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शरद राय | बात 1977 की है। तब मैं पत्रकार नहीं बना था। लेकिन, ‘मायापुरी’ की एक पत्रकार छाया मेहता से मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी थी फिल्म देखने का शौक और फिल्मवालों से मिलने की उत्सुकता हमेशा ही रहती थी। अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर मैं ‘बंक’ मारकर छाया को मिलने जाता था- लांलच यही था कि वह किसी फिल्मवाले से मुझे मिलवा देंगी। छायाजी अक्सर मदनपुरी साहब का जिक्र करती थी और कहती थी कि वे उम्र में जरूर मुझसे बड़े हैं लेकिन मेरे दोस्त हैं। ऐसे ही, एक दिन मुझे नटराज स्टूडियो अपने साथ ले गई-मदनपुरी जी को मिलाने के लिए। मदनपुरी पर्दे के बहुत बड़े विलेन (खलनायक) थे। वह शाॅट दे रहे थे। दृश्य था कि वह बिस्तर पर लेटे कोई मरीज बने थे। उनके पास एक डाॅक्टर ,खडे़ थे। जो इफ्तेखार साहब थे। मैं पहली बार कोई शूटिंग देख रहा था और हैरान हो रहा था।
मदनपुरी अपने मुंह पर लगे आक्सीजन-मास्क को हटाते थे, इधर-उधर देखते थे, फिर लगा लेते थे। वह कैमराबंद होने पर चिल्लाए- ‘अरे तुल्ली कहां है तुल्ली ?’ यह ‘तुल्ली’ एक सांवली सी साधारण-सी लड़की थी जो हमारे पड़ोस की घरेलू-सी लड़की की वेशभूषा में थी। कमरे के अंदर उसके आते ही लोग कहने लगे- ‘रामेश्वरी आ गई... रामेश्वरी!’ दरअसल यह फिल्म की हीरोइन रामेश्वरी तुल्ली थी- जो अब रामेश्वरी सेठ हैं। फिर ब्रेक हो गया था। छाया को देखकर मदनपुरी साहब बड़े गर्मजोशी से उसे गले लगा लिए थे।
फिर...अरे हमने पाठकों को बताया नहीं कि वहां फिल्म ‘दुल्हन वहीं जो पिया मन भाये’ की शूटिंग चल रही थी। शूटिंग के समय हमने क्लैप बोर्ड पर पढ़ लिया था ‘राजश्री प्रोडक्शन कृत ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाये’। एक साधारण सी चुप्पी थे सैट पर जहां कोई बड़ा स्टार नहीं था मदनपुरी को छोड़कर पुरी साहब ने छाया मेहता को अपने साथ मेकअप रूम में चलने के लिए कहा। इस बीच छाया ने मुझे उनसे मिला दिया था। हम इतने बड़े स्टार के साथ- जिसे पर्दे पर गुंडे के रूप में देखते थे। उसके साथ कुछ देर बाद मेकअप रूम में बैठकर खाना खा रहे थे। मेरे लिए यह कौतुहल भरा क्षण था। बताने की जरूरत नहीं कि मेरे मन में फिल्म पत्रकार बनने का कीड़ा यहीं से कुलबुलाया था।
मदनपुरी साहब ने बताया कि यह फिल्म उनकी गुंडा-बदमाश और स्मगलर की इमेज को धोकर रख देगी। मदनपुरी ने हमें यह भी बताया कि फिल्म के हीरो प्रेम किशन हैं- प्रेम नाथ के बेटे। पहले मेरा रोल प्रेमनाथ ही करने वाले थे लेकिन वह मनोज कुमार की फिल्म से शरीफ बनने का मौका ले लिए हैं, इसलिए मुझे पर प्रयोग हुआ है। दरअसल हम फिल्म के सैट पर राजश्री के इनविटेशन पर नहीं गये थे, मदन जी को वहां छाया मेहता मिलने गई थी और छाया के साथ हम मदनजी के मेहमान थे। मदनपुरी ने बताया कि इस प्रोडक्शन (राजश्री) द्वारा शो से बाजी नहीं होती। इस लिए ये लोग फिल्म पूरी होने पर ही प्रेसवालों को बुलाते हैं। फिर वह बड़े बृतान्त से हमें फिल्म में अपने ‘दादाजी’ वाले करेक्टर के बारे में बताने लगे, बोले - ‘पता नहीं लोग मुझे शरीफ आदमी के रूप में देखकर बर्दास्त करेंगे कि नहीं। समय लो, मैंने एक रिश्क लिया है। अरे मैंने नहीं, मुझे बदले रूप में पेश करके राज बाबू (राज कुमार बड़जात्या) ने बहुत बड़ा रिश्क लिया है।’ वह हंसते हुए बड़े रोमांटिक अंदाज में बार-बार छाया के कंधे पर हाथ मार देते थे। फिल्म की कहानी अब सबको पता है। सब जानते हैं यह फिल्म मदनपुरी के लाईफ की टर्निंग प्वाइंट थी। राजश्री प्रोडक्शन ने उनको फिल्म रिलीज के बाद एक नई इमेज दे दी थी। मदनपुरी साहब के बदलाव से प्रेरणा लेकर ही बाद में अमरीश पुरी ने भी बदलाव लिया था।
बहरहाल मैंने उस सैट पर एक विलेन के दो रूप देखे थे। एक जो उनकी पर्दे की इमेज थी, दूसरी जो वह मेकअप रूम में हमारे बीच रोमांटिक अंदाज में हरकते करते देख रहे थे।