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बरसते भीगते, धुआँ धुआँ से गमगीन माहौल में सबको रुला कर चले गए शशि बाबा

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By Sulena Majumdar Arora
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बरसते भीगते, धुआँ धुआँ से गमगीन माहौल में सबको रुला कर चले गए शशि बाबा

कुछ जानी कुछ अन्जानी खास कहानी

सुबह तक घनघोर घटाओं ने आसमान पर आशंकाओं के बादल बिछा दिए थे, वातावरण में सन्नाटा कुछ ज्यादा पसरा हुआ था, शाम 5:20 तक वह बुरी ख़बर ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में फैल गई कि हमारे बॉलीवुड के चहेते सीनियर स्टार शशि कपूर गुजर गए। वैसे तो वे पिछले 10 वर्षों से बीमार थे और बॉलीवुड से लगभग संयास लेकर जी रहे थे, खबरों के अनुसार उन्हें अलज़ैमर (याददाश्त खोने की बीमारी) थी, किसी को पहचान नहीं पाते थे, अपने परिवार के सिवाय वे सबसे दूर हो चुके थे, उस पर किडनी की तकलीफ उन्हें जीने नहीं दे रही थी, वे व्हीलचेयर पर थे। कई वर्षों से वेै डायलिसिस पर भी थे। पिछले दस दिनों में तकलीफ बहुत बढ़ गई थी, चेस्ट इन्फेक्शन भी था, सेहत जिंदगी का साथ छोड़ रही थी। फिर वही हुआ जो विधि को मंजूर था।

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मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में उनका निधन हो गया। साठ के दशक के सबसे हैंडसम, बड़े दिलवाले, चुलबुले, रोमांटिक,कॉमेडी हीरो माने जाने वाले, जिन्हें उस जमाने में प्रिंस चार्मिंग का नाम दिया गया था, अपने परिवार, अपने सभी चाहने वाले और बॉलीवुड को हतप्रभ, दर्द में डूबे छोड, हमेशा के लिए चले गए। बॉलीवुड का ध्रुव तारा टूट कर बिखर गया।

आइए जानते हैं उनके जीवन और कैरियर के बारे में कुछ जानी और कुछ अनजानी बातें:-----18 मार्च 1938 को युगपुरुष कहे जाने वाले बॉलीवुड के पितामह पृथ्वीराज कपूर तथा उनकी पत्नी रामशरणी कपूर के घर चौथी संतान के रूप में एक खूबसूरत बच्चे ने कोलकाता में जन्म लिया और उनकी दादी ने बच्चे का नाम बलबीर राज कपूर रखा। बचपन में शशि कपूर अपनी मां से बार बार चांद की तरफ देख कर उस की कहानियां पूछा करता था, इसीलिए मां ने बलबीर का नाम शशि रख दिया।

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शशि कपूर की पढ़ाई मुंबई के डॉन बॉस्को स्कूल में हुई, इसी स्कूल में, उनके ही क्लास में, उन्ही के साथ, बेंच पर बैठकर पढ़ते थे सुप्रसिद्ध क्रिकेटर फारुख इंजीनियर।

बचपन से ही उन्हें एक्टिंग का बहुत शौक था, वे स्कूल के नाटकों में भाग लेना चाहते थे लेकिन न जाने क्यों वहां उन्हें किसी ने नहीं चुना। लेकिन पिता पृथ्वीराज कपूर के प्रोत्साहन से उन्होंने 1944 में पृथ्वी थिएटर के नाटक 'शकुंतला' में काम करना शुरू किया। पिता की इस कंपनी में काम करते हुए उन्हें पचास रुपये महीने के मिलते थे।

परिवार में सबसे छोटे होने के कारण सब उन्हे बहुत लाड करते थे और प्यार से उनके परिवार वाले उन्हें कई नामों से पुकारते थे। जैसे शशि बाबा। शम्मी कपूर उन्हें 'शाशा' कहकर पुकारते थे। फिल्मों में आने के बाद भी उन्हें कई नामों से पुकारा जाता रहा, जैसे चॉकलेटी हीरो, शशि राज, हंसता हुआ नूरानी चेहरा, प्रिंस चार्मिंग, क्रुकेड स्माईल, टैक्सी ( अति व्यस्त होने के कारण शशि कपूर अपने बड़े भाई राज कपूर की फिल्म 'सत्यम शिवम सुन्दरम' के लिए वक्त नहीं दे पा रहे थे इसीलिए नाराजगी के साथ राज कपूर ने उन्हें टैक्सी के नाम से पुकारना शुरू किया  जिसका मीटर हमेशा डाउन रहता है। अपने भाइयों में उन्हें सबसे हैंडसम माना जाता रहा।

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बाल कलाकार के रूप में उन्होंने 1948 से 1954 तक फिल्म, 'आग', 'आवारा', 'संग्राम' 'समाधि' में काम किया। आवारा में उन्होंने राज कपूर के बचपन का रोल निभाया, संग्राम में अशोक कुमार के बचपन का रोल किया। बाल कलाकार के रूप में काम करते हुए उन्हें बड़ा मजा आता था, एक तो नाइट शिफ्ट होने से उन्हें रात भर जागने में आनंद आता था उसपर रात में मिलने वाले डबल आमलेट खाने का मौका मिल जाता था।

युवा होने पर जब उन्होंने बतौर नायक फिल्मों में काम करने की इच्छा जाहिर की तो उनके पिता और भाइयों ने उन्हें अपने बलबूते पर काम ढूंढने की सलाह दी।

इस दौरान उन्होंने नाटकों में काम करना जारी रखा और वे भारत यात्रा पर आए गॉडफ्रे कैंडल के थिएटर ग्रुप 'शेक्सपियराना' में शामिल हो गए और इस ग्रुप के साथ उन्होंने दुनिया भर की यात्रा करके सैकड़ों शोज़ किए। इन नाटकों में गॉडफ्रे की बेटी जेनिफर उनकी नायिका बनती थी, इसी दौरान उन्हें अपनी उम्र से चार वर्ष बड़ी जेनिफर से प्यार हो गया और 20 वर्ष की उम्र में शशि कपूर ने जेनिफर से शादी कर ली। ऐसा उनके खानदान में पहली बार हुआ जब किसी ने अपनी उम्र से बड़ी तथा अन्य जाति अन्य धर्म की लड़की से विवाह किया।

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फिल्मों में अभिनय करने से पहले शशि कपूर ने बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर, फिल्म 'पोस्ट बॉक्स 999', 'गेस्ट हाउस', 'दूल्हा दुल्हन', 'श्रीमान सत्यवादी' में भी काम किया।

उस दौर में राज कपूर, शम्मी कपूर, देवानंद, राजेंद्र कुमार, राज कुमार जैसे सुपर स्टार का बोलबाला था, इसलिए शशि कपूर फिल्म मेकर्स की लास्ट चॉइस होती थी, जिस वजह से फिल्में पाने के लिए, शशि कपूर को बहुत संघर्ष  करना पड़ा।

1965 में उन्हें पहली बार यश चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म 'धर्मपुत्र' में नायक का काम मिला। लेकिन शशि कपूर को असली कामयाबी मिली फिल्म 'जब जब फूल खिले' से।

उस जमाने में जब अन्य नायिकाएं उनके साथ काम करने से कतराती थी, तब सुपरस्टार नंदा ने उनके साथ काम करना मंजूर किया था। इस वजह से शशि कपूर, नंदा के जीवन भर आभारी रहे और वे हमेशा उनकी पसंदीदा हीरोइन बनी रही।

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शशि कपूर ने नंदा के अलावा शर्मिला टैगोर (सबसे ज्यादा फिल्में), राखी, मुमताज, बबीता, आशा पारेख, नीतू सिंह, शबाना आजमी, परवीन बॉबी, जीनत अमान, हेमा मालिनी के साथ भी काम किया।

'जब जब फूल खिले' के सुपरहिट होते ही उनके आगे फिल्मों की लाइन लग गई और उन्होंने प्रत्येक ऑफर को स्वीकार किया। इस तरह वे उस जमाने के सबसे व्यस्त एक्टर बन गए, जो हर दिन छ: शिफ्टों में काम करते थे और प्रत्येक शूटिंग को दो-दो घंटे देते थे।

वे इतने व्यस्त थे कि अपने बड़े भाई राज कपूर की फिल्म सत्यम शिवम सुन्दरम  के लिए भी वक्त नहीं निकाल पा रहे थे। तब राज कपूर ने नाराज होकर उनका नाम 'टैक्सी' रख दिया जिसका मीटर हमेशा डाउन रहता है।

वे कभी सुपर स्टार का दर्ज़ा नहीं  पा सके और ना ही कभी अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना शम्मी कपूर की तरह भरपूर ड्रैमैटिक अदाकारी की लेकिन अपने  सहज स्वभाविक दिलकश अदाकारी से उन्होंने इन सबके बीच भी अपना अस्तित्व मजबूती से बनाए रखा। उन्होंने कभी मल्टीस्टारर फिल्मों से परहेज नहीं किया और अपने समकालीन सारे सुपरस्टार के साथ काम करते रहे।

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शशि कपूर ने अमिताभ बच्चन के साथ कई फिल्मों में काम किया जिसमें 'दीवार' आज भी उनके 'मेरे पास मां है' वाले डायलॉग के लिए याद किया जाता है। हालांकि अमिताभ शशि से 4 वर्ष छोटे थे लेकिन फिर भी अक्सर शशि कपूर छोटे भाई का रोल निभाते रहे। अमिताभ से उनकी दोस्ती गहरी थी। फिल्म 'दो और दो पांच' की शूटिंग के दौरान अमिताभ को अस्थमा की जोरदार परेशानी होने लगी और वहां उन्हें कोई मदद मुहैया नहीं हो पा रही थी तब शशि कपूर ने उन्हें बहुत मदद की। तबसे उनकी दोस्ती और मजबूत हो गई। शशि कपूर अमिताभ बच्चन को 'बबुआ' कह कर पुकारते थे। शशि कपूर ने 148 हिंदी तथा 12 इंग्लिश फिल्मों में काम किया, इनमें 'हाउस होल्डर', 'शेक्सपियर वाला', 'मुंबई टॉकीज' तथा 'हीट एंड डस्ट' जैसी फिल्में शामिल है।

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उनके द्वारा अभिनीत तमाम हिंदी फिल्मों में प्रमुख है:--मेहंदी लगी तेरे हाथ, बेनजीर, वक्त, प्यार किए जा, नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, आमने-सामने, कन्यादान, प्यार का मौसम, जहां प्यार मिले,एक श्रीमान एक श्रीमती , सुहाना सफर, शर्मीली, जानवर और इंसान, आ गले लग जा, पाप और पुन्य, रोटी कपड़ा मकान, मिस्टर रोमियो, चोर मचाए शोर, चोरी मेरा काम, प्रेम कहानी, अनाड़ी,सिद्धार्थ, सलाखें, दीवार, नाच उठे संसार, जय बजरंगबली, शंकर दादा, कभी-कभी, आप- बीती, फकीरा, चोर सिपाही, इमान धर्म, मुक्ति, फरिश्ता या कातिल, चक्कर पे चक्कर, हीरालाल पन्नालाल, जुनून, त्रिशूल, दो मुसाफिर, आहुति,सत्यम शिवम सुंदरम , अपना कानून, तृषणा,  मुकद्दर, अतिथि, सुहाग, गौतम गोविंदा, काला पत्थर, नीयत, शान, स्वयंवर, गंगा और सूरज, दो और दो पांच, काली घटा, मान गए उस्ताद, क्रांति, सिलसिला, क्रोधी, बसेरा, एक और एक ग्यारह, कलयुग, बेजुबान, नमक हलाल, वकील बाबू, विजेता, सवाल, बंधन कच्चे धागों का, उत्सव, घर एक मंदिर, पाखंडी, यादों की जंजीर, जमीन आसमान, आंधी तूफान, भवानी जंक्शन, सूरज, पिघलता आसमान, बेपनाह, इल्जाम, बेटी, न्यू दिल्ली टाइम्स, प्यार की जीत, अंजाम, नामोनिशान, सिंदूर, हम तो चले परदेस, फर्ज की जंग, अकेला, रईसजादा, विवेकानंद, हाई स्ट्रीट, ऊंच-नीच बीच, अजूबा वगैरह। फिल्म 'जिन्नाह' उनकी अंतिम फिल्म थी।

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फिल्म सिद्धार्थ (1972) में वे काफी सुर्खियों में रहे। इस फिल्म में वे न्यूड सिमी ग्रेवाल के सामने खड़े नजर आए जिसको लेकर काफी हंगामा हुआ था।

शशि कपूर, मायापुरी तथा लोटपोट पत्रिका के बेहद शौकीन थे। यह लेखिका जब जब उनसे मिलने जाती थी वे पूछते, 'मायापुरी, लोटपोट लाई कि नहीं?' गलती से भी भूल जाने पर वे नाराज हो जाते थे।

अपनी फिल्म जुनून के लिए उन्हें बतौर निर्माता राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया गया। 'न्यू दिल्ली टाइम' में बेहतरीन अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन 2011 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया, 'जब जब फूल खिले' के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर मुंबई जर्नलिस्ट एसोसिएशन अवार्ड तथा फिल्म 'मुहाफिज' के लिए उन्हें स्पेशल ज्युरी का नेशनल अवार्ड मिला। 2015 में उन्हें 'दादा साहेब फाल्के' पुरस्कार प्राप्त हुआ। कपूर खानदान में, पृथ्वीराज कपूर तथा राज कपूर के बाद वे तीसरे कपूर सदस्य थे जिन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार प्राप्त हुआ।

शशि कपूर के तीन बच्चे हैं, कुणाल कपूर, करण कपूर तथा संजना कपूर।

उनके पिता पृथ्वीराज कपूर अपने जीवन काल में खुद की नाट्य संस्थान  पृथ्वी थिएटर के लिए एक ऐसा परमानेंट घर चाहते थे जिसमें उनके 150 मेंबर वाले ट्रेवलिंग ग्रुप हमेशा के लिए रह सके। पृथ्वीराज के मृत्यु के 16 वर्ष बाद इस सपने को शशि कपूर ने जुहू में विशाल 'पृथ्वी थिएटर' बनाकर पूरा किया।

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शशि कपूर ढेर सारे कमर्शियल फिल्मों में काम करके पैसा कमाते थे और उन पैसों को ऑफ बीट, कलात्मक, लीक से हटकर फिल्में (जुनून, कलयुग,विजेता 36 चौरंगी लेन, उत्सव') जैसी फिल्में बनाने में खर्च कर डालते थे। पृथ्वी थिएटर के निर्माण में भी उन्होंने अपने जीवन भर की पूंजी लगा दी थी। उनकी पत्नी जेनिफर कपूर जीवनभर पृथ्वी थिएटर को संभालने में और अपने तीनों बच्चों की परवरिश में दिन रात एक करती थी।

जेनिफर कपूर अपने पति शशि कपूर के हेल्थ का बहुत ख्याल रखती थी और इस वजह से जब तक पत्नी जेनिफर जिंदा रही तब तक शशि कपूर का हेल्थ बेहतरीन रहा लेकिन जेनिफर के 1984 में कैंसर से मृत्यु हो जाने के बाद शशि कपूर ने अपने हेल्थ का ख्याल करना बिलकुल छोड़ दिया और इसी लापरवाही के चलते उनका वजन बढ़ता रहा और तमाम बीमारियों से वे धीरे धीरे धीरे चले गए।

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चार सितम्बर को 79 वर्ष की उम्र में जब सबके प्रिय शशि कपूर, बॉलीवुड को गमगीन छोड़ कर चले गए तो उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए जैसे पूरी बॉलीवुड उनके घर, पृथ्वी थिएटर तथा सांताक्रुज स्थित श्मशान भूमि में उमड़ आए, जहां उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान, मुंबई पुलिस द्वारा तीन सलामी तोपों के साथ किया गया। उनके पार्थिव शरीर को तिरंगे में लपेटा गया था। उनके अंतिम दर्शन करने आए बॉलीवुड की तमाम बड़ी हस्तियाँ जैसे अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या बच्चन,अभिषेक बच्चन, शाहरुख खान, संजय दत्त, ऋषि कपूर, रणधीर कपूर, रणबीर कपूर,, करीना कपूर, अनु कपूर, रंजीत, नसीरुद्दीन शाह, गमगीन से काफी  देर तक खड़े रहे। आसमान भी जा़र ज़ार रोती बरसती रही।

मायापुरी परिवार शशि कपूर को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए ईश्वर से उनके परिवार को इस दुख की घड़ी में धीरज बनाए रखने  की प्रार्थना करती है।

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