यह लेख दिनांक 14-10-1984 मायापुरी के पुराने अंक 525 से लिया गया है.
संजय खान आज से कोई तीन या सवा तीन साल पहले तक किसी न किसी रूप से सिनेमा जगत से जुड़े रहे.
कभी जीनत के साथ शादी फिर अनबन तो कभी फिल्म 'अबदुल्लाह' के निर्माता नायक का चोला तो, कभी कुछ और से, कुछ भी संजय को उसके फैन भुला नहीं सके.
इन पिछले तीन वर्ष की गहरी खामोशी ने उसकी याद धुँधली जरूर कर दी लेकिन जब भी कहीं से फिल्म 'एक फूल दो माली' का वह चुलबुला गीत 'यह पर्दा हटा दों, जरा मुखड़ा दिखा दो' सुनाई पड़ता है, तो लोगों को उस छरहरे खूबसूरत युवां जगत की याद तो आती है जिसके अभिनय में चुलबुला पन था और चेहरे में दिलीप कुमार की रोमांटिक शोखी.
संजय खान ने फिल्म 'दोस्ती' (पुरानी) से अपने करियर की सही तौर से शुरूआत की थी
'उपासना' ,'दस लाख','एक फूल दो माली','मेला' वगैरा में काम करते हुए संजय ने मुमंताज, बबीता, साधना के साथ अच्छी जोड़ी बनाई थी. लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे संजय बहुत कम फिल्म में आने लगे, उसके बाद विवादों का घेरा और 'अबदुल्लाह' की नर्म दौड़ और फिर चुप्पी. संजय की गहरी चुप्पी, अचानक पिछले दिनों मुझे खबर मिली कि संजय खान अपनी खुद की फिल्म 'काला धंधा गोरे लोग' की शूटिंग अपने जूहू स्थित बंगले के करीब कर रहा है. इससे अच्छा वक्त और जगह फिर कहाँ मिलेगा (क्योंकि मेरा घर जूहू के करीब है) मैंने संजय को घर से फोन किया और दोपहर लंच के बाद का वक्त तय किया. संजय की फ्रेन्च कट दाढ़ी और सुडौल जिस्म पर हल्की-हल्की अनुभव और उम्र की छाप बेहद फब रही थी, मैंने बैठते ही पूछा,
तो आखिर तीन साल की गहरी चुप्पी तोड़ी आपने?
हाँ तीन नहीं साढे तीन साल के मुझे खुद ही बड़ा यही सवाल कर रहे हैं कि तुम्हारी वापसी बड़े दिनों में हुई, लेकिन मुझे खुशी है कि मैं वापसी बडे ठाठ-बाट से अपनी ही फिल्म में कर रहा हूँ. अपनी फिल्म का मतलब कि मैं अपने ब्रदर इन लॉ को फिल्म बनाने में सहायता कर रहा हूँ फिल्म उसकी है.
इस वापसी से आपको कोई 'जटिलता का अनुभव नहीं हो रहा है जैसे किसी बचपन के गाँव में वापस पहुँच गए हो?
मेरी वापसी इतने लंबे अंर्तराल की नहीं है कि, मैं राह भूल जाऊँ लेकिन यह भी सच है कि, साढ़े तीन साल बाद प्रैक्टिकल तौर से वापस-इंडस्ट्री में आना कोई आसान काम नहीं है. बहुत मेहनत, बहुत सोच विचार कर मुझे आगे बढ़ना है, अब तक इस इंडस्ट्री में काफी कुछ बदल गया है, मुझे आज के समय की रफ्तार को पकड़ना है.
क्या वजह थी कि, आप अचानक फिल्मी दुनिया से अलग हो गए और तीन साढे तीन साल तक चुप रहे?
मैं जान बूझ कर फिल्मी दुनिया से कुछ समय के लिए अलग हो गया, क्योंकि उस समय मैं एकदम मशीन सा हों गया था, न खाने की सुध न आराम करने की! सिर्फ इस स्टूडियो से उस स्टूडियो तक तीन शिफ्ट में काम किया करता था. जब अधिक काम के बोझ से मैं दब गया तो अचानक एक दिन मेरे अन्दर के पुरूष ने मुझे जगाया और कहा कि तुम महज मशीन नहीं इंसान हो. इंसान की तरह रहो और ज़िन्दगी को भरपूर जीने की कोशिश करो, तब मैंने अपने काम से खींच कर अलग कर लिया और आँखें खोल कर दुनिया देखी.
अगर काम ही छोड़ दिया तो फिर वापस आए क्यों?
मैंने तीन साल आराम किया, सिर्फ अपने लिए बिताया हरक्षण लेकिन आखिर हूँ तो, मैं कलाकार ही न? कब तक चैन से बैठा रहता, स्टूडियो, लाइट, मेकअप की पुकार ने मुझे वापस आने को प्रेरित किया और मैं आ गया!
अगर फिर से पहले की तरह मशीन बनने लगे तो क्या फिर सन्यास ले लेंगे?
सबसे पहली बात तो यह है कि, मैंने सन्यास कभी नहीं लिया था, वह तो एक तरह से मध्यान्तर था, खैर अब मैं कभी मशीन बनकर काम नहीं करूँगा. सिर्फ अपनी फिल्म बनाऊँगा और उसमें काम करूँगा, इस तरह मैं स्टूडियो में रहने की तमन्ना भी पूरी करूँगा और अपनी जिन्दगी अपनी तरह भी गुजारूँगा. ”बातों ही-बातों में अपनी दाढ़ी 'में ऊंगली-फेरी तो मैंने पूछा“
आप इसी तरह दाढ़ी रखे रहेंगे अपने करियर के शुरूआत के आप सफाचट चॉकलेटी हीरे थे?
क्या अच्छा नहीं लग रहा हूँ? मुझे तो-लगता हैं कि, वक्त के साथ-साथ आदमी की, कुछ न कुछ बदलाव लेना चाहिए, अपने चाहे वह बदलाव में हो या आचरण में, फिलहाल मेंरी दाढी रहेगी!
“लोगों का कहना है कि संजय की अब तक चुप्पी का कारण उसकी असफलता थी, आपने अपने समय में कुछ नाम तो जरूर कमाया है, लेकिन जितेन्द्र, धर्मेन्द्र वगैरा की तरह पक्की जगह नहीं बना पायें. लोगों को कहने दो मुझे चिढ़ नहीं होती, मेरे इंडस्ट्री से अलग होने का कारण अगर यही होता तो मैं वापस ही क्यों आता? एक बार जो जगह नहीं बना पाये क्या वह इतने साल बाद वापस आने की सोच सकता है? मैं असफल नहीं रहा था और उस समय के दर्शक इस प्रश्न का जवाब भली भांति दे सकते हैं कि, मैं असफल था या सफल, मुझे उन लोगों के कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता जो सही बात जाने बिना अंट शंट बकते रहते हैं हाथी चलता है तो.”
साढ़े तीन साल बाद कैमरे के आगे आकर आपको कैसा महसूस हो रहा है?
बहरहाल अभी तक तो मैं कैमरे के आगे गया नहीं हूँ, एक दो दिन के अन्दर जाना है, थोड़ा नवर्स फील कर रहा हूँ, कैमरे की तीखी नजर के आगे मेरी हर छोटी गलती पकड़ी जायेगी.
तो आप क्या करेंगे?
मुस्कुराकर उन्होंने अपनी आँखें बन्द कर ली बोले, 'करूँगा क्या? आँखें बन्द करके कूद पडूंगा मैदान में... आगे खुदा जाने क्या होगा!
तो आपने अपने करियर को किस तरह योजनाबद्ध किया?
मैं पहले अपने ब्रदर इन लॉ की यह फिल्म 'काला धंधा गोरे लोग' को बनाऊँगा! फिर मैं खुद अपनी एक फिल्म बनाऊँगा जिसमें शायद अनिल कपूर हीरो रहेगा. मैंने इन तीन सालों में अपने को बहुत व्यवस्थित कर लिया है और तुम ऐसा कह सकती हो कि, मैं एक प्लान के अनुसार ही पहले तीन साल ऑनब्सर्व करता रहा और अब योजना के अनुसार मैंने काम शुरू कर दिया है. योजनायें तो बहुत हैं, बस एक के बाद एक कार्यरत होना चाहिए.
तो क्या आप अब सिर्फ अपनी फिल्म बनाते रहेंगे?
'इंशाअल्लाह' अगर इस फिल्म को और अपनी फिल्म को बनाते समय मुझे प्रेरणा मिली, अगर फिल्म मेकिंग से मैं स्तृष्ट हुआ और दर्शकों को मेरी फिल्म पसंद आई तो मैं साल में एक या दो फिल्में बनाता रहूँगा. 'काला धंधा गोरे लोग' और मेरी अंगली फिल्म दोनों ही बहुत कम समय (लगभग तीन महीने) में बनकर तैयार हो जाएगी.
आपकी फिल्म 'अबदुल्लाह' (जीनत और संजय खान वाली) को लोग फ्लॉप फिल्म कहते हैं?
बिल्कुल नहीं, 'अबदुल्लाह' मिनर्वा जैसी बड़ी थियेटर में एक अर्से तक चली, उस फिल्म को सिर्फ उतनी पब्लिसिटी नहीं मिल सकी जितने की जरूरत थी, मैंने उसके लिए कोई पत्रकार या पब्लिक पार्टी नहीं रखी जो मेरी भूल साबित हुई.
क्या आप सिर्फ अपनी फिल्म में ही अभिनय करेंगे?
ऐसी कोई बात नहीं, अगर बाहर की फिल्म में मुझे मन पसन्द रोल मिले, निर्देशक, बैनर, कहानी अच्छी हो तो मैं जरूर उन फिल्मों में अभिनय करूँगा लेकिन अब मैं बहुत चूजी हो गया हूँ.