देव खुद में एक त्यौहार थे और उन्हें किसी पुरस्कार की जरूरत नहीं थी By Mayapuri Desk 26 Oct 2019 | एडिट 26 Oct 2019 22:00 IST in ताजा खबर New Update Follow Us शेयर अली पीटर जॉन सभी त्यौहार मनाने के पीछे मेरे पास ज्यादा कारण होते हैं जितना दुनिया के पास होते हैं क्योंकि मैं हर त्यौहार को देवानंद त्यौहार की तरह बनाता हूं. ऐसा इसलिए है क्योंकि मुझे नहीं लगता कि कोई भी त्यौहार देवानंद के जीवन से ज्यादा बेहतरीन और रंगीन होगा. देवानंद वो इंसान है जो भगवान के बेहद करीब थे ऐसा मेरा मानना है. मैं उनसे हमेशा कहता था कि आपके माता-पिता को पहले से ही पता होगा कि आप किस प्रकार के इंसान बनेंगे और इसलिए उन लोगों ने आपका नाम देव (भगवान) रखा. जब दुनिया दशहरा मना रही है और मैं देवानंद त्यौहार मना रहा हूं. मैं उनके जीवन के बारे में याद कर रहा था और मैं वहां रुक गया जब उनको दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने वाला था. वह महाबलेश्वर की फ्रेडरिक होटल में छुट्टी पर थे और एक स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा कि वह तभी वापस आएंगे जब वह अपने स्क्रिप्ट का काम खत्म कर लेंगे और मुझसे निवेदन भी किया कि मैं किसी को यह ना बताऊं कि वो उस वक्त कहां थे. एक दोपहर मुझे मेरे मित्र अमिताभ पराशर का फोन आया जो उस वक्त सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की खबरें कवर किया करते थे. उन्होंने बड़ी खुशी के साथ मुझे यह बताया कि देव साहब को प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया है और वह चाहते थे कि यह खुशखबरी देव साहब को मिले. मैं भी बहुत ज्यादा उत्साहित हो गया था यह सुनकर, पर साथ में अमिताभ को यह बताते हुए मैं थोड़ा दुखी भी हुआ कि देव साहब ने कहा था कि वो जब तक स्क्रिप्ट का काम खत्म नहीं कर लेते वो वापस नहीं आएंगे. यह सुनकर अमिताभ हँसे और थोड़े निराश भी हुए. यह सुनने के बाद मैं अपनी उत्तेजना पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा था. उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करती थी और जब मोबाइल आए भी तो देवानंद को मोबाइल फोंस बिल्कुल पसंद नहीं थे. जब देवानंद के पुत्र ने उनसे जबरदस्ती मोबाइल रखने को कहा तो उन्होंने ले लिया और अपने जींस के पॉकेट में रख लिया और भूल गए. उनको तो अपने फोन का नंबर तक पता नहीं था. मैं उस दिन पूरी दोपहर देव साहब से बात करने की कोशिश करता रहा. उस एक होटल में सिर्फ एक ही लैंडलाइन नंबर था और देव ने होटल के मैनेजर से कहा था कि उनको किसी भी हालत में डिस्टर्ब ना करें. आखिरकार उनसे मेरी बात 7:30 बजे शाम में हुई जो उनके डिनर करने का समय था. मैंने उन्हें इस अच्छी खबर के बारे में बताया और वह मुझसे बिना किसी उत्तेजना के बाकी दिनों की तरह स्वाभाविक ढंग से बात करते रहे. वो बस मुझसे यही जानना चाह रहे थे कि क्या मैं इसके बारे में कंफर्म हूं और फिर उन्होंने मुझे शुभरात्रि बोल कर फोन रख दिया. फिर दिन को निर्धारित किया गया जिस दिन देवानंद को इस सम्मान से सम्मानित किया जाएगा. देवानंद ने मुझसे अपने साथ नई दिल्ली चलने को कहा जैसा कि वो हमेशा करते थे. यह पुरस्कार देव साहब को उस वक्त के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा विज्ञान भवन में दिया जाने वाला था. देव साहब अपने चिर परिचित अंदाज में जींस, बड़े कॉलर वाले स्टाइलिश शर्ट,गले में स्कार्फ, माथे पर अपनी ज्वेल थीफ वाली कैप और कॉउबॉय वाले बूट्स में पुरस्कार लेने आए थे. उस शाम वो सभी के ध्यान का केंद्र थे देव साहब. यहां तक की राष्ट्रपति भी देव साहब के फैन लग रहे थे. वो तब तक देव साहब के लिए तालियां बजाते रहे जब तक देव साहब स्टेज़ पर नहीं पहुंच गए. देव साहब ने अपनी टोपी हिलाते हुए सिटी बजाई और प्रेसिडेंट की तरफ बाँहे फैलाते हुए बढ़े. इससे पहले किसी भी राष्ट्रपति से कोई इस तरीके से नहीं मिला था. देव आनंद का जिस प्रकार का स्वभाव था अगर वह स्वभाव नहीं होता तो फिर वो देव आनंद नहीं होते. राष्ट्रपति जो सिर्फ कुछ मिनटों के लिए खड़े होते हैं, वो देवानंद के लिए 15 मिनट तक खड़े रहे और लगातार तालियां बजाते रहे. दर्शक तो मानो पागल हो रहे थे देवानंद के लिए. उस वक्त के केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद ने दर्शकों से कहा कि जिस वक्त उन्होंने देवानंद को इस पुरस्कार से सम्मानित करने के पेपर पर साइन किया था वह उनके जीवन का सबसे महानतम लम्हा था. दूसरे दिन दिल्ली में एक पब्लिक हॉलिडे की तरह लग रहा था. इतनी खुशी के माहौल में भी देवानंद ने मेरे दोस्त अमिताभ पराशर को नहीं भूला जिन्होंने इस पुरस्कार के बारे में सबसे पहले हमें सूचना दी थी. देवानंद ने मुझसे कहा कि मैं अमिताभ से पूँछू कि देव साहब उनके लिए क्या कर सकते हैं और अमिताभ ने कहा कि वो बस उनके 'हिंदुस्तान' ऑफिस में कुछ मिनटों के लिए आ जाए वो उनके लिए जीवन सफल होने जैसा होगा. देव साहब, जिन से मिलने के लिए लोग तरसते थे वो अमिताभ के ऑफिस में 2 घंटे तक रुके. बाद में उन्हें फाल्के अवार्ड को देने की प्रक्रिया से थोड़ी निराशा हुई. उन्हें पता चला कि उनके अच्छे दोस्त यश चोपड़ा और आशा भोंसले ने उनके खिलाफ वोट दिया था क्योंकि उनके हिसाब से देव साहब ने फिल्म इंडस्ट्री में अपना कोई कॉन्ट्रिब्यूशन नहीं दिया था . उन्होंने एक बार कहा था कि ,'यह लोग कुछ भी नहीं होते अगर मैं इनकी मदद नहीं करता तो ,पर दुनिया एहसान फरामोशों की हो गई है तो ठीक है. एक बड़ा इगो प्रॉब्लम हो गया था जब उनको पद्मभूषण से सम्मानित करने का निर्णय लिया गया. उन्होंने पुरस्कार को लेने से मना कर दिया क्योंकि उनसे कम अनुभवी और जूनियर लोगों को पद्म विभूषण मिल रहा था. पर यह खबर न्यूज़पेपर में आग की तरह फैलती उससे पहले ही उस वक्त महाराष्ट्र पॉलिटिक्स के गद्दावर नेता शरद पवार ने देवानंद से विनती की कि वह कृपया करके इस पुरस्कार को स्वीकार कर ले वरना उनकी बहुत बेइज्जती हो जाएगी. उन्होंने यह भी वादा किया कि वो देवानंद को अगले साल पद्म विभूषण से भी सम्मानित करेंगे. देवानंद पुरस्कार को लेने के लिए मान गए. पर उसके बाद देवानंद ने कोई भी पुरस्कार स्वीकार नहीं किया क्योंकि उन्हें लगता था कि यह पुरस्कार वितरण एक पॉलिटिकल माफिया करती है. अब जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो मुझे लगता है कि देव साहब आज के समय की भविष्यवाणी कर रहे थे. मायापुरी की लेटेस्ट ख़बरों को इंग्लिश में पढ़ने के लिए www.bollyy.com पर क्लिक करें. अगर आप विडियो देखना ज्यादा पसंद करते हैं तो आप हमारे यूट्यूब चैनल Mayapuri Cut पर जा सकते हैं. आप हमसे जुड़ने के लिए हमारे पेज width='500' height='283' style='border:none;overflow:hidden' scrolling='no' frameborder='0' allowfullscreen='true' allow='autoplay; clipboard-write; encrypted-media; picture-in-picture; web-share' allowFullScreen='true'> '>Facebook, Twitter और Instagram पर जा सकते हैं.embed/captioned' allowtransparency='true' allowfullscreen='true' frameborder='0' height='879' width='400' data-instgrm-payload-id='instagram-media-payload-3' scrolling='no'> #bollywood news #bollywood #Bollywood updates #Dev Anand #Dadasaheb Phalke Award #television #Telly News #Veteran 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