखने को नहीं मिलता. दूसरे हिन्दी नाते जो विषय लेते हैं उसे मेरी आने वाली फिल्मों में एक टीबीड़ा' सर्व प्रथम प्रदर्शित होगी. उसके बाद राजकी 'शिक्षा' का नम्बर आएगा' स्तूि आए fe जाए एक और निर्माणाधीन फिल्म है. इसके अलावा राजी एक और फिल्म शीट पर जाने बासी है. हिन्दी के अलावा में दो बंगाली फिल्में भी कर रही हूँ प्रयासों में मैं कहां तक सफल हो पाई हूँ यह तो आप लोग पत्रक बता सकने मैं आपकी राय और सुझावों की प्रतीक्षा करुँगी.