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लगभग एक दर्शक पूर्व हिन्दी फिल्मों के लिए मीठी-मीठी मनभावन घुनों के बनाने वाले स्वर्गीय रोशन संगीत के सच्चे पुजारी थे. उन्होंने मैहर में उस्ताद अलाउद्दीन खां जैसे प्रतिभावान गुरू से संगीत-शिक्षा पाई थी गुरू के निर्देशन में वर्षो साधना करने के उपरान्त कुछ दिनों तक रेडियो स्टेशन में काम किया, पर वहां मन नहीं लगा. लगन के पक्के रोशन अपनी किस्मत आजमाने के लिए फिल्मी दुनिया की तरफ मुखातिब हुए. संघर्षो और अनुभवों की कंटीली राहों में भटकते रहे. आगे बढ़ते रहे, पीछे मुड़कर नहीं देखा.
सर्वप्रथम श्री केदार शर्मा ने अपनी फिल्म ‘बावरे नैन’ के लिये संगीतकार के रूप में रोशन को प्रतिष्ठित किया. इस फिल्म के गीत अपने समय में काफी मशहूर हुए. जैसे तेरी दुनिया में दिल लगता नहीं वापस बुला ले’ आदि. पर इस फिल्म के बाद रोशन कई दिनों तक खाली बैठे रहे. दूसरी बार इन्हें फिल्म ‘नव बहार’ में काम मिला, जिसके गीतों ने भी पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त की परन्तु इस फिल्म के बाद फिर उन्हें कठिनाइयों ने आ घेरा जो कुछ वर्ष उनकी प्रतिभा को तपाती रही. कहते हैं तपाने पर सोने की चमक बढ़ती है, यही हुआ भी.
‘बरसात की रात’ रिलीज होने पर हिन्दी फिल्मों के सुरूचि सम्पन्न दर्शक वर्ग में रोशन का नाम रोशन होने लगा और इसके बाद उनकी फिल्मों की धारा बह निकली-बाबर, आरती, ताजमहल, दिल ही तो है, चित्रलेखा, दादी मां, देवर, भीगी रात, ममता, बहू बेगम, नूरजहां और ‘अनोखी रात’ आदि जिन-जिन फिल्मों के लिए रोशन ने संगीत दिया, उनके गीत सदैव लोकप्रियता प्राप्त करते रहे.
संगीतकार रोशन भारतीय शास्त्रीय संगीत के अच्छे ज्ञाता थे अतः उनकी धुनों में शास्त्रीय संगीत का संस्पर्श एक विशिष्ट मधुरता उत्पन्न कर देता था. अपनी फिल्मों में उन्होंने शास्त्रीय रागों पर भी कई धुनें बनाई जिन पर आधारित गीत अब तक पसन्द किए जाते हैं. जैसे:-
लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे
(दिल ही तो है)
मन रे, तू काहे न धीर धरे
(चित्रलेखा)
ए री मैं तो प्रेम दीवानी
(नव-बहार)
विभिन्न अंचलों के सुमधुर लोक गीतों का सहारा लेकर भी रोशन ने कई गीतों में जान डाली, जो आसानी से लोगों की जुबान पर छा गए......
बार-बार तोहे का समझाए
(आरती)
पड़ गए झूले सावन रूत आई रे
(बहू बेगम)
लो अपना जहां दुनिया वालो
(दूज का चांद)
हिन्दी फिल्मों में कव्वालियों की परंपरा को स्वस्थ रूप देने का श्रेय रोशन को ही है. उनकी धुनों में संयोजित कव्वालियां पसन्दीदा फिल्मी गीतों के कार्यक्रमों में अक्सर सुनने को मिलती हैं. जैसे:-
ना तो कारवां की तलाश है
( बरसात की रात)
चांदी का बदन सोने की नजर
(ताजमहल)
निगाहें मिलाने को जी चाहता है
(दिल ही तो है)
इसके अतिरिक्त रोशन की प्रमुख विशेषता यह थी कि फिल्मों की कास्टिंग में तथा नेपथ्य से वह शास्त्रीय आधारों पर अत्यंत सुन्दर एवं संतुलित धुनें बजाते थे. उनके गीतकार साहिर लुधियानवी, मजरूह सुल्तानपुरी, आनन्द बक्षी, नीरज व इंदीवर तथा कैफी आजमी उल्लेखनीय हैं. उनकी फिल्म ‘ताजमहल’ के प्रसिद्ध गीत में साहिर की पंक्तियां हैं-
सभी अहले दुनिया ये कहते हैं
हम से ।
कि आता नहीं कोई मुल्के-
अदम से ।।
वक्त पीछे मुड़कर नहीं देखता. पर आज भी रोशन के गीत सुनकर संगीत-प्रेमियों का एक वर्ग उसी तरह उदास हो जाता है मानो किसी देवी गोताखोर द्वारा कीमती रत्न निकाल लिए जाने के बाद समुद्र उदास हो गया हो.
‘तुम एक बार मोहब्बत का इम्तिहान तो लो’ (बाबर) ‘जिन्दगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात’ (बरसात की रात) ‘आपने याद दिलाया तो मुझे याद आया’ (आरती) ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा’ (ताजमहल) ‘सजन सलोना मांग लो’ (दूज का चांद) ‘ए मां तेरी सूरत से अलग’ (दादी मां) ‘रूठे सय्यां हमारे सय्यां क्यों रूठे’ (देवर) ‘आज की रात बड़ी शोख बड़ी नटखट है’ (नई उमर की नई फसल) ‘संसार से भागे फिरते हो’ (चित्रलेखा), ‘रहते थे कभी जिनके दिल में’ (ममता) ‘हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक’ (बहू बेगम) ‘शराबी-शराबी ये सावन का मौसम (नूरजहां) तथा ‘ओह रे ताल मिले नहीं के जल में’ (अनोखी रात) आदि रोशन की प्यारी धुनों पर लिखे गए ऐसे कतिपय गीत है, जिन्होंने महती जनप्रियता उपलब्ध की.
संगीतकार रोशन ने अपनी कला साधना के बूते पर तमाम गीतों को अपनी धुनों में ढालकर अमर कर दिया और उनके गीतों ने फिल्मी दुनिया में रोशन को अमर कर दिया. ऐसी ही कई सरस धुनें और भी सुनने को मिलतीं, परन्तु विधि के विधान को कौन टाल सकता है ? फिर भी चाहने वालों को जाने वाले की याद आती ही है, किसी बात की कमी खटकती ही है. उन्हीं की धुन पर साहिर साहब की दो पंक्तियां पुकार रही हैं-
अब जां-तलब हूं शिद्दते-दर्दे-
निहां से मैं ।
ऐसे में तुझको ढूंढ के लाऊं
कहां से मैं।।
(बहू बेगम)
-डा. हरिश्चन्द्र पाठक