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धर्मेंद्र फिल्मफेयर सम्मान के लिए साल दर साल तैयार होते रहे

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By Sharad Rai
धर्मेंद्र फिल्मफेयर सम्मान के लिए साल दर साल तैयार होते रहे
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कुछ वर्षों पहले मुम्बई के चांदिवली फिल्म स्टूडियो में धर्मेंद्र के साथ एक इंटरव्यू करने पहुंचा था. उस दिन मैंने महसूस किया कि वह कितने भावुक कलाकार हैं. मिलते ही मुझेसे पूछे -" कैसी है मायापुरी? कैसे हैं बजाज साहब?" उनका मतलब 'मायापुरी' के मालिक- संपादक पी. के. बजाज से था. फिर उन्होंने बताया कि उनके यहां हर हफ्ते आनेवाली 'मायापुरी' पहुंच नहीं पा रही है. और, उन्होंने यह भी कहा कि मायापुरी पत्रिका उनके लिए हमेशा अच्छा लिखती रही है. आज का कोई सितारा इस तरह का भावनात्मक रिश्ता किसी अखबार या पत्रिका से नही रखता. बातों का सिलसिला शुरू हुआ फिल्मफेयर अवार्ड से, जो उसी शांम को सम्पन्न होनेवाला था.

"आप जा रहे हैं?" 

"नहीं, अब नहीं जाता. फिल्म फेयर ने मुझे लाइफ टाइम अवार्ड  दे दिया है. कभी जाया करता था, हर साल जाता था, कभी नहीं दिया. जब दिया तो लाइफ टाइम सम्मान ही दे दिया."

धर्मेंद्र की शुरुवात हुई थी फिल्म पत्रिका फिल्मफेयर द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित न्यू टेलेंट कांटेस्ट से जिसमे उनको जीत मिली, लेकिन सेलेक्शन के बाद उनको तुरंत कोई फिल्म नही मिली. अर्जुन हिंगोरानी ने उनको 51 रुपए पारिश्रमिक के साथ फिल्म दिया 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' और फिल्मों का कारवां चल पड़ा. कई फिल्में मिलती गयी. रोमांटिक नायक और फिर एक्शन नायक के रूप में धर्मेंद्र सारी हीरोइनों के साथ काम करने लगे.उस समय फिल्म फेयर ही बड़ा अवार्ड था.धर्मेंद्र को विश्वास होता उनको उनकी फिल्मों के लिए अवार्ड मिलेगा, पर होता नही था ऐसा. 1966 में उनको फिल्म 'फूल और पत्थर' के लिए नामांकन मिला, फिल्म की हीरोइन थी मीना कुमारी.अवार्ड नही मिला. "मैं खूब तैयार होकर गया था." बताया था उन्होंने. फिर दूसरी बार 1971 में उनको फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया.फिल्म थी 'मेरा गांव मेरा देश'...इसबार भी बेस्ट एक्टर का अवार्ड उनको नहीं मिला. वह निराश हो गए.दरअसल वह समय में पैरेलेल(आर्ट) सिनेमा को संम्मानित किए जाने का प्रचलन था.

धर्मेंद्र फिल्मों में आने से पहले दिलीप कुमार के बहुत बड़े फैन थे और दिलीप कुमार के पोस्टर देखकर सोचा करते थे कि काश उनके भी पोस्टर वैसे ही लगते. वक्त आगे बढ़ा, वे स्टार बन गए. धर्मेंद्र के बर्थ डे के तीन बाद ही दिलीप कुमार का बर्थ डे पड़ता था. धर्मेंद्र अपने आदर्श को जन्मदिन (11 दिसम्बर) की बधाई देने हर साल जाया करते थे. साल 1997 आया, फिल्म फेयर कमेटी ने इसबार धर्मेंद्र को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड देने का निश्चय किया.अवार्ड देने के लिए सभागार में मुख्य अतिथि दिलीप कुमार और सायरा बानो थे. धर्मेंद्र के लिए यह बेहद भावुकता भरा पल था. वह स्टेज पर अपने मनोभाव व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पाए, बोले-" एक से एक- सौ फिल्में दिया मगर मुझे बेस्ट एक्टर का सम्मान नहीं दिया गया...." तब दिलीप कुमार ने धर्मेंद्र के लिए जो कहा, किसी अवार्ड से बहुत बड़ा था. दिलीप कुमार ने कहा कि वे जब भी रब से मिलेंगे तो एकही शिकायत करेंगे कि उसने उनको धर्मेंद्र जैसा खूब सूरत क्यों नहीं बनाया ? सचमुच उस समय अपने आदर्श के मुंह से ऐसा सुनना धर्मेंद्र के लिए बहुत बड़ा सम्मान था. यह बताते हुए वह गम्भीर हो गए थे, साल दर साल फिल्म फेयर के लिए अपने तैयार होने वाले शिकवे भूल गए थे.

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