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फिल्म इन्डस्ट्री की यह रीत वर्षों से चली आ रही है कि यहां सदा चढ़ते सूरज की ही पूजा होती है. इसी लिए जब किसी हीरो और हीरोइन की एक फिल्म बॉक्स-ऑफिस पर क्लिक हो जाती है. तो अन्य निर्माता भी अपनी फिल्मों में उसी जोड़ी को दोहराने लगते हैं. हेमा मालिनी के साथ मेरी पहली फिल्म’ तू हंसी मैं जवां' थी. जिसने बॉक्स-ऑफिस पर अच्छा बिजनेस किया था. उसके बाद ‘शराफत' ने रजत जयन्ती मनाई. उसके साथ हमारी टीम बन गई और फिर तो हमारी सिल्वर-जुबली फिल्मों की लाइन लग गई. जिनमें 'राजा जॉनी”, 'सीता और गीता, 'दोस्त' ने न केवल रजत जयंती मनाई बल्कि जुगनू' ने स्वर्ण जयंती मनाई. पत्थर और पायल' और 'प्रतिज्ञा' और फिल्मों की तरह अधिक सेंटर पर चाहे जुबली न की हों किन्तु कम से कम तीन सेंटरों पर उन्होंने भी जुबली मनाई. और 'शोले' ने सफलता का एक नया ही रिकार्ड स्थापित किया है. यह बातें ऐसी हैं जिसके कारण पता चलता है कि दर्शकों और फिल्मकारों को हमारी जोड़ी से कितना प्यार है और हम पर कितना विश्वास है. क्योंकि फिल्मकार और दर्शक ही होते हैं जो स्टारों की टीम बनाते हैं. यह टीम बनाना हम कलाकारों के बस का रोग नहीं है. इस बात के लिए फिल्म उद्योग का पूरा इतिहास गवाह है. हमारी टीम कोई पहली टीम नहीं है. हमसे पहले भी इसी प्रकार कई टीमें लोक श्रिय रही हैं जैसे दिलीप साहब और कामिनी कौशल, दिलीप साहब और मधुबाला, दिलीप साहब और वैजयंती माला, देव आनन्द और सुरैया, राज जी और नगिस, दादा मुनि (अशोर कुमार) और नलिनी जयवंत आदि.
दो कलाकार जब अत्याधिक एक साथ काम करते हैं तो उनमें इन्टीमेसी का पैदा होना स्वाभाविक्र ही होता है. इससे फिल्म को लाभ ही होता है कि सीन बड़े स्वाभाविक अन्दाज में फिल्मबद्ध होते हैं. उनमें बनावट की बजाए वास्तविकता अधिक नज़र आती है. क्योंकि देखने वालों के दिलों को छू लेती है कि साथ-साथ काम करने से कलाकारों के बीच की झिझक दूर हो जाती है. वह एक दुसरे के करीब रहने से एक दूसरे की अच्छाईयों और बुराईयों (यदि हों) से परिचित हो जाते हैं. एक दूसरे को समझने लगते हैं. एक दूसरे की पन््सद और नापसन्द को जानने लगते हैं. एक दूसरे की कमजोरियों और खूबियों को ध्यान में रखकर एक दूसरे से सहयोग करते हैं जिससे फिल्म के पात्रों में जिन्दगी का अहसास झलकने लगता है.
मैं और हेमा लगभग 6 साल से एक साथ काम कर रहे हैं. हममें किस कदर अंडरस्टैंडिंग होगी इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है. हम दोनों एक दूसरे के प्रति बड़े गहरे जज़्बात रखते हैं जो दो दोस्तों की दोस्ती से भी ज्यादा गहरे हैं और यह जज्बात किसी प्लानिंग के साथ न उभरते हैं और न ही उभारे जाते हैं. और ऐसे संबंधों के बारे में न ही कोई भविष्यवाणी की जा सकती है इसकी शुरूआत का तो हमें पता है किन्तु अन्त का कोई पता नहीं. वक्त के साथ यह सम्बंध घनिष्ट हो रहे हैं. आगे क्या होगा किसी को न पता है और न कोई बता सकता है. लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि यह संबंध सदा यूं ही बढ़ते रहेंगे जब तक जनता और वक्त मेहरबान है. हमारे बीच जो अंडरस्टैंडिंग है. वह बनी ही रहेगी. उसका कारण यह है कि हेमा एक मेच्योर लड़की है. दूसरे हमारा स्वभाव भी समान ही है. वह मेरी तरह बड़ी ही घरेलु लड़की है. दूसरी फिल्मी लड़कियों की तरह उसमें बनावट नहीं है. वह एक नचुरल एक्ट्रेस है. इसीलिए मेरी तरह उसके व्यक्तित्व को किसी भी सांचे में ढाला जा सकता है. वह भी हर प्रकार की भूमिका सामान रूप से निभाने की क्षमता रखती है. हां, अस्वाभाविक पात्र और दृश्य करने में वह कुछ अजीब-सी उलझन महसूस करती है. यही कारण है कि दर्शकों ने उसे आज अश्लील पात्र या सीन करते नहीं देखा. उसकी यही बात मेरी तरह करोड़ों दर्शकों को पसन्द है. और प्यार और आदर की दृष्टि से देखी जाती है.
हेमा से जब मैं पहली बार मिला था तब अधिक प्रभावित नहीं हो सका था. इतनी सीधी-साधी और भोली-भाली लड़की आगे चलकर इतनी कयामत की अभिनेत्री निकलेगी इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था. किन्तु आज हेमा अपने ढंग की एक अकेली अभिनेत्री है. वह गजब की लड़की है. उसमें हीरोइनों वाला कोई नखरा नहीं है. न ही वह औरों की तरह मूडी है. इसीलिए उसके साथ काम करने में कभी टैनशन नहीं- होती. आज वह इतनी बड़ी सफलता पाकर भी बड़ो सिम्पल है. घमंड नाम-मात्र भी उसे छू तक नहीं गया है. यह कोरी तारीफ नहीं हकीकत है. हेमा और आम इन्सानों में कोई फर्क नहीं है. और कोई इन्सान आपस में भेदभाव नहीं रखता. .इसीलिए जहां मैं अन्य हीरोइनों के साथ काम करता हूँ वह भी अन्य हीरोज के साथ काम करती ही है. शायद इसी वजह से कभी- कभार कुछ अप्रिय घटनाएं घट जाती हैं.
दरअसल जब दो इंसानों में लगाव हो जाता है तो कभी-कभार मीठी-सी कुछ कड़वी से घटनाएं और बातें तो घटती रहती हैं. क्योंकि यह इन्साती फितरत है और कोई इन्सान पूरी तरह मुकम्मिल नहीं है. हममें भी कभी-कभार रूठा-रूठी हो जाया करती है. जोकि चेंज की खातिर बड़ी जरूरी होती है. लेकिन उस स्थिति में भी एक खास अन्दाज यह होता है.
रूठें न बात-बात पे क्यों जानते हैं वह,
हम वह नहीं कि हमको मनाया न जाएगा ॥
इन्सान होने के नाते कुछ कमियां कुछ कमजोरियां हर एक इन्सान में होती हैं. और् उससे हम अलग नहीं हैं. इसलिए कभी-कभार फिल्मी राजनीति का शिकार हो जाया करते हैं. और लोग गलतफहमी की दीवार खड़ी करने में वक्ती तौर पर सफल भी हो जाते हैं तो वह दीवार किसी रेत के महल की तरह ढह जाती है. क्योंकि जब आमना-सामना होता है तो किसी गुब्बारे की तरह फूट कर उड़ जाता है. इस प्रकार सारा गुस्सा अपने आप ठंडा हो जाता है. सारे गिले-शिकवे धरे रह जाते हैं.
'सोचते थे वह कहेंगे ऐ 'सरोश',
हो गई जब चार आंखें मुस्करा कर रह गए ॥
भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि लोगों की लाख साजिशों के बावजूद हमारी जोड़ी न केवल बनी हुई है बल्कि जमी हुई है. और जितना लोग आपस में गलतफहमियां पैदा करने की कोशिशें करते हैं उतनी ही हमारी जोड़ी सशक्त होती जाती है. आज भी हम लगभग एक दर्जन फिल्मों में आ रहे हैं जिनमें आजाद, चाचा भतीजा, ड्रीम गर्म, रजिया सुलतान, देवदास, संमसन एन्ड डिलाइलाह, दिल्लगी आदि फिल्मों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है हेमा हालांकि अधिक फिल्में, डेली शूटिंग से ऊब गई है इसके बावजूद जब कोई मेरे साथ लेने की बात करता है तो वह इसी खुशी से फिल्म स्वीकार कर लेती है. “खुशबू' के बाद से एक नई हेमा ने जन्म लिया है. जो गंभीर प्रकार की भमिकाएं करना चाहती है. अपनी अभिनय क्षमता का खुलकर प्रदर्शन करना चाहती है इस हिसाब से हमारी फिल्म 'देवदास', “रजिया सुलतान' और 'दिल्लगी' आदि फिल्में उसकी अतृप्त आकांक्षाओं को परदे पर साकार करने में सहायक सिद्ध होगी. और हमारी जोड़ी, हमारी दोस्ती को और अधिक मजबूत बनायेगी. दरअसल मेरी ही नहीं मेरे परिवार की भी बड़ी अच्छी दोस्त है. जितना प्यार और आदर मुझे उसके घर में मिलता है उतना ही हेमा को मेरी पत्नी, बच्चों और घर वालों से मिलता है. भगवान हमारी जोड़ी के भाग्य को और दोस्ती को बुरी नज़र से बचाए ताकि हम आपका अधिक से अधिक मनोरंजन कर सकें. आमीन!