अनिल कपूर बॉलीवुड का वो अनमोल सितारा है जिनकी रौशनी आज भी फीकी नहीं पड़ी, उम्र के इस परिपक्व दहलीज पर भी उनके पास फिल्मों के ऑफर्स की कमी नहीं। एक वो वक्त भी था उनके करिअर के शुरूआती जीवन में जब उन्हें प्रसिद्ध फ़िल्म मेकर श्री सुरेन्द्र कपूर के बेटे होने और राज कपूर के रिश्तेदार होने के बावजूद काम पाने के लिये अपने बलबूते पर संघर्ष करना पड़ा था। बचपन से ही अभिनय के शौक़ीन अनिल कपूर ने फिल्मों में अपने करिअर की शुरुआत बारह वर्ष की कम उम्र से ही 1971 में फ़िल्म 'तू पायल मै गीत' में शशि कपूर के बचपन की भूमिका प्ले करते हुए किया, लेकिन यह फ़िल्म रिलीज़ नहीं हो पायी। बीस वर्ष की उम्र तक आते आते, बेहद ज़हीन, हैंडसम और अच्छी सूरत कद काठी के अनिल कपूर ने अपना करिअर, हमज़ा अली की उर्दू फ़िल्म 'हमारे तुम्हारे' में एक छोटी सी भूमिका से शुरू करने में भी कोई गुरेज़ नहीं की वर्ना स्टार और फ़िल्म मेकर के बच्चे तो धूम धाम से लीड रोल में लॉन्च होना ही अपनी शान समझते है।
संघर्ष के उस दौर में उन्होंने हसन अवान की अंग्रेजी फ़िल्म, 'एम आई बी' में भी काम किया और पंजाबी फिल्म 'जट पंजाब दा'', तथा इमरान खान कृत फ़िल्म, 'मौलाना जट', में भी छोटी सी भूमिका की लेकिन इन्ही छोटी छोटी भूमिकाओं में अनिल की परफॉर्मेन्स ने वो कमाल दिखाया की बॉलीवुड की दुनिया की नज़र इस घने बाल और घनी मूँछो वाले युवा, हँसमुख, शरारती प्रतिभावान छोरे पर पड़ गयी जिन्हें 'मौलाना जट' फ़िल्म में बतौर स्पोर्टिंग एक्टर पहला फ़िल्म फेयर अवॉर्ड भी हासिल हुआ था। अनिल को अब लीड रोल मिलने लगे।
इस दौर में उन्होंने तेलगु फ़िल्म 'वमसा वृक्षम', हिंदी फ़िल्म 'एक बार कहो', 'हम पाँच' 'वो सात दिन मशाल (इसमें उन्हें बेस्ट स्पोर्टिंग एक्टिंग फ़िल्म फेयर अवार्ड प्राप्त हुआ) में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ी। बॉलीवुड ने झटपट इस सम्भावना से भरे लड़के को सर पर उठा लिया। उनकी रफ एंड टफ चाल चेहरा और स्टबल दाढ़ी ने उन्हें मुम्बई की गलियों का जो लोफर और गुंडा पर्सोना लुक दिया जिससे उन्हें टपोरी टाइप के हीरो की भूमिकाएँ मिलने लगी, इस तरह की फिल्मों में, युद्ध, साहेब, मेरी जंग, कर्मा, जांबाज़ जैसी फिल्में, सुपर हिट रही।, फ़िल्म युद्ध में उनका वो डायलॉग, 'एकदम झकास',आज भी बेहद पॉपुलर है। फ़िल्म मेरी जंग (1985) से उन्हें नए युग का एंग्री यंग मैन कहा जाने लगा और इसी फ़िल्म में उन्हें अपना पहला बेस्ट एक्टर नॉमिनेशन मिला। वाकई अनिल का जमाना शुरू हो चूका था। इसी बीच अनिल ने बासु चटर्जी निर्देशित चमेली की शादी में कॉमेडी हीरो की भूमिका निभा कर अपने वरस्टाइल एक्टर होने का प्रमाण दे डाला।
मिस्टर इंडिया से हुए हिट
1987 में शेखर कपूर की सबसे बड़ी हिट फ़िल्म मिस्टर इंडिया ने उन्हें देखते देखते सुपर स्टार की श्रेणी में ला खड़ा किया। महेश भट्ट कृत फ़िल्म ठिकाना में अनिल ने अपनी सशक्त परफॉर्मेन्स से साबित कर दिया की वे कलात्मक, अभिनय प्रधान फ़िल्म भी चुटकी बजा कर कर सकते है। उसके पश्चात एक और धमाका हुआ, उन्हें एन चन्द्रा की फ़िल्म 'तेज़ाब' (1988) में बतौर हीरो वो चान्स मिल गया जिसपर डांस करते हुए अनिल देखते देखते सुपर हीरो से झकास हीरो और झकास हीरो से सदाबहार हीरो का ख़िताब से विभूषित हो गए।
ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 'तेज़ाब' में उन्हे पहली बार बतौर हीरो बेस्ट एक्टर फ़िल्म फेयर अवार्ड प्राप्त हुआ और उसके बाद तो दे दनादन एक के बाद एक अनिल कपूर की फ़िल्में सुपर हिट होती रही जैसे,राम लखन (वन टू का फोर गीत इसी फ़िल्म का लोकप्रिय गीत है), परिंदा, रखवाला, ईश्वर,किशन कन्हैया, घर हो तो ऐसा, लम्हे, (इस फ़िल्म में अनिल ने पहली बार अपनी घनी मूँछें सफाचट किया), बेटा (1992, इस फ़िल्म में उन्हें फिर से बेस्ट एक्टर फ़िल्म फेयर अवार्ड मिला),;लाडला, 1942 अ लव स्टोरी, घरवाली बाहरवाली,जुदाई, दीवाना मस्ताना, बीवी नम्बर वन,हम आपके दिल में रहते है, ताल (ताल में पहली बार एक ईर्ष्यालू क्रुकेड म्यूज़िकल स्टार का किरदार निभा कर उन्होंने सबको चकित कर दिया),विरासत, बुलंदी, पुकार (2000, इस फ़िल्म में उन्हें पहली बार बेस्ट एक्टर कैटगरी का नेशनल अवार्ड मिला था), हमारा दिल आपके पास है, नायक (उनके जीवन का अब तक का बेस्ट परफॉर्मेन्स), बधाई हो बधाई (मोटे हीरो के रूप में), रिश्ते, ओम जय जगदीश, अरमान (अरमान में पहली बार अमिताभ बच्चन के साथ काम किया), कलकत्ता मेल, मुसाफिर, माय वाइफस मर्डर, बेवफा, चॉकलेट (इसमें उन्होंने ग्रे भूमिका निभाई), वेलकम (2007), ब्लैक एंड वाइट,रेस (2008), स्लमडॉग मिलिन्योर (इंटरनेशनल हिट फ़िल्म जिसे कई इंटरनेशनल अवार्ड मिले), शूट आउट एट वडाला, वगैरा। उनकी कई फिल्में फ्लॉप भी रही लेकिन हिट फिल्मों की तुलना में वे बहुत कम थे।
अनिल ने अमेरिकन टेलीविज़न के आठवे सीज़न ट्वेंटी फॉर में अभिनय करके सबकों विश्व स्तर पर चौंका दिया, हॉलीवुड प्रोजेक्ट फ़िल्म 'सिटीज़' से वे इंटरनेशनल स्टार हो गए। अनिल कपूर प्रथम भारतीय स्टार है जिन्हें टोरंटो इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल मे स्पेशल सेगमेंट 'इन कंवर्शेशन के लिये निमंत्रित किया गया था। बतौर निर्माता उन्होंने फ़िल्म बधाई हो बधाई, माय वाइफस मर्डर,गांधी माय फादर, शॉर्टकट, आइशा, वगैरा भी बनाई और बतौर गायक भी उन्होंने कई फिल्मों में खुद अपनी आवाज में गाने गाये, जैसे, चमेली की शादी का टाइटल ट्रैक, तथा तेरे बिना मै नहीं मेरे बिना तू नहीँ (वो सात दिन), आई लव यू (हमारा दिल आपके पास है) 'भैयाजी का टशन' (फिल्म टशन), 1986 में उन्होंने सलमा आगा के साथ तो एक पूरा अल्बम 'वेलकम' में सारे गाने गाये थे।
पत्नी को समर्पित बेहतरीन पति और एक्टर
अनिल का पर्सनल जीवन बड़ा ही सूंदर, व्यवस्थित और शांत है, उनका जन्म चौबीस दिसम्बर 1956 में, मुम्बई के तिलक नगर चेम्बूर इलाके में हुआ, माँ का नाम निर्मल कपूर और पिता का नाम सुरिंदर कपूर। वे अपने भाई बहनों में दूसरे नंबर के संतान है, बड़े भाई प्रसिद्ध फ़िल्म मेकर बोनी कपूर (श्री देवी के पति),हैं और एक्टर संजय कपूर छोटे भाई है। अनिल ने अपनी पढाई 'आवर लेडी ऑफ़ परपेचुअल स्क्सर हाई स्कूल तथा सेंट ज़ेवियर कॉलेज से किया। 1984 में उन्होंने अपनी मित्र कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर सुनीता भवनानी से विवाह किया। उनकी दो बेटियां हुई और एक बेटा हुआ। बड़ी बेटी सोनम कपूर (1985 में जन्मी) आज एक चोटी की फ़िल्म नायिका है और छोटी बेटी रिया कपूर (1987 में जन्मी) आज एक फिल्म निर्मात्री है। बेटा हर्षवर्धन (1990 में जन्मे) उभरते फ़िल्म नायक है।
अनिल कपूर के आज तक के करियअर में किसी हीरोइन या किसी अन्य स्त्री के साथ अफेयर नहीं हुआ, वे अपनी पत्नी को समर्पित बेहतरीन पति है और अपने बच्चों के बेहतरीन पिता। मायापुरी पत्रिका के प्रति उनका प्यार और रेस्पेक्ट इतना रहा है की जब जब इस लेख की लेखिका उनसे इंटरवियु के लिये मिलने गयी उन्होंने उनसे हमेशा बड़े इज़्ज़त और प्यार से पेश आये। विदा के समय बाहर तक छोड़ने भी आये। मायापुरी इस चिर युवा एक्टर, प्रोड्यूसर, सिंगर अनिल कपूर को उनके जन्म दिन पर ढेर सारी बधाइयां देती है।