एक अभिनेत्री होने के साथ साथ एक प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर भी अपनी अलग पहचान रखनेवाली अभिनेत्री दीया मिर्ज़ा ने संगीता बबानी द्वारा निर्मित वास्तुशिल्प 'क्वेस्ट फॉर नॉलेज' का अनावरण किया. ब्रांदा के पाली हिल में स्थापित किये गये इस वास्तुशिल्प की संकल्पना मुम्बई महानगरपालिका के साथ मिलकर तैयार की गई है. इस वास्तुशिल्प में दिखाया गया है एक व्यक्ति पुस्तक पढ़ने में तल्लीन है तो वहीं पास में ही खड़ा एक श्वान (कुत्ता) उनके ऊपर उछल रहा है. इसके माध्यम से 'सबके लिए शिक्षा' का संदेश दिया गया है. उल्लेखनीय है कि इस ख़ास अवसर पर दीया मिर्ज़ा के अलावा मुम्बई में एच वॉर्ड के सहायक मनपा आयुक्त विनायक विस्पुते और एच वॉर्ड के पूर्व नगर सेवक आसिफ़ ज़कारिया भी विशेष अतिथि के तौर पर मौजूद थे.
शिक्षा किसी का विशेषाधिकार ना होकर हर किसी का हक़ है जिसे सभी लोगों को समान रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए. संगीता बबानी द्वारा इस वास्तुशिल्प को बनाने का अहम लक्ष्य है कि बिना किसी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और लैंगिंग भेदभाव के सभी को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हों. इस ख़ास मौके पर बेहद ख़ुश नज़र आ रही संगीता बबानी ने कहा, "ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है. उसकी शुरुआत तो होती है, मगर उसका कोई अंत नहीं होता है और ये किसी को नहीं भूलना चाहिए कि हर किसी को ज्ञान पाने का समान अधिकार होता है. ज्ञान में निवेश करने से बेहतर रिटर्न्स यानि बढ़िया लाभ हासिल होता है. इस वास्तुशिल्प के निर्माण का मक़सद ज्ञान की अहमियत और उसकी जुड़ी ताक़त को लोगों के सामने पेश करना है. देश के हरेक बच्चे को ज्ञान व शिक्षा हासिल करने की सहूलियत मिलनी चाहिए और किसी भी बच्चे को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए. इससे ना सिर्फ़ बच्चे का भविष्य उज्ज्वल बनेगा बल्कि देश के भी संपूर्ण विकास में इससे मदद मिलती है."
इस मौके पर दीया मिर्ज़ा (UN Environment Goodwill Ambassador and UN Secretary General's Advocate for SDG's) ने कहा, "सार्वजनिक कला लोगों की इच्छाओं का एक बेहतरीन अक्स होता है मगर हम ऐसे लोगों को हम गलती से 'आम' कहकर पुकारते हैं. संगीता बबानी द्वारा तैयार की गई वास्तुकला 'क्वेस्ट फॉर नॉलेज' हमें इस बात की याद दिलाती है कि लिखे हुए शब्दों, शिक्षा, जीवन को आमूल-चूल रूप से बदल देनेवाले क्रांतिकारी विचारों की अपनी एक शक्ति होती है. यह वास्तुकला हमें इस बात का भी एहसास कराती है कि किताब के पन्ने पलटने जैसी साधारण सी बात भी किस तरह के बड़े-बड़े ख़्वाबों को जन्म दे सकती है जिन्हें साकार करना भी नामुमकिन नहीं होता है. मैं भी एक मां हूं और मैं एक ऐसे देश में रहती हूं जिसकी आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा है. ऐसे में मैं हरेक बच्चे, हरेक किशोरवयी और हरेक युवा शख़्स को शिक्षा देने की पुरज़ोर तरीके से पैरवी करती हूं. हरेक बच्चे को शिक्षा का समान अधिकार दिये बग़ैर और सामजिक व आर्थिक खाई को मिटाये बिना हम एक देश के रूप विकसित नहीं हो सकते हैं. इसके बग़ैर हम सस्टेनेवल डेवलपमेंट गोल (SDG) को प्राप्त करने और सर्वसमावेशी व गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के अपने लक्ष्य को भी पूरा नहीं कर सकते हैं."