हेमा मालिनी
ईशा को भी डांस से लगाव था इसलिए वह इसे प्रोफेशन के तौर पर आगे बढ़ाना चाहती थी. ईशा एक प्रोफेशनल डांसर बनने के साथ ही बॉलीवुड में अपना करियर बनाना चाहती थी, लेकिन धर्म जी को यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और वह इसके सख्त खिलाफ थे. वह कहते थे कि वह अपनी बेटी को कभी भी बॉलीवुड डेब्यू नहीं करने देंगे. ईशा ने जब बॉलीवुड में काम करने का फैसला लिया तो उन्होंने इस पर कई सवाल भी उठाए थे।
राधिका आप्टे
मेरे दोस्तो और साथ काम करने वाले सभी लोग जो मुझे लेकर परेशान है उन्हें बता दूं कि मैं सुरक्षित लंदन पहुंच गई हूं। इमिग्रेशन में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। बल्कि उल्टा यहां सब खाली था और उनलोगों से अच्छी बातें हुईं। हीथ्रो एक्सप्रेस बिल्कुल खाली पड़ा था और पैडिंगटन में भी मुश्किल से कोई दिखा। अब तक यही नजारा है।’
सैफ अली खान
मुझे पता नहीं है कि मैं उसे लॉन्च करूंगा या नहीं. लेकिन निश्चित ही बॉलीवुड उसके लिए एक अच्छा करियर ऑप्शन हो सकता है. वो काफी स्पोर्टी है. उसे जॉब करने से बेहतर फिल्मों में काम करना पसंद आएगा. सिवा उसकी बहन के हमारे परिवार में एकैडमिक जॉब में वैसे भी किसी की रुचि नहीं रही है. ‘बॉलीवुड अब अलग बेंचमाक्र्स के साथ बिल्कुल अलग दुनिया बन चुका है. उन्हें फिल्मों के लिए तैयार रहना चाहिए. और बहुत ध्यान से फिल्में चुननी चाहिए
तेजस्वी प्रकाश
प्राउड और लकी हूं कि रोहित शेट्टी सर मेरे मेंटर बने. ये और भी बेहतर तब हुआ जब मुझे रोहित शेट्टी की पहली मराठी फिल्म में लीड एक्ट्रेस बनने का मौका मिला. स्कूल कॉलेज अनी लाइफ, इस फिल्म को रोहित शेट्टी ने प्रोड्यूस किया है. विहान सूर्यवंशी ने मूवी को डायरेक्ट किया है. ये फिल्म इस साल गर्मियों में रिलीज होगी।
अपारशक्ति खुराना
मैं ना चाहते हुए भी इस महामारी के पॉजिटिव पक्ष की तरफ देखने से खुद को नही रोक पा रहा। यह हमें धीमा कर रहा है और चूहे की दौड़ से डिस्कनेक्ट कर रहा है और हमें खुद से और दूसरों से जोड़ रहा है। चलो थम जाओ, पैनिक मत हो और उम्मीद करें कि हम इस परिस्थिति से मजबूती के साथ उभरे।
ऋषि कपूर
निर्भया को इंसाफ़। जैसी करनी वैसी भरनी। इसे भारत ही नहीं दुनियाभर में एक मिसाल बनने दीजिए। दुष्कर्म की सज़ा मौत होनी चाहिए। आपको नारीत्व का सम्मान करना होगा। ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए, जिनकी वजह से फांसी में देरी हुई। जय हिंद।
प्रीति ज़िंटा
अगर निर्भया केस के दोषियों को 2012 में ही फांसी मिल जाती तो महिलाओं पर होने वाले अपराध कम हो सकते थे। क़ानून का डर अपराधियों को काबू में रखेगा। सावधानी इलाज से हमेशा बेहतर होती है। यही वक़्त है कि भारत सरकार ज्यूडिशियल रिफॉम्र्स पर ध्यान दे।’’ एक और ट्वीट में प्रीति ने लिखा कि आखि़र यह ख़त्म हुआ। थोड़ी देर हुई, लेकिन ठीक है, इंसाफ़ तो हुआ। निर्भया के माता-पिता को अब थोड़ा चैन मिलेगा।